कई ऐसी बेजरूरत मशीनें और उपकरण खरीद लिए जिन्हें ऑपरेट करने वाले ही नहीं
रायपुर . दाऊ कल्याण सिंह डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की मशीनों और रिनोवेशन में करोड़ों के खेल होने की शिकायत है। मशीन व उपकरणों की खरीदी की प्रक्रिया सीजीएमएससी के माध्यम से की गई। इसके लिए टेंडर भी निकाला गया। इसमें कागजों में तो पूरी पारदर्शिता बरती गई, लेकिन टेंडर में सारे बड़े काम चहेतों को दिए गए।
इसमें मोटा कमीशन लिए जाने की चर्चा है। प्रबंधन ने ऐसी कई मशीनें और उपकरण खरीद लिए, जिसकी जरूरत नहीं है। विदेश से मंगवायी वर्चुअल बॉडी यानी प्लास्टिक का पुतला इसमें शामिल है। केवल इसी की खरीदी में साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा खर्च किया गया है।
शिकायत और दस्तावेजों का परीक्षण करने के बाद पुलिस ने उन डाक्टरों और अफसरों की भूमिका की जांच शुरू कर दी है, जो पर्चेस यानी खरीदी के लिए गठित कमेटी में शामिल थे। उन्हें डा. पुनीत के केस में सह अभियुक्त बनाया जाएगा। अफसवरों ने संकेत दिए हैं इन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है। गौरतलब है कि डॉ. पुनीत गुप्ता जब डीकेएस अधीक्षक थे, तब छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन के एमडी बी. रामाराव थे। उन्हीं को सारी मशीनों व उपकरणों की खरीदी के लिए प्रस्ताव भेजा गया। उसके बाद सीजीएमएससी के माध्यम से खरीदी का टेंडर जारी किया गया। शिकायत है कि पहले कंपनियों को तय कर लिया गया था कि किस कंपनी ने क्या सामान खरीदना है। उसके बाद उस कमेटी की योग्यता के आधार पर टेंडर जारी किया गया।
पर्चेस कमेटी इसलिए घेरे में : अस्पताल की पर्चेस कमेटी इसलिए गठित की जाती है कि ये स्पष्ट रहे कि कौन सी जरूरत पहले पूरी करनी है और कौन सी बाद में। इस कमेटी में डॉ. प्रफुल्ल दावले, डॉ. कृष्णा ध्रुव, डॉ. ए. मेनन व स्वाति शर्मा थीं। डॉ. दावले जनरल फिजिशियन हैं और वर्तमान में किडनी विभाग में पदस्थ है। ध्रुव प्लास्टिक सर्जन हैं। डॉ. मेनन पीडियाट्रिक सर्जन हैं और शर्मा फिजियोथैरेपिस्ट हैं। हालांकि शर्मा ने कुछ महीना पहले इस्तीफा दिया था, जो अब तक मंजूर नहीं हुआ है।
जांच कमेटी के सामने इन डॉक्टरों ने बयान दिया था कि उन्होंने डॉ. गुप्ता के कहे अनुसार हस्ताक्षर किया है। खरीदी में इससे ज्यादा उनकी भूमिका नहीं है। खरीदी डॉ. गुप्ता व सीजीएमएससी के अधिकारियों ने की है।
फाइनल चालान पेश करने की तैयारी : डॉ. पुनीत गुप्ता की जांच कर रही एसआईटी फाइनल चालान पेश करने की तैयारी में हैं। चर्चा है कि इस महीने के अंत तक पुलिस आरोपियों के खिलाफ चालान पेश कर सकती है। इसलिए किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की जा रही है। कोर्ट के माध्यम से आरोपियों की गिरफ्तारी की जाएगी।
मशीन व उपकरणों में फिजूलखर्ची
वर्चुअल बॉडी- 80 लाख रुपए के हिसाब से चार बॉडी यानी प्लास्टिक के पुतले खरीदे गए। इसकी कीमत 3.20 करोड़ रुपए से ज्यादा है। विशेषज्ञों के अनुसार पीजी इंस्टीट्यूट में इसकी जरूरत ही नहीं है। मेडिकल कॉलेज में जहां एमबीबीएस अथवा पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई होती है, वहां यह उपयोग में लिया जा सकता है।
थिएटर- करोड़ों की लागत से थिएटर बनाया गया है। दावा है कि किसी सरकारी अथवा निजी अस्पताल में यह देश का पहला थिएटर है। थिएटर का उपयोग अब तक नहीं हो सकता है। डॉ. गुप्ता के हटते ही थिएटर भी डेड हो गया है। हालांकि अब कहा जा रहा है कि इसमें लोगों को बीमारी संबंधी प्रेरक कार्यक्रम दिखाए जाएंगे।
मॉड्यूलर ओटी- एक मॉड्यूलर ओटी में 10 करोड़ रुपए खर्च करने का हल्ला है। हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार इसमें दो से तीन करोड़ रुपए खर्च होता है। इसमें भी भारी भ्रष्टाचार किए जाने के संकेत है।
अधीक्षक कक्ष- अधीक्षक कक्ष पासवर्ड से संचालित होता है। अधीक्षक कक्ष में जाने के लिए पहले कार्ड स्वाइप कर गेट खोला जाता है। इसके बाद एक और गेट है, जो सीधे अधीक्षक कमरे का है। इस गेट को खोलने के लिए पासवर्ड की जरूरत होती है। यह गेट तभी खुलता, जब अधीक्षक चाहे। हालांकि अब पहले वाले गेट में कार्ड स्वाइप वाली व्यवस्था हटा दी गई है।