2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला भारत की राजधानी दिल्ली में 16 दिसम्बर 2012 को हुई बलात्कार एवम हत्या की घटना रोंगटे खड़े कर दिए थे यह सत्य है कि संचार माध्यम के त्वरित हस्तक्षेप के कारण प्रकाश में आयी वरना यह भी एक सामान्य सा अपराध बनकर फाइलों में दबी होती.
सोशल मीडिया ट्वीटर फेसबुक आदि पर काफी कुछ लिखा गया. इस घटना के विरोध में पूरे नई दिल्ली,  कलकत्ता  और बंगलौर  सहित देश के छोटे-छोटे कस्बों तक में एक निर्णायक लड़ाई सड़कों पर नजर आ रही थी .   बावजूद इसके किसी भी प्रकार का परिवर्तन नजर नहीं आता इसके पीछे के कारण को हम आप सब जानते हैं .
बरसों से देख रहा हूं कि नवंबर से दिसंबर बेहद स्थितियों को सामने रख देते हैं . ठीक 7 साल पहली हुई इस घटना के बाद परिस्थितियों में कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आ रहा है . हम अगले महीने की 26 तारीख को नए साल में भारतीय गणतंत्र की वर्षगांठ मनाएंगे पता नहीं क्या स्थिति होगी तब मुझे नहीं लगता कि हम तब जबकि महान गणतंत्र होने का दावा कर रहे होंगे तब हां तब ही किसी कोने में कोई निर्भया अथवा प्रियंका रेड्डी का परिवार सुबक रहा होगा तब तक टनों से मोम पिलाया जा चुका होगा . अधिकांश जनता आम दिनों की तरह जिंदगी बसर करने लगे होंगे... हां उनके हृदय में डर अवश्य बैठ चुका होगा . ना तो समाज में और ना ही व्यवस्था में कोई खास परिवर्तन नजर आएगा परंतु परिवर्तन आ सकता है अगर समाज में लोग यह सोचें कि :- हम रेपिस्ट को केवल फांसी के फंदे पर देखना चाहते हैं अगर वह अपना खून है तो भी ..! शायद बदलाव शुरू हो जाएगा, परंतु सब जानते हैं ऐसा संभव नहीं है .
व्यवस्था भी कानूनी व्यवस्थाओं का परिपालन करते-करते बरसों बिता देगी परंतु फांसी के फंदे तक रेपिस्ट नहीं पहुंच पाएंगे आप जानते हैं कि अब तक आजादी के बाद कुल 57 केस में फांसी की सजा हो पाई है . इसका अर्थ है कि कहीं ना कहीं रेपिस्ट न्याय व्यवस्था में लंबे लंबे प्रोसीजर्स के चलते लाभ उठा ही लेते हैं और जिंदा बनी रहते हैं कि वह लोग हैं जिन्हें जीने का हक नहीं है . एक साहित्यकार होने के बावजूद केवल रेप के मामलों में शीघ्र और अंततः फांसी की सजा की मांग क्यों कर रहा हूं..?
जी हां आपके ऐसे सवाल उठ सकते हैं लेकिन पूछना नहीं यह जघन्य अपराध है और इसका अंत फांसी के फंदे से ही होगा यह जितना जल्दी हो उतना समाज को और उन दरिंदों को संदेश देने के लिए काफी है जो रेप को एक सामान्य सा अपराध मानते हैं .
सुधि पाठको , साहित्यकार हूं कभी हूं संवेदनशील हूं इसका यह अर्थ नहीं है कि न्याय के पासंग पर यौन हिंसा को साधारण अपराधों की श्रेणी में रख कर तोलूं . यहां ऐसे अपराधों के लिए केवल मृत्युदंड की अपेक्षा है .
निर्भया कांड के बाद व्यवस्था ने व्यवस्थित व्यवस्था ना करते हुए ... इन अपराधों को स्पेस दिया है यह कहने में मुझे किसी भी तरह का संकोच नहीं हो रहा . हबीबगंज प्लेटफॉर्म पर हुए कांड के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ नए बदलाव लाने की कोशिश भी की है 50 महिला केंद्रों की स्थापना प्रत्येक जिले में कर दी गई है न्याय के मामले में मध्यप्रदेश की अदालतों में तेजी से काम हुआ है इसकी सराहना तो की जानी चाहिए लेकिन क्या यह पर्याप्त है मुझे लगता है कदापि नहीं आप भी यही सोच रहे होंगे कुछ सुझाव व्यवस्था के लिए परंतु उसके पहले कुछ सुझाव समाज के लिए बहुत जरूरी है अगर आप अभिभावक हैं तो अपनी पुरुष संतान को खुलकर नसीहत देने की पहल आज ही कर दीजिए कि महिलाओं के प्रति बेटियों के प्रति नकारात्मक और हिंसक भाव रखने वाले बच्चों यानी पुरुष संतानों के लिए घर के दरवाजे कभी नहीं खुल सकेंगे .
समाज ऐसा कदम नहीं उठाएगा जीने का सुधरने का एक मौका और चाहेगा परंतु इन्हीं मौकों के कारण महिलाओं का शोषण करने को स्पेस मिलता है जो सर्वदा गैर जरूरी है क्या अभिभावक ऐसा करना चाहेंगे मुझे नहीं लगता जो पुत्र मोह में फंसे हैं ऐसा धृतराष्ट्री समाज कदापि अपनी पुरुष संतान के खिलाफ कोई कठोर कदम उठाएगा . यह वही समाज है जहां लड़कों के लिए व्रत किए जाते हैं यह वही समाज है जहां कुछ वर्षों पूर्व तक बेटियों के जन्म से उसे उपेक्षित भाव से देखा जाता है इतना ही नहीं बेटी की मां के प्रति नेगेटिविटी का व्यवहार शुरू हो जाना सामान्य बात है .
यह वही समाज है जहां पुत्रवती भव् होने का आशीर्वाद दिया जाता है . समाज से किसी को भी बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है . अगर आप मेरी बात को समझ पा रहे हैं तो गौर कीजिए बेटियों के प्रति स्वयं नजरिया पॉजिटिव करिए तो निश्चित तौर पर आप देवी पूजा करने के हकदार है वरना आप देवी पूजा करके केवल ढोंग करते हुए नजर आते हैं .
बातें कुछ कठिन और कड़वी है पर उद्देश्य साफ है की औरत को लाचार मजबूर बना देने की आदत व्यवस्था यानी सरकार में नहीं समाज में है . अतः समाज को स्वयं में बदलाव लाने की जरूरत है बलात्कारी पुत्र के होने से बेहतर है बेटी के माता-पिता बन जाओ विश्वास करो डीएनए ट्रांसफर होता है आपका वंश चलता है आपकी वंशावली से आप की पुत्री का नाम मत काटो और आशान्वित रहो की बेटी सच में बेटों के बराबर है .
धार्मिक संगठनों सामाजिक एवं जातिगत संगठनों थे उम्मीद की जा सकती है कि वे बेटियों की सुरक्षा के लिए सच्चे दिल से कोशिश है करें . अगर समाज सेवा का इतना ही बड़ा जज्बा भी कर आप समाजसेवी के ओहदे को अपने नाम के साथ जोड़ते हैं जो आपकी ड्यूटी बनती है आपका फर्ज होता है कि आप लैंगिक विषमताओं को समाप्त करें फोटो खिंचवाने का फितूर दिमाग से निकाल दें .
आध्यात्मिक एवं धार्मिक गुरुओं से अपेक्षा की जाती है कि वे ईश्वर के इस संदेश को लोक व्यापी करें जिसमें साफ तौर पर यह कहा गया है कि- हर एक शरीर में आत्मा होती है और ईश्वर की परिकल्पना नारी के बिना अधूरा ही होता है इसका प्रमाण सनातन में तो अर्धनारीश्वर का स्वरूप के तौर पर लिखा हुआ है .
नदी को लेकर सामाजिक व्यवस्था में बेहद विसंगतियां है . कुछ नहीं अभी अपनी मादा संतानों को सुकोमल बने रहने का पाठ पढ़ाती हैं . जबकि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत की हर सड़क चाहे वह हैदराबाद की हो जबलपुर की हो भोपाल की हो जयपुर की हो नई दिल्ली की हो महिलाओं के लिए सुरक्षा कवच ना हो कर हिंसक नजर आने लगी हैं . समाज अगर अपना नजरिया नहीं बनता तो ऐसी घटनाएं कई बार सुर्खियों में बनी रहेगी और आपका विश्व गुरु कहलाने का मामला केवल मूर्खों का उद्घोष ही साबित होगा .
अब समाज यह तय करें क्यों से करना क्या है सामाजिक कानून कठोर होने चाहिए सामाजिक व्यवस्था इस मुद्दे को लेकर बेहद अनुशासन से बांध देने वाली होनी चाहिए अगर बच्चे के यानी नर संतान के आचरणों में जरा भी आप गलती देखते हैं या गंदगी देखते हैं तो तुरंत आपको उसके ऊपर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालते हुए उसे काउंसलिंग प्रोसेस पर बड़ा करना ही होगा अच्छे मां-बाप की यही पहचान होगी .
धार्मिक जन जिसमें टीकाकारों कथावाचकों, साधकों योगियों को भी अब सक्रिय होने की जरूरत है . यहां हम उन ढोंगीयों का आव्हान नहीं कर रहे हैं बल्कि उनसे हमारी अपेक्षाएं हैं जो वाकई में समाज के लिए सार्थक कार्य कर रहे हैं .
व्यवस्था पर भी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि व्यवस्था केवल घोषणा वीर ना रहे बल्कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाने की कोशिश करें कुछ बिंदु मेरे मस्तिष्क में बहुत दिनों से गूंज रहे हैं उन पर काम किया जा सकता है....
1 1000 की जनसंख्या कम से कम 50 किशोरयाँ लड़कियां तथा कम से कम 50 महिलाएं आत्मरक्षा प्रशिक्षण प्राप्त हो
2 हर विद्यालय में अनिवार्य रूप से सेल्फ डिफेंस का प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जाए
3 हर सिविल कोर्ट मुख्यालय में 24 * 7 अवधि के लिए विशेष न्यायिक इकाइयों की स्थापना की जावे
4 हर थाना क्षेत्र में एक एक वन स्टॉप सेंटर की स्थापना हो जहां एफ आई आर चिकित्सा सुरक्षा की व्यवस्था हो
5 प्रत्येक जिला मुख्यालय में फोरेंसिक जांच की व्यवस्था की जा सकती है . यकीन मानिए चंद्रयान मिशन मिशन पर हुई खर्च का आधा भाग इस व्यवस्था को लागू कर सकता .
6 रेप या यौन हिंसा रोकने के लिए सबसे अधिक फुलप्रूफ व्यवस्था की जानी चाहिए . घटना के उपरांत 3 दिन के बाद हैदराबाद में प्राथमिकी दर्ज की गई यह स्थिति दुखद है . जब हम तकनीकी रूप से बहुत सक्षम हो गए हैं ऐसी स्थिति में इस बात को तय करने की बिल्कुल जरूरत नहीं कि क्षेत्राधिकार किसका है अतः ऐसी टीमों का गठन करना जरूरी है जो मोबाइल हो और कहीं भी प्राथमिकी दर्ज करने का कार्य कर सकें फिर अन्वेषण के लिए भले जिस पुलिस अधिकारी का क्षेत्राधिकार हो उसे सौंप देना पड़े मामला सौंपा जा सकता है .
7 :- अन्वेषण परिस्थिति जन्य साक्षी को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए
8 :- अन्वेषण हेतु केवल 7 दिनों का अवसर देना उचित प्रतीत होता है अगर साक्ष्यों की अत्यधिक जरूरत है तो अन्वेषण के लिए एसपी एडिशनल एसपी स्तर के अधिकारी से अनुमति लेकर ही अधिकतम अगले 7 दिन की अवधि सुनिश्चित की जा सकती है . अर्थात कुल मिलाकर 14 या 15 दिनों में अन्वेषण का कार्य प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों से कराया जाना उचित होगा .
9:- भले ही स्थापना व्यय कितना भी हो प्राथमिक अदालतें गठित कर ही देनी चाहिए जो डिस्ट्रिक्ट जज की सीधी मॉनिटरिंग में कार्य करें इनके लिए विशेष न्यायाधीशों की तैनाती बेहद आवश्यक है .
10:- सार्वजनिक यातायात साधनों में निजी सेवा प्रदाताओं से इस बात की गारंटी लेना चाहिए कि वह जिस वाहन चालक कंडक्टर को भेज रहे हैं अपराधिक प्रवृत्ति के तो नहीं है
11 :- हर सार्वजनिक यातायात व्यवस्था के प्रबंधन के लिए बंधन कारी होना चाहिए कि महिला सुरक्षा के लिए उसके परिवहन वाहन में क्या प्रबंध किए गए हैं निरापद प्रबंध के नियम भी बनाए जाने अनिवार्य है .
12 :- ट्रांसपोर्टेशन व्यवसाय जैसे ट्रक मालवाहक अन्य कार्गो वाहन के चालू किया उसके कंडक्टर की आपराधिक पृष्ठभूमि का परीक्षण करने के उपरांत ही उन्हें लाइसेंस जारी किया जावे
13 :- महिलाओं को लड़कियों को जीपीएस की सुरक्षा तथा आईटी विशेषज्ञ से ऐसी तकनीकी का विकास की अपेक्षा है जिससे खतरे या आसन्न खतरों की सूचना कंट्रोल रूम तथा महिला या बालिका द्वारा एक क्लिक पर भेजी जा सके ऐसी डिवाइस बनाना किसी भी आईटी विशेषज्ञ के लिए कठिन नहीं होगा .
14 :- पॉक्सो तथा अन्य यौन हिंसा की रोकथाम के लिए बनाई गई नियम अधिनियम प्रावधान आदेश निर्देश को एक यूनिफॉर्म पाठ्यक्रम के रूप में बालक बालिकाओं को पढ़ाना अनिवार्य है
15 :- अन्वेषण के उपरांत मामला दाखिल करने के लिए पुलिस को केवल अधिकतम 20 दिनों की अवधि देनी अनिवार्य है साथ ही निचली अदालत में मामले के निपटान के लिए केवल 20 दिनों का समय दिया जाना उचित होगा.
16 :- कोई भी मामला 20 दिन से अधिक समय लेता है तो हाईकोर्ट को मामले को अपनी मॉनिटरिंग में लेते हुए विलंब की परिस्थिति का मूल्यांकन करने का अधिकार होना चाहिए .
17 :- उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लिए क्रमशः 25 दिनों की अवधि नियत की जानी चाहिए जिसमें अपील करने के लिए मात्र हाईकोर्ट की स्थिति में 10 दिवस तथा सुप्रीम कोर्ट की स्थिति में 15 दिवस कुल 25 दिवस ( निचली अदालत के फैसले के उपरांत) देना उचित होगा . यहां विशेष अदालत द्वारा दिए गए फैसले के विरुद्ध 10 दिनों के अंदर अपील की जा सकती है तदोपरांत अगर निर्णय से असंतुष्ट हैं तो 15 दिनों में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है .
अगर व्यवस्था और समाज चाहे तो उपरोक्त अनुसार कार्य करके एक विश्वसनीय व्यवस्था कायम कर सकते हैं .