ईश्वर दुबे
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सब्जी का नियमित सेवन आपको तमाम रोगों से दूर रखता है और हष्ट-पुष्ट रखता है लेकिन इस सबके बीच कुछ सब्जियां ऐसी भी हैं जो कम समय में ही अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं ऐसी ही सब्जी का नाम है कंटोला, इसे दुनिया की सबसे ताकतवर सब्जी कहा जाता है। यह औषधि के रूप में भी प्रयोग में लाई जाती है. इसका कुछ दिन सेवन करने से ही आपका शरीर तंदुरुस्त बन जाता है या यूं कहें कि फौलादी बन जाता है। कुछ जगह कंटोला को ककोड़े और मीठा करेला भी कहते हैं।
स्वादिष्ट होने के साथ ही प्रोटीन से भरपूर
आयुर्वेद में भी कंटोला को सबसे ताकतवर सब्जी माना गया है। कंटोला खाने में स्वादिष्ट होने के साथ ही प्रोटीन से भरपूर सब्जी है। रोजाना इसका सेवन करने से शरीर में ताकत आती है। जानकारों का कहना है कि इसमें मीट से 50 गुना ज्यादा ताकत और प्रोटीन होता है। कंटोला में मौजूद फाइटोकेमिकल्स आपको सेहतमंद बनाता है। एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर कंटोला आपके रक्त को साफ रखता है, जिससे त्वचा संबंधी बीमारियां भी नहीं होती।
स्वास्थ्य के लिए कई तरह से फायदेमंद
आमतौर पर मानसून की शुरुआत में बाजार में मिलने वाला कंटोला कई तरह से स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी खेती दुनियाभर में शुरू हो गई है। मुख्य रूप से यह देश के पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। कंटोला के फायदे
वजन घटाने में कारगर
कंटोला में प्रोटीन और आयरन भरपूर मात्रा में और कैलोरी कम मात्रा में होती है। यदि आप 100 ग्राम कंटोला की सब्जी का सेवन करते हैं तो 17 कैलोरी प्राप्त होती है. जिससे वजन घटाने वाले लोगों के लिए यह बेहतर विकल्प है।
पाचन क्रिया बेहतर करे
अगर आप इसकी सब्जी नहीं खाना चाहते तो अचार बनाकर भी सेवन कर सकते हैं। आयुर्वेद में कई रोगों के इलाज के लिए इसे औषधि के रूप में प्रयोग करते हैं। यह पाचन क्रिया को दुरुस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हाई ब्लड प्रेशर होगा दूर
कंटोला में मौजूद मोमोरडीसिन तत्व और फाइबर की अधिक मात्रा शरीर के लिए रामबाण हैं। मोमोरेडीसिन तत्व एंटीऑक्सीडेंट, एंटीडायबिटीज और एंटीस्टे्रस की तरह काम करता है और वजन और हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखता है।
योग में कुछ आसान ऐसे होते हैं जो क्रियात्मक के साथ-साथ आध्यात्मिक भी होते हैं। इसी में से एक है शीर्षासन। इसमें सिर के बल उल्टा खड़े होते हैं, जिसके आध्यात्मिक फायदे तो हैं ही साथ ही हमारे शरीर के लिए भी यह आसन काफी फायदेमंद है। इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है, कान बेहतर तरीके से काम करते हैं और बाल भी ठीक रहते हैं।
ऐसे करें आसन
सबसे पहले खड़े हो जाएं। इसके बाद हाथों को आगे जमीन पर रख लें और शरीर से एक त्रिकोण बनाएं।
अब सिर को जमीन में रखें और पैरों को ऊपर उठा कर उल्टे खड़े हो जाएं।
आयंगर पद्धति से
प्रकार एक
इसके लिए आपको एक उपकरण बनवाना होगा। इसमें लकड़ी के पटल में एक लकड़ी का डंडा जैसा लगवा लें। इसके बाद उस पटरी पर सिर रखकर उल्टे हो जाएं और उस पिलर से बॉडी को सटाकर सपोर्ट दें।
प्रकार दो
इसमें दो स्टूल लें और उस पर फोम के दो ब्रिक रखें। अब दोनों स्टूलों के बीच सिर रख लें जबकि पैरों को दीवार से सहारा दें।
प्रकार तीन
इसमें दीवार में दो रस्सी बांध लें और बीच में एक-एक गठान लगा दें। अब उन को पकड़कर उल्टे लटक जाएं।
आसन के फायदे
इस आसन से शरीर में आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है।
मांसपेशियों के साथ पंच इंद्रियों का तनाव कम होता है।
बाल स्वस्थ होते हैं और आंखों की रोशनी बढ़ती है।
कान में सुनने की क्षमता में वृद्धि होती है।
साथ ही मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह भी बेहतर होता है।
कई बार हमारा पेट खराब हो जाता है और हम डॉक्टर के पास पहुंच जाते हैं पर कुछ घरेलू इलाज से भी आप पेट का संक्रमण ठीक कर सकते हैं। पेट में संक्रमण के कई कारण हो सकते हैं जैसे खाना या पानी ठीक न होना। या हाथ साफ नहीं होने से खाने के जरिये संक्रमण पेट तक पहुंच जाना। इससे इमें उल्टी, दस्त , कमजोरी होना, होना और कभी-कभी बुखार होने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। अगर आप भी इस प्रकार की समस्या से परेशान हैं तो राहत पाने के लिए अपनाएं ये घरेलू उपाय।
अदरक
पेट की गड़बड़ी में अक्सर अदरक का इस्तेमाल काफी कारगर होता है। इसमें एंटीफंगल और एंटी-बैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं, जो पेट दर्द में राहत देता है। एक चम्मच अदरक पाउडर को दूध में मिलाकर पीने से आराम मिलता है।
दही
पेट दर्द में दही का इस्तेमाल काफी फायदेमंद रहता है। दही में मौजूद बैक्टीरिया संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिससे पेट जल्दी ठीक होता है। साथ ही ये पेट को ठंडा भी रखता है।
सेब का सिरका
पेट दर्द में सेब के सिरके का घरेलू उपाय भी काफी कारगर साबित होता है। सेब के सिरके में पेक्टिन की पर्याप्त मात्रा होती है जिससे पेट दर्द और मरोड़ में राहत मिलती है। इसका अम्लीय गुण खराब पेट के संक्रमण को ठीक करने में भी कारगर है। एक चम्मच सिरके को एक गिलास पानी में मिलाकर पीने से जल्दी आराम होता है।
केला
अगर आप बार-बार हो रहे मोशन से परेशान हो चुके हैं तो केले का इस्तेमाल आपको राहत देगा। इसमें मौजूद पेक्टिन पेट को बांधने का काम करता है। इसमें मौजूद पोटैशियम की उच्च मात्रा भी शरीर के लिए फायदेमंद होती है।
पुदीना
पुदीना एक बेहद हेल्दी हर्ब है। सदियों से इसका इस्तेमाल पेट से जुड़ी समस्याओं के समाधान में किया जाता रहा है। इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स पाचन क्रिया को सुधारने में भी सहायक होता है।
कई लोग नींद न आने पर नींद की गोलियों का सेवन करते हैं जो बेहद नुकसानदेह होता है।
शुरुआत में तो कुछ समय के लिए यह गोलियां राहत देती हैं लेकिन इनकी आदत किसी भी व्यक्ति के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। ऐसे में आप भी अगर नींद की गोलियों का सहारा लेते हैं तो सावधान हो जाएं।
एक अध्यन रिपोर्ट में बताया गया है कि जो लोग रोजाना नींद की गोलियां लेते हैं उनमें हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होने का खतरा अधिक रहता है। नियमित तौर पर नींद की गोलियां लेने ने बुजुर्ग लोगों में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है।
इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं की टीम ने तनाव और उच्च रक्तचाप से ग्रस्त करीब 752 बुजुर्ग लोगों को शामिल किया। इस अध्ययन के दौरान पाया गया कि करीब 156 लोगों ने एंटीहाइपरटेंसिव दवाइयों की संख्या में वृद्धि की। इससे नींद की अवधि या क्वालिटी और एंटीहाइपरटेन्सिव ड्रग के उपयोग में परिवर्तन के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया।
शोधकर्ताओं की टीम ने कहा कि नींद की गोलियों का सेवन भविष्य में उच्च रक्तचाप के इलाज की आवश्यकता और अनहेल्दी लाइफस्टाइल की ओर संकेत करता है, जो उच्च रक्तचाप के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
इसके अलावा इससे अल्जाइमर बीमारी होने का खतरा बढ़ता है।
पानी में विटामिन बी3 डालने से आंख की रोशनी कम होने की बीमारी ( ग्लॉकोम) के खतरे को कम किया जा सकता है। इससे आंखें स्वस्थ रहती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इलाज के लिए आंखों में बार-बार ड्रॉप्स डालना महंगा पड़ता है। वहीं, पानी में विटामिन बी3 डालकर पीना सुरक्षित और सस्ता तरीका है। बुज़ुर्गों के लिए हर रोज़ आंखों में दवाई डालना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में यह उपचार उनके लिए आसान है। पूरी दुनिया में करीब 80 मिलियन लोग ग्लॉकोम से पीड़ित हैं और आईड्राप्स पर निर्भर रहते हैं। यह बीमारी आंखों में एक्सट्रा प्रेशर के कारण होती है, क्योंकि इसमें नर्व्स डैमेज हो जाती हैं। फैमिली हिस्ट्री या डायबिटीज़ के कारण, ग्लॉकोम होने का रिस्क बढ़ जाता है। इसका ट्रीटमेंट आईड्रॉप्स हैं, जो सभी को सूट नहीं करते, और आंखों में जलन भी पैदा करते हैं। गंभीर मामलों में मरीज़ की सर्जरी या लेज़र थेरेपी करनी पड़ती है।
ग्लॉकोम के लक्षण
आंख में दर्द, उल्टी, आंख का लाल होना आदि। अचानक से आंख की रोशनी कम होना भी इस बीमारी का संकेत है।
वैसे तो इस बीमारी को ठीक करना मुश्किल है, लेकिन कुछ तरीके अपनाने से ऐसा ज़रूर हो सकता है कि आंखों की रोशनी ज़्यादा कम न हो। इसके लिए पहले तो इस बीमारी को पहले स्टेज में ही पकड़ लेना ज़रूरी है, क्योंकि इसमें रोशनी कम होने की प्रक्रिया बेहद धीमी रहती है। आंखों में दबाव को कम करने के प्राकृतिक तरीके।
अपनी जीवनशैली में कुछ ऐसे बदलाव करके जिनसे की आपका ब्लड प्रेशर कम हो, आंखों के दबाव को भी कम करता है। इस उपचार का कोई साइड इफेक्ट नहीं है।
अपने इंसुलिन लेवल को कम करें।
जैसे आपका इंसुलिन का स्तर बढ़ता है, यह आपके रक्तचाप का कारण बनता है, और इससे आपकी आंखों पर दबाव भी बढ़ता है। समय के साथ आपका शरीर इंसुलिन प्रतिरोधी बन जाता है। यह उन लोगों को ज़्यादा होता है, जो डायबिटीज़, मोटापा और हाई ब्लड प्रेशर के मरीज़ हैं।
इसका समाधान यह है कि आपको अपनी डाइट में चीनी और अनाज कम करना होगा। अगर आपको ग्लॉकोम है या इसके बारे में चिंतित हैं, तो आप ये सब खाने से बचें
ब्रेड, पास्ता, चावल, अनाज और आलू।
नियमित रूप से व्यायाम करें: इंसुलिन के स्तर को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है व्यायाम, जैसे- एरोबिक्स और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग। इससे इंसुलिन लेवल कंट्रोल में रहता है और आंखों की रोशनी भी बचाई जा सकती है।
ओमेगा -3 फैट सप्लीमेंट: इसे लेने से भी इस बीमारी को दूर रखा जा सकता है। डीएचए नामक ओमेगा -3 फैट आंखों के स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा है। यह आंखों की रोशनी नहीं जाने देता। डीएएच सहित ओमेगा -3 फैट, मछली में पाए जाते हैं, लेकिन विशेषज्ञ मछली न खाने की राय देते हैं। उनके मुताबिक इस फैटी एसिड का सबसे अच्छा स्रोत है क्रिल ऑयल।
हरी सब्जियां खाएं: ल्यूटिन और ज़ेकैक्थिन से आंखों की रोशनी बढ़ती है। ल्यूटिन हरी, पत्तेदार सब्जियों में विशेष रूप से बड़ी मात्रा में पाया जाता है। यह एंटी-ऑक्सीडेंट है और आंखों के सेल्स को खराब होने से बचाता है।
साग, पालक, ब्रोकोली, स्प्राउट्स और अंडे के पीले भाग में भी ल्यूटिन होता है लेकिन ध्यान रहे कि ल्यूटिन ऑयल में घुलता है। इसलिए इन हरी सब्ज़ियों के साथ थोड़ा ऑयल या बटर खाना भी ज़रूरी है।
अंडे का पीला भाग न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है, लेकिन इसे पकाते ही इसके सारे पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। इसलिए एक्सपर्ट्स सनी साइड अप खाने की सलाह देते हैं। ट्रांस फैट से बचें ट्रांस फैट को भी अपनी डाइट में कम करें। इससे भी आंखों की रोशनी जाने का खतरा बढ़ सकता है। ट्रांस फैट पैकेज्ड फूड्स, बेक्ड फूड्स और फ्राइड फूड्स में पाया जाता है।
दुनियाभर में करीब तिहाई जनसंख्या अनिद्रा की शिकार है। पर, ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें हर समय नींद आती रहती है और किसी काम में मन नहीं लगता। अगर आपके साथ ऐसा है तो यह हाइपरसोम्निया हो सकता है!
हाइपरसोम्निया एक स्लीप डिसॉर्डर है, जिसमें रात में बहुत नींद आने के बाद भी सुबह उठने में भी परेशानी होती है। इससे पीड़ित लोगों को सारा दिन नींद आती रहती है, चाहे काम कर रहे हों या बात कर रहे हों। दिक्कत तब होती है कि जब दिन में 1-2 बार झपकी लेने के बाद भी तरोताजा महसूस नहीं करते। यह जीवन के लिए घातक स्थिति नहीं है, लेकिन इससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है और कई रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
दो तरह के स्लीप डिसॉर्डर
प्राइमरी हाइपरसोम्निया : यह सोने और जागने की क्रिया को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के तंत्र में खराबी आने से होता है।
सेकेंडरी हाइपरसोम्निया : यह उस स्थिति का परिणाम होता है, जिसके कारण गहरी नींद नहीं आती और थकान होती है। जैसे स्लीप एप्निया, इसके कारण रात में सांस लेने में परेशानी होती है और कई बार नींद खुलती है। कई दवाओं, कैफीन और एल्कोहल का अधिक मात्रा में सेवन भी हाइपरसोम्निया का कारण बन सकता है। थाइरॉएड और किडनी की परेशानियों में भी ऐसा होता है।
इन लक्षणों से पहचानें
हाइपरसोम्निया का सबसे प्रमुख लक्षण है लगातार थकान बनी रहना। अधिक नींद लेने के बाद भी सुबह उठने में परेशानी होना। इसके अलावा ऊर्जा की कमी, चिड़चिड़ापन, एंग्जाइटी, भूख न लगना, सोचने और बोलने में परेशानी होना, बेचैनी व चीजों को याद न रख पाना आदि लक्षण देखने को मिलते हैं।
कारण
स्लीप डिसॉर्डर नैक्रोप्लास्टी (दिन में उनींदापन महसूस करना) और स्लीप एप्निया (रात में नींद में सांस रुक जाना)।
लगातार कई रातों तक नींद पूरी न हो पाना। शिफ्ट जॉब में काम करना
मोटापा और शारीरिक सक्रियता की कमी
नशीली दवाओं व शराब का सेवन
कैफीन का अधिक मात्रा में सेवन
सिर में चोट लग जाना या कोई न्यूरोलॉजिकल समस्या
कुछ दवाओं का असर
आनुवंशिक कारण
कई मानसिक और शारीरिक समस्याएं जैसे अवसाद, हाइपो-थाइरॉएडिज्म और किडनी संबंधी रोग।
जांच व उपचार
हर समय बहुत नींद आती है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर आपके सोने-उठने के समय, अवधि, खानपान की आदतों, भावनात्मक समस्याओं और स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पूछेगा। डॉक्टर कुछ जरूरी टेस्ट कराने के लिए भी कह सकता है जैसे ब्लड टेस्ट, कम्प्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन (सीटी स्कैन), पोली-सोमनोग्रॉफी (स्लीप टेस्ट)। अधिक गंभीर मामलों में इलेक्ट्रोइन्सेफैलोग्राम (ईईजी) कराने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा नींद के दौरान हृदय की धड़कनों, सांसों और मस्तिष्क की गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। मरीज की स्थिति के अनुसार ही उन्हें दवाएं दी जाती हैं।
क्या होता है नुकसान
डायबिटीज: हाइपरसोम्निया से डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग हर रात में नौ घंटे से अधिक सोते हैं, उनमें डायबिटीज की आशंका उन लोगों की तुलना में 50 फीसदी अधिक होती है, जो सात घंटे की नींद लेते हैं।
डिप्रेशन: अत्यधिक सोने से अवसाद के लक्षण और गंभीर हो सकते हैं। दिन में उनींदापन और किसी काम पर ध्यानकेंद्रित न कर पाना अवसाद को और बढ़ा देता है।
मोटापा: अध्ययन कहते हैं कि जो लोग लगातार छह वर्षों तक हर रात 9-10 घंटे की नींद लेते हैं, उनमें मोटापे का खतरा, उन लोगों की तुलना में 21 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जो 7-8 घंटे की नींद लेते हैं।
इसके अलावा अधिक सोने वालों में सिरदर्द व कमर दर्द की समस्या भी अधिक होती है। कम उम्र में मृत्यु का खतरा भी बढ़ता है।
कैसे बचें
नियत समय पर सोएं।
आठ घंटे से अधिक न सोएं।
नियमित व्यायाम करें।
एल्कोहल व कैफीन का सेवन कम करें।
पौष्टिक खाना खाएं।
योग और ध्यान करें।
गैजेट्स का इस्तेमाल कम करें।
डायबिटीज और पेट की बीमारियां को दूर रखने में योग सहायक साबित हुआ है। योग में बताये गये आसन अगर आप करते हैं तो डायबिटीज और पेट की बीमारियों से कापफी हद तक बचाव हो सकता है। इसमें लाभकारी आसान हैं।
मंडूक आसन : इसे करने के लिए जमीन पर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएं। अब दोनों हाथों के अंगूठे अंदर करते हुए मुट्ठी बंद कर नाभी के पास लगाएं। सांस अंदर लें और बाहर छोड़ दें। पेट को अंदर करते हुए नीचे आएं और दोनों कंधों को घुटनों पर टिका दें। इस अवस्था में शुरुआत में जितनी देर आरात से हो सके रुकें। वैसे इस आसन को एक से 5 मिनट एक आसन करना है। फिर धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में लौट आएं।
इस आसन को करने का एक तरीका और भी हैं। इसमें भी जमीन या समतल जगह पर वज्रासन में बैठ जाएं। गहरी सांस अंदर लें और फिर पूरा बाहर निकाल दें। अब अपना दाहिना हाथ नाभी को कवर करते हुए उसके ऊपर रख दें। दूसरी हथेली को उसके ऊपर रखें और पहले की तरह नीचे की ओर झुकें। दोनों कंधों को घुटनों पर टिका दें। यथाशक्ति कुछ देर इसी अवस्था में रुकें और फिर धीरे-धीरे वापस आ जाएं। इस आसन को वज्रासन में करने में दिक्कत हो रही हो तो सुखासन में भी किया जा सकता है।
फायदे :
यह पेट के लिए बहुत फायदेमंद है। इससे अग्नयाशय सक्रिय होता है जिससे डायबिटीज के रोगियों को लाभ मिलता है। इस आसन को करने से मांसपेशियां मजबूत होती हैं और पेट की चर्बी घटती है। यह घुटनों और मांसपेशियों को स्ट्रेच करता है। साथ ही यह रीढ़ को आराम देता है और पीठ दर्द या पीठ संबंधी परेशानियों से निजात दिलाता है। यह उदर और हृदय रोग में भी लाभदायक होता है। इस योगसन से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। कब्ज, गैस, भूख न लगना, अपच आदि पेट संबंधी रोगों को ठीक करता है।
अब डिमेंशिया का काफी पहले पता लगाया जा सकेगा। बढ़ती उम्र से जुड़ी भूलने की इस बीमारी का पता दो दशक पहले ही चल जाएगा। एक हालिया अध्ययन के मुताबिक साधारण ब्लड टेस्ट के जरिए बीमारी के लक्षण दिखने से 16 साल पहले ही डिमेंशिया की जांच की जा सकेगी। इस तरह रोग की आहट से पहले ही रोग का पता चल सकेगा और वक्त रहते रोकथाम कर पाना संभव होगा।
दरअसल शोधकर्ता लंबे समय से यह जानते हैं कि डिमेंशिया की बीमारी में एक निश्चित प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं में लीक होने के बाद सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूड में चला जाता है लेकिन इस प्रोटीन को कैसे मापा जाए, इस बारे में पता नहीं लगा सके थे। मगर, वैज्ञानिकों का कहना है कि वह रक्त जांच में अब इस प्रोटीन को डिटेक्ट कर सकते हैं। इतना ही नहीं, इस प्रोटीन के स्तर के साथ ही उसके बढ़ने की गति की भी जांच की जा सकती है। टेस्ट में देखा जा सकेगा कि क्या प्रोटीन उसी गति से बढ़ रहा है, जिस गति से मस्तिष्क के न्यूरॉन खत्म हो रहे हैं और मस्तिष्क सिकुड़ रहा है।
सस्ता, आसान और अच्छा है ब्लड टेस्ट। सेंट लुई में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिकल की टीम द्वारा किए गए इस अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्लड टेस्ट बेहद आसान है। इसके परिणाम अच्छे हैं, फास्ट है और सबसे बड़ी बात सस्ता है। क्लीनिक में ब्रेन कंडीशन की रुटीन जांच में यह ब्लड टेस्ट अहम भूमिका निभा सकता है। प्रोटीन की जांच करने वाला यह ब्लड टेस्ट मिडिल एज में किया जाएगा। ठीक उस अवस्था से पहले, जबअधिकतर लोगों में एल्जाइमर जैसी बीमारी का पता चलता है।
शुरुआती लक्षणों का पता लगाया जा सकेगा
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह परीक्षण अल्जाइमर के शुरुआती लक्षणों और अन्य न्यूरोडिजेनरेटिव डिसऑर्डर का पता लगाने में मददगार साबित होगा। कुछ वर्षों में इसे क्लीनिक में इस्तेमाल होते देखा जा सकेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी हम उस पड़ाव पर नहीं हैं, जहां इस जांच के बाद व्यक्ति को कह सकें कि पांच साल बाद आपको डिमेंशिया होगा। लेकिन, उस कदम की ओर बढ़ जरूर रहे हैं और जल्द कामयाबी मिलने की संभावना है।
लाइलाज है डिमेंशिया
इससे जूझ रहे रोगी की याददाश्त में कमी आ जाती है और संज्ञानात्मक बोध कम हो जाता है।
न्यूरॉन में देखी गई कमी
अध्ययन में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों में दोषपूर्ण जीन वैरिएंट वाले 40 लोग थे। अपनी पिछली क्लीनिकल जांच के दो साल बाद उनका ब्रेन स्केन और संज्ञानात्मक परीक्षण हुआ। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन प्रतिभागियों के प्रोटीन में दो साल के अंतराल पर जादुई इजाफा हुआ, उनके उनके मस्तिष्क में न्यूरॉन की कमी और सिकुड़न भी देखी गई। मेमोरी टेस्ट और संज्ञानात्मक परीक्षण में भी उनकी प्रस्तुति खराब निकली।
साधारण ब्लड टेस्ट किट से किया परीक्षण
परीक्षण में न्यूरोफिलामेंट नाम के प्रोटीन का पता लगाया गया है। आमतौर पर मस्तिष्क की कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त या मृत होने के बाद यह प्रोटीन रक्त और सेरेब्रोस्पाइनल फ्लुड में लीक होता है। लक्षण प्रकट होने से 16 साल पहले बीमारी का पता चलना बहुत प्रारंभिक प्रक्रिया है, लेकिन हम अंतर देख पाए हैं। यह उन मरीजों की पहचान करने के लिए एक अच्छा प्रीक्लिनिकल बायोमार्कर हो सकता है, जिनमें इस बीमारी से जुड़े लक्षण पनप रहे हैं।
अगर आप अवसाद से बचना चाहते हैं तो अंगूर का सेवन करें। अंगूर बेहद स्वास्थ्यवर्धक और तरावट देने वाला फल है।
बाजार में आमतौर पर दो तरह के अंगूर मिलते हैं, हल्के हरे रंग के और काले रंग के। अंगूर का सेवन काफी लोग पसंद करते हैं। इसमें पायी जाने वाली कैलोरी, फाइबर और विटामिन सी, ई शरीर के लिए कई तरह से फायदेमंद है। अंगूर को सेहत का खजाना बताया गया है। हाल ही में हुई एक शोध से सामने आया है कि यदि आप अवसाद से बचना चाहते हैं तो अंगूर जरूर खाएं। अंगूर खाने से मनोविकार कम होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भोजन में अंगूर को शामिल करने से मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अध्ययन के अनुसार भोजन में अंगूर से मिलने वाले नैसर्गिक तत्वों से हताशा जैसे मनोविकार कम हो सकते हैं। मुख्य शोधकर्ता व न्यूयार्क के इकाह्न स्कूल ऑफ मेडिसिन में प्रोफेसर गियूलियो मारिया पसिनेत्ती ने कहा, 'अंगूर रहित पोलीफिनॉल कम्पाउंड उत्तेजना से जुड़े कोशिकीय व आणविक मार्ग को निशाना बनाता है। लिहाजा इस संबंध में की गई नई खोज से निराशा और चिंताग्रस्त लोगों का इलाज संभव हो पाएगा।'
शोधकर्ता ने बताया कि अंगूर से तैयार बायोएक्टिव डायटरी पोलीफिनॉल तनाव प्रेरित निराशा की स्थिति से बाहर निकलने में मददगार व इस रोग के इलाज में प्रभावी हो सकता है।शोध में इसका सकारात्मक आया। भोजन से जो पोषक तत्व हमारे शरीर को मिलते हैं वह रोगों की रोकथाम के लिए ज्यादा कारगर होते हैं। अवसाद से बचने के अलावा भी अंगूर खाने के कई फायदे हैं।
आजकल भागदौड़ भरी जिंदगी और अव्यवस्थित जीवनशैली के बीच माइग्रेन आम समस्या है। ऐसे में अंगूर का रस पीना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा! कुछ समय तक अंगूर के रस का नियमित सेवन करने से इस समस्या से काफी राहत मिल सकती है।
रक्तचाप नियंत्रित करें
यदि आपके घर में कोई हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त है तो उनके लिए अंगूर का सेवन रामबाण साबित होगा। अंगूर खाने से ब्लड प्रेशर कट्रोल रहता है। हाई ब्लड प्रेशर वाले हफ्ते में तीन से चार दिन अंगूर का सेवन करें, इससे उन्हें फायदा मिलेगा।
अंगूर में ग्लूकोज, मैग्नीशियम और साइट्रिक एसिड जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। कई बीमारियों से राहत देने के लिए अंगूर का सेवन करना फायदेमंद रहता है। दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए भी अंगूर का सेवन विशेष रूप से फायदेमंद रहता है। हाल में हुए एक शोध से यह भी पता चला है कि ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम में अंगूर का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है।
ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन हमारे शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये हार्मोन कोशिकाओं के निर्माण और पुनर्निर्माण को बहाल रखता है और आपको युवा बनाए रखता है। वसा इस हार्मोन के निर्माण पर नकारात्मक असर डालती है। ग्रोथ हार्मोन यानी एचजीएच कोशिका प्रजनन और पुनर्निर्माण को बढ़ाता है। कम उम्र में ग्रोथ हार्मोन का निर्माण बहुत बड़ी मात्रा में होता है और यही ग्रोथ हार्मोन हमें युवा बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, हमारा शरीर ग्रोथ हार्मोन बनाना कम कर देता है। इतना ही नहीं 30 की आयु के बाद हमारे शरीर की ग्रोथ हार्मोन बनाने की क्षमता हर दशक यानी हर 10 सालों में 25 फीसदी तक घट जाती है।
क्या होता है एचजीएच
हमारे शरीर में पाया जाने वाला जरूरी हार्मोन है ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन, जो शरीर में मांसपेशियों और कोशिकाओं के विकास में मदद करता है। एचजीएच का उत्पादन पिट्यूटरी ग्लैंड में होता है। इस हार्मोन के बिना शरीर में मांसपेशियों का गठन और हड्डियों का घनत्व (बोन डेंसिटी) बढ़ना नामुमकिन है।
कद बढ़ाने में मददगार
किसी भी व्यक्ति के कद को बढ़ाने में जिस तत्व का सबसे बढ़ा योगदान होता है, वह है ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन। पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम लेना भी हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है। कैल्शियम से ना सिर्फ हमारी हड्डियां मजबूत होती हैं, बल्कि इसके साथ- साथ कद भी बढ़ता है। योग से भी अपने कद को प्राकृतिक रूप से बढ़ा सकते हैं। योग आपको तनाव मुक्त करने के साथ-साथ शारीरिक विकास को भी नया रंग देता है।
चीनी करें कम
डायबिटीज से ग्रस्त लोगों के मुकाबले बिना डायबिटीज वाले लोगों में ग्रोथ हार्मोन का स्तर 3 से 4 गुना ज्यादा होता है। इंसुलिन को सीधे तौर पर प्रभावित करने के साथ ही ज्यादा चीनी लेने से वजन और मोटापा भी तेजी से बढ़ता है और इसका प्रभाव ग्रोथ हार्मोन के स्तर पर पड़ता है। कभी-कभार चीनी लेने से आपके ग्रोथ हार्मोन के स्तर पर कोई प्रभाव नहीं होता। पर, ज्यादा से ज्यादा स्वस्थ और संतुलित आहार लेने का प्रयास करना चाहिए। जो भी आहार लेते हैं, उसका अधिकतर प्रभाव आपके स्वास्थ्य, हार्मोन और शरीर की बनावट पर पड़ता है।
सोने से पहले ज्यादा न खाएं
अधिक कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन वाला आहार इंसुलिन को बढ़ा देता है और रात के समय बनने वाले ग्रोथ हार्मोन को रोक देता है। खाने के दो से तीन घंटे बाद इंसुलिन का स्तर कम हो जाता है, फिर भी रात में अधिक कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन न लें।
जीवनशैली में परिवर्तन करें
गंभीर या निरंतर तनाव शरीर में एचजीएच की उपस्थिति कम कर देता है। हंसी से शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और इस हार्मोन में वृद्धि होती है। फिल्म देखना भी फायदेमंद है।
ग्रोथ हार्मोन की दवा
ग्रोथ हार्मोन की कमी को पूरा करने के लिए बहुत दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन इन्हें खुद से नहीं लिया जाना चाहिए। डॉक्टर जरूरी समझते हैं तो ही वे निश्चित अवधि के लिए इससे संबंधित जरूरी दवा देते हैं।
एचजीएच के साइड इफेक्ट्स
बिना जरूरत इस हार्मोन के इस्तेमाल से कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। इसके चलते शरीर का कोई भी अंग बढ़ सकता है, जैसे हाथ, पैर, जबड़ा। इसके दुष्प्रभावों में टाइप 2 डायबिटीज भी शामिल है।
कैसे बढ़ता है एचजीएच
आपके व्यायाम शुरू करने के आधे घंटे बाद शरीर में ग्रोथ हार्मोन बनना शुरू होता है, जो 45 मिनट तक बढ़ता है इसके बाद अगले 15 मिनट यानी कुल 60 मिनट तक स्थिर रहता है। 60 मिनट के बाद इसका स्तर घटना शुरू हो जाता है।
आपका शरीर जितना ग्रोथ हार्मोन पूरे दिन में बनाता है, उसका 75 फीसदी निर्माण शरीर अच्छी नींद के दौरान करता है।
विटामिन और डाइट ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन के लिए सबसे जरूरी है, लेकिन सप्लीमेंट्स का इस्तेमाल बिना विशेषज्ञ की सलाह के न करें।
शरीर में ग्रोथ हार्मोन बनाए रखने के लिए रोजाना जरूरी कैलरी का 20 प्रतिशत भाग शुद्ध फैट से प्राप्त
होता है।
कुछ आहार, जो शरीर में बढ़ाएंगे ग्रोथ हार्मोन
ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन सुगठित शरीर पाने की कुंजी है, क्योंकि मांसपेशियों के लिए यह अहम है। इसके लिए प्रोटीन में भरपूर संतुलित भोजन खाएं।
मांस और मछली
मांस और मछली एमिनो एसिड के सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से हैं, जो पूरी तरह से प्रोटीन से भरपूर होते हैं। इससे आपको एमिनो एसिड प्राप्त होता है, जो आपके शरीर में एचजीएच बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
डेयरी और अंडे
डेयरी और अंडे भी भरपूर प्रोटीन प्रदान करते हैं। यानी वे एचजीएच बनाने के लिए आवश्यक सभी एमिनो एसिड प्रदान करते हैं। दूध और सोया दूध में प्रति एक गिलास में लगभग 8 ग्राम प्रोटीन होता है, जबकि स्ट्रिंग पनीर के एक टुकड़े या बड़े अंडे में 6 ग्राम प्रोटीन होता है।
शाक-सब्जी भी खाएं
आप आवश्यक एमिनो एसिड पाने के लिए पौधे आधारित प्रोटीन के स्रोत भी अपना सकते हैं। अधिकांश पौधों से प्राप्त प्रोटीन में कुछ एमिनो एसिड
होते हैं।
आवश्यकताओं को देखें
यदि आप अपने एचजीएच स्तर को अधिकतम करना चाहते हैं तो आपको नियोजित व्यायाम के साथ अपने प्रोटीन युक्त आहार का ध्यान रखना होगा। शरीर के वजन के प्रत्येक पाउंड (लगभग 453 ग्राम) के लिए 8 ग्राम प्रोटीन जरूरी होता है। भोजन से आप कैसे जरूरी प्रोटीन और एमिनो एसिड प्राप्त कर सकते हैं, इसकी जानकारी किसी विशेषज्ञ से अवश्य लें।
सफेद चमकदार दांत किसे अच्छे नहीं लगते, ये देखने में भी काफी आकर्षक लगते हैं। यह तो सब मानते हैं कि पीलेपन लिए हुए धब्बेदार दांतो की तुलना में सफेद चमकदार दांत अच्छे लगते हैं। वहीं अगर आपके दांत पीले हैं तो ये आपको शर्मिंदगी होती है। लिहाजा हम आपको बता रहे हैं कि आखिर दांतों के पीलेपन की वजह क्या है और किन चीजों से दूरी बनाकर आप अपने दांतों को मोतियों जैसे सफेद बनाए रख सकते हैं।
दांत के पीलेपन की वजह
जेनेटिक होने के साथ-साथ खराब डेंटल हाइजिन के साथ-साथ बहुत से ऐसी वजहें जो दांतो के रंग को डार्क या पीला करती हैं। आप जो पानी रेग्युलर पी रहे हैं अगर उसमें फ्लोराइड का स्तर ज्यादा है तो इससे भी आपके दांत पीले और गंदे हो सकते हैं। ज्यादातर लोग दांतो पर होने वाले धब्बों के पीछे चाय और कॉफी को दोषी मानते हैं क्योंकि इनमें कैफीन की मात्रा ज्यादा होती है लेकिन कई और कारण भी होते हैं।
साइट्रिक/ऐसिडिक फ्रूट्स
ये सुन कर आपको आश्चर्य हो सकता है लेकिन विटमिन c से भरपूर फलों के सेवन से आपके दांतों का रंग पीला हो सकता है और अगर आप सोचें तो समझ पाएंगे कि ये फल किस तरह से आपके दांतो को डिसकलर करते हैं। इन साइट्रिक फ्रूट्स में मौजूद एसिड दांतो के इनामल को खत्म कर देता है जिससे दांतो में पीलापन आ जाता है।
मिठाइयां
अगर आपको मिठाइयां पसंद हैं तो सावधान हो जाइए, क्योंकि मिठाइयां कई तरह से आपके दांतों को नुकसान पहुंचाती हैं। मिठाइयां और डीजर्ट्स में मौजूद शुगर न केवल आपके दांतों में कैविटी की समस्या पैदा करता है बल्कि साथ ही साथ दांतो के इनामल को भी खत्म करता है जिससे आपके दांत सफेद और चमकदार नहीं रह जाते।
रात में ब्रश न करना
अगर आप रात में खाने के बाद ब्रश नहीं करते तो आपके दांत धीरे-धीरे पीले होने लगते हैं और इनसे चमक भी चली जाती है। साथ ही साथ आपके दांतो में बैक्टीरिया बढ़ने लगते हैं और कैविटी की भी समस्या होने लगती है। इसके अलावा अगर आप दांतों को 2 मिनट से कम ब्रश करते हैं तो दांतो पर मैल जमने लगती है जिससे दांत पीले दिखने लगते हैं।
आजकल देखा गया है कि लोग आम सिगरेट की जगह ई-सिगरेट पीने लगे हैं। उनका मानना है कि धुंआ देने वाली सिगरेट की जगह यह इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट ज्यादा बेहतर है क्योंकि यह सेहत को कम नुकसान पहुंचाती है लेकिन वास्ताविकता इससे अलग है। ई-सिगरेट भी सेहत पर बुरा असर डालती है।
ई-सिगरेट बैटरी से चलने वाले ऐसी डिवाइस हैं जिनमें लिक्विड भरा रहता है। यह निकोटीन और दूसरे हानिकारक केमिकल्स का घोल होता है। जब आप कश खींचते हैं तो हीटिंग डिवाइस इसे गर्म करके भाप में बदल देती है। इसीलिए स्मोकिंग की तर्ज पर वेपिंग कहते हैं।
ई-सिगरेट में निकोटीन और दूसरे हानिकारक केमिकल का घोल होता है। निकोटीन अपने आप में ऐसा नशीला पदार्थ है जिसकी लत लग जाती है। इसलिए विशेषकर हृदय रोगियों को ई-सिगरेट से दूर रहना चाहिए। वैज्ञानिक शोधों में यह कहा गया है कि यह दिल की धमनियों को कमजोर भी करता है। इसकी लत पड़ जाती है इसलिए इसे छोड़ने पर विदड्रॉल सिंड्रोम और डिप्रेशन की समस्या हो सकती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए वेपिंग बहुत खतरनाक है इससे उनके गर्भस्थ शिशु पर बुरा असर पड़ता है। छाटे बच्चों के आसपास इसे पीना ठीक नहीं क्योंकि हानिकारक भाप उनके दिमागी विकास पर असर डालती है।
इसमें निकोटीन के अलावा जो खुशबूदार केमिकल भरा होता है वह गर्म होने पर सांस के साथ फेफड़ों में जाता है और फेफड़ों के कैंसर की आशंका बढ़ जाती है।
सर्दी को सेहत बनाने वाला मौसम माना जाता है और ऐसे में लोग खानपान पर जोर देते हैं। अधिकतर लोगों को लगता है कि सर्दी में कुछ भी खाने से सेहत को ज्यादा नुकसान नहीं होता है। इसी कारण लोग जमकर खाते-पीते हैं लेकिन ऐसा बिलकुल भी सही नहीं है। सर्दी में भी कुछ चीजों का सेवन आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है।
कफ वाले न पीयें दूध
दूध में वो सभी गुण पाए जाते हैं जो सेहतमंद रहने के लिए जरूरी होते हैं लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि सर्दी के मौसम में दूध का सेवन आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है। दरअसल, दूध की तासीर ठंडी होती है. जिस कारण दूध का सेवन शरीर में कफ बनाने का काम करता है। जिन लोगों को पहले से कफ कि शिकायत होती है उनमें दूध पीने से यह परेशानी ज्यादा हो जाती है। जिस कारण गले की तकलीफ बढ़कर सांस लेने में परेशानी हो सकती है
ड्रिंक्स
कॉफी, चाय, हॉट चॉकलेट ज्यादातर लोगों को पसंद होते हैं। सर्दी के मौसम में लोग जमकर इन सभी चीजों का सेवन करते हैं क्योंकि यह चीजें सर्दी में गर्माहट का एहसास कराती हैं लेकिन बता दें कि, इन सभी चीजों में मौजूद फैट और कैफीन शरीर को डी- हाइड्रेट कर देता है जिस कारण हमें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
रेड मीट
रेड मीट और अंडे में सबसे ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है लेकिन सर्दी के मौसम में ज्यादा प्रोटीन के सेवन से आपके गले में बलगम बन सकता है। मीट के बजाए आप मछली का सेवन कर सकते हैं हालांकि मछली में भी प्रोटीन होता है, लेकिन इसके सेवन से सेहत को किसी तरह की परेशानी नहीं होती है।
ऑफ सीजन फ्रूट
कभी भी ऑफ सीजन फ्रूट्स ना खाएं क्योंकि ताजा ना होने की वजह से ऐसे फल सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
अधिक मीठा न खायें
ज्यादा मीठा खाने से प्रतिरोधी शक्ति कम हो जाती है। एक अध्ययन के मुताबिक, ज्यादा मीठा खाने वाले लोगों में बैक्टीरिया के कारण होने वाली बीमारियों से मुकाबले की क्षमता क्षमता कम हो जाती है।
पानी पीयें अल्कोहल नहीं
सर्दी के मौसम में अधिकतर लोग पानी कम पीते हैं जिस वजह से शरीर डी- हाइड्रेट हो जाता है। सर्दी में अक्सर लोग खुद को गर्म रखने के लिए अल्कोहल का सेवन जमकर करते हैं। लेकिन इसका सेवन शरीर को काफी ज्यादा डी- हाइड्रेट कर देता है, जो आपके लिए काफी खतरनाक हो सकता है.
खतरे की घंटी हो सकता है बार-बार प्यास लगना, जान लें उपाय
डॉक्टर हमें फिट रहने के लिए और बीमारियों से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह देते हैं। कुछ लोग अपनी रूटीन में 2 से 3 लीटर पानी पी जाते हैं जो कि हमारी सेहत के लिए अच्छी बात है लेकिन इतना पानी पीकर भी अगर आपको बार-बार प्यास लगती है तो इसका मतलब है कि आपकी बॉडी आपको कुछ संकेत दे रही है जिन्हें आपको इग्नोर नहीं करना चाहिए क्योंकि बार-बार प्यास लगने से आपको यह गंभीर बीमारियां हो सकती हैं इसलिए समय रहते इसका इलाज जरूर करें।
इन बीमारियों का हो सकता है संकेत
हालांकि ज्यादा पानी पीना हमारी सेहत के लिए अच्छा होता है क्योंकि हम जितना पानी पीते हैं उससे शरीर के सारे गंदी चीजें पेशाब द्वारा निकल जाती हैं। इससे हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। हां ज्यादा गर्मी होने के कारण या फिर ज्यादा वर्कआउट करने के कारण आपको प्यास लग सकती है लेकिन अगर बार-बार आपको प्यास लगती है तो यह कुछ गंभीर बीमारियों के लक्षण हो सकते हैं।
पहलें आप जान लें कि ज्यादा प्यास लगने की क्या वजह है?
मेडिकल टर्म में ऐसी स्थिती को पॉलीडिप्सिया कहा जाता है जिसमें एक व्यक्ति ज्यादा पानी पीता है जिसके कराण उसके शरीर में सोडियम की कमी होने लगती है। कईं बार आप ने यह भी नोट किया होगा कि ज्यादा पानी पीने के कारण कईं बार आपका मन भी घबरा जाता है और आपको उल्टी जैसा होना लगता है।
शरीर देता है इन बीमारियों के संकेत
1. हो सकती है डिहाईड्रेशन
इसका सबसे बड़ा कारण यह हो सकता है कि आपके शरीर में पानी की कमी है जिसकी वजह से आपको बार-बार पानी की प्यास लग रही है।
क्या हैं इसके लक्षण
. बार-बार प्यास लगना
. मुंह सूखना
. थकान
. उल्टी
. मतली और बेहो
अगर आपको भी ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो आप तुंरत डॉक्टर से संपर्क करें।
2. डायबिटीज का खतरा
अगर आपको बार-बार प्यास लगती है तो इसे नजरअंदाज न करें क्योंकि इससे आपको डायबिटीज का खतरा हो सकता है। आज कल डायबिटीज तो आम बीमारी हो गई जो हर एक व्यक्ति को है। इसके कईं अन्य कारण भी हो सकते हैं साथ ही इसका एक प्रमुख लक्षण यह भी है कि अगर आपको बार-बार प्यास लगती है तो हो सकता है कि आपको डायबिटीज का खतरा हो।
दरअसल डायबिटीज में खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कराण आपकी किडनी साफ नहीं हो पाती है और शुगर यूरिन के साथ बाहर निकलता है, जिसके कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है। यही बार-बार प्यास लगने की वजह बनती है।
3. एंग्जायटी होना
बहुत से लोगों को इसका अर्थ और इसके लक्षण नहीं पता होते हैं। दरअसल अगर आपकी धड़कन बढ़ रही है, आपको बेचैनी हो रही है या फिर आपको घबराहट हो रही है तो आप एंग्जायटी हो सकती है। कईं बार तो स्थिती ऐसी हो जाती है कि व्यक्ति के मुंह भी सूखने जाता है जिसके कारण से उसे बार-बार प्यास लगती है।
क्या है उपाय?
1. एक बार में ज्यादा पानी न पीएं
2. आंवला पाउडर और शहद को मिक्स कर के खाएं
3. भिगी सौंफ को पीस कर भी खा सकते हैं
4. 1 चम्मच काली मिर्च पाउडर को 4 कप पानी में उबाल कर ठण्डा कर भी पी सकते हैं।