कोरोना के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा रेमेडेसिविर की ब्लैक मार्केटिंग
बाजार में MRP से नौ गुना कीमत पर बिक रही कोरोना की दवा रेमेडेसिविर
नई दिल्ली/मुंबई| मोटे मुनाफे की गरज से कुछ लोग महामारी को भुनाने से भी नहीं चूक रहे. जांच से खुलासा हुआ है कि कोविड-19 के लिए एक अहम जीवनरक्षक दवा की जमाखोरी और कालाबाजारी की जा रही है और फार्मा सप्लाई चेन से जुड़े कुछ शातिर ही इस नापाक काम को अंजाम देने में लगे हैं.
अमेरिकी कंपनी गिलियड साइंसेज की निर्मित रेमडेसिविर को गंभीर रूप से बीमार कोरोनावायरस मरीजों के लिए उम्मीद की किरण के तौर पर देखा जाता है. क्लिनिकल ट्रायल्स में रिकवरी टाइम को कम करने में इस दवा की क्षमता साबित हुई है. गिलियड ने दवा के जेनेरिक संस्करण बनाने के लिए भारत में कई दवा निर्माता कंपनियों को लाइसेंस दिया है.
अंडरकवर जांच से सामने आया कि जिन लोगों को जीवित रखने के लिए रेमडेसिविर की जरूरत है, हो सकता है उनकी पहुंच इस तक दवा तक संभव न हो. वजह है ब्लैक मार्केट में इसकी बहुत ऊंची कीमत.
दिल्ली के साकेत के पड़ोस में स्थित जेकेएम फार्मेसी में वसीम नाम के एक वेंडर ने 45,000 रुपये में दवा की एक शीशी देने की पेशकश की. इंवेस्टीगेटिव टीम ने पाया कि आधिकारिक तौर पर दवा की एक शीशी की कीमत 5,400 रुपये है.
सरकार ने रेमडेसिविर की आपूर्ति प्रतिबंधित कर रखी है और इसकी ओवर-द-काउंटर बिक्री पर रोक है. लेकिन वसीम ने दवा का स्टॉक रखने का दावा किया और इसकी कीमत एमआरपी से नौ गुना बताई.
अस्पताल में भर्ती एक मरीज को आमतौर पर पांच दिनों के लिए रेमडेसिविर की छह शीशियों की जरूरत बताई जाती है. वसीम को अंडर कवर रिपोर्टर्स ने गंभीर रूप से कोविड-19 मरीज के तीमारदारों के तौर पर अपनी पहचान बताई.