इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल प्रवेश के लिए आई 103 सिफारिशों में से 102 को एकतरफा खारिज कर दिया गया.
स्कूल की व्यवस्था व प्राचार्य नियुक्ति को लेकर भले ही विवाद चल रहा हो, लेकिन इस स्कूल ने दंतेवाड़ा व यहां के बच्चों में सबसे बड़ा बदलाव किया है. वजह यही है यहां हर साल एडमिशन लेने की होड़ मची होती है. सिर्फ दंतेवाड़ा ही नहीं बल्कि संभागभर से बच्चे यहां दाखिले के लिए पहुंचते हैं. इस साल एलकेजी की 80 सीटों के लिए 1400 आवेदन मिले थे. इस स्कूल में एडमिशन को लेकर आपाधापी ऐसी है कि यहां लोगों को मंत्री, सांसद व विधायकों से अनुशंसा करानी पड़ गई. इन सिफारिशों में केवल एक ही बच्चे को लिया गया वह भी तय मापदंड पर खरा उतर रहा था. अभी बस्तर जिले की आरक्षित 2 सीटें रिक्त हैं, जिनमें यहां के बच्चों को लिया जाएगा.
प्रवेश के लिए ये हैं मापदंड और शर्तें :
- आस्था स्कूल में एडमिशन के लिए प्रशासन ने 9 मापदंड तय किया है. इनमें नक्सल हिंसा में माता-पिता को खोने वाले बच्चे, नक्सल हिंसा में पितृहीन, मातृ-पितृविहीन गरीब बच्चे, गरीबी रेखा श्रेणी के बच्चे शामिल हैं.
- स्थानीय जावंगा, पनेड़ा व हाउरनार गांव के बच्चों के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं.
- बैलाडीला क्षेत्र के लाल पानी प्रभावित परिवार के बच्चे, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर के अलावा बस्तर के बच्चों के लिए भी सीटें रखी गई हैं.
इसलिए जांवगा के आस्था स्कूल को राष्ट्रीय स्तर पर मिली है ख्याति :
आस्था अंग्रेजी माध्यम की संस्था है. नक्सल हिंसा पीड़ित व गरीब बच्चों के लिए इस संस्था की शुरुआत साल 2012 में की गई थी. शुरुआत में यहां बच्चों की संख्या बेहद कम थी. लेकिन अब यह 1300 पार हो गई है. बच्चों की बढ़ी संख्या के बाद आस्था को दो अलग-अलग पार्ट आस्था-1 व आस्था-2 में किया गया. यहां बच्चों को पढ़ाई के साथ रहने, खाने से लेकर तमाम सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. बच्चों के कौशल विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए तैयार किया जाता है.

सुपर स्मार्ट क्लास, अत्याधुनिक लैब जैसी तमाम सारी सुविधाएं हैं. एनएमडीसी के सीएसआर मद से जिला प्रशासन इसे संचालित कर रहा है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम नरेंद्र मोदी, नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत इस संस्था को देखकर तारीफ कर चुके हैं.
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