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भारतीय संविधान के निर्माण में छत्तीसगढिय़ा सिपाही Featured

घनश्याम सिंह गुप्त को नहीं मिला हक का सम्मान  
दुर्ग। अंग्रेजी गुलामी से आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले छत्तीसगढ़ के अनेक लोगों में दुर्ग जिला के दाऊ घनश्याम सिंह गुप्त की भूमिका कहीं कम न था। अंग्रेजी हुकूमत से आजादी के बाद डा. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में गठित संविधान सभा में छत्तीसगढ़ के कुछ ही लोग सदस्य थे, उनमें दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त भी शामिल थे।
    भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में गठित मसौदा समिति द्वारा बनाये गये संविधान के हिंदी अनुवाद के लिये बनाई गई समिति को अध्यक्ष बनाकर दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त को अहम जिम्मेदारी दी गई थी, जिसका उन्होने बखूबी निर्वाह किया था। इतना ही नहीं दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त 1955 में भाषावार राज्यों के पुनर्गठन और मप्र बनने से पूर्व सीपी एवं बरार विधान सभा के अध्यक्ष रहे हैं, उन दिनों ऐसा गौरव पाने वाले दाऊ घनश्याम सिंह गुप्त पहले और एकमात्र छत्तीसगढिय़ा रहे हैं। इसके अलावा अस्पृश्यता निवारण और समाज सुधार में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, महिला शिक्षा को प्रोत्साहन देने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है और उनकी प्रेरणा से दुर्ग में कन्याओं के लिये आवासीय विद्यालय गुरूकुल की स्थापना की गई थी, जो आज कन्या महाविद्यालय का रूप धारण कर चुका है। छत्तीसगढ़ में अनेक विभूतियां हुए हैं किंतु दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त जैसे बहुमुखी प्रतिभा वाले विरले ही मिलेंगे। Óदेश की स्वतंत्रता के बाद केंद्र में अधिकांश समय तक कांग्रेस की और कुछ समय के लिये भाजपा की और गैर कांग्रेसी सरकारें सत्ता में रही है। इसी प्रकार मप्र और 20 वर्ष में छग में भाजपा, कांग्रेस की सरकारें रहीं है, किंतु किसी भी दल की सरकार नें दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त को वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार हैंÓ।
    छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद उम्मीद जगी थी कि छत्तीसगढिय़ों की अपनी सरकार खाटी छत्तीसगढिय़ा दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त को उचित सम्मान प्रदान करेगी, किंतु अफसोस छग की अब तक की सरकारों ने भी छत्तीसगढ़ के रत्न दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त को सम्मान प्रदान करने में उपेक्षा का ही बर्ताव किया है, छत्तीसगढ़ में महाविद्यालय या विश्व विद्यालय का या अन्य किसी संस्था, स्मारक, सड़क, पुल आदि को उनका नाम दिया जा सकता था, किंतु ऐसा करने के बजाय कांग्रेस की सरकारों ने नेहरू, इंदिरा और राजीव का नामकरण किया तो भाजपा ने दीनदयाल, श्यामाप्रसाद मुखर्जी का,Óछत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के संस्थापक भाजपा के तत्कालीन सांसद स्व. ताराचंद साहू ने दुर्ग के वाई शेप ओवर ब्रिज को दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त का नाम देने का प्रस्ताव किया था. जिसे ठुकराकर तत्कालीन रमन सरकार नें ब्रिज को संघ के डा. पाटणकर का नाम दे दियाÓ।Óसीपी एवं बरार विधान सभा का छत्तीसगढिय़ा अध्यक्ष होने के नाते दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त का तैलचित्र छत्तीसगढ़ विधानसभा के सेंट्रल हाल में तो लगाया ही जाना चाहिये था, दुर्भाग्य से छग की अब तक की सरकारों ने यह तक नहीं किया, राज्य में भूपेश बघेल के नेतृत्व में गठित सरकार छत्तीसगढिय़ों के हित में अनेक कार्य कर रही है आशा है, कि उनकी सरकार खाटी छत्तीसगढिय़ा दाऊ घनश्यामसिंह गुप्त को भी वह सम्मान प्रदान करेगी जिनके वे हकदार हैं।
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