ईश्वर दुबे
संपादक - न्यूज़ क्रिएशन
+91 98278-13148
newscreation2017@gmail.com
Shop No f188 first floor akash ganga press complex
Bhilai
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक ऐसे राजनेता हुए जिनके जीवन का अधिकांश भाग शिक्षा, साहित्य, विज्ञान प्रसार तथा औद्योगिकीकरण का समर्पित रहा। लेकिन राष्ट्रीय घटनाक्रम ने कुछ ऐसी करवटें बदलीं कि वे कश्मीर की शेष भारत के साथ एकता और अखंडता के नाते ही ज्यादा जाने गए।
उनका जन्म 6 जुलाई 1901 कोलकाता में हुआ था। उनके परिवार में अधिकांश सदस्य अक्सर अपने पूर्वजों के ग्रीष्मकालीन बंगले (वर्तमान झारखंड में देवघर के पास मधुपुर) में छुट्टियां के लिए जाते थे। बचपन में श्यामा प्रसाद भी लंबे समय की छुट्टियों में मधुपुर जाते थे और उनका पूरा परिवार ही देशभक्ति और अध्यात्म को समर्पित था। उनके दादा गंगाप्रसाद मुखोपध्याय बंगाल के पहले ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने सम्पूर्ण रामायण का बंगला में अनुवाद किया जो काफी प्रसिद्ध हुआ। उनके पिता आशुतोष मुखर्जी विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ माने गए जिनकी गणित पर शोध अनेक विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती थी। वे कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति भी नामांकित हुए थे तथा उनकी विद्वत्ता और सम्पूर्ण बंगाल में एक उच्च स्थान के कारण बांग्ला समाज में उनकी कीर्ति बहुत फैली।
श्यामा प्रसाद के घर में बांग्ला के प्रति गहरी भक्ति थी। उन्होंने प्रथम श्रेणी में प्रथम रहकर बीए पास किया। गोल्ड मेडल जीता। पर पिता ने कहा कि एमए बांग्ला भाषा में करो। श्यामा प्रसाद ने अंग्रेजी की बजाए बांग्ला में एमए किया और उसमें भी प्रथम श्रेणी में प्रथम रहे। वे भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से बेहतर स्थान दिलाने के लिए हमेशा प्रयास करते थे।
वे 23 वर्ष की आयु में ही कलकत्ता विश्वविद्यालय के बोर्ड के फैलो निर्वाचित हुए। 1926 में वे बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन गए और 1927 में बैरिस्टर बनकर लौटे। पर उन्होंने कभी वकालत को अपना व्यवसाय नहीं बनाया। 1934 में वे तत्कालीन भारत के सबसे बड़े कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति चुने गए तथा 1938 तक अर्थात दो कार्यकाल इस पद पर निभाए। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय को नया रूप दिया- पहली बार बांग्ला भाषा में दीक्षांत भाषण कराया जो उनके आमंत्रण पर कवि गुरू रवींद्र नाथ ठाकुर ने दिया। बंगलौर में इंस्टीट्यूट ऑफ सांइस के भी अध्यक्ष थे। वहां उनका परिचय एक प्रो. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन से हुआ। उनकी प्रतिभा से प्रभावित श्यामा प्रसाद ने राधाकृष्णनन को कलकत्ता विश्वविद्यालय बुला लिया और यहां से डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन का वास्तविक स्वरूप निखरा जिसके लिए वे सदैव डॉ. श्यामा प्रसाद के कृतज्ञ रहे।
श्यामा बाबू ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में कृषि की शिक्षा प्रारंभ की और कृषि में डिप्लोमा कोर्स प्रतिष्ठित किया। विशेष रूप से युवतियों की शिक्षा के लिए उन्होंने स्थानीय सहयोगियों से दान लेकर विशेष छात्रवृत्तियां प्रारंभ कीं। उनके नेतृत्व में कलकत्ता विश्वविद्यालय देश का ऐसा पहला विश्वविद्यालय बना जहां शिक्षक प्रशिक्षण विभाग खुला तथा चीनी और तिब्बती अध्ययन केंद्र खुले। उन्होंने अपने पिता आशुतोष मुखर्जी के नाम पर भारतीय ललित कला संग्रहालय स्थापित किया और केंद्रीय ग्रंथागार बनवाया जहां शोध और अध्ययन की आधुनिकतम सुविधाएं थीं। यही नहीं उन्होंने भारत में पहली बार बांग्ला, हिंदी और उर्दू माध्यम में बीए के पाठ्यक्रम आरंभ किए तथा बांग्ला में विज्ञान विषय पढ़ाने के लिए वैज्ञानिक शब्दों का बांग्ला भाषा में शब्दकोश निकलवाया। विज्ञान की शिक्षा का समाज के विकास में क्या उपयोग होना चाहिए इसके लिए उन्होंने एप्लाईड केमिस्ट्री विभाग खोला ताकि विश्वविद्यालयीन शिक्षा को सीधे औद्योगिकीकरण से जोड़ा जा सके।
उन्हें महाबोधि सोसायटी बोधगया का अध्यक्ष चुना गया। जब बुद्ध के पवित्र अवशेष तत्कालीन बर्मा से उथांट लेकर बोधगया आए तो उन अवशेषों को डा़ॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ग्रहण किया था।
1943 के भयंकर बंगाल अकाल में 30 लाख से अधिक भारतीय भूख से मारे गए थे। यह चर्चिल की कुटिल नीतियों के कारण मानव निर्मित आकाल था। उस समय श्यामा प्रसाद ने बहुत विराट स्तर पर राहत कार्य आयोजित किए। उन्होंने बंगाल के अकाल पर जो आर्थिक कारणों के विश्लेषण करते हुए प्रबंध लिखा वह अनेक प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों के शोध का हिस्सा बना। श्री अरविंद के निर्वाण के पश्चात श्री मां ने श्री अरविंद विश्वविद्यालय की कल्पना की और उसका प्रथम कुलपति डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नामांकित किया।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की वर्तमान बांग्लादेश और तत्कालीन पूर्वी बंगाल के महान राष्ट्रीय कवि काजी नजरूल इस्लाम से गहरी मित्रता थी। जब नजरूल इस्लाम बीमार पड़े तो श्यामा बाबू उन्हें कोलकाता अपने घर ले आए जहां वह 6 महीने उनके घर पर रहकर स्वास्थ्य लाभ करते रहे। बाद में ढाका पहुंच कर काजी नजरूल इस्लाम ने श्यामा बाबू को जो कृतज्ञता का लंबा पत्र लिखा वह बंगला साहित्य की धरोहर माना जाता है।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पत्रकार और संपादक भी थे तथा उन्होंने 1944 में अंग्रेजी दैनिक 'दि नेशलिस्ट' प्रारम्भ किया। वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे और देश भर के प्रखर राष्ट्रीय विचारों का प्रसार किया। लेकिन इस आंधी में उनकी विद्वत्ता और उनके गहरे ज्ञान के कारण देश के सभी प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालय उन्हें दीक्षांत भाषण के लिए आमंत्रित करते थे। बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पटना विश्वविद्यालय, आगरा और मैसूर विश्वविद्यालय सहित देश के शिखरस्थ 22 विश्वविद्यालयों में दीक्षांत भाषण दिए हैं। उनका अंतिम दीक्षांत भाषण 1948 में दिल्ली विश्वविद्यालय में हुआ था।
उनकी ज्ञान संपदा, अकादमिक कैरियर कश्मीर आंदोलन के समान ही विराट और महत्वपूर्ण है। आशा की जानी चाहिए कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पदचिन्हों पर चलने की घोषणा करने वाली सरकार देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के शिक्षा संबंधी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए श्यामा प्रसाद पीठ एवं श्यामा प्रसाद विचार अध्ययन केंद्र स्थापित करेगी।
-तरूण विजय
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व राज्यसभा सांसद हैं।)