ईश्वर दुबे
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Bhilai
कांग्रेस और भाजपा नेताओं ने जताया वैकल्पिक प्रचार तंत्र पर भरोसा
भोपाल।पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि मध्य प्रदेश के अधिकांश राजनेताओं की जमीनी पकड़ कमजोर पड़ती जा रही है। पार्टी कार्यकर्ताओं और क्षेत्र की जनता के बीच उनका संपर्क कम होता जा रहा है। संचार और संपर्क माध्यमों के लगातार विस्तार के बावजूद इस बदलाव से कई राजनेता चिंतित नजर आ रहे हैं। संभवत यही कारण है कि पिछले कुछ चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो स्पष्ट होता है कि जमीनी पकड़ और लोगों के निरंतर संपर्क का दावा करने वाले नेताओं को भी जनता का चुनावी सहयोग नहीं मिल पाया और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। ऐसे में अब सोशल मीडिया का बड़ा सहारा तलाशा जा रहा है और अपनी लोकप्रियता को स्थापित करने के लिए इससे उन्हें मदद भी मिल रही है।
संभवत है यही कारण है कि न सिर्फ राजनेता बल्कि उनके पार्टी संगठन द्वारा भी सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म फेसबुक ,व्हाट्सएप ,ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि के उपयोग पर पूरा जोर दिया जा रहा है। यहां तक कि इस प्लेटफार्म पर निष्क्रिय ऐसे नेताओं को पार्टी के द्वारा निर्देश भी जारी किए जा रहे हैं कि वे अपनी सक्रियता बढ़ाएं और अपने मीडिया फ्रेंड्स एवं फॉलोअर्स की संख्या में लगातार वृद्धि करें। कांग्रेस और भाजपा के मीडिया सेल भी लगातार अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं और सोशल मीडिया के लाइक व फॉलोअर्स की संख्या में वृद्धि करने का जतन कर रहे हैं ।
हार का यही बड़ा कारण
यदि पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के परिणामों पर ही नजर डाले हैं तो स्पष्ट होता है कि कांग्रेस नेता अजय सिंह राहुल, दिग्विजय सिंह ,रामनिवास रावत, मुकेश नायक, अरुण यादव जैसे जमीनी आधार वाले नेताओं को भी हार का मुंह देखना पड़ा। लगभग यही हालत भाजपा से कई बार सांसद और विधायक रहे रामकृष्ण कुसमरिया, सरताज सिंह, रुस्तम सिंह ,हेमंत खंडेलवाल जैसे नेताओं की हुई है। इसी कड़ी में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भी लिया जा सकता है । इनके सहित अन्य नेताओं के अप्रत्याशित पराजय का मुख्य कारण उनकी जमीनी स्तर पर कमजोर होती पकड़ के साथ सोशल मीडिया पर सक्रियता की कमी को ही माना जा रहा है। यह बात अलग है कि चुनाव में उनके खेत होने के अन्य कई प्रमुख कारण भी मौजूद रहे हैं।
आईटी सेल की बढ़ी सक्रियता
आम लोगों को पार्टी की रीति नीति से परिचित कराने और अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को नीतिगत फैसले की जानकारी देने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्य प्रतिद्वंदी दल कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही अपने संगठन के आईटी सेल को मजबूत करने के लिए जोर लगा दिया है। मिस कॉल देकर पार्टी के सोशल मीडिया प्लेटफार्म से जुड़ने के साथ ही ईमेल करने और वेबसाइट को लोगिन करने का संदेश लगातार प्रसारित किया जा रहा है। भाजपा की मीडिया सेल ने वेबसाईड पर अपने वर्तमान फॉलोअर्स की संख्या को 65000 से बढ़ाकर ढाई लाख तक करने के लक्ष्य पर काम शुरू कर दिया है। इसी तरह कांग्रेस ने भी अपनी मीडिया सेल की सक्रियता को बढ़ाते हुए भाजपा की बराबरी करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। कांग्रेस तो यहां तक प्रचारित कर रही है कि सोशल मीडिया वार में उन्होंने बीजेपी को पछाड़ दिया है । ट्विटर पर कांग्रेस 8 लाख 3 हजार 1 सौ फॉलोअर्स होने और भाजपा 6 लाख 95 हजार 6 सौ फॉलोअर्स होने की बात कह रही है। वैसे देखा जाए तो सोशल मीडिया के सहारे चुनावी कैम्पेन की शुरुआत 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में चुनावी मैदान पर उतरने के बाद शुरू हुई थी , जो अब राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के बीच में सोशल मीडिया वार का रूप लेती जा रही है।