(ईश्वर दुबे)11 दिसंबर 2018 को छत्तीसगढ में राजनीतिक फिजाँ को अपने संघर्षों से किसी ने बदला तो वो है प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल। चाउर वाले बाबा का जादू एकाएक समाप्त हो गया और छत्तीसगढ में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। कुछ लोग जो 15 साल से छत्तीसगढ पर राज करते हुए अहंकार के मद में इतने चूर थे कि वे हार को पचा नहीं पा रहे थे। लेकिन राजनीति का अंतिम यथार्थ यही है कि अहंकार का पतन सुनिश्चित है। जनता को कैसे अपने पक्ष में करना है प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भलीभांति जानते हैं उनकी कार्यशैली तेजतर्रार नेता की रही है यही कारण है कि प्रदेश की जनता नें सुशासन के लिए अपने लिए तेजतर्रार मुखिया को चुना है जिसके सामने प्रशासन अपना कार्य नीतिगत तरीके से करने को विवश हो जाता है। पूर्व की भाजपा सरकार में प्रशासन के अधिकारी खुलेआम अपनी तानाशाही का परिचय देते थे लेकिन अब फिजां बदल चुकी है और प्रशासन के अधिकारी धीरे धीरे अपनी कर्तव्यपरायणता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इतिहास गवाह है कि कोई भी पार्टी तभी सत्ता में प्रवेश कर सकता है जब उसका नेतृत्व कुशल व्यक्ति कर रहा हो। पूर्व में डॉ. रमन सिंह को हराना मतलब मुश्किल ही नहीं असंभव सा प्रतीत होता था कि चांउर वाले बाबा हैं जनता का फूल सपोर्ट है उसके बाद अधिकारियों की कमीशनखोरी के कारण वे मोबाईल वाले बाबा बन गए। जनता को 35 किलो मिलने वाले चांवल के उपर भी जांच कमेटी बिठा दी गई और प्रति व्यक्ति सात किलो कर दिया गया यही नहीं कई पात्र लोगों के राशन कार्ड सत्यापित भी नहीं हो पाए और निरस्त कर दिए गए। शराब को ठेकेदारों के दायरे से निकालकर भाजपा सरकार स्वयं शराब का विक्रय करने लगी जो भारी भूल ही नहीं भाजपा के नाश का मूल कारण साबित हुई। गली गली दारु वाले बाबा के गाने बजने लगे जो कि मेरे पत्रकार मित्र राजकुमार सोनी नें स्वर प्रदान किया था, अंततोगत्वा दारु वाले बाबा 15 सीट में सिमट कर रह गए। अच्छे अच्छे धाकड़ मंत्री जो कि स्वयं को अपराजेय समझते थे सबकी दुर्गति 11 दिसंबर 2018 को हम सब ने देखा है। आज फिर 11 दिसंबर है मतलब नई सरकार के जीत के एक वर्ष पूरे हो चुके हैं। हमने देखा कि घोषणा के अनुरुप कर्जमाफी, 35 किलो चावल, 2500 रुपए धान खरीदी इत्यादि कार्यों के करते हुए सरकार का एक वर्ष कार्यकाल अब कुछ ही दिनों में पूरो होने जा रहा है। कई प्रकार के आरोप भी विपक्ष की ओर से लगाए जा रहे हैं और यह लाजिमी भी है क्योंकि आरोप लगाकर ही सत्ता पर पुनश्च काबिज हुआ जा सकता है। लेकिन सभी आरोपों की सत्यता और असत्यता की पडताल अपनी जगह है लेकिन प्रदेश में पहली बार जनता को महसूस हुआ है कि प्रदेश में छत्तीसगढियों का शासन है। प्रदेश में मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों के बीच जनता में आत्मीयता का सूत्रपात हुआ है जो कि भाजपा सरकार में लगभग समाप्त हो चुका था। कई मंत्रियों की दबंगई के किस्से पूर्व से प्रचलित हैं जिसे बताने की आवश्यकता नहीं है। सामाजिक, सास्कृतिक रुप से छत्तीसगढ की एक पहचान देश भर में बनी है जो कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रयासों के कारण संभव हो पाया है। प्रदेश के तीज त्यौहारों में छुट्टियाँ या हरेली को सरकारी तौर पर मनाए जाने से प्रदेश की जनता अपनी संस्कृति और परिवेश के प्रचार प्रसार से स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। और जिस सरकार ने जनता के मन को जीत लिया उसके लिए विपक्ष के सारे आरोप भी जनता को थोथे ही लगते हैं क्योंकि वह मन से उस व्यक्ति या सरकार से जुड़ चुका होता है। प्रदेश में विकास कार्य करना हर सरकार का दायित्व है जनता पहले विकल्प के अभाव में डॉ. रमन सिंह को जिताती रही परंतु अब मजबूत नेता के रुप में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के रुप में भाजपा को कड़ी टक्कर है और एैसा नेता है कि अभी कोई विकल्प भी नहीं है क्योंकि भाजपा नहीं भाजपा के दर्जनों नेता जनता के लिए अब गिर चुके हैं क्योंकि उनके भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हो चुका है। राजनीति में दूसरे की छबि खराब करने के चक्कर में कभी कभी व्यक्ति स्वयं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लेता है। उदाहरण के लिए 2018 में ठीक चुनाव के पहले भूपेश बघेल को सीडी कांड में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। राजनीति रणनीतिकारों का मानना है है कि यहीं पर बीजेपी ने अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार ली। जय छत्तीसगढ