मध्यप्रदेश में चुनाव के नतीजे सामने आने में बस कुछ ही दिनों का समय बाकी है। इन चुनावों को गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) की एंट्री ने कई सीटों पर त्रिकोणीय बना दिया। महाकौशल में कौशल दिखाने वाली पार्टी ही अक्सर प्रदेश में सत्ता पर काबिज होती है। इस इलाके में जीजीपी का शुरुआत से ही असर देखा गया है। इस बार जीजीपी के तीनों धड़ों ने एक साथ चुनाव लड़ा। अब परिणाम के पहले ये समीकरण दूसरी पार्टियों की धड़कनें बढ़ा रहे हैं।
टूट से गिरा था जीजीपी का मत प्रतिशत
इन चुनावों में जीजीपी ने एकजुट होकर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके 76 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। 2013 विधानसभा चुनाव में जब जीजीपी तीन टुकड़ों में टूट गई थी तब इसका मत प्रतिशत 1 फीसदी हो गया था।
2003 के चुनावों में जीजीपी ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ा। इसने महाकौशल के छिंदवाड़ा, बालाघाट और सिवनी में तीन सीटें जीती। अन्य तीन सीटों पर इसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे। राजनीति के पंडितों को अचंभित करते हुए 3.23 फीसदी वोट हासिल किये।
2008 के चुनावों में पार्टी दो टुकड़ों में बंट गई- गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) और गोंडवाना मुक्ति सेना (जीएमएस) । जीजीपी ने 86 और जीजीएम ने 92 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए। इस टूट की वजह से जनजातीय पार्टी का जनाधार भी बंट गया और मत प्रतिशत 1.80% तक गिर गया। इन चुनावों में दोनों ही धड़ों का कोई भी उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर पाया।
2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के एक धड़े ने अलग होकर भारतीय गोंडवाना पार्टी (बीजीपी) नाम की नई पार्टी बना ली और जीजीपी की मुश्किलें बढ़ गईं। चुनावों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) ने 64, गोंडवाना मुक्ति सेना (जीएमएस) ने 6 और भारतीय गोंडवाना पार्टी (बीजीपी) ने 31 सीटों पर चुनाव लड़ा। नतीजा यह हुआ कि पार्टी का वोट प्रतिशत एक फीसदी हो गया।
एकता की ताकत को समझते हुए इस बार तीनों धड़ों ने एक होकर समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया है। समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने के पीछे पार्टी का उद्देश्य जनजाति मतदाताओं के अतिरिक्त वोट हासिल करना माना जा रहा है। जीजीपी इस बार के चुनाव में अपनी खोई साख वापस पाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।