ईश्वर दुबे
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Bhilai
दुर्ग। आनंद पुष्कर दरबार की धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी रतन ज्योति ने कहां कहना, सहना और रहना की शुभ भावना ही मोक्ष का द्वार खोलती है, मानव जीवन में घर से ही धर्म प्रारंभ होता है, जब तक घर में सुख समृद्धि और शांति नहीं होगी, तब तक सच्चा धर्म नहीं हो सकता। गृहस्थ आश्रम भी एक बहुत बड़ा कब्र है, गृहस्थ में रहते हुए भी संतुलित जीवन जीते हुए भी संयमी जीवन का पालन किया जा सकता है साध्वी श्री ने मां के संबंध में धर्म सभा में कहा कि मां दुनिया की सबसे बड़ी धरोहर है मां का सानिध्य पाना ही अपने आप में सबसे बड़ा जीवन का सुख है, भेदभाव की नीति से परिवार में कलह प्रारंभ होता है और ऐसे समय में धर्म की आराधना का प्रारंभ स्थल घर ही है ,आनंद मधुकर रतन भवन की धर्म सभा को साध्वी डॉ अर्पिता श्री ने संबोधित करते हुए कहा अध्यात्म जगत में पहले दोष का निदान करना चाहिए जीवन में साधना करनी है तो दोषमुक्त बनना जरूरी है, आत्म निरीक्षण के बिना शोधक नहीं बन सकते समर्पण भाव के बिना सेवक नहीं बन सकते, सत्व के बिना साधक नहीं बन सकते, जानवरों के पास शरीर बल अधिक होता है और मनुष्यों के पास बुद्धि बल अधिक होता है, बुद्धि बल से मनुष्य हित और अहित का चिंतन कर सकता है, बुरा भला सोच सकता है, बुराइयों को त्याग कर भलाई के कार्य कर सकता है, अधर्म को त्याग कर धर्म के मार्ग पर आगे बढऩे की ताकत मनुष्य में होती है, मनुष्य का स्वभाव मुलायम एवं विनम्र होना चाहिए, आज धर्म सभा में 41 उपवास का पंचक खान संकल्प श्रीमती किरण संचेती ने लिया, इसी तरह सुराना परिवार के अमन सुराना, वेदिका सुराना ने भी अठाई तप का संकल्प पूर्ण किया।