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रामगोपाल यादव ने दावा किया कि मतदाता साइकिल पहचानता है और साइकिल पर ही बटन दबाएगा। आपको बता दें कि 15 जनवरी तक चुनाव आयोग ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों को रैलियों, बाइक रैली, जनसभाओं को करने पर रोक लगा रखी है।

 

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। इसके साथ ही कोरोना वायरस महामारी को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग की ओर से रैलियों पर रोक लगाई गई है। इसी को लेकर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने सवाल उठाए है। रामगोपाल यादव ने साफ तौर पर कहा कि अखिलेश यादव की रैलियों में जनसैलाब को देखकर सत्तारूढ़ भाजपा घबरा गई है और यही कारण है कि सरकार के अनुकूल ही व्यवस्था हो रही है। रामगोपाल यादव ने दावा किया कि मतदाता साइकिल पहचानता है और साइकिल पर ही बटन दबाएगा। आपको बता दें कि 15 जनवरी तक चुनाव आयोग ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों को रैलियों, बाइक रैली, जनसभाओं को करने पर रोक लगा रखी है।

इसी को लेकर रामगोपाल यादव ने ट्वीट किया। अपने ट्वीट में रामगोपाल यादव ने लिखा, 'झंडा बैनर पोस्टर होर्डिंग कुछ नहीं लगा सकते,सभा नुक्कड़ सभा रोडशो रैली भी नहीं कर सकते। मीडिया विपक्ष को दिखा नहीं सकती तो क्या अखिलेश की जनसभाओं में उमड़ते जन सैलाब से घबड़ाकर सरकारी पार्टी के अनुकूल सब व्यवस्था की जारही है। मतदाता सायकिल पहचानता है। और सायकिल का बटन ही दबाएगा।' इससे पहले समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था कि उत्तर प्रदेश की जनता भाजपा सरकार को विदाई देने के लिए तैयार हैं। चुनाव की तारीखें राज्य में एक बड़े बदलाव का प्रतीक होंगी। समाजवादी पार्टी नियमों का पालन करेगी, लेकिन चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सत्तारूढ़ दल इन दिशानिर्देशों का पालन करे।

 

EC ने किया तारीखों का ऐलान

चुनाव आयोग ने कोरोना महामारी की स्थिति को देखते हुए पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के दौरान आगामी 15 जनवरी तक जनसभाओं, साइकिल एवं बाइक रैली और पदयात्राओं पर रोक लगा दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने बताया कि 15 जनवरी के बाद स्थिति का जायजा लेने के उपरांत आयोग आगे का निर्णय लेगा। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के लिए सात चरणों में सीटों का समान रूप से वितरण किया गया है, राज्य के भौगोलिक क्षेत्र के संदर्भ में मतदान के चरण पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ेंगे।

चुनाव आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा के कुछ ही देर बाद भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1994 बैच के अधिकारी असीम कुमार अरुण ने शनिवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) के लिए आवेदन दिया। वह इस समय कानपुर के पुलिस आयुक्त हैं।

 

कानपुर/ लखनऊ (उप्र)। चुनाव आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा के कुछ ही देर बाद भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1994 बैच के अधिकारी असीम कुमार अरुण ने शनिवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) के लिए आवेदन दिया। वह इस समय कानपुर के पुलिस आयुक्त हैं। अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) स्‍तर के अधिकारी असीम कुमार अरुण ने विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद ही वीआरएस मांगने की सूचना को सोशल मीडिया पर साझा किया। असीम अरुण ने कहा, मैंने वीआरएस के लिए आवेदन दिया है क्योंकि अब राष्ट्र और समाज की सेवा एक नये रूप में करना चाहता हूं। मैं बहुत गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूं कि मुझे योगी आदित्यनाथ जी ने भाजपा की सदस्यता के योग्य समझा।

उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, मैं प्रयास करूंगा कि पुलिस बलों के संगठन के अनुभव और सिस्टम को विकसित करने के कौशल से पार्टी को अपनी सेवाएं दूं और पार्टी में विविध अनुभव के व्यक्तियों को शामिल करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल को सार्थक बनाऊं। इससे यह संभावना जताई जा रही है कि अरुण राजनीति में प्रवेश कर सकते हैं और विधानसभा चुनाव में अपने गृह जिले कन्नौज के विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं। कन्नौज संसदीय क्षेत्र का समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सुव्रत पाठक ने इस संसदीय सीट से डिंपल यादव को पराजित कर दिया था। असीम अरुण के इस फैसले के बाद कई राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। असीम अरूण के पास अभी सेवानिवृत्ति के लिए लगभग नौ साल का वक्त बचा है। उन्होंने कथित तौर पर वीआरएस के लिए अपनी अर्जी मुख्‍य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) मुकुल गोयल को सौंपी है। दूरभाष पर पीटीआई- से बातचीत में डीजीपी मुकुल गोयल ने पुष्टि की कि एडीजीपी असीम कुमार अरुण ने वीआरएस के लिए आवेदन दिया है।

गोयल ने कहा, मुझे शनिवार को लिखित वीआरएस आवेदन मिला है और आगे की कार्रवाई के लिए राज्य सरकार को भेजा गया है। हालांकि, उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की घोषणा के कुछ घंटों बाद वीआरएस मांगने के पीछे कोई और टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। एक अन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अपने आवेदन में उन्होंने तत्काल कार्यमुक्त होने का अनुरोध किया था। अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा उनके लिखित अनुरोध को मंजूरी मिलने के बाद उन्हें जल्द ही सेवाओं से मुक्त कर दिया जाएगा। इस संदर्भ में प्रयास के बावजूद असीम अरुण से बातचीत नहीं हो सकी। असीम के पिता श्रीराम अरुण उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके हैं जिनका कुछ समय पहले निधन हो चुका है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में अधिकारियों के वीआरएस लेकर राजनीति में आने के पहले के भी कई उदाहरण हैं।

गुजरात कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1988 बैच के अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा भी पिछले वर्ष वीआरएस लेकर राजनीति में सक्रिय हो गये। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी के साथ करीब दो दशक तक सेवारत रहे शर्मा पिछले वर्ष भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और उन्हें भाजपा ने पहले विधान परिषद का सदस्य और फ‍िर संगठन में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया। उनके पहले सेवानिवृत्त आईपीएस बृजलाल को भाजपा ने महत्व दिया और पहले अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग का चेयरमैन बनाया तथा बाद में राज्यसभा में भी भेजा। राज्‍य में अधिकारियों के राजनीति में आने के कई और उदाहरण हैं।

 

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित होने के एक दिन बाद रविवार को निर्वाचन आयोग से अनुरोध किया कि वह ‘‘चुनावों को धार्मिक रंग देकर स्वार्थ की संकीर्ण राजनीति’’ करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए।

 

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित होने के एक दिन बाद रविवार को निर्वाचन आयोग से अनुरोध किया कि वह ‘‘चुनावों को धार्मिक रंग देकर स्वार्थ की संकीर्ण राजनीति’’ करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए। बसपा प्रमुख ने रविवार को मीडिया से कहा कि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए कार्यक्रम की घोषणा की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि इन राज्यों में चुनाव के मद्देनजर यह बहुत जरूरी है कि निर्वाचन आयोग आदर्श आचार संहिता को पूरी सख्ती से लागू कराने के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि आमजन में स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव कराने के संबंध में विश्वास कायम हो सके।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में चुनावों के दौरान हर प्रकार की धांधली करने तथा सत्‍ता एवं धर्म का चुनावी लाभ लेने के लिए अनुचित काम करने की प्रवृत्ति काफी घातक रूप में बढ़ी है। मायावती ने कहा कि यह चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, पिछले कुछ चुनावों में कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच भी जिस प्रकार से रैलियों एवं रोड शो आदि के जरिये आचार संहिता का खुला उल्लंघन किया गया है, उससे पूरा देश हैरत में है। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों से चुनावों को धार्मिक रंग देकर जिस प्रकार से स्वार्थ की संकीर्ण राजनीति की जा रही है, उस पर भी चुनाव आयोग को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती ने अपने कार्यकाल में कानून व्यवस्था को बेहतर करार देते हुए राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनपा पार्टी (भाजपा) पर आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार के पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण राज्य में ‘‘अपराधियों का जंगलराज’’ है और हर जाति एवं वर्ग के लोग दुखी हैं।

उन्‍होंने कहा, ‘‘इस चुनाव में भाजपा सत्‍ता से बाहर हो जाएगी, बशर्ते सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग तथा वोटिंग मशीन के साथ कुछ गड़बड़ी नहीं की जाए।’’ मायावती ने समाजवादी पार्टी (सपा) का नाम लिए बिना कहा, ‘‘प्रदेश में एक पार्टी ऐसी भी है जो दूसरे दलों से निकाले गए लोगों और कुछ दलों के साथ गठबंधन कर 403 में से 400 सीट जीतने का सपना देख रही है, लेकिन उसका सपना 10 मार्च को हवा हवाई होने वाला है। यही स्थिति भाजपा एवं अन्य दलों की होगी और बसपा ही लोकप्रिय सरकार बना सकती है।’’ उन्होंने भरोसा दिलाया कि बसपा आदर्श आचार संहिता का पूरी ईमानदारी से पालन करेगी। पूर्व मुख्यमंत्री ने आयोग से अनुरोध किया कि चुनाव में किसी को किसी भी प्रकार की बाधा पैदा करने की इजाजत नहीं दी जाए और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए अतिसंवेदनशील मतदान केंद्रों पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की जाए, ताकि मतदाता, खासकर दलित एवं अन्य कमजोर वर्गों के लोग वहां अपना वोट डाल सकें। मायावती ने बताया कि उन्होंने उम्मीदवारों के चयन के लिए लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय में रविवार को प्रमुख बसपा नेताओं की बैठक बुलाई है।

उन्होंने उत्तराखंड में पहले से बेहतर प्रदर्शन करने और पंजाब में शिरोमणिअकाली दल के साथ अपने गठबंधन की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का भी दावा किया। मायावती ने कहा कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षण कराने वाली एजेंसियां भले ही बसपा को दौड़ से बाहर दिखाती रहें लेकिन जनता उनकी पार्टी को बहुमत देगी।

माना जा रहा है कि भाजपा हर हाल में ओमप्रकाश राजभर को अपने खेमे में वापस लाना चाहती है। यही कारण है कि दयाशंकर सिंह बार-बार ओमप्रकाश राजभर से मुलाकात कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक के पिछले 1 महीने में दोनों नेताओं के तीन बार मुलाकात हो चुकी है।

 

उत्तर प्रदेश में चुनावी तारीखों का ऐलान हो चुका है। इसके साथ ही मान-मनौव्वल का भी दौर शुरू हो गया है। सभी दल अपने गठबंधन को भी मजबूत करने की कोशिश में है। इसी कड़ी में भाजपा एक बार फिर से ओमप्रकाश राजभर को अपने पाले में करने की कोशिश लगातार कर रही है। बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेता दयाशंकर सिंह और ओमप्रकाश राजभर के बीच काफी बातचीत चल रही है। हाल में ही शनिवार को भी दोनों नेताओं के बीच लंबी बातचीत हुई है। माना जा रहा है कि भाजपा हर हाल में ओमप्रकाश राजभर को अपने खेमे में वापस लाना चाहती है। यही कारण है कि दयाशंकर सिंह बार-बार ओमप्रकाश राजभर से मुलाकात कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक के पिछले 1 महीने में दोनों नेताओं के तीन बार मुलाकात हो चुकी है।

ओमप्रकाश राजभर की ओर से लगातार भाजपा में लौटने की खबरों को खारिज की जा रही है। दयाशंकर सिंह से मुलाकात को लेकर ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरुण राजभर ने दावा किया कि वह अपने लिए गठबंधन में सीट पक्की करने आए थे। इसके साथ ही राजभर के बेटे ने यह भी कहा कि दयाशंकर सिंह सुभासपा यानी कि राजभर की पार्टी से चुनाव लड़ना चाहते है। दूसरी ओर सूत्र यह बता रहे हैं कि भले ही ओमप्रकाश राजभर की ओर से कुछ भी कहा जाए लेकिन यह बात सच है कि भाजपा अब भी उन्हें मनाने की कोशिश कर रही है। हालांकि ऐसा लग रहा है कि पेंच अब सीटों को लेकर ज्यादा फंस सकता है। ओमप्रकाश राजभर लगातार भाजपा को इस बात का एहसास दिला रहे हैं कि अखिलेश यादव उन्हें 2 दर्जन से भी ज्यादा सीटें दे रहे हैं

 

आपको बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर भाजपा के साथ चुनावी मैदान में उतरे थे। पूर्वांचल में राजभर की अच्छी पकड़ है। ओमप्रकाश राजभर को योगी सरकार में मंत्री भी बनाया गया था। माना जा रहा है कि ओमप्रकाश राजभर की नाराजगी की वजह से पूर्वांचल में भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान भी हो सकता है। यही कारण है कि पार्टी अब भी उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही अगर ओमप्रकाश राजभर चुनाव से पहले भाजपा के साथ आते हैं तो कहीं ना कहीं अखिलेश यादव पर पार्टी एक मनोवैज्ञानिक बढ़त जरूर बना लेगी।

चिदंबरम ने कहां की गोवा विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए किसी भी पार्टी के समर्थन को स्वीकार करने के लिए तैयार है।

 

गोवा विधानसभा चुनाव के लिए भी तारीखों का ऐलान हो गया है। तारीखों के ऐलान के साथ ही राज्य में आचार संहिता भी लागू हो गया है। गोवा में वर्तमान में भाजपा की सरकार है। हालांकि माना जा रहा है कि इस चुनाव में उसे तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से कड़ी चुनौती मिल सकती है। लेकिन कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का दावा यह भी है कि कहीं ना कहीं इस विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का पलड़ा कांग्रेस पर भारी है। इन सबके बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गोवा के प्रभारी पी चिदंबरम ने बड़ा बयान दिया है। पी चिदंबरम ने कहां की गोवा विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए किसी भी पार्टी के समर्थन को स्वीकार करने के लिए तैयार है।

इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस ने इस बात के संकेत दे दिए है कि अगर चुनाव में भाजपा को हराना है तो पार्टी कहीं ना कहीं गठबंधन के लिए तैयार है। इसके साथ ही अगर चुनाव बाद कुछ परिस्थितियां बनती है तो भी भाजपा सरकार के खिलाफ गठबंधन बनाने में कांग्रेस अहम भूमिका निभा सकती है। हाल में ही तृणमूल कांग्रेस की गोवा प्रभारी महुआ मोइत्रा ने कहा था कि ममता बनर्जी के नेतृत्व में गोवा फॉरवर्ड पार्टी और कांग्रेस एक साथ चुनाव मैदान में गठबंधन कर उतर सकते है। इसको लेकर चिदंबरम ने कहा कि मैंने तृणमूल कांग्रेस की नेता का बयान पढ़ा है। आधिकारिक घोषणा का इंतजार करना होगा। चिदंबरम ने यह भी कहा कि कांग्रेस अपने दम पर भाजपा को हराने में पूरी तरह से सक्षम है। लेकिन अगर कोई कांग्रेस के साथ भाजपा को हराने के लिए साथ आना चाहता है तो मैं इसमें ना क्यों कहूं?

 

आपको बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस गोवा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। वह सरकार बनाने में चूक गई कांग्रेस को 17 सीटें हासिल हुई थी जो कि बहुमत के आंकड़े से चार कम थे। हालांकि बीजेपी ने गठबंधन की कोशिश की और उसे पूरा करने के बाद सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की। हाल के दिनों में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने पार्टी का दामन छोड़ दिया है। ऐसे में गोवा में कहीं ना कहीं कांग्रेस अपने वर्चस्व को बनाए रखने की कोशिश कर रही है। आपको बता दें कि गोवा में एक चरण में चुनाव होंगे। 14 फरवरी को मतदान होगा जबकि नतीजे 10 मार्च को आएंगे। 

केजरीवाल ने आगे कहा कि दिल्ली में 24 घंटे के दौरान कोविड के 22 हजार मामले दर्ज होने की आशंका है। कोविड के बढ़ते मामलों पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हमारा प्रयास न्यूनतम पाबंदियां लगाने का है ताकि आजीविका प्रभावित न हो।

 

दिल्ली में लगातार कोरोनावायरस महामारी का खतरा बढ़ता जा रहा है। मामले आज 22000 के आसपास आने का अनुमान है। दिल्ली में सरकार की ओर से वीकेंड कर्फ्यू लगाया गया है। हालांकि इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि अगर इसी तरह से मामले बढ़ते रहे तो कहीं ना कहीं राष्ट्रीय राजधानी में एक बार फिर से लॉकडाउन की स्थिति बन सकती है। इसी को लेकर आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सवाल किया गया। अरविंद केजरीवाल ने साफ तौर पर कहा कि दिल्ली में लॉकडाउन लागू करने की फिलहाल सरकार की कोई योजना नहीं है। अरविंद केजरीवाल ने अपने बयान में कहा कि फिलहाल लॉकडाउन लागू करने की कोई योजना नहीं है; यदि लोग मास्क पहनना जारी रखें तो हम ऐसा नहीं करेंगे।

केजरीवाल ने आगे कहा कि दिल्ली में 24 घंटे के दौरान कोविड के 22 हजार मामले दर्ज होने की आशंका है। कोविड के बढ़ते मामलों पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हमारा प्रयास न्यूनतम पाबंदियां लगाने का है ताकि आजीविका प्रभावित न हो। उन्होंने कहा कि कल DDMA की दोबारा मीटिंग है, उस मीटिंग में हम विशेषज्ञों के साथ फिर से स्थिति का जायज़ा लेंगे कि और क्या-क्या करने की ज़रुरत है। केंद्र से भी हमें पूरा सहयोग मिल रहा है। दिल्ली में कोरोना के मामले बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं। यह एक चिंता का विषय तो है लेकिन घबराने की बात नहीं है। पिछली लहर के मुकाबले इस बार की कोविड लहर में मृत्यु कम हो रही है और लोगों को अस्पताल जाने की ज़रूरत भी कम पड़ रही है। 

 

आपको बता दें कि दिल्ली में शनिवार को कोरोना वायरस संक्रमण के 20,181 नए मामले सामने आए और सात रोगियों की मौत हुई जबकि संक्रमण दर बढ़कर 19.60 प्रतिशत तक पहुंच गई। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। राष्ट्रीय राजधानी में दो मई को कोविड-19 के 407 रोगियों की मौत हुई थी जबकि संक्रमण के 20,394 मामले सामने आए थे। संक्रमण दर 28.33 प्रतिशत रही थी। आंकड़ों के अनुसार एक दिन पहले 1,02,965 कोविड जांच की गई। इनमें 79,946 आरटी-पीसीआर जबकि शेष रैपिड एंटीजेन जांच शामिल हैं।लगभग 1,586 रोगी अस्पतालों में भर्ती हैं।

नई दिल्ली| प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह के वीआरएस अनुरोध को विभाग ने स्वीकार कर लिया है। सिंह की ओर से अब आगामी यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना है। पिछले साल अगस्त में लखनऊ में तैनात सिंह ने वीआरएस के लिए आवेदन किया था। उनके अनुरोध के छह महीने बाद, संबंधित विभाग ने मामले का संज्ञान लिया और उन्हें वीआरएस के लिए अनुमति दी।

संभावना जताई जा रही है कि वह साहिबाबाद से चुनाव लड़ सकते हैं।

अभी तक सिंह ने अपने भाजपा में शामिल होने और अपने वीआरएस के बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। वह अभी तक इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं।

ईडी में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने सबसे संवेदनशील मामलों, जिसमें, 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन शामिल है, मामले की जांच की है। उन्होंने 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में कथित अनियमितताओं के मामले को भी देखा था। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम, उनके बेटे कार्ति चिदंबरम, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई. एस. जगन मोहन रेड्डी और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा से भी उन्होंने विभिन्न मामलों के संबंध में पूछताछ की है।

2018 में दुबई से एक संदिग्ध कॉल आने के बाद सिंह विवादों में आ गए थे। इस कॉल का पता उन खुफिया एजेंसियों को लगा, जिन्होंने इस बारे में शीर्ष अदालत को जानकारी दी। ईडी के तत्कालीन निदेशक करनैल सिंह ने एक बयान में कहा है कि वह (राजेश्वर सिंह) एक जिम्मेदार अधिकारी हैं।

सिंह के पास बी. टेक की डिग्री है और उन्होंने पुलिस, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय विषय में पीएचडी की है। वह 1996 बैच के यूपी के पीपीएस अधिकारी के साथ ही यूपी पुलिस के अधिकारी के तौर पर काम कर चुके हैं। 2009 में वह ईडी में शामिल हुए। उन्हें 2015 में स्थायी रूप से ईडी कैडर में शामिल कर लिया गया था। उनकी बहन आभा सिंह, जो मुंबई में एक प्रैक्टिसिंग वकील हैं, ने उनके संभावित कदम की सराहना करते हुए कहा कि देश को उनकी जरूरत है। राजेश्वर सिंह की शादी आईपीएस लक्ष्मी सिंह से हुई है।

श्रीनगर | जम्मू-कश्मीर पुलिस ने शनिवार को दक्षिण कश्मीर के बिजबेहरा कस्बे में दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद की पुण्यतिथि पर एक जनसभा आयोजित करने को लेकर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के 10 नेताओं और कार्यकतार्ओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। बिजबेहरा पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा) और 269 (गैरकानूनी या लापरवाही से जीवन के लिए खतरनाक किसी भी बीमारी के संक्रमण को फैलाने की संभावना) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।

कार्यपालक दंडाधिकारी (तहसीलदार) के निर्देश पर संबंधित थाने के थाना प्रभारी के तहत मामला दर्ज किया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सहित पीडीपी नेताओं ने शुक्रवार को पीडीपी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की 6वीं पुण्यतिथि पर बिजबेहरा शहर में एक सार्वजनिक रैली में भाग लिया था। पुलिस कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए, महबूबा मुफ्ती ने अपने ट्विटर पेज पर कहा, कोविड-19 प्रतिबंध केवल पीडीपी पर लागू होते हैं। यह कल कश्मीर में भाजपा के विरोध, पंजाब में पीएम की रैली या सामूहिक पूजा में सैकड़ों लोगों ने उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना की, उनके लिए लागू नहीं होते हैं।

नई दिल्ली| चुनाव आयोग ने शनिवार को पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तारीख की घोषणा कर दी है। आगामी चुनाव भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं और भगवा पार्टी चार राज्यों - उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सत्ता में है, जबकि कांग्रेस पंजाब राज्य में शासन कर रही है।

भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती न केवल इन चार राज्यों को बनाए रखना है, बल्कि पंजाब में भी अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराना है, जहां भगवा पार्टी अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींडसा की शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ संयुक्त रूप से चुनाव लड़ रही है।

सत्तारूढ़ भाजपा चार राज्यों को बनाए रखने और पंजाब को जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है, क्योंकि यह चुनाव अगले आम चुनावों के लिए देश में एक राजनीतिक माहौल स्थापित करेंगे।

उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में भाजपा की हार विपक्ष को मजबूत करेगी और विपक्षी एकता को भी मजबूत करने का काम करेगी। इसी तरह, उत्तर प्रदेश को बनाए रखने से अगले आम चुनावों के लिए भाजपा की संभावना बढ़ जाएगी।

उत्तर प्रदेश में 10, 14, 20, 23 और 27 के साथ ही 3 मार्च और 7 मार्च को सात चरणों में मतदान होगा।

एक भाजपा नेता ने कहा, यह हमेशा माना जाता है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम लोकसभा चुनावों के लिए टोन सेट करेंगे। इसी तरह, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव इस बार भी भाजपा के पक्ष में या इसके खिलाफ 2024 के आम चुनाव में एजेंडा सेट करेंगे। 403 विधानसभा और 80 लोकसभा सीटों के साथ सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है।

भाजपा विपक्ष के तमाम आरोपों का जवाब देने को तैयार है। राज्य सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर वाले फैक्ट के अलावा विपक्ष कई मुद्दों पर सत्ताधारी पार्टी को घेर रहा है, जिसमें दूसरी लहर के दौरान कोविड कुप्रबंधन, किसानों का विरोध और बेरोजगारी आदि शामिल है। हालांकि भाजपा आक्रामक रूप से राज्य के विकास पर जोर देने वाले विकासात्मक मुद्दों पर अडिग है और उसका कहना है कि डबल इंजन सरकार से राज्य का और अधिक विकास संभव होगा।

हालांकि, भाजपा का दावा है कि उनके किसी भी राज्यों में सरकार के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है। पार्टी की ओर से पिछले पांच वर्षों में पूरी की गई कई ढांचागत परियोजनाओं और कल्याणकारी उपायों पर प्रकाश डाला गया है।

2017 के चुनावों में, भाजपा ने 403 सदस्यीय विधानसभा में 325 सीटें जीतकर अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ उत्तर प्रदेश में जीत हासिल की थी। समाजवादी पार्टी (सपा) इस बार बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है। भगवा पार्टी भी सपा-रालोद गठबंधन को लेकर थोड़ा चिंतित है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसके खिलाफ काम कर सकता है।

बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का दावा है कि लोगों ने पहले ही उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार चुनने का फैसला कर लिया है। उन्होंने कहा, जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में हमें जो प्यार और आशीर्वाद मिला, वह स्पष्ट रूप से दिखा रहा है कि लोगों ने राज्य के निर्बाध विकास को जारी रखने के लिए भाजपा सरकार को चुनने का मन बना लिया है।

विवादास्पद तीन कृषि कानूनों पर 2020 में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ गठबंधन के समाप्त होने के बाद, भाजपा पंजाब में राजनीतिक आधार हासिल करने के लिए आक्रामक रूप से प्रचार कर रही है। भगवा पार्टी के नेताओं का मानना है कि पंजाब लोक कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) राज्य में राजनीतिक लाभ कमाएंगे। परिणाम यह भी दिखाएगा कि तीन कृषि कानूनों को रद्द करने से पंजाब में भाजपा और उसके गठबंधन सहयोगी को फायदा हुआ या नहीं।

गोवा में, जहां भाजपा 10 साल से सत्ता में है और अपने सबसे बड़े नेता मनोहर पर्रिकर की मृत्यु के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ेगी, आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस और नवोदित तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से चुनौती का सामना कर रही है।

उत्तराखंड में चार महीने में तीन मुख्यमंत्रियों को बदलने से भाजपा को फायदा हुआ या नहीं, यह विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद पता चलेगा। मार्च में बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया था। जुलाई में तीरथ सिंह की जगह पुष्कर सिंह धामी ने ले ली। बीजेपी ने उत्तराखंड में अगले विधानसभा चुनाव में 60 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 57 सीटों पर जीत हासिल की थी।

पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में 14 फरवरी को मतदान होगा।

भाजपा पिछले पांच वर्षों में विकास के मुद्दे के अलावा बंद नाकाबंदी मुक्त राज्य के मुद्दों पर मणिपुर को बनाए रखने की कोशिश कर रही है। भाजपा ने 2017 के मणिपुर विधानसभा चुनावों में 60 में से 21 सीटें जीती थीं और क्षेत्रीय दलों के समर्थन से सरकार बनाई थी।

मणिपुर में दो चरणों में 27 फरवरी को मतदान होगा।

नई दिल्ली | कोविड संकट के बीच पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। इस बीच चुनाव आयोग ने शनिवार को कहा कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को 15 जनवरी तक रोड शो, वाहन रैली और पदयात्रा की अनुमति नहीं है। कोरोना के बढ़ते मामलों और ओमिक्रॉन वैरिएंट के प्रकोप के बीच चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक पार्टियों को वर्चुअल (ऑनलाइन) मोड में अभियान चलाने की सलाह भी दी। चुनाव आयोग ने कहा कि उनका लक्ष्य व्यापक तैयारी के साथ 5 राज्यों में कोविड-सुरक्षित चुनाव कराना है। चुनाव आयोग ने शनिवार दोपहर की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह जानकारी दी।

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