ईश्वर दुबे
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Bhilai
भोपाल : “लहरी बाई पर गर्व है, जिन्होंने श्री अन्न के प्रति उल्लेखनीय उत्साह दिखाया है। उनके प्रयास कई अन्य लोगों को प्रेरित करेंगे।” जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस टवीट के पहले कोई नहीं जानता था कि लहरी बाई कौन है। आज लहरी बाई को मिलेट क्वीन के नाम से सब जानने लगे हैं। यूनेस्को द्वारा 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया गया है तब लहरी बाई होने का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। मध्यप्रदेश के जनजातीय बहुल जिले डिंडोरी से करीब 60 किलोमीटर टूर बजाग विकासखंड के सिलपीड़ी गांव में रहने वाली 28 वर्षीय लहरी बाई करीब एक दशक से मिलेट्स बेंक चला रही हैं। अपने छोटे से कच्चे घर के एक कमरे में उन्होने विलुप्त प्रजातियों के बीजों का बैंक तैयार किया है। इनमें कई अनाज ऐसे हैं, जिन्हें जानने पहचानने वाले लोग भी नहीं बचे हैं।
राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने हाल में लहरी बाई को श्रीअन्न प्रजातियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वर्ष 2021-22 का 'पादप जीनोम संरक्षक किसान सम्मान' प्रदान किया। लहरी बाई को कृषक अधिकार वैश्विक संगोष्ठी के अलंकरण समारोह में सम्मान स्वरूप 1,50,000 रुपये की नकद राशि, प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।
बीज बैंक में 150 से ज्यादा बीज
लहरी बाई के पारंपरिक मिट्टी से बने तीन कमरों के घर में रहती हैं। एक कमरे में उनका परिवार रहता है। दूसरे में घर के अन्य सामान और तीसरे में सामुदायिक बीज बैंक है। इसमें 150 से ज्यादा प्रकार के बीज हैं। लंबे समय तक बीजों की सुरक्षा करने के लिए लहरी बाई ने बड़ी-बड़ी मिट्टी की कोठी भी बनाई है।
उनके बीज बैंक में कांग की चार प्रजातियां- भुरसा कांग, सफेद कलकी कांग, लाल कलकी कांग और करिया कलकी कांग । सलहार की तीन प्रजातियां बैगा सलहार, काटा सलहार और ऐंठी सलहार, कोदो की चार प्रजातियां- बड़े कोदो, लदरी कोदो, बहेरी कोदो और छोटी कोदो, मढिया की चार प्रजाति- चावर मढिया, लाल मढिया, गोद पारी मढिया और मरामुठ मढिया, साभा की तीन प्रजाति- भालू सांभा, कुशवा सांभा और छिदरी सांभा, कुटकी की आठ प्रजातियां- बड़े डोंगर कुटकी, सफेद डोंगर कुटकी, लाल डोंगर कुटकी, चार कुटकी, बिरनी कुटकी, सिताही कुटकी, नान बाई कुटकी, नागदावन कुटकी, छोटाही कुटकी, भदेली कुटकी और सिकिया बीज उपलब्ध है। इसके अलावा दलहनी फसल - बिदरी रवास, झुंझुरु, सुतरू, हिरवा और बैगा राहड़ के बीज भी लहरी बाई के पास मौजूद हैं।
लहरी बाई आस पास के गांवों के कि सानो को ये बीज देती है और फसल आने पर वापस ले लेती है। इस प्रकार वि लुप्त हो रहे बीजों को हर फसल पर नया जीवन मिल जाता है। लहरी बाई के इस प्रयास से दुर्लभ बीजों की रक्षा हो रही है।
अब तक 300 से ज्यादा किसानों को अपने बीज बैंक से बीज देकर उन्हें भी बीजों को बचाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। लहरी बाई ने तीन विकासखंडों समनापुर, बजाग और करंजिया के अंदरूनी गांवों में इन्हीं पारंपरिक बीजों की खेती होती है। खास तौर पर किवाड़, चपवार, गौरा, ढाबा, जीलंग, अजगर, लमोठा, धुरकुटा का जामुन, टोला, कांदावानी, तातर, सिलपीढ़ी, डबरा, ठाड़पथरा,पांडपुर, लिमहा, दोमोहनी, केन्द्रा, लदरा, पीपरपानी, बर्थना, कांदाटोला, सैला गांवों में किसान भी इस काम में सहयोग दे रहे हैं। लहरी गांव-गांव जाकर बीज बांटती हैं और फसल आने पर बीज की मात्रा के बराबर वापस ले लेती हैं।
उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 की घोषणा के तीन साल पहले ही शि व राज सिंह चौहान ने राज्य मिलेट मिशन बनाकर काम शुरू कर दिया था। मध्यप्रदेश में मिलेट आधा रि त खादय पदार्थों और खादय प्रसंस्करण की अपार संभावनाएं हैं। मि लेट उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर है। डिण्डोरी जिला मिलेट से समृद्ध जिला है। लहरी बाई डिण्डोरी जिले की ब्रांड ऐंबेसेडर हैं।