मध्य प्रदेश

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संस्कृति मंत्री डॉ. विजय लक्ष्मी साधौ ने कहा कि वरिष्ठ लेखकों और संस्कृति कर्मियों का दायित्व है कि वे नई पीढ़ी को कला, संगीत एवं साहित्य के साथ ही मूल्यों की परम्परा से भी अवगत करायें। आज मूल्यों में गिरावट आ रही है और परिवार की परिभाषा सीमित हो गई है। बच्चों को एक कक्ष में ही पूरी दुनिया नजर आती है। नई पीढ़ी को जड़ों से परिचित करवाने में साहित्यकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सरकार के साथ ही समाज का भी दायित्व है कि वो आने वाली पीढ़ी को इस बारे में सीख प्रदान करें। डॉ. साधौ आज रवीन्द्र टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय साहित्य और कला महोत्सव 'विश्व रंग' को संबोधित कर रहीं थीं। चार दिवसीय महोत्सव के शुभारंभ के अवसर पर डॉ. साधौ और अन्य अतिथियों द्वारा 'कथादेश' का विमोचन किया गया।
मंत्री डॉ. साधौ ने कहा कि आज इतने यशस्वी लेखक देश-विदेश से भोपाल पधारे हैं। यह मध्यप्रदेश के लिए सौभाग्य की बात है। भोपाल संस्‍कारों की भी राजधानी है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने सांस्कृतिक परम्परा की कड़ी को भारत भवन के शुभारंभ के साथ आगे बढ़ाया था। डॉ. साधौ ने कहा कि यहाँ पग-पग पर संस्कृति के रंग दिखाई देते हैं, साहित्य के दर्शन होते हैं। मध्यप्रदेश में आंचलिक संस्कृति के भी अनेक रंग हैं। यह देश का दिल है। दिल अच्छे से धड़कता है तभी शरीर स्वस्थ रहता है। मध्यप्रदेश में एक नवम्बर को प्रदेश के स्थापना दिवस से गोंड वर्ष मनाया जा रहा है। इससे मध्यप्रदेश की जनजातीय संस्कृति पूरे विश्व तक पहुँचेगी। संस्कृति मंत्री ने 'विश्व रंग' को अतीत से वर्तमान को जोड़ने का महत्वपूर्ण माध्यम बताया।
इस अवसर पर संस्कृति मंत्री और अन्य अतिथियों ने वनमाली कथा सम्मान-2019 से प्रख्यात कथाकार प्रियंवद को सम्मानित किया। कार्यक्रम में 630 लेखकों की सहभागिता वाले कथा संग्रह 'कथोदश' का विमोचन किया गया। इसके साथ ही काव्य-संग्रह का लोकार्पण भी हुआ। प्रारंभ में टैगौर विश्वविद्यालय की ओर से श्री संतोष चौबे ने स्वागत उदबोधन दिया। कार्यक्रम में गुंदेचा बंधुओं ने ध्रुपद गायन प्रस्तुत किया। मंच पर वरिष्ठ साहित्यकार पदमश्री रमेशचंद्र शाह, चित्रा मुदगल, ममता कालिया, फिल्म निर्देशक रजत कपूर, शायर शीन काफ निजाम, सिद्धार्थ, लीलाधर मंडलोई, धनंजय वर्मा और देश-विदेश से पधारे सैकड़ों लेखक और कलाधर्मी उपस्थित थे।

पशुपालन, मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विकास मंत्री श्री लाखन सिंह यादव ने कहा है कि राज्य सरकार निराश्रित गौ-वंश की देखभाल के लिये प्रदेश में एक हजार गौ-शालाओं का निर्माण करवा रही है। हर जिले में नदी किनारे की जमीन पर गौ-वंश अभयारण्य बनाया जायेगा। श्री यादव ने विदिशा जिले में निर्माणाधीन गौ-शालाओं की समीक्षा बैठक में यह जानकारी दी।
मंत्री श्री यादव ने कहा कि कुल 3 हजार गौ-शाला निर्माण के लिये भूमि चिन्हित की जाए। प्रथम चरण में 15 दिसम्बर तक एक हजार गौ-शालाओं के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने कहा कि गौ-शाला निर्माण कार्य में सरपंचों द्वारा व्यय की गई राशि उन्हें वापस दिलाई जायेगी। यदि कोई सरपंच पुन: चुनकर नहीं आता है, तो भी राशि वापस की जायेगी।
मंत्री श्री यादव ने जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को निर्देशित किया कि गौ-शालाओं में जलापूर्ति के लिये ट्यूबवेल खनन कराएं। मनरेगा योजना में गौ-शाला निर्माण में राशि की कमी होने पर पंच-परमेश्वर योजना में पशुओं के लिये पीने के पानी की नालनुमा नाली बनवाई जाये। उन्होंने गौ-शालाओं में बिजली आपूर्ति के लिये बिजली कनेक्शन लेने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि जिन गौ-शालाओं में सुगमता से बिजली की आपूर्ति संभव नहीं है, उनमें सोलर ऊर्जा सिस्टम से बिजली की व्यवस्था की जाए। श्री यादव ने निर्देश दिये गौ-शालाओं में बिजली की सुगम आपूर्ति की दृष्टि से गौ-शालाओं के समीप 25 के.व्ही. के ट्रांसफार्मर्स स्थापित किये जाएं।

सागरः मध्यप्रदेश के सागर जिले (Sagar) में आर्थिक तंगी के कारण एक परिवार के चार सदस्यों ने जहरीला पदार्थ खा लिया, जिसमें से तीन की मौत हो गई है और एक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है. पुलिस के अनुसार, मोतीनगर थाना क्षेत्र के बम्होरी रेगुआ गांव में गुरुवार सुबह मनोज पटेल और उसकी पत्नी पूनम पटेल ने अपनी दो बेटियों- जिया (6 माह) और सोनम (10 साल) को जहरीला पदार्थ खिलाने के बाद खुद भी खा लिया.
इस घटना की जानकारी मिलते ही नगर पुलिस अधीक्षक आर.डी. भारद्वाज, थाना प्रभारी संगीता सिंह और एफएसएल टीम मौके पर पहुंची. सभी को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया. उपचार के दौरान पूनम और उसकी दो बेटियों की मौत हो गई. वहीं मनोज जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है.
पुलिस अधीक्षक अमित सांघी ने संवाददाताओं को बताया कि यह आत्महत्या का मामला है. मनोज की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. घटना के कारणों की जांच कराई जा रही है. आत्महत्या में जहर खाया या फांसी लगाई? यह पूछे जाने पर एसपी ने कहा कि मृतकों के गले पर फांसी के निशान भी हैं. पोस्टमार्टम और अन्य साक्ष्यों की पड़ताल के बाद ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि इन्होंने जहर खाया या फांसी लगाई.

इन्दौर । आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम के तहत सांवेर तहसील के डकाच्या ग्राम में जनमित्र शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में विभिन्न विभागों जैसे लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंकरण, महिला एवं बाल विकास, पशु चिकित्सा, उद्योग, खाद्य, राजस्व, ऊर्जा, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, सामाजिक न्याय एवं जल संसाधन विभाग से संबंधित अधिकारी उपस्थित थे।
इस शिविर का उद्देश्य ग्रामीणों की समस्याओं को सुन कर उनका मौके पर निराकरण करना है। सरकार द्वारा चिन्हित 52 सेवाओं के अंतर्गत आवेदन प्राप्त किये गये तथा अधिकतम आवेदनों का तत्काल एवं कुछ आवेदनों का निश्चित समय-सीमा में निराकरण किया जायेगा। आज प्राप्त हुये आवेदनों में से 70 प्रतिशत आवेदनों का मौके पर ही निराकरण किया गया। इनमें मूलत: राजस्व, खाद्य, पीएचई, जल संसाधन एवं एमपीईबी विभागों से संबंधित आवेदन थे। ज्ञातव्य है कि यह शिविर क्लस्टरवार आयोजित किये जा रहे है। इनमें क्लस्टर से संबंधित ग्राम पंचायतों को शामिल किया जाता है तथा इनकी मॉनीटरिंग जिला पंचायत सीईओ श्रीमती नेहा मीना द्वारा की जा रही है। अगला जनमित्र शिविर 22 नवम्बर 2019 को देपालपुर जनपद के सुमठा ग्राम पंचायत में आयोजित किया जायेगा।

स्टीम सिस्टम का आशय "साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, आर्ट्स औऱ मैथ्स "बेस्ड शिक्षा प्रणाली से है इसका मूल उद्देश्य किताबी ज्ञान को कौशल विकास के साथ जोड़ने से है।

मप्र की कमलनाथ सरकार प्रदेश में शालेय शिक्षा को कौशल विकास के साथ जोड़ने के लिये दक्षिण कोरिया का मॉडल अपनाना चाहती है। इसके लिये मप्र के चुनिंदा 35 अफसरों और शिक्षकों का एक दल इन दिनों दक्षिण कोरिया के दौरे पर गया है जो वहां "स्टीम एजुकेशन" सिस्टम का अध्ययन करेगा और मप्र में इसे कैसे लागू किया जा सकता है इसे लेकर एक रिपोर्ट सरकार को सौपेगा। स्टीम सिस्टम का आशय "साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, आर्ट्स औऱ मैथ्स "बेस्ड शिक्षा प्रणाली से है इसका मूल उद्देश्य किताबी ज्ञान को कौशल विकास के साथ जोड़ने से है। कोरिया में यह सिस्टम बेहद सफल साबित हुआ है इसी सिस्टम को अपनाकर इस छोटे से देश ने तकनीकी के मामले में वैश्विक पहचान अर्जित की है। आज कोरिया इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से लेकर सूचना तकनीकी और प्रोधोगिकी के मामले में अव्वल बना हुआ है। भारत से महज दो साल पहले औपनिवेशिक शासन से आजाद हुआ यह देश आज परिणामोन्मुखी शिक्षा के जरिये आर्थिक औऱ तकनीकी महाशक्ति बनने के मामले में एक मिसाल है। कमलनाथ सरकार का यह नवाचार सिद्धांतय तो स्वागत योग्य ही है लेकिन कोरिया और भारत की सामाजिक आर्थिक सरंचना में बड़ा बुनियादी अंतर है यह हमें नही भूलना चाहिए।यही नही राजनीतिक रूप से शिक्षा कोरियाई शासकों के लिये वोट बैंक का स्रोत नही है इसलिये यह कहना जल्दबाजी ही होगा की कोरियन मॉडल को अपनाकर मप्र में  ढर्रे से उतरी स्कूली शिक्षा का कुछ भला हो सकेगा।

असल में कमलनाथ जिस मॉडल को अपनाने की सोच रहे है उसे सख्त प्रशासन, दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति औऱ नागरिक बोध के साथ ही हांसिल किया जा सकता है।भारत के हिंदी भाषी राज्यों में यह सभी कारक आज भी बेहद कमजोर है।जिन बीमारू राज्यों के लिये आजादी के बाद से ही शिक्षा उच्च प्राथमिकता पर लिए जाने की जरूरत थी वहां यह विषय कभी भी सरकारों के लिये चिंता का मामला नही रहा है। मप्र, उप्र, बिहार,राजस्थान जैसे राज्यों में शिक्षा तंत्र पूरी तरह से अफसरशाही के हवाले है। मप्र में पिछले 25 बर्षो से जिस तरह के प्रयोग किये गए है उसने इस प्रदेश को एक प्रयोगशाला बनाकर रख दिया है। शिक्षा संविधान में राज्य सूची का विषय होने के कारण कोई एकीकृत नीति आज तक प्रदेशों में लागू नही हो सकी है।यही कारण है कि देश भर में अनगिनत शिक्षक पदनाम प्रचलित है। मप्र में शिक्षाकर्मी, संविदा शिक्षक, गुरुजी, सहायक शिक्षक, उच्च शिक्षक, व्याख्याता, औपचारिकेतर शिक्षक, निम्न श्रेणी शिक्षक, सहायक अध्यापक, वरिष्ठ अध्यापक, अतिथि शिक्षक जैसे शिक्षक सिस्टम का हिस्सा है।

प्राथमिक शिक्षा के लिये निगरानी तंत्र अलग है मिडिल तक के लिये अलग फिर मिडिल से इंटरमीडिएट तक की निगरानी के लिये अलग सिस्टम है। मप्र में राज्य का अपना शिक्षक कैडर है वही स्थानीय निकायों के शिक्षक अलग है। एक सँचालनलाय शिक्षा विभाग का है दूसरा राज्य शिक्षा केन्द्र है। दोनों के लिये अलग अलग सेटअप है अलग आईएएस अफसर डायरेक्टर है। केंद्र सरकार राज्यों के लिये सर्व शिक्षा मिशन औऱ आरटीई के तहत जो धन भेजती है उसे खर्च करने के लिये अलग लोग है और राज्य की निधि से जो धन शालेय शिक्षा को आबंटित होता है उसके लिये अलग आयुक्त है। एक नया मिशन कक्षा 8 से 12 के लिये  "राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा मिशन" भी केंद्र सरकार चलाती है इसके लिये एक तीसरा दफ्तर भी मप्र में स्थापित है।

समझा जा सकता है कि किस बेतरतीबी के साथ मप्र में शिक्षा व्यवस्था की निगरानी का सरकारी सिस्टम का बना हुआ है। हाल ही में सरकार ने निकायों के शिक्षकों को शिक्षा विभाग में संविलियन किया है लेकिन इसके बाबजूद प्रदेश में में नियमित औऱ इन एक लाख से अधिक शिक्षकों के बीच वेतन से लेकर सेवा शर्तों को लेकर बीसियों विसंगतियां मौजूद है लगातार ये शिक्षक धरना,आंदोलन, प्रदर्शन करते रहते है। मप्र में सरकारी शिक्षकों की भर्ती के लिए भी समय समय पर नियम बदलते रहे है पहले बगैर डीएड, बीएड किये लोगों को सीधी भर्ती कर नौकरी पर रख लिया गया फिर अब उन्हें सरकारी खर्च पर प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसके बाबजूद प्रदेश में हजारों अयोग्य शिक्षक सिस्टम का हिस्सा बने हुए है हाल ही में ये शिक्षक सरकार द्वारा आयोजित दक्षता संवर्धन परीक्षा में किताब सामने रखकर शुद्ध नकल भी नही कर पाए। प्रदेश में शिक्षकों के तबादलों की कोई मानक नीति नही है हाल ही में कमलनाथ सरकार ने ऑनलाइन सॉफ्टवेयर के जरिये हजारों शिक्षकों के ट्रांसफर किये जिससे हर जिले में सैंकड़ो स्कूल शिक्षक विहीन हो गए।सरकार के स्तर से भी ऐसी नीतियां बनाई गई है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई या कौशल विकास के लिये कोई माहौल ही न बन पाएं। सरकारी शिक्षक  राज्य सरकार की अधिकतर योजनाओं का सर्वे करते है। पिछले एक दशक से एक ब्लाक के लगभग चार सौ सरकारी शिक्षक तो निर्वाचन आयोग के अधीन बीएलओ के रूप में काम करते रहते है क्योंकि निर्वाचन बूथ के नजदीकी स्कूल का एक शिक्षक स्थाई रूप से बीएलओ के रूप से काम कर रहा है। जनगणना से लेकर तमाम तरह के सर्वेक्षण भी सरकारी शिक्षकों से कराए जाते है।

सरकार ने स्कूलों में जो लोकप्रिय प्रयोग किये है उनकी जिम्मेदारी भी शिक्षकों पर डाल रखी है मसलन मध्यान्ह भोजन को बनबाने से लेकर वितरण, साफ सफाई से लेकर साइकिल वितरण, छात्रवृत्ति, निःशुल्क गणवेश औऱ पाठ्यपुस्तक, सभी काम शिक्षकों की अग्रणी भागीदारी से ही पूर्ण हो पाते है। सरकारी स्कूलों के लिये सर्व शिक्षा अभियान से इमारतें तो बड़ी संख्या में बना दी गई लेकिन इनमें से 80 फीसदी ग्रामीण शालाओं में न बिजली कनेक्शन है न पेयजल की सुविधा।न साफ सफाई के लिये चपरासी औऱ न रोजाना की जानकारियां भेजने बनाने के लिये कोई बाबू। समझा जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में मास्टर जी को क्या क्या करना पड़ता है। जबकि छोटे से छोटे प्राइवेट स्कूल में भी इस बात का ख्याल रखा जाता है कि टीचर सिर्फ पढ़ाने पर ध्यान लगाए ताकि उसके स्कूल का रिकॉर्ड बेहतर हो सके।सरकारी स्कूलों में इससे ठीक उलट कहानी है सरकारी अफसर जो जानकारी मांग रहे है वह समय पर जाए, दोपहर का भोजन, गणवेश, साइकिल, किताबें बगैर व्यवधान के बंट जाएं इस ध्येय को आगे रखकर लोग काम करते है। जाहिर है स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता के लिये कोई मनोविज्ञान न सरकार के स्तर पर काम करता है न शिक्षक वर्ग का।

नतीजा हाल ही में नीति आयोग,मानव संशाधन, औऱ विश्व बैंक की एक सयुंक्त रिपोर्ट में परिलक्षित हुआ है। देश के 20 राज्यों के सरकारी एजुकेशन सिस्टम में छात्रों की समझ और सीखने की क्षमताओं को लेकर जारी रैंकिंग में मप्र 15 वे औऱ छत्तीसगढ़ 13 वे स्थान पर है। "द सक्सेस ऑफ अवर स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स" में केरल का नम्बर पहले स्थान पर है। यानि हकीकत है कि मप्र में सरकारी स्कूलों के लाखों बच्चे कुछ भी नहीं सीख पा रहे है यह रिपोर्ट बताती है कि कक्षा 9 में दर्ज बच्चे गणित के जोड़ घटाव, हिंदी वर्णमाला औऱ सामान्य उच्चारण तक नहीं जानते है।

कमलनाथ सरकार ने जिस कोरियाई मॉडल को मप्र में अपनाने की पहल की है उसके लिये सबसे पहले प्रदेश में जमीनी कार्य संस्कृति विकसित करने की आवश्यकता है। शिक्षा तंत्र को अफसरशाही के शिकंजे से बाहर निकाले बिना किसी आदर्श को अपनाया जाना उसकी विफलता की गारंटी पहले से ही घोषित करने जैसा है। राज्य और केंद्र के बीच नीतिगत स्तर पर महज धन के जारी होने का रिश्ता रहना चाहिये धन के साथ केन्द्र के मार्गदर्शी सिद्धांत लागू करने की बाध्यता भी भृष्टाचार की जड़ है।बेहतर होगा राज्य अपना एकीकृत शिक्षा मॉडल लागू करें जिसमें प्राइमरी से इंटरमीडिएट तक नीति निर्माण, पर्यवेक्षण, निगरानी, शास्ति के लिये एक ही तंत्र हो और सभी शिक्षा संवर्ग से आते हो। सरकार के स्तर पर शिक्षकों के वर्गभेद समाप्त किये जायें और यह सुनिश्चित किया जाए कि शिक्षक सिर्फ पढ़ाने के लिये है उन्हें चुनाव के अलावा अन्य कार्य से मुक्त रखा जाए। स्कूलों के नाम पर मॉडल स्कूल, एक्सीलेंस स्कूल, एकलव्य स्कूल, आदर्श स्कूल जैसे प्रयोग भी बन्द होना चाहिये क्योंकि यह भी विषमताओं को जन्म देते है। राज्यों में शिक्षा विभाग के मुखिया शिक्षको के मध्य से ही आना चाहिये और केवल प्रमुख सचिव स्तर पर ही आईएएस अफसरों की नियुक्ति का प्रावधान हो।

इन बुनियादी सुधारों के बगैर कोरियाई मॉडल को अपनाया जाना फिर एक नया प्रयोग ही साबित होगा जैसे कि दो दशकों से लगातार जारी है। क्योंकि कौशल विकास तो तभी संभव है जब बच्चे बुनियादी अक्षर ज्ञान में निपुण हो जो फिलहाल इस मामले में सिफर है।

डॉ अजय खेमरिया
अध्यक्ष बाल कल्याण समिति (जेजे एक्ट) शिवपुरी/ग्वालियर
स्वतन्त्र पत्रकार

परिवहन मंत्री श्री गोविंद सिंह राजपूत ने स्कूली बच्चों को लाने-ले जाने वाले वाहनों में ओव्हर-लोडिंग किए जाने अथवा नियमों का पालन नहीं करने पर सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए है। श्री राजपूत ने यह निर्देश परिवहन विभाग की समीक्षा करते हुए दिया।
श्री राजपूत आज मंत्रालय में प्रमुख सचिव, परिवहन एवं परिवहन आयुक्त के साथ विभागीय समीक्षा बैठक ले रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों एवं जिला कार्यालयों में ऑटोमेटेड ड्रायविंग टेस्टिंग ट्रेक एवं ऑटोमेटिक फिटनेस सेंटर सहित जीपीएस आधारित व्हीकल लोकेशन एवं ट्रेकिंग सिस्टम की स्थापना शीघ्र की जाये। इसके क्रियान्वयन के लिये कंट्रोल एण्ड कमाण्ड सेंटर की स्थापना संबंधी अन्य प्रदेशों में कार्यरत एजेंसियों से इन सिस्टमों का प्रस्ताव आमंत्रित करें। अन्य प्रदेशों में यह सिस्टम किस प्रकार काम कर रहा है, उसके प्रस्तुतिकरण के आधार पर यह सुनिश्चित करें कि यह सिस्टम मध्यप्रदेश की भौगोलिक स्थिति एवं परिवहन व्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में किस प्रकार अधिक से अधिक कारगर हो सकेगा।
परिवहन मंत्री ने कहा कि प्रदेश में पॉल्यूशन अण्डर कंट्रोल सेंटर की स्थापना एवं ऑनलाइन/रियल टाइम के आधार पर पीयूसी जारी करने की प्रणाली लागू करने के लिये जिन प्रदेशों में यह प्रणाली लागू हो, उनके अनुभव एवं परिणामों को देखते हुए इसे व्यावहारिक रूप से लागू करें।
श्री राजपूत ने कहा कि सरकार अपने वचन-पत्र को बिन्दुवार धरातल पर लाने के लिये वचनबद्ध है। वचन-पत्र के कई काम पूर्ण हो चुके हैं, कुछ कामों को 6 माह की समय-सीमा में पूरा किया जाये। शेष कार्यों को आगामी वर्ष के 6 माह में पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित करें।
सड़क परिवहन विभाग के कर्मचारियों को अन्य विभागों में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ करने की कार्यवाही की जाये। जो कर्मचारी वीआरएस का लाभ लेना चाहेंगे, उनके लिये वीआरएस पैकेज का प्रस्ताव शासन के समक्ष रखा जाये।
विभागीय सीमित परीक्षा के माध्यम से लिपिक वर्ग से उप निरीक्षक-परिवहन के पदों की पूर्ति की जायेगी। इसके लिये शीघ्र ही प्रस्ताव शासन को भेजने के निर्देश उन्होंने दिये। बैठक में प्रमुख सचिव श्री एस.एन. मिश्रा, परिवहन आयुक्त श्री व्ही. मधु कुमार एवं ओएसडी श्री कमल नागर उपस्थित थे।

सहकारिता मंत्री डॉ गोविन्द सिंह ने कहा है कि जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों के जो अधिकारी- कर्मचारी बैंकों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, उन्हें नौकरी से बाहर करें तथा जो अच्छा कार्य कर रहे हैं, उन्हें पदोन्नत करें। साथ ही खाली पड़े पदों पर आयुक्त सहकारिता से आवश्यक स्वीकृति प्राप्त कर नियमानुसार शीघ्र ही भर्ती की प्रक्रिया शुरू की जाए। वित्तीय गड़बड़ी करने वालों से राशि की वसूली जाए, उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई जाए। डॉ गोविन्द सिंह आज अपैक्स बैंक के सभागार में भोपाल एवं हौशंगाबाद संभागों के जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों के कार्यों की समीक्षा कर रहे थे।
सहकारिता मंत्री ने कहा कि सहकारिता आंदोलन में जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों का महत्वपूर्ण योगदान है। अत: आवश्यक है कि इनकी वित्तीय स्थिति को सुधारा जाए। गत वर्षों में इनकी वित्तीय स्थिति काफी बिगड़ी है। सहकारिता विभाग के वरिष्ठ अधिकारी निरंतर संभागीय बैठकें आयोजित कर इनके कार्य की समीक्षा करें। आयुक्त सहकारिता श्री एम के अग्रवाल ने बताया कि सागर एवं जबलपुर संभाग को छोड़कर सभी बैठकें की जा चुकी हैं तथा भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहेगा।
प्रमुख सचिव सहकारिता श्री अजीत केसरी ने बताया कि सहकारी बैंक मुख्य रूप से किसानों को अल्प अवधि कृषि ऋण देने का कार्य करते हैं। उन्होंने दिए गए ऋणों की समय से वसूली किए जाने की आवश्यकता बताई। जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों की जिलेवार समीक्षा में पाया गया कि सभी बैंकों द्वारा दिए गए कालातीत ऋणों (NPA) की राशि अत्यधिक है। बैंकों के स्तर पर ऋणों की वसूली के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए। मंत्री श्री सिंह ने निर्देश दिए कि आगामी एक वर्ष में अघिक से अधिक कालातीत ऋणों की वसूली सुनिश्चित की जाए।
सहकारी बैंकों की जिलेवार समीक्षा में पाया गया कि भोपाल में संस्थागत जमा तो हैं, परन्तु व्यक्तिगत जमा नहीं के बराबर हैं। इसके लिए प्रयास किया जाए। साथ ही कालातीत ऋणों की वसूली की जाए। बैतूल जिले में कालातीत ऋण की राशि रूपये 143 करोड़ है। आगामी 30 जून तक 100 करोड़ रूपये की वसूली कर ली जाए। रायसेन जिले में कालातीत ऋण राशि 148 करोड़ है, वहां के अधिकारी ने बताया कि आगामी जून तक 45 करोड़ की वसूली कर ली जाएगी।
राजगढ़ जिले की समीक्षा में पाया गया कि ऋण असंतुलन तथा वित्तीय अनियमितता के प्रकरणों के चलते सहकारी बैंक की हालत खराब है। वहां 183 करोड़ रूपये का कालातीत ऋण है। वित्तीय अनियमितताओं के प्रकरणों वसूली तथा एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई के निर्देश मंत्री डॉ गोविन्द सिंह द्वारा दिए गए। आगामी जून तक कम से कम 75 करोड़ ऋण राशि की वसूली कर ली जाए। विदिशा जिले में 45 करोड़ कालातीत ऋण शेष है, आगामी जून तक वसूली की जाए।
समीक्षा में होशंगाबाद जिले की स्थिति भी काफी खराब पाई गई, वहां 292 करोड़ का कालातीत ऋण शेष है, जिसमें अधिकांश गैर कृषि ऋण है। कई कर्मचारियों के खिलाफ मामले भी चल रहे हैं। कई प्रकरणों में संबंधित सहायक/उप पंजीयक द्वारा स्टे भी दे दिया गया है। इसे मंत्री श्री सिंह द्वारा गंभीरता से लेते हुए निर्देश दिए गए कि ऐसे सहायक/उप पंजीयकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उनकी वेतन वृद्धियां रोकी जाएं। सीहोर जिले की समीक्षा में पाया गया कि वहां जिला सहकारी बैंक का वर्ष 2016-17 में कालातीत ऋण 38 करोड़ था, जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर 280 करोड़ रूपये हो गया। ऋण वसूली को लेकर बैंक द्वारा कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए। इस पर सहकारिता मंत्री द्वारा नाराजी व्यक्त करते हुए कहा कि यदि स्थिति नहीं सुधारी गई तो बोर्ड भंग करने की कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने निर्देश दिए कि ऋण वसूली की मासिक योजना बनाकर सघन कार्रवाई की जाए। जो लोग कार्य करना नहीं चाहते वे बैंकों से बाहर जाने की तैयारी कर लें।
बैठक में अपैक्स बैंक के प्रशासक श्री अशोक सिंह, प्रमुख सचिव सहकारिता श्री अजीत केसरी, सहकारिता आयुक्त श्री एम के अग्रवाल, एमडी अपैक्स बैंक श्री प्रदीप नीखरा, अपर आयुक्त सहकारिता श्री आर सी घिया सहित दोनों संभागों के जिला सहकारी बैंकों के प्रशासक, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला विपणन अधिकारी तथा सभी संबंधित उपस्थित थे।

चिकित्सा शिक्षा, आयुष  एवं संस्कृति मंत्री डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ जिला होशंगाबाद   की इटारसी तहसील के  गांधी स्टेडियम में संगीत नाटक अकादमी दिल्ली द्वारा आयोजित 6 दिवसीय  'देशज'  समारोह के समापन कार्यक्रम में शामिल हुईं। इस अवसर पर संस्कृति मंत्री ने कहा कि, नर्मदा जी के तट पर स्थित होशंगाबाद जिले में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित होना सौभाग्य का अवसर है। नर्मदा जी के दर्शन मात्र से पुण्य-लाभ की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में विभिन्न प्रदेशों की संस्कृतियों का समावेश है।  संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन ही मध्य प्रदेश सरकार का प्रमुख उद्देश्य  है।
मंत्री डॉ. साधौ ने कहा कि हमारे द्वारा लोकगीत, संगीत, नृत्य, लिपियों, कलाओं  एवं जनजाति संस्कृतियों का संरक्षण किया जा रहा है। हमारी गौरवशाली परंपरा व संस्कृति के संरक्षण से ही हम भावी पीढ़ी को संस्कृति से रूबरू करा सकते हैं ताकि वह हमारी संस्कृति को अंगीकार कर सके। उन्होंने इटारसी में संस्कृति एवं कला का समां बांधने वाले कलाकारों को स्मृति-चिन्ह एवं शाल देकर सम्मानित किया।
इस अवसर पर विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा, पूर्व मंत्री श्री विजय दुबे काकूभाई, जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्री कपिल फौजदार, कलेक्टर शीलेंद्र सिंह तथा पुलिस अधीक्षक एम एल छारी सहित अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।

इन्दौर । धर्म को तिलांजलि देकर मात्र भौतिक विज्ञान से प्राप्त विकास समाज में चकाचौंध तो ला सकता है लेकिन कभी सुखी नहीं बना सकता। श्रीमद भागवत वेदों का निचोड़ है जो भक्तों के हृदय में विवेक का सृजन कर ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति कराता है। इसके श्रवण, मनन और मंथन से प्राणियों के त्रिविध तापों का विनाश होकर सत्य स्वरूप परमेश्वर से साक्षात्कार की अनुभूति संभव है।
ये दिव्य विचार हैं धर्मसभा-विद्वत संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रम्हचारी निरंजनानंद श्री धनंजय शास्त्री वैद्य के, जो उन्होंने साऊथ तुकोगंज स्थित नाथमंदिर पर चल रहे मराठी भागवत सप्ताह में विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। कथा में आज दूसरे दिन प्रातःकालीन सत्संग में संहिता वाचन के बाद प्रश्नोत्तरी का दौर भी चला। इसमें ब्रम्हचारी शास्त्रीजी ने भक्तों की जिज्ञासाओं का संतोषप्रद समाधान करते हुए सप्त नदियों की महत्ता, चातुर्मास व्रत के महत्व, आंवले का महत्व, शुभ-अशुभ और शगुन जैसे विषयों पर प्रकाश डाला तथा विविध देव प्रतिमाओं एवं सिक्कों की विशेषताएं भी बताई।
सांयकालीन सत्र में उन्होंने कहा कि श्रीमद भागवत परमहंस संहिता है। आदिकाल में यह ग्रंथ रोम तक प्रसिद्ध था। रोमन दूत हेलाड्रोनस ने विदिशा में जो गरूड़ स्तंभ स्थापित किया है, वह इसका साक्षी है। यही नहीं, इन्दौर के संग्रहालय में रक्षित रोमन सिक्कों पर अंकित स्वस्तिक चिन्ह भी दुनियाभर में व्याप्त वैदिक संस्कृति का साक्षी है। उज्जैन-इन्दौर से बहने वाली सरस्वती नदी के प्रभाव ने भारत को आज तक बहुत ही प्रतिभावान परमाणु वैज्ञानिक दिए हैं। इनमें ज्योतिर्विद, साहित्यिक, कर्मकांडी, विद्याविशारद और कवि जैसे लोग शामिल हैं। विद्वान वक्ता ने भागवत में आए विमानों का वर्णन भी किया और कपिलोपाख्यान सहित विभिन्न विषयों पर तार्किक बातें बताई। श्रीनाथ मंदिर संस्थान के न्यासी बाबा महाराज तराणेकर, उत्सव प्रमुख मनीष ओक, सचिव संजय नामजोशी आदि ने शास्त्रीजी का स्वागत किया। नाथ मंदिर पर शास्त्रीजी प्रतिदिन सांय 5 से 8 बजे तक भागवत कथामृत की वर्षा करेंगे। अंतुर्ली महाराष्ट्र से माधवनाथ महाराज के अनुयायी एवं सत्यनाथ महाराज के अनन्य शिष्य मनोहरदेव देवनाथ महाराज भी आए हैं। प्रातःकालीन सत्र में सुबह 8 से 10 बजे तक माधवनाथ महाराज के अनुयायियों द्वारा माधवनाथ दीप-प्रकाशग्रंथ का सात दिवसीय पारायण भी होगा। कथा के पांचवें दिन 9 नवंबर को तुलसी विवाह का भव्य आयोजन भी होगा। मंगलवार 12 नवंबर को सुबह सत्यनारायण कथा, होम हवन एवं महाप्रसादी के साथ कार्यक्रम का समापन होगा।

इन्दौर । सृष्टि में ठाकुरजी की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। हमारे जीवन में जो कुछ भी घटता है, उसके दूरगामी नतीजे सुखद ही होते हैं लेकिन हम तात्कालिक हालातों में उन्हें समझ नहीं पाते। परमात्मा की हर लीला आनंद, परमानंद और दिव्यानंद से अभिप्रेत होती है। यह मान कर चलंे कि हम सबके जीवन में आनंद की वर्षा की हर बूंद भगवान की कृपा का फल है और दुखों का सैलाब यदि आता है तो उसके लिए हम खुद एवं हमारे कर्म जिम्मेदार हैं। परमात्मा की डिक्षनरी में दुख पीडा और शोक जैसे शब्द हैं ही नहीं। भगवान की लीलाएं मन को चुराने वाली हैं। गोविंद की कृपा चाहिए तो गीता, गौमाता और गंगा का संरक्षण करना होगा।
ये दिव्य विचार हैं कोलकाता के युवा भागवत मनीषी श्रीकृष्णानुरागी पं. शिवम विष्णु पाठक के, जो उन्होंने आज कनाड़िया रोड, वैभव नगर स्थित रिवाज गार्डन पर चल रहे भागवत ज्ञानयज्ञ सप्ताह में भगवान की बाल लीलाओं एवं गोवर्धन पूजन जैसे प्रसंगों की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। इस अवसर पर विधायक महेंद्र हार्डिया, आयोजन समिति की ओर से सतीशकुमार मित्तल, सुभाष गोयल बजरंग, वेदप्रकाश अग्रवाल, सुनील मित्तल, संदीप अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। उत्सवों में हैदराबाद से आए राजकुमार तायल, निजामाबाद से सुशील केड़िया, दिल्ली से विजय मित्तल एवं जयप्रकाश सिंघल, कोचिन से पंकज मित्तल एवं हर्षवर्धन मित्तल, कोयंबटूर से अमित मित्तल एवं हर्ष मित्तल आदि ने भी भाग लिया। कथा में गुरूवार 7 नवंबर को दोपहर 3 से सांय 7 बजे तक रास लीला तथा रूक्मणी विवाह के जीवंत प्रसंग मनाए जाएंगे।
भगवान की लीलाओं की व्याख्या करते हुए पं. पाठक ने कहा कि हमारी एक-एक क्रिया भगवान की नजर में रहती है लेकिन हम भगवान की लीलाओं को नहीं समझ सकते। लीलाओं को निहारना और समझना अलग-अलग बात है। लीलाएं चूंकि आलौकिक होती है, इसलिए उन्हें समझने के लिए दृष्टि चाहिए। दिव्य दृष्टि किसी डॉक्टर से नहीं, सत्संग में ही मिलेगी। कथा स्थल भी किसी दिव्य औषधालय से कम नहीं है जहां मन की व्याधियों का उपचार होता है। यहां आने पर साईड इफेक्ट का भी कोई खतरा नहीं है। जितने धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, वे सब मन के शोधन एवं परिमार्जन के लिए ही होते हैं। तन के रोरों का उपचार डॉक्टर करते हैं और मन की बीमारियों का इलाज सत्संग पांडाल में होता है। भगवान की लीलाएं अदभुत, अनुपम और अद्वितीय हैं।

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