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महाराणा प्रताप घांस की रोटी खाकर स्वाभिमान के साथ जिये, पर उन्होंने कभी स्वतंत्रता के साथ समझौता नहीं किया

भोपाल : तमाम तरह के मुगल आक्रमण के बाद भी महाराणा प्रताप घांस की रोटी खाकर स्वाभिमान के साथ जिये, पर उन्होंने कभी स्वतंत्रता के साथ समझौता नहीं किया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शाजापुर जिले के शुजालपुर में महाराणा प्रताप की जन्म जयंती पर आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए यह बात कही। इस मौके पर प्रदेश के उच्‍च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इंदरसिंह परमार, विधायक शाजापुर अरूण भीमावद, कालापीपल विधायक घनश्याम चन्द्रवंशी, जिला पंचायत अध्यक्ष हेमराज सिंह सिसोदिया, नगरपालिका अध्यक्ष बबीता परमार, अशोक नायक, जनपद पंचायत अध्यक्ष सीताबाई पटोदिया, जिला पंचायत सदस्य मनोहर सिंह वाघेला, केदारसिंह मण्डलोई सहित मेवाड़ा समाज के प्रतिनिधिगण मौजूद थे।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि महाराणा प्रताप का जीवन जितना पढ़ो उतना कम है। महाराणा प्रताप जीते-जी किवदंती बन गये। वे जब युद्ध में 76 किलो का कवच, 80 किलो का भाला और 2 तलवार लेकर जब उतरते थे, तो उनके सामने मुकाबला करने से हर दुश्मन कतराता था। महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक से भी उनकी मित्रता का उदाहरण दुनिया में आज भी अद्वितीय है। तमाम प्रकार के मुगलों के आक्रमण एवं आतंक के बाद भी महाराणा प्रताप घांस की रोटी खाकर स्वाभिमान के साथ जिये, लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता के साथ समझौता नहीं किया। ऐसे शूरवीर महापुरूष महाराणा प्रताप की जन्म जयंती आज हम मना रहे हैं, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है। लोकतंत्र में इसका महत्व है कि महाराणा प्रताप से प्रेरणा पाकर सेठ-साहूकारों ने उस समय अपना पूरा खजाना महाराणा प्रताप को भेंट कर दिया था। भामाशाह इसके उदाहरण है, जिन्होंने अपना पूरा खजाना महाराणा प्रताप को भेंट कर दिया था। जंगल में रहने वाले वनवासियों ने भी महाराणा प्रताप को पूरा सहयोग दिया था, उस समय कोई जाति का भेदभाव नहीं था। महाराणा प्रताप सबको लेकर चलते थे। सारे समुदाय में महाराणा प्रताप आदर के केन्द्र बिन्दु थे। नवीन शिक्षा नीति में महाराणा प्रताप को स्थान दिया है। महाराणा प्रताप को अब विद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है, जिससे अगली पीढ़ी को महाराणा प्रताप को जानने का मौका मिलेगा।

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