नीतीश के मंत्रिमंडल से समझिए क्या है बीजेपी का असली बिहार प्लान? Featured

नई दिल्ली. बीजेपी ने बिहार में जेडीयू से बड़ी पार्टी होने के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार को सौंप दी है, लेकिन उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बिहार में अपने दो डिप्टी सीएम बनाने में सफल रही है. नीतीश के अलावा कुल 14 मंत्रियों ने सोमवार को शपथ ली है, जिसमें बीजेपी कोटे से सबसे ज्यादा सात मंत्री बनाए गए हैं. मंत्रिमंडल के जरिए बीजेपी ने बिहार में अपने सियासी भविष्य को मजबूत करने और बिना बैसाखी के 2025 की जंग को फतह करने की दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश की है. ऐसे में क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरण साधने के लिए पुराने और जमीन से जुड़े नेताओं को कैबिनेट में खास अहमियत दी गई.

बिहार में नंबर वन की पार्टी बनने की कवायद
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी काफी लंबे समय से बिहार में अपने दम पर पार्टी को उठाना चाहती है. ऐसे में नीतीश कुमार की लंबी छत्रछाया के आगे निकलकर और उनके करीबी सुशील मोदी को डिप्टी सीएम पद न देकर स्थानीय नेताओं को इस बार तरजीह दी है, जिसे पार्टी को अपने दम पर मजबूत करने की कोशिश की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में बीजेपी ने डिप्टी सीएम की एक कुर्सी पर वैश्य समुदाय से आने वाले तारकिशोर प्रसाद को बैठाया तो और दूसरी कुर्सी अतिपिछड़ा समाज से आने वाली रेणु देवी को सौंपी है.

बीजेपी की नजर जेडीयू-एलजेपी के वोटबैंक पर
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह कहते हैं कि नीतीश कुमार की सियासी तौर पर यह आखिरी पारी मानी जा रही है, इस बात का उन्होंने खुद चुनाव के दौरान ही ऐलान कर दिया है. ऐसे में बीजेपी की नजर नीतीश कुमार के अतिपिछड़ा और महिला वोटवैंक को अपने साथ लाने का प्लान है. इसीलिए बीजेपी ने अपने कोटे से 2 पिछड़े, तीन सवर्ण, एक अतिपिछड़ा और एक दलित को मंत्रिमंडल में जगह दी है.  बीजेपी ने मंत्रिमंडल के जरिए अपने सवर्ण मूलवोट वोटबैंक का पूरा ख्याल रखने के साथ अतिपिछड़ा वोटरों को भी संदेश देने की कोशिश की है. यही नहीं बीजेपी की नजर एलजेपी के मूलवोट बैंक दुसाध समुदाय पर भी है, जिसके लिए रामप्रीत पासवान को कैबिनेट में शामिल किया है. इसके अलावा महिला कोटे के तौर पर रेणु देवी को जगह दी गई है. ऐसे ही तेजस्वी यादव के कोर वोटबैंक माने जाने वाले यादव समुदाय को भी मंत्रिमंडल के जरिए सियासी संदेश देने के लिए रामसूरत राय को कैबिनेट में शामिल किया गया है.

नई लीडरशिप के लिए जमीनी नेता को तरजीह
बीजेपी ने बिहार में कैबिनेट गठन में अपने परंपरागत नेताओं की जगह ऐसे नेताओं को जगह दी है, जो पार्टी में कई बार से चुनाव जीतते आ रहे थे और जमीन से जुड़े हुए नेता माने जाते हैं. यही वजह है कि सुशील मोदी की जगह वैश्य समुदाय से आने वाले तारकिशोर प्रसाद को अहमियत दी गई है. तारकिशोर ने लगातार चौथी बार चुनाव जीत दर्ज की है, लेकिन पहली बार मंत्री बने हैं. अमरेंद्र प्रताप सिंह साल 2000 में पहली बार विधायक बने हैं और पिछला चुनाव छोड़कर लगातार जीतते आ रहे हैं.

जीवेश मिश्रा ने भी लगातार तीसरी बार चुनाव में जीत दर्ज की है. इसी तरह से रामसूरत राय भी पार्टी के पुराने और कर्मठ नेताओं में गिने जाते हैं. वहीं, रेणु देवी पांचवी बार विधायक बनी हैं और उन्हें दूसरी बार कैबिनेट में जगह दी गई है. इस तरह से बीजेपी ने जमीनी नेताओं को कैबिनेट में तरजीह देकर कार्यकर्ताओं और पार्टी नेताओं के हौसले बुलंद किए हैं. इस कदम को बिहार में बीजेपी की नई लीडरशिप खड़ी करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है.

कैबिनेट में क्षेत्रीय समीकरण का संतुलन
बीजेपी ने कैबिनटे के जरिए जातीय गणित ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय समीकरण साधने का भी दांव चला है. बीजेपी ने अपने कोटे के मंत्रिमंडल में भोजपुर, तिरहुत, चंपारण, मिथिलांचल और सीमांचल से आने वाले नेताओं को तरजीह दी है. भोजपुर के आरा इलाके से अमरेंद्र प्रताप सिंह आते हैं तो तिरहुत से रामसूरत राय को शामिल किया गया है. वहीं, मिथिलांचल इलाके में बीजेपी ने सबसे बेहतर प्रदर्शन किया है, जिसके लिए यहां से दो मंत्री बनाए गए हैं. इनमें दरभंगा से जीवेश मिश्रा आते हैं तो रामप्रीत पासवान मधुबनी से आते हैं.

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