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News Creation (मनोरंजन) : बॉलीवुड स्टार ऋतिक रोशन की फिल्म सुपर 30 बॉक्स ऑफिस में अच्छी कमाई कर रही है. दर्शकों का प्यार फिल्म को मिल रहा है. बढ़ते दिनों के साथ सुपर 30 की कमाई और बढ़ रही है. और उम्मीद है की बहुत जल्द फिल्म 100 करोड़ क्लब में शामिल हो जाए. पिछले 4 दिनों में फिल्म नें लगभग 54 करोड़ की कमाई कर ली है, फिल्म निर्माता और निर्देशक शेखर कपूर नें भी फिल्म की काफी तारीफ़ की है. असल में शेखर कपूर नें हाल ही में ट्विट कर अपनी प्रतिक्रिया सोशल मीडिया में ज़ाहिर की. इनके अलावा और भी स्टार्स और फिल्मों से जुडी हस्तिय ऋतिक रोशन की सुपर 30 की काफी तारफ की है. शेखर कपूर नें ट्विट कर लिखा कि “सिनेमा हॉल में फिल्म देखते हुए मैं सोच रहा था कि कहीं कोई मेरे आंसूओं को न देख ले, क्योकि फिल्म देखते हुए मैं रो रहा था. सुपर 30 एक अच्छी कहानी होनें के साथ साथ एक अलग किस्म की कहानी है. ऋतिक रोशन की परफॉरमेंस नें मुझे इमोशनल कर दिया.”

 

सुपर 30

सुपर 30 

खबरों में आई रिपोर्ट्स के अनुसार सुपर 30 की स्पेशल स्क्रीनिंग में उनके घर के सदस्य भी उनकी एक्टिंग देख कर रो दिए थे. रिपोर्ट के अनुसार उनकी माँ और उनकी नानी फिल्म देखते हुए रो दिए थे. सुपर 30 में ऋतिक बिहार के एक शिक्षक आनंद कुमार का किरदार निभाते नज़र आये, जिन्होनें बड़े संघर्ष के बाद सुपर 30 के नाम से एक कोचिंग इंस्टिट्यूट बनाया है. ये आनंद कुमार की ज़िन्दगी पर बनीं एक बायोपिक है.

खास बात ये है कि फिल्म को बिहार की सरकार नें दर्शकों के लिए टैक्स फ्री कर दिया है.

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Entertainment News Creation : 'सुपर 30' फ़िल्म की टैगलाइन में ही इस फ़िल्म का पूरा सारांश है, जो कुछ इस प्रकार है, ‘अब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, राजा वो बनेगा जो हकदार होगा.’ शिक्षा पर सभी का समान अधिकार हो फिर चाहे वह बड़े बाप का बेटा हो या फिर गरीब का. फ़िल्म से जुड़ा यही  संदेश इस फ़िल्म को खास बना देता है.

FilmSuper30Expressions

यह कहानी है बिहार के चर्चित आनंद कुमार की जो आई.आई.टी. का सपना देखने वाले गरीब तबके के होनहार बच्चों के सपनों को पूरा करने में उनकी मदद कर रहे हैं.

फिल्म की कहानी

फ़िल्म की कहानी की शुरुआत फ्लैशबैक में आनंद कुमार (रितिक रोशन) के संघर्ष से शुरू होती थी.

आनंद गणित में गोल्ड मेडलिस्ट है. बड़े से बड़े गणित के प्रश्नों का वह हल निकाल सकता है. अभावों में रहने के बावजूद उसकी इसी काबिलियत की वजह से  उसे  केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से दाखिले के लिए बुलावा आ जाता है लेकिन एक बार फिर उसके आगे गरीबी रोड़ा बनकर आ जाती है. पिता का साया भी छिन जाता है.

काबिल आनंद कुमार परिवार और अपना पेट पालने के लिए  पापड़ बेचने के लिए मजबूर हो जाता है. इसी बीच लल्लन कुमार (आदित्य) की मुलाकात आनंद से होती है. वो आनंद की प्रतिभा से वाकिफ है. अपनी कोचिंग सेन्टर से जोड़ लेता है. कुछ समय में ही आनंद वहां का प्रीमियम टीचर बन जाता है. हर स्टूडेंट आनंद सर से पढ़ना चाहता है.

आनंद की ज़िंदगी भी पटरी पर आ जाती है. सभी तरफ से पैसों की बारिश हो रही है लेकिन इसी बीच आनंद कुमार को महसूस होता है कि वह सम्पन्न परिवार के लड़कों को और आगे बढ़ा रहा है और गुरु द्रोणाचार्य की तरह गरीब बच्चों का  एकलव्य की तरह अंगूठा काट रहा है. उसकी सोच बदल जाती है और उन बच्चों को आईआइटियन्स बनाने में जुट जाता है जो अभावग्रस्त है. जिनके पास पैसे नहीं है महंगे कोचिंग के लिए.

आनंद कुमार के लिए यह सफर आसान नहीं होगा. भ्रष्ट शिक्षा मंत्री और उसके पावर से उसका मुकाबला है जिसे आनंद कुमार और गरीब बच्चों की जान लेने से भी गुरेज़ नहीं है. भ्रष्‍ट मंत्री के साथ-साथ गरीबी और भूख से भी उसकी जंग है. यह फ़िल्म की आगे की कहानी है. कुलमिलाकर हाथ आगे बढ़ाकर सूरज को हथेली में पकड़ लेने की प्रेरणादायी कहानी है. फ़िल्म की कहानी रियल है लेकिन उसका ट्रीटमेंट थोड़ा फिल्मी हो गया है. 

बावजूद इसके अंडरडॉग्स के जिद और संघर्ष के जुनून की वजह से यह फ़िल्म बांधे रखती है. फ़िल्म शिक्षा माफिया के अलावा सरसरी तौर पर ही सही लेकिन दृश्य और संवाद के ज़रिये दूसरे अहम मुद्दों को भी छूती है.कोटा डॉक्टर यह संवाद हमने अब तक रील और रियल लाइफ दोनों में बहुत सुना है लेकिन इस फ़िल्म में डोनेशन वाला डॉक्टर कहकर उच्च तबके पर भी सवालिया निशान लगाया गया है.हमारे पुराण भी जातीय और सामाजिक भेद के हिमायती है. फ़िल्म का एक संवाद ये भी है.

अभिनय, संगीत और किरदारों की अदायगी

अभिनय की बात करें तो रितिक की मेहनत किरदार को लेकर दिखती है. परदे पर पहली पर वह इस अंदाज में दिखे हैं.ऐसे में शुरुआती दृश्य में उनका लहजा और ज़रूरत से ज़्यादा लुक थोड़ा अखरता है, लेकिन फ़िल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती है. सबकुछ सहज हो जाता है. पंकज त्रिपाठी एक बार फिर उम्दा रहे हैं. उनका और आदित्य श्रीवास्तव का दृश्य बेहतरीन बन पड़ा है. पिता के रूप में वीरेंद्र सक्सेना का अभिनय दिल छूता है. मृणाल ठाकुर और अमित साध को कम ही स्पेस मिला है, लेकिन वह उपस्थिति दर्शाने में कामयाब होते हैं.बच्चों का काम भी सराहनीय है. फ़िल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं.

संगीत में मामला औसत वाला रह गया है.  कुलमिलाकर असल नायक की यह प्रेरणादायी कहानी पर्दे पर देखी जानी चाहिए.

 

 

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