नई दिल्ली। भारत (India) आने वाले सात वर्षों में अपनी बढ़ती बिजली (Electricity) की मांग को पूरा करने के लिए किसी नए कोयला संयंत्र (Coal Plants) की जरूरत नहीं पड़ेगी। एक नई वैश्विक रिपोर्ट (Global Report) में कहा गया है कि देश 2032 तक की बिजली जरूरतों को पहले से तय सौर, पवन और ऊर्जा भंडारण लक्ष्यों के जरिए पूरा कर सकता है। यह निष्कर्ष भारत की ऊर्जा नीति में बड़े बदलाव का संकेत देता है।
ऊर्जा थिंक टैंक एंबर की मंगलवार को जारी रिपोर्ट ‘कोल डिमिनिशिंग रोल इन इंडिया इलेक्ट्रीसिटी ट्राजिशन’ के मुताबिक, नए कोयला संयंत्रों में निवेश न सिर्फ अनावश्यक बल्कि आर्थिक रूप से नुकसानदेह साबित होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि मौजूदा निर्माणाधीन कोयला संयंत्रों के अलावा और संयंत्र बनाए गए तो यह बिजली वितरण कंपनियों और उपभोक्ताओं पर महंगा बोझ डाल सकता है, क्योंकि अक्षय ऊर्जा और बैटरी स्टोरेज तकनीक अब पहले से कहीं सस्ती और भरोसेमंद हो गई है।
एंबर के मॉडलिंग डेटा के अनुसार, यदि भारत नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान 2032 के तहत तय सौर, पवन और स्टोरेज लक्ष्यों को पूरा कर लेता है, तो 2031-32 तक लगभग 10 फीसदी अतिरिक्त कोयला संयंत्र पूरी तरह बेकार पड़े रहेंगे, जबकि 25 फीसदी से अधिक संयंत्र बहुत कम क्षमता पर चलेंगे। रिपोर्ट बताती है कि भारत के कोयला संयंत्रों की औसत प्लांट लोड फैक्टर 2024-25 में 69 प्रतिशत से घटकर 2031-32 तक सिर्फ 55 प्रतिशत रह जाएगी। इसका मतलब यह होगा कि कई संयंत्र लंबे समय तक बंद रहेंगे या बेहद कम क्षमता पर चलेंगे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे-जैसे सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन बढ़ेगा, कोयला बिजली का मुख्य स्रोत न रहकर सिर्फ बैकअप विकल्प बन जाएगा। इससे कोयला बिजली की लागत और बढ़ जाएगी। एम्बर का अनुमान है कि वर्तमान में कोयला बिजली की दर लगभग ₹छह प्रति यूनिट है, जो 2031-32 तक बढ़कर ₹7.25 प्रति यूनिट तक पहुंच सकती है।
बिहार और मध्य प्रदेश जैसे कोयला उत्पादक राज्यों में भी नए कोयला