अपनी ही पार्टी पर भरोसा खो रहे हैं कांग्रेस के युवा नेता Featured

नई दिल्ली । कांग्रेस का राजनीतिक संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पार्टी एक राज्य में सुलझाने की कोशिश करती है, तो दूसरे प्रदेश में मुश्किल खड़ी हो जाती है। पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना है, पर कांग्रेस संगठन इस जिम्मेदारी को निभाने में नाकाम साबित हुआ है। पार्टी में बुजुर्ग नेता जहां लगभग साइडलाइन हैं, वहीं एक के बाद एक युवा नेता कांग्रेस का हाथ छोड़ रहे हैं। ललितेशपति त्रिपाठी और कांग्रेस का कई पीढियों का साथ रहा है। चार पीढियों में यह पहला मौका है, जब पंडित कमलापति त्रिपाठी परिवार के किसी सदस्य ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया है। चुनाव से ठीक पहले पार्टी छोडने वाले ललितेशपति त्रिपाठी अकेले नहीं है, उनसे पहले जितिन प्रसाद भी ऐसा चुके हैं। संजय सिंह, अन्नू टंडन, चौधरी बिजेंद्र सिंह और सलीम शेरवानी भी दूसरी पार्टियों में अपने लिए जगह तलाश कर चुके हैं। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि क्या कांग्रेस ने चुनावों में जीत की उम्मीद छोड़ दी है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यूपी का प्रभार संभालने के बाद संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश की है, वहीं अंदरुनी झगडा भी बढा है। इसके साथ पार्टी को इन प्रियंका गांधी के प्रयासों का चुनावी लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। इसलिए, ललितेश और जितिन प्रसाद के बाद कई और नेता पार्टी छोड़ सकते हैं। इस फेहरिस्त में पश्चिमी उप्र के वरिष्ठ मुसलिम नेता भी शामिल हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि लगातार हार से कार्यकर्ताओं और नेताओं में मायूसी बढी है। कांग्रेस में खुद का कायाकल्प करने का कोई दमखम भी नजर नहीं आता। जबकि युवाओं के पास अभी बीस-तीस साल का राजनीतिक कैरियर है। इसलिए, वह दूसरी पार्टियों में अपने लिए जगह तलाश रहे हैं। कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं में मायूसी की एक वजह नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता भी है। पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की लगातार मांग के बावजूद अध्यक्ष पद के चुनाव लगातार टल रहे हैं। वहीं, हर चुनाव में हार के कारणों पर विचार करने के लिए पार्टी समिति का गठन करती है, पर समितियों से कोई लाभ नहीं हुआ। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी ने हार के कारणों पर विचार करने के लिए एंटनी समिति का गठन किया था। इसके बाद हर हार के बाद समिति बनाई गई। पश्चिम बंगाल, केरल और असम चुनाव में हार के बाद भी अशोक चव्हाण की अध्यक्षता में समिति बनी थी, पर समितियों की सिफारिशों पर अमल नहीं दिखता। ऐसा सिर्फ यूपी में नहीं है। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की युवा टीम में शामिल ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुष्मिता देव भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं। इनसे पहले अशोक तंवर, प्रियंका चतुर्वेदी और खुशबू सुंदर अलग अलग पार्टियों में अपनी लिए जगह बना चुके हैं। पर पार्टी की तरफ से स्थिति को संभालना का कोई प्रयास नहीं दिखता।

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Last modified on Saturday, 25 September 2021 20:17

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