ईश्वर दुबे
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Bhilai
अलीराजुर. झाबुआ (jhabua) का कड़कनाथ मुर्गा ( Kadaknath cock) तो देश-विदेश में प्रसिद्ध हो गया. अब पंजा दरी (claw mat) की बारी है. अलीराजपुर (alirajpur) में बनने वाली इस दरी का पेटेंट कराने की तैयारी है. अलीराजपुर प्रशासन ने इस संबंध में शासन को चिट्ठी भेजी है. अगर पेटेंटे (Patente) हो गया तो दुनिया इस दरी को जानेगी और कारीगरों के दिन फिरेंगे.
मध्य प्रदेश के पश्चिमी ज़िले अलीराजपुर के जोबट में पंजा दरी बनायी जाती है. पीढ़ियों और बरसों से यहां दरी बनाने का काम किया जाता है. लेकिन देश-दुनिया इससे अंजान है. अब प्रशासन इस दरी और कारीगरों को नयी पहचान दिलाना चाहता है. ज़िला प्रशासन ने शासन को पत्र भेजा है. उसने शासन से पंजा दरी का पेटेंट कराने की मांग की है.
हांथ से बनायी जाती है दरी
जोबट की पंजा दरी की खासियत है कि यह बहुत खूबसूरत होती है और बड़ी मज़बूत होती है. ये कई साल बल्कि ये कहना ज़्यादा ठीक होगा कि कई पीढ़ियों तक ख़राब नहीं होती. पंजा दरी इसलिए नाम पड़ा क्योंकि ये हाथ से बनायी जाती है. एक पंजा दरी बनाने में कम से कम तीन से चार दिन लगते हैं. दरी का साइज बड़ा हो तो 20 दिन से ज्यादा समय भी लग सकता है. यह दरी पूरी तरह कॉटन से बनाई जाती है और इसमें रंग भी हाथों से भरा जाता है.
कारीगरों को मिलेगा उनका हक़
जो लोग पंजा दरी के बारे में जानते हैं वो इसे काफी पसंद करते हैं. लेकिन पंजा दरी को वो मार्केट नहीं मिला जिसकी ये और यहां के कारीगर हक़दार हैं. पंजा दरी को सरकार प्रमोट कर रही है. यहां की पुरानी पीढ़ियां घर में ये दरी बनाती थीं. 1986 में सरकार के हस्तशिल्प विकास निगम ने जोबट में सेंटर खोल दिया. अब यहां दरी बनायी जाती है. यहां काम कर रहे कुछ मज़दूरों को रोज़ाना के हिसाब से मजदूरी दी जाती है और कुछ मज़दूरों को दरी के साइज के हिसाब से दाम मिलता है
देश-विदेश में मिले पहचान
पंजा दरी की खुद की पहचान हो और इस नाम और पहचान को कोई कॉपी ना कर सके इसलिए जिला प्रशासन इसका पेटेंट कराना चाहता है. उसने शासन को पत्र भेजकर पंजा दरी का पेटेंट करने के लिए निवेदन किया है. अगर पेटेंट हो जाता है तो मध्य प्रदेश का ये आदिवासी इलाका फिर देश-विदेश में नयी पहचान पाएगा. .