छत्तीसगढ़ की सत्ता पर दोबारा काबिज होने के लिए डॉ. रमन सिंह को इस बार अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर पिछला प्रदर्शन दोहराना होगा। इसी समुदाय ने 2013 में भाजपा को सत्ता में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 10 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं और इन सीटों को लेकर कांग्रेस-भाजपा में जबरदस्त लड़ाई रहती है।
2013 चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जनजाति यानि एसटी आरक्षित सीटों पर करारा झटका लगा था। उसे 29 सीटों में से महज 11 पर ही जीत मिली थी। इस झटके की भरपाई उसने एससी आरक्षित 10 में से 9 सीटें जीतकर कर ली थी। छत्तीसगढ़ की कुल आबादी में एससी वर्ग 14 फीसदी है। ये आबादी मुख्य तौर पर आदिवासी बहुल उत्तरी और दक्षिणी हिस्से में रहते हैं।
इनकी बड़ी आबादी सतनामी संप्रदाय को मानती है जो एक सुधारवादी आंदोलन की तरह चला था और इसकी स्थापना 19वीं सदी में गुरु घासीदास ने रखी थी।
2013 में रमन सिंह ने जबरदस्त रणनीति अख्तियार करते हुए 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उन्होंने सतनाम संप्रदाय के बाबा बालदास के जरिए एससी बहुल सीटों पर 20 उम्मीदवार खड़े करवा दिए थे। बालदास को प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर भी मुहैया कराया गया था। हालांकि उनके उम्मीदवार को कोई भी सीट नहीं मिली, लेकिन इसने कांग्रेस का खेल जरूर बिगाड़ दिया।