ईश्वर दुबे
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Bhilai
इलाज के बाद स्वस्थ होकर इंदौर लौटी संस्कृति
सड़क हादसे में घायल हुई थी संस्कृति
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने ईलाज के लिये संस्कृति को एयर एम्बुलेंस से भेजा था मुंबई
संस्कृति और उसके दादा-दादी ने मुख्यमंत्री को दिया धन्यवाद
मुख्यमंत्री ने कहा - संस्कृति से इंदौर मिलने आयेंगे
राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने मध्यप्रदेश को किया सम्मानित
रायपुर :
राज्यपाल श्री रमेन डेका कोटा स्थित डॉ. सीवी रमन विश्वविद्यालय के दूसरे दीक्षांत समारोह में शामिल हुए। उन्होंने 195 विद्यार्थियों को पीएचडी को उपाधि और 189 विद्यार्थियों को गोल्ड मेडल प्रदान किया। उन्होंने इस दौरान विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित दीक्षांत स्मारिका सहित अन्य प्रकाशनों का विमोचन किया। अपने प्रेरणादायक उद्बोधन में उन्होंने विद्यार्थियों को समर्पण, अनुशासन और निरंतर परिश्रम को जीवन का मूल मंत्र बताते हुए सफलता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
भाषा ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम
श्री डेका ने कहा कि भाषा ज्ञान का माध्यम है, बाधा नहीं। केवल अंग्रेजी जानने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता। भाषा ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम हो सकती है, लेकिन यह बाधा कभी नहीं बन सकती। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा में सच्चा ज्ञान तभी प्राप्त होता है जब हम उसमें मन, मस्तिष्क और व्यवहार से जुड़ते हैं। राज्यपाल ने दीक्षांत को सिर्फ एक समापन नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत करार दिया।
कार्यक्रम में केन्द्रीय आवासन एवं शहरी विकास राज्य मंत्री श्री तोखन साहू, उच्च शिक्षा मंत्री श्री टंकराम वर्मा, बेलतरा विधायक श्री सुशांत शुक्ला, डॉ. सीव्ही रमन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे, कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार घोष, कुलसचिव डॉ. अरविन्द कुमार तिवारी, आईआईटी भिलाई के निदेशक प्रोफेसर राजीव प्रकाश, आइसेक्ट समूह के सचिव डॉ. सिद्वार्थ चतुर्वेदी, कलेक्टर श्री संजय अग्रवाल, एसएसपी श्री रजनेश सिंह सहित विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे।
कड़ी मेहनत और अनुशासन लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग
राज्यपाल श्री डेका ने सफलता के तीन मुख्य स्तंभों दृढ़ता, कड़ी मेहनत और अनुशासन पर जोर देते हुए कहा कि यही वे गुण हैं जो किसी भी व्यक्ति को लक्ष्य तक पहुंचा सकते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को अपने माता-पिता और समाज के प्रति आभार प्रकट करने की सीख दी। जितनी भी सफलता आप जीवन में प्राप्त करें, अपने माता-पिता और मूल्यों को कभी न भूलें। समाज ने हमें बहुत कुछ दिया है अब हमें सोचना है कि हमने समाज को क्या दिया। उन्होंने विद्यार्थियों को समय का प्रभावी प्रबंधन करने का सुझाव देते हुए कहा कि आपके पास आज समय और स्थान दोनों हैं कि इनका सदुपयोग करें, क्योंकि यही आपकी सबसे बड़ी पूंजी हैं।
विद्यार्थी के बीच आपसी संवाद, विश्वास और प्रेरणा का रिश्ता जरूरी
राज्यपाल श्री डेका ने कहा कि शिक्षा केवल डिग्री नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण का माध्यम होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षक और विद्यार्थी के बीच आपसी संवाद, विश्वास और प्रेरणा का रिश्ता होना चाहिए। शिक्षा समावेशी होनी चाहिए और सीखने की प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होती। अपने संबोधन के समापन में राज्यपाल ने सीवी रमन विश्वविद्यालय को भविष्य में एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान बनने की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने आशा जताई कि यह विश्वविद्यालय आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण कीर्तिमान स्थापित करेगा। इस अवसर पर राज्यपाल श्री रमेन डेका ने एक पेड़ मां के नाम पर पौधा रोपण किया।
केंद्रीय आवासन एवं शहरी विकास एवं राज्य मंत्री श्री तोखन साहू ने कहा कि सपनों को हकीकत में बदलने के लिए समर्पण, अनुशासन और समय का सही उपयोग अनिवार्य है। उन्होंने युवाओं से निरंतर सीखते रहने का आह्वान किया। उच्च शिक्षा मंत्री श्री टंकराम वर्मा ने कहा कि दीक्षांत केवल शिक्षा की पूर्णता नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण में आपके सक्रिय शुरूआत का योगदान है। कुलाधिपति श्री संतोष चौबे ने विश्विद्यालय का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
रायपुर :
आज का दिन केवल बस्तर ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ और देश के लिए ऐतिहासिक है। वर्षों तक हिंसा और भय की छाया में जी रहे 210 माओवादी कैडरों ने आज “पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन” कार्यक्रम के अंतर्गत बंदूक छोड़कर संविधान को अपनाने का निर्णय लिया है। यह छत्तीसगढ़ में शांति, विश्वास और विकास के नए युग का शुभारंभ है। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने आज जगदलपुर में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए यह बात कही।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि जो युवा कभी माओवाद की झूठी विचारधारा के जाल में उलझे हुए थे, वे आज लोकतंत्र की शक्ति, संविधान के आदर्शों और राज्य सरकार की संवेदनशील नीतियों पर विश्वास जताते हुए समाज की मुख्यधारा में लौट रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि कुल 210 आत्मसमर्पित माओवादी कैडरों में एक सेंट्रल कमेटी सदस्य, चार दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी सदस्य, एक रीजनल कमेटी सदस्य, 22 डिविजनल कमेटी सदस्य, 61 एरिया कमेटी सदस्य और 98 पार्टी सदस्य शामिल हैं। इन पर कुल 9 करोड़ 18 लाख रुपये का इनाम घोषित था।
समारोह में 210 माओवादी कैडरों ने कुल 153 हथियार समर्पित किए, जिनमें 19 AK-47, 17 SLR, 23 INSAS राइफलें, एक INSAS LMG, 36 .303 राइफलें, 4 कार्बाइन, 11 BGL लॉन्चर, 41 शॉटगन और एक पिस्तौल शामिल हैं।
मुख्यमंत्री श्री साय ने इस अवसर को अपने जीवन के सबसे भावनात्मक और संतोषजनक क्षणों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि जिन युवाओं ने बंदूकें नीचे रखकर संविधान को थामा, उन्होंने छत्तीसगढ़ के भविष्य में शांति और एकता के बीज बोए हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि बदलाव नीतियों और विश्वास से आता है, भय और हिंसा से नहीं।
राज्य सरकार की “नक्सलवादी आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति 2025”, “नियद नेल्ला नार योजना” और “पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन” जैसी पहल आज न केवल बस्तर, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में बदलाव की ठोस आधारशिला सिद्ध हो रही हैं। इन योजनाओं ने बंदूक और बारूद की जगह संवाद, संवेदना और विकास को स्थापित किया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह अभूतपूर्व आत्मसमर्पण केंद्र एवं राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है। पुलिस, सुरक्षा बल, स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संगठन और नागरिक समाज — सभी ने मिलकर जिस समन्वित और निरंतर प्रयास से यह परिवर्तन संभव किया, वह बस्तर के इतिहास में मील का पत्थर है।
रायपुर :
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने आज बस्तर में 210 माओवादी कैडरों के आत्मसमर्पण को राज्य ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बताया। उन्होंने कहा कि जो युवा कभी माओवाद के झूठे विचारधारा के जाल में फंसे थे, उन्होंने आज संविधान, लोकतंत्र और विकास की मुख्यधारा में लौटने का संकल्प लिया है।
बस्तर में नक्सल उन्मूलन की दिशा में ऐतिहासिक दिन, बंदूक छोड़ संविधान अपनाने वालों का स्वागत
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि आज का दिन केवल बस्तर ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ और देश के लिए ऐतिहासिक है। जिन युवाओं ने वर्षों तक अंधेरी राहों पर भटककर हिंसा का मार्ग चुना, उन्होंने आज अपने कंधों से बंदूक उतारकर संविधान को थामा है। यह न केवल आत्मसमर्पण का क्षण है, बल्कि विश्वास, परिवर्तन और नये जीवन की शुरुआत है।
153 हथियारों के साथ 210 नक्सलियों का आत्मसमर्पण
153 हथियारों के साथ 210 नक्सलियों का आत्मसमर्पण
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि बस्तर में बंदूकें छोड़कर सुशासन पर विश्वास जताने वाले इन युवाओं से मेरी मुलाकात मेरे जीवन के सबसे भावनात्मक और संतोष देने वाले पलों में से एक रही। यह दृश्य इस बात का प्रमाण है कि बदलाव नीतियों और विश्वास से आता है।
153 हथियारों के साथ 210 नक्सलियों का आत्मसमर्पण
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य शासन की नक्सलवादी आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति 2025, “नियद नेल्ला नार योजना” और “पूना मारगेम - पुनर्वास से पुनर्जीवन” जैसी योजनाएँ विश्वास और परिवर्तन का आह्वान हैं। इन्हीं नीतियों के प्रभाव से नक्सल प्रभावित इलाकों में बंदूक छोड़कर लोग शासन की विश्वास और विकास की प्रतिज्ञा को स्वीकार कर रहे हैं।
153 हथियारों के साथ 210 नक्सलियों का आत्मसमर्पण
उन्होंने कहा कि आज का यह दृश्य केवल सरकार की सफलता नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के शांतिपूर्ण भविष्य का शिलान्यास है। हमारी सरकार आत्मसमर्पितों के पुनर्वास और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
153 हथियारों के साथ 210 नक्सलियों का आत्मसमर्पण
मुख्यमंत्री ने कहा कि डबल इंजन सरकार की प्रतिज्ञा है कि छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से पूर्णतः मुक्त किया जाए। उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन और केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी के नेतृत्व में यह प्रतिज्ञा पूर्ण हो रही है। छत्तीसगढ़ अब शांति, विश्वास और विकास के नए युग की ओर अग्रसर है।
153 हथियारों के साथ 210 नक्सलियों का आत्मसमर्पण
पूना मारगेम - पुनर्वास से पुनर्जीवन: दण्डकारण्य के 210 माओवादी कैडर लौटे समाज की मुख्यधारा में
राज्य शासन की व्यापक नक्सल उन्मूलन नीति और शांति, संवाद एवं विकास पर केंद्रित सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप बस्तर संभाग में आज नक्सल विरोधी मुहिम को ऐतिहासिक सफलता मिली है। ‘पूना मारगेम दृ पुनर्वास से पुनर्जीवन’ कार्यक्रम के अंतर्गत दण्डकारण्य क्षेत्र के 210 माओवादी कैडरों ने हिंसा का मार्ग त्यागकर समाज की मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया है।
153 हथियारों के साथ 210 नक्सलियों का आत्मसमर्पण
यह आत्मसमर्पण विश्वास, सुरक्षा और विकास की दिशा में बस्तर की नई सुबह का संकेत है। लंबे समय से नक्सली गतिविधियों से प्रभावित अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर क्षेत्र में यह ऐतिहासिक घटनाक्रम नक्सल उन्मूलन अभियान के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में दर्ज होगा।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य शासन द्वारा अपनाई गई व्यापक नक्सल उन्मूलन नीति ने क्षेत्र में स्थायी शांति की मजबूत नींव रखी है। पुलिस, सुरक्षा बलों, स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संगठनों और सजग नागरिकों के समन्वित प्रयासों से हिंसा की संस्कृति को संवाद और विकास की संस्कृति में परिवर्तित किया जा सका है।
बस्तर के लिए ऐतिहासिक दिन, 153 अत्याधुनिक हत्यारों के साथ आत्मसमर्पण
यह पहली बार है जब नक्सल विरोधी अभियान के इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में वरिष्ठ माओवादी कैडरों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया है। आत्मसमर्पण करने वालों में एक सेंट्रल कमेटी सदस्य, चार डीकेएसजेडसी सदस्य, 21 डिविजनल कमेटी सदस्य सहित अनेक वरिष्ठ माओवादी नेता शामिल हैं। इन कैडरों ने कुल 153 अत्याधुनिक हथियार जिनमें AK/47 SLR, INSA रायफल और LMG शामिल हैं, समर्पित किए हैं। यह केवल हथियारों का समर्पण नहीं, बल्कि हिंसा और भय के युग का प्रतीकात्मक अंत है। एक ऐसी घोषणा, जो बस्तर में शांति और भरोसे के युग की शुरुआत का संकेत देती है।
मुख्यधारा में लौटने वाले प्रमुख माओवादी नेता
मुख्यधारा में लौटने वाले प्रमुख माओवादी नेताओं में सीसीएम रूपेश उर्फ सतीश, डीकेएसजेडसी सदस्य भास्कर उर्फ राजमन मांडवी, रनीता, राजू सलाम, धन्नू वेत्ती उर्फ संतू, आरसीएम रतन एलम सहित कई वांछित और इनामी कैडर शामिल हैं। इन सभी ने संविधान पर आस्था व्यक्त करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था में सम्मानजनक जीवन जीने का संकल्प लिया।
मांझी-चालकी विधि से हुआ स्वागत, वंदे मातरम की गूंज के साथ संविधान के प्रति दिखाई निष्ठा
यह ऐतिहासिक आयोजन जगदलपुर पुलिस लाइन परिसर में हुआ, जहाँ आत्मसमर्पित कैडरों का स्वागत पारंपरिक मांझी-चालकी विधि से किया गया। उन्हें संविधान की प्रति और शांति, प्रेम एवं नए जीवन का प्रतीक लाल गुलाब भेंट कर सम्मानित किया गया। मांझी-चालकी प्रतिनिधियों ने कहा कि बस्तर की परंपरा सदैव प्रेम, सहअस्तित्व और शांति का संदेश देती रही है। जो साथी अब लौटे हैं, वे इस परंपरा को नई शक्ति देंगे और समाज में विश्वास की नींव को और मजबूत करेंगे। कार्यक्रम के अंत में सभी आत्मसमर्पित कैडरों ने संविधान की शपथ लेकर लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की। उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वे अब हिंसा के बजाय विकास और राष्ट्रनिर्माण की दिशा में योगदान देंगे। ‘वंदे मातरम’ की गूंज के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। यह क्षण केवल 210 माओवादी कैडरों के आत्मसमर्पण का नहीं, बल्कि बस्तर में विश्वास, विकास और शांति के नए युग की शुरुआत का प्रतीक बन गया।
कार्यक्रम के दौरान पुलिस विभाग द्वारा आत्मसमर्पित माओवादियों को पुनर्वास सहायता राशि, आवास और आजीविका योजनाओं की जानकारी दी गई। राज्य शासन इन युवाओं को स्वरोजगार, कौशल विकास और शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि वे आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन जी सकें।
Dandakaranya Surrender: Total Cadre Profile
1. CCM 01 cadre
2. DKSZC 04 cadres
3. Regional Committee Member 01 cadre
रायपुर :
राज्य शासन की व्यापक नक्सल उन्मूलन नीति और शांति, संवाद एवं विकास पर केंद्रित सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप बस्तर संभाग में आज नक्सल विरोधी मुहिम को ऐतिहासिक सफलता मिली है। ‘पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन’ कार्यक्रम के अंतर्गत दण्डकारण्य क्षेत्र के 210 माओवादी कैडरों ने हिंसा का मार्ग त्यागकर समाज की मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया है।
यह आत्मसमर्पण विश्वास, सुरक्षा और विकास की दिशा में बस्तर की नई सुबह का संकेत है। लंबे समय से नक्सली गतिविधियों से प्रभावित अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर क्षेत्र में यह ऐतिहासिक घटनाक्रम नक्सल उन्मूलन अभियान के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में दर्ज होगा।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य शासन द्वारा अपनाई गई व्यापक नक्सल उन्मूलन नीति ने क्षेत्र में स्थायी शांति की मजबूत नींव रखी है। पुलिस, सुरक्षा बलों, स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संगठनों और सजग नागरिकों के समन्वित प्रयासों से हिंसा की संस्कृति को संवाद और विकास की संस्कृति में परिवर्तित किया जा सका है।
‘पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन’: दण्डकारण्य के 210 माओवादी कैडर लौटे समाज की मुख्यधारा में
यह पहली बार है जब नक्सल विरोधी अभियान के इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में वरिष्ठ माओवादी कैडरों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया है। आत्मसमर्पण करने वालों में एक सेंट्रल कमेटी सदस्य, चार डीकेएसजेडसी सदस्य, 21 डिविजनल कमेटी सदस्य सहित अनेक वरिष्ठ माओवादी नेता शामिल हैं। इन कैडरों ने कुल 153 अत्याधुनिक हथियार—जिनमें AK-47, SLR, INSAS रायफल और LMG शामिल हैं—समर्पित किए हैं। यह केवल हथियारों का समर्पण नहीं, बल्कि हिंसा और भय के युग का प्रतीकात्मक अंत है—एक ऐसी घोषणा, जो बस्तर में शांति और भरोसे के युग की शुरुआत का संकेत देती है।
मुख्यधारा में लौटने वाले प्रमुख माओवादी नेताओं में सीसीएम रूपेश उर्फ सतीश, डीकेएसजेडसी सदस्य भास्कर उर्फ राजमन मांडवी, रनीता, राजू सलाम, धन्नू वेत्ती उर्फ संतू, आरसीएम रतन एलम सहित कई वांछित और इनामी कैडर शामिल हैं। इन सभी ने संविधान पर आस्था व्यक्त करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था में सम्मानजनक जीवन जीने का संकल्प लिया।
‘पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन’: दण्डकारण्य के 210 माओवादी कैडर लौटे समाज की मुख्यधारा में
यह ऐतिहासिक आयोजन जगदलपुर पुलिस लाइन परिसर में हुआ, जहाँ आत्मसमर्पित कैडरों का स्वागत पारंपरिक मांझी-चालकी विधि से किया गया। उन्हें संविधान की प्रति और शांति, प्रेम एवं नए जीवन का प्रतीक लाल गुलाब भेंट कर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) श्री अरुण देव गौतम ने कहा कि “पूना मारगेम केवल नक्सलवाद से दूरी बनाने का प्रयास नहीं, बल्कि जीवन को नई दिशा देने का अवसर है। जो आज लौटे हैं, वे बस्तर में शांति, विकास और विश्वास के दूत बनेंगे।” उन्होंने आत्मसमर्पित कैडरों से समाज निर्माण में अपनी ऊर्जा लगाने का आह्वान किया।
इस अवसर पर एडीजी (नक्सल ऑपरेशन्स) श्री विवेकानंद सिन्हा, सीआरपीएफ बस्तर रेंज प्रभारी, कमिश्नर श्री डोमन सिंह, बस्तर रेंज आईजी श्री सुंदरराज पी., कलेक्टर श्री हरिस एस., बस्तर संभाग के सभी पुलिस अधीक्षक, वरिष्ठ अधिकारी और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
कार्यक्रम के दौरान पुलिस विभाग द्वारा आत्मसमर्पित माओवादियों को पुनर्वास सहायता राशि, आवास और आजीविका योजनाओं की जानकारी दी गई। राज्य शासन इन युवाओं को स्वरोजगार, कौशल विकास और शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि वे आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन जी सकें।
मांझी-चालकी प्रतिनिधियों ने कहा कि बस्तर की परंपरा सदैव प्रेम, सहअस्तित्व और शांति का संदेश देती रही है। जो साथी अब लौटे हैं, वे इस परंपरा को नई शक्ति देंगे और समाज में विश्वास की नींव को और मजबूत करेंगे।
कार्यक्रम के अंत में सभी आत्मसमर्पित कैडरों ने संविधान की शपथ लेकर लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की। उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वे अब हिंसा के बजाय विकास और राष्ट्रनिर्माण की दिशा में योगदान देंगे।
‘वंदे मातरम्’ की गूंज के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। यह क्षण केवल 210 माओवादी कैडरों के आत्मसमर्पण का नहीं, बल्कि बस्तर में विश्वास, विकास और शांति के नए युग की शुरुआत का प्रतीक बन गया।
रायपुर :
मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय आज कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर में आयोजित सर्व पिछड़ा वर्ग समाज के 13वें स्थापना दिवस कार्यक्रम में शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने 90 करोड़ रुपये की लागत से 26 निर्माण कार्यों का लोकार्पण एवं शिलान्यास किया।
मुख्यमंत्री श्री साय ने जिले के प्रत्येक विकासखंड में 50-50 लाख रुपये की लागत से एक-एक सामुदायिक भवन के निर्माण तथा पोस्ट मैट्रिक छात्रावासों में ओबीसी विद्यार्थियों की सीटों में वृद्धि करने की घोषणा की। कार्यक्रम में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री श्री अरुण साव तथा वित्त मंत्री श्री ओ. पी. चौधरी भी उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि प्रदेश सरकार पिछड़ा वर्ग के विकास और हितों को लेकर पूरी तरह संवेदनशील और प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिसके लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन भी किया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज का दिन केवल प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि बस्तर के विकास में सबसे बड़ी बाधा नक्सलवाद अब समाप्ति की ओर अग्रसर है। उन्होंने बताया कि शासन की नीतियों और रीति-नीति से प्रभावित होकर जगदलपुर में आज 210 भटके हुए लोग मुख्यधारा में लौटे हैं तथा उन्होंने 153 हथियार भी जमा किए हैं।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि मोदी की गारंटी को पूर्ण करने के लिए प्रदेश सरकार पिछले 22 महीनों से समर्पण के साथ कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने वायदे के अनुरूप तेंदूपत्ता खरीदी की कीमत में वृद्धि की, 3100 रुपये प्रति क्विंटल के मान से धान खरीदा, रामलला दर्शन योजना लागू की तथा मुख्यमंत्री तीर्थयात्रा योजना को पुनः प्रारंभ किया। इसके अतिरिक्त भी अनेक जनहितकारी और महत्वाकांक्षी योजनाएँ संचालित की जा रही हैं।
मुख्यमंत्री ने सर्व पिछड़ा वर्ग समाज के स्थापना दिवस की बधाई देते हुए समाजजनों से शासन की योजनाओं से जुड़कर विकास में सहभागी बनने की अपील की।
इससे पूर्व उप मुख्यमंत्री श्री अरुण साव ने समाजजनों को बधाई देते हुए समाज में अपनी भूमिका को और सशक्त करने का आह्वान किया। वित्त मंत्री श्री ओ. पी. चौधरी ने कहा कि पिछड़ा वर्ग समाज मेहनतकश और कर्मठ है। उन्होंने आने वाली पीढ़ी को बेहतर ढंग से शिक्षित करने और अपने अधिकारों के प्रति सजग एवं जागरूक रहने की अपील की। उन्होंने जिले में संचालित ‘मावा मोदोल कोचिंग संस्थान’ की सराहना करते हुए अधिक से अधिक युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए प्रोत्साहित करने की बात कही।
मुख्यमंत्री श्री साय ने सर्व पिछड़ा वर्ग सम्मेलन के दौरान कुल 90 करोड़ 06 लाख 88 हजार रुपये के विकास कार्यों का लोकार्पण और शिलान्यास किया। इनमें 56 करोड़ 51 लाख 40 हजार रुपये की लागत से 14 विकास कार्यों का शिलान्यास तथा 33 करोड़ 55 लाख 48 हजार रुपये की लागत से 12 निर्माण कार्यों का लोकार्पण सम्मिलित है।कार्यक्रम के अंत में मुख्यमंत्री ने ओबीसी वर्ग के तीन मेधावी विद्यार्थियों को सम्मानित किया।
इस अवसर पर सांसद श्री भोजराज नाग, अंतागढ़ विधायक श्री विक्रम उसेंडी, भानुप्रतापपुर विधायक श्रीमती सावित्री मंडावी, कांकेर विधायक श्री आशाराम नेताम, पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री नेहरू निषाद, प्रदेश मछुआ कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष श्री भरत मटियारा सहित अन्य अधिकारीगण उपस्थित थे।
*मुख्यधारा में लौटे माओवादी कैडर — बस्तर में शांति, विश्वास और विकास की नई सुबह : मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय*
रायपुर 17 अक्टूबर 2025/आज का दिन केवल बस्तर ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ और देश के लिए ऐतिहासिक है। वर्षों तक हिंसा और भय की छाया में जी रहे 210 माओवादी कैडरों ने आज “पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन” कार्यक्रम के अंतर्गत बंदूक छोड़कर संविधान को अपनाने का निर्णय लिया है। यह छत्तीसगढ़ में शांति, विश्वास और विकास के नए युग का शुभारंभ है। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने आज जगदलपुर में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए यह बात कही।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि जो युवा कभी माओवाद की झूठी विचारधारा के जाल में उलझे हुए थे, वे आज लोकतंत्र की शक्ति, संविधान के आदर्शों और राज्य सरकार की संवेदनशील नीतियों पर विश्वास जताते हुए समाज की मुख्यधारा में लौट रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि कुल 210 आत्मसमर्पित माओवादी कैडरों में एक सेंट्रल कमेटी सदस्य, चार दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी सदस्य, एक रीजनल कमेटी सदस्य, 22 डिविजनल कमेटी सदस्य, 61 एरिया कमेटी सदस्य और 98 पार्टी सदस्य शामिल हैं। इन पर कुल 9 करोड़ 18 लाख रुपये का इनाम घोषित था।
समारोह में 210 माओवादी कैडरों ने कुल 153 हथियार समर्पित किए, जिनमें 19 AK-47, 17 SLR, 23 INSAS राइफलें, एक INSAS LMG, 36 .303 राइफलें, 4 कार्बाइन, 11 BGL लॉन्चर, 41 शॉटगन और एक पिस्तौल शामिल हैं।
मुख्यमंत्री श्री साय ने इस अवसर को अपने जीवन के सबसे भावनात्मक और संतोषजनक क्षणों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि जिन युवाओं ने बंदूकें नीचे रखकर संविधान को थामा, उन्होंने छत्तीसगढ़ के भविष्य में शांति और एकता के बीज बोए हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि बदलाव नीतियों और विश्वास से आता है, भय और हिंसा से नहीं।
राज्य सरकार की “नक्सलवादी आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति 2025”, “नियद नेल्ला नार योजना” और “पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन” जैसी पहल आज न केवल बस्तर, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में बदलाव की ठोस आधारशिला सिद्ध हो रही हैं। इन योजनाओं ने बंदूक और बारूद की जगह संवाद, संवेदना और विकास को स्थापित किया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह अभूतपूर्व आत्मसमर्पण केंद्र एवं राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है। पुलिस, सुरक्षा बल, स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संगठन और नागरिक समाज — सभी ने मिलकर जिस समन्वित और निरंतर प्रयास से यह परिवर्तन संभव किया, वह बस्तर के इतिहास में मील का पत्थर है।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि यह दृश्य न केवल बस्तर बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा है — कि यदि नीयत साफ हो और नीतियाँ जनसंबंधी हों, तो हिंसा का अंत और शांति की शुरुआत संभव है।मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सामूहिक आत्मसमर्पण बस्तर में नक्सल उन्मूलन अभियान के इतिहास की सबसे बड़ी सफलता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह आत्मसमर्पण हिंसा की जड़ को समाप्त करने की दिशा में निर्णायक कदम है। “अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर, जहाँ कभी भय का शासन था, वहाँ आज विश्वास का शासन है। जो कल जंगलों में छिपे थे, आज वे समाज के निर्माण में सहभागी बन रहे हैं,”।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि डबल इंजन सरकार की यह दृढ़ प्रतिज्ञा है कि छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से पूर्णतः मुक्त किया जाए। उन्होंने कहा — “प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन और केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी के नेतृत्व में हम इस लक्ष्य की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं। बस्तर का यह परिवर्तन उसी संकल्प का प्रमाण है।”
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार आत्मसमर्पित कैडरों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वरोजगार, प्रशिक्षण, आवास, शिक्षा और आजीविका के अवसर प्रदान किए जाएंगे ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें और समाज के विकास में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह आत्मसमर्पण “पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन” के उस मूल भाव का विस्तार है, जो यह संदेश देता है कि परिवर्तन का मार्ग हिंसा नहीं, बल्कि विश्वास है। यह कार्यक्रम अब पूरे बस्तर क्षेत्र में पुनर्वास, शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका सुधार की दिशा में नई ऊर्जा लेकर आएगा।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि यह ऐतिहासिक घटना यह सिद्ध करती है कि जब सरकार की नीतियाँ संवेदनशील और जनकेंद्रित होती हैं, तब सबसे कठिन समस्याएँ भी सुलझाई जा सकती हैं। उन्होंने कहा — “हमारा लक्ष्य केवल नक्सलवाद का अंत नहीं, बल्कि एक नए बस्तर का निर्माण है — जहाँ हर घर में विश्वास और हर मन में विकास का उजाला हो।”
मुख्यमंत्री ने क्षेत्र की जनता, जनप्रतिनिधियों, मीडिया, सुरक्षा बलों और नागरिक समाज को इस परिवर्तन के सहयोगी बनने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि शांति, विकास और समृद्धि की यह यात्रा तभी स्थायी होगी जब समाज का प्रत्येक वर्ग इस परिवर्तन की भावना को आत्मसात करेगा।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार बस्तर को नए उद्योग, बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और कनेक्टिविटी के माध्यम से आत्मनिर्भर क्षेत्र में परिवर्तित करेगी। जंगलों की हरियाली के साथ यहाँ के युवाओं के जीवन में भी उजाला फैलेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बस्तर के इतिहास में यह वह क्षण है, जब “बंदूक की गूंज” की जगह “विकास की गूंज” सुनाई दे रही है। यह उस बस्तर का पुनर्जन्म है, जहाँ अब भय नहीं, विश्वास और बंधुत्व का शासन होगा।
अंत में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने कहा — “यह केवल आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि आत्मजागरण की यात्रा है। यह छत्तीसगढ़ की नई पहचान है — शांति, विश्वास और विकास की। आने वाले समय में बस्तर न केवल नक्सल मुक्त होगा, बल्कि देश के लिए शांति और परिवर्तन का मॉडल बनेगा।
इस अवसर पर उपमुख्यमंत्रीद्वय श्री अरुण साव और श्री विजय शर्मा, सांसद श्री महेश कश्यप, जगदलपुर विधायक श्री किरण सिंह देव, पुलिस महानिदेशक श्री अरुणदेव गौतम, एडीजी सीआरपीएफ श्री अमित कुमार, एडीजी बीएसएफ श्री नामग्याल, एडीजी (एएनओ) श्री विवेकानंद झा, बस्तर रेंज के आईजी श्री सुंदरराज पी, बस्तर के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षक तथा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
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