ईश्वर दुबे
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रायपुर. एम्स में एक्सपायरी दवा देने से फेफड़े की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति की हालत बिगड़ना नई बात नहीं है। एम्स में पिछले साल अप्रैल में मोतियाबिंद सर्जरी के बाद पांच लोगों की आंखों में संक्रमण हो गया था। आनन-फानन में सभी को एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया था। लैब की जांच में सर्जरी में उपयोग होने वाली आई ड्राप में बैक्टीरिया की पुष्टि हुई थी। यह ड्राप अमृत स्टोर से खरीदी गई थी।
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एम्स प्रशासन ने एक्सपायरी दवा देने के मामले की जांच कर रिपोर्ट डायरेक्टर को सौंप दिया है। रिपोर्ट के बाद एम्स प्रशासन ने एक्सपायरी दवा लगाने वाले दो नर्सों को नोटिस देकर जवाब मांगा है। उनके जवाब आने के बाद कार्रवाई तय की जाएगी। वहीं अमृत केंद्र सरकार से संचालित है। इसलिए इस पर कार्रवाई के लिए केंद्र को पत्र लिखा गया है। एम्स में लापरवाही का यह पहला मामला नहीं है। पिछले साल मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद पांच मरीजों की आखों में संक्रमण की जांच के लिए बनी कमेटी ने नेत्र सर्जन डॉ. लिपि चक्रवर्ती को जिम्मेदार ठहराया था।
डायरेक्टर डॉ. नितिन एम. नागरकर ने कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से नेत्र सर्जन पर कार्रवाई की अनुशंसा भी कर दी थी। हालांकि केंद्रीय मंत्रालय की कार्रवाई संबंधी आदेश आने के पहले डॉ. लिपि ने एम्स की नौकरी छोड़ दी थी। डॉ. नागरकर का कहना था कि ऑपरेशन के दौरान सर्जन ने तय प्रोटोकाल का पालन नहीं किया, इसलिए लोगों की आंखों में संक्रमण फैला। ओटी में कोई बैक्टीरिया नहीं मिला। हालांकि दवा में कुछ बैक्टीरिया मिला था।
डॉ. लिपि के ऑपरेशन करने पर भी रोक लगा दी गई थी। डॉ. लिपि ने आरोप लगाया था कि ऑपरेशन थियेटर में कई खामियां हैं। इससे ऑपरेशन के दौरान संक्रमण की आशंका बनी रहती है। उन्होंने एचओडी से लेकर यूनिट हेड को इस बारे में जानकारी दे दी थी। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर ओटी सही है तो अभी तक सील क्यों किया गया है? उन्होंने कहा जूनियर होने के कारण उन पर कार्रवाई की गई।