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मां ने अपनी कोख बेटी को दी, बेटी ने 17 महीने बाद उसी कोख से बच्ची को जन्म दिया

पुणे. महाराष्ट्र के पुणे में एक महिला ने अपनी मां के गर्भाशय से बच्ची को जन्म दिया है। 17 माह पहले महिला का गर्भाशय डैमेज हो गया था। इसके बाद  महिला में उनकी मां का गर्भाशय ट्रांसप्लांट किया गया था। दुनिया का यह 12वां मामला है जहां यूट्रस ट्रांसप्लांट के बाद बच्चे का जन्म हुआ है। इससे पहले 9 मामले स्वीडन में और 2 अमेरिका में सामने आ चुके हैं। एशिया में ऐसा पहली बार हुआ है।
गुजरात के भरूच की रहने वाली 27 वर्षीय मीनाक्षी वालन का गर्भाशय डैमेज हो गया था। ऐसे में उनकी मां ने गर्भाशय डोनेट करने का फैसला लिया। ट्रांसप्लांट के कुछ महीनों बाद मार्च 2018 में मीनाक्षी के गर्भाशय में भ्रूण को ट्रांसफर किया गया था। ट्रांसप्लांट सर्जन शैलेश पुणतांबेकर के मुताबिक डिलीवरी नवंबर में की जानी थी लेकिन प्रेग्नेंसी के 31वें हफ्ते (7 माह) में  मां का बीपी और ब्लड शुगर बढ़ने लगा। जांच में सामने आया कि मां और भ्रूण को जोड़ने वाला प्लेसेंटा तेजी से बढ़ रहा था। इसे अधिक बढ़ जाने पर बच्चे को पोषण मिलना बंद हो सकता था। इसलिए ऑपरेशन करने का निर्णय लिया गया।
    डॉ. शैलेश के अनुसार, जन्म के समय बच्ची का वजन 1,450 ग्राम था। ट्रांसप्लांट के बाद पिछला एक साल काफी अहम रहा है।
    डॉ. शैलेश के अनुसार, मीनाक्षी में उनकी 45 वर्षीय मां का गर्भाशय ट्रांसप्लांट किया गया था। लेकिन इस स्थिति में नर्व पहले की तरह नहीं जुड़ पाती और महिला लेबर पेन महसूस नहीं कर पाती है। जन्म के समय बच्ची का वजन 1,450 ग्राम था। ट्रांसप्लांट के बाद पिछला एक साल काफी अहम रहा है।
40 सप्ताह के गर्भ को धारण करना असंभव था
पुणे के गैलेक्सी केयर लेप्रोस्कोपिक हॉस्पिटल के डॉ. शैलेष पुणतांबेकर ने बताया कि गर्भाशय प्रत्यारोपण के बाद अप्रैल 2017 में बिना किसी समस्या के गर्भधारण हुआ। गर्भ 32 हफ्ते (8 माह) का होने के चलते हमें बुधवार रात सिजेरियन से प्रसव का विकल्प चुनना पड़ा। वजह, गर्भाशय 48 साल पुराना है। इसलिए गर्भाशय में ज्यादा जगह नहीं थी।
अपनाें से भी दूर रहना पड़ा खुशी के इस पल के लिए
मीनाक्षी को काफी संघर्ष के बाद संतान सुख मिला है। नौ महीने के गर्भ के बाद बच्चे को गंवाने के साथ ही गर्भाशय की पांच सर्जरी झेली। एक सर्जरी के दौरान मीनाक्षी का गर्भाशय हमेशा के लिए अक्षम हो गया। ऐसे में गर्भाशय प्रत्यारोपण का रास्ता अपनाया गया। इस दौरान मीनाक्षी को अपने परिवार और रिश्तेदारों से दूर रहना पड़ा।
सरोगेसी-दत्तक लेने का नहीं था विचार, डॉक्टरों ने दिखायी ये राह
मीनाक्षी के पति हितेश वालन कहते हैं कि शादी के नौ साल तक संतान सुख न मिलने के चलते हम चिंता में थे लेकिन सरोगेसी अथवा बच्चा गोद लेने के विकल्प पर विचार नहीं कर रहे थे। इसी क्रम में वडोदरा के डॉक्टरों ने उम्मीद की किरण दिखाई। हमने काफी सोच-विचार के बाद यह रास्ता अपनाने का फैसला किया। वर्षों का इंतजार सफल हुआ।

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Last modified on Friday, 19 October 2018 14:30
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