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नयी दिल्ली। सरकार देश में बेचे जा रहे स्वर्ण आभूषणों के लिए शीघ्र ही हॉलमार्क अनिवार्य करने पर विचार कर रही है। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने बृहस्पतिवार को इसकी जानकारी दी। पासवान ने भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा विश्व मानक दिवस के उपलक्ष्य में मनाये जा रहे ‘वैश्विक मानक एवं चतुर्थ औद्योगिक क्रांति’ समारोह में कहा, ‘‘बीआईएस ने तीन श्रेणियों 14 कैरट, 18 कैरट और 22 कैरट के लिए हॉलमार्क के मानक तय किये हैं। हम इसे शीघ्र ही अनिवार्य करने वाले हैं।’’
 
अभी हॉलमार्क स्वैच्छिक है। यह सोने की शुद्धता का मानक है। इसका प्रशासनिक प्राधिकरण बीआईएस के पास है जो उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत आता है। पासवान ने उपभोक्ताओं के हित में मानक अपनाने की जरूरत पर जोर दिया। हालांकि उन्होंने इसके क्रियान्वयन की तिथि के बारे में जानकारी नहीं दी। मंत्री ने कहा कि चौथी औद्योगिक क्रांति स्मार्ट प्रौद्योगिकियों की होगी और बीआईएस के समक्ष यह चुनौती है कि वह मानक तय करने का काम तेज करे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि देश इस क्षेत्र में पीछे नहीं छूटेगा। पासवान ने इस मौके पर बीआईएस की नयी वेबसाइट की शुरूआत की और स्मार्ट विनिर्माण के बारे में मानक पूर्व रिपोर्ट जारी की।
 
उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री सी.आर.चौधरी ने भी इस बात पर जोर दिया कि समय की जरूरत कृत्रिम बुद्धिमता जैसी नयी स्मार्ट प्रौद्योगिकियों के लिये मानक तय करने पर चर्चा करना है। बीआईएस की महानिदेशक सुरीना राजन ने कहा कि चौथी औद्योगिक क्रांति में इस्तेमाल होने वाली स्मार्ट प्रौद्योगिकियों के मानकीकरण के अध्ययन के लिए समितियां पहले ही गठित की जा चुकी हैं। इस क्रांति में मशीन भी मानवों की तरह कार्य कर रहे होंगे।
भारत के शहरों का पुनर्नामकरण वर्ष 1947 में, अंग्रेजों के भारत छोड़ कर जाने के बाद आरंभ हुआ था, जो आज तक जारी है। कई पुनर्नामकरणों में राजनैतिक विवाद भी हुए हैं। सभी प्रस्ताव लागू भी नहीं हुए हैं।  स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पुनर्नामांकित हुए, मुख्य शहरों में हैं− तिरुवनंतपुरम (पूर्व त्रिवेंद्रम), मुंबई (पूर्व बंबई, या बॉम्बे), चेन्नई (पूर्व मद्रास), कोलकाता (पूर्व कलकत्ता), पुणे (पूर्व पूना) एवं बेंगलुरु (पूर्व बंगलौर)। आजकल उत्तर प्रदेश में शहरों का नाम बदले जाने का मामला सुर्खियां बटोर रहा है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि शहरों का नाम बदलकर योगी सरकार हिन्दुओं के वोट हासिल करना चाहती है जबकि बीजेपी वालों को लगता है कि नाम बदल कर सिर्फ शहरों को उनकी पुरानी पहचान दिलाई जा रही है।
 
उत्तर प्रदेश के मुगलसराय स्टेशन का नाम बदल कर पंडित दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन किए जाने के बाद हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद और फैजाबाद जिलों का नाम क्या बदलकर क्रमशः प्रयागराज और अयोध्या क्या किया, प्रदेश में जिलों के नाम बदले जाने की ही सियासत गरमा गई है। प्रदेश के कोने−कोने से कई जिलों के नाम बदलने की मांग उठने लगी है तो दूसरी तरफ शहरों का नाम बदले जाने का विरोध करने वाले भी मोर्चा संभाले हुए हैं। कोई आगरा का नामकरण अग्रवाल नगर या अग्रसेन के नाम पर करना चाहता है तो कोई मुजफ्फरनगर को लक्ष्मी नगर के रूप में नई पहचान देना चाहता है।
 
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में डेढ़ दर्जन से अधिक ऐसे जिले हैं जिनके नाम हमेशा विवाद का कारण बने रहते हैं। यह वह जिले हैं या तो जिनका नाम मुगल शासनकाल में बदला गया था अथवा मुगलकाल में यह जिले विकसित हुए थे। आगरा, अलीगढ़, इलाहाबाद, लखनऊ, आजमगढ़, फैजाबाद, फर्रूखाबाद, फतेहपुर, फिरोजाबाद, बुलंदशहर, गाजियाबाद, गाजीपुर, मेरठ, मिर्जापुर, मुरादाबाद, मुगलसराय, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शाहजहाँपुर, सुल्तानपुर जैसे जिले इसी श्रेणी में आते हैं। उक्त के अलावा कुछ जिलों के नाम अप्रभंश के चलते भी बदल गये हैं।
 
जिन जिलों के नामों को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है उसमें आगरा प्रमुख जिला है। आगरा एक ऐतिहासिक नगर है, जिसके प्रमाण यह अपने चारों ओर समेटे हुए है। वैसे तो आगरा का इतिहास मुख्य रूप से मुगल काल से जाना जाता है लेकिन इसका सम्बन्ध महर्षि अन्गिरा से है जो 1000 वर्ष ईसा पूर्व हुए थे। इतिहास में पहला जिक्र आगरा का महाभारत के समय से माना जाता है, जब इसे अग्रबाण या अग्रवन के नाम से संबोधित किया जाता था। कहते हैं कि पहले यह नगर आयॅग्रह के नाम से भी जाना जाता था। तौलमी पहला ज्ञात व्यक्ति था जिसने इसे आगरा नाम से संबोधित किया।
 
मुजफ्फरनगर का नाम बदलने की सुगबुगाहट है। ये मांग भारतीय जनता पार्टी के मेरठ की सरधना सीट से विधायक संगीत सोम ने उठाई है। उन्होंने इलाहाबाद और फैजाबाद जिलों का नाम बदले जाने पर ट्वीट करते हुए कहा कि अभी तो बहुत से शहरों के नाम बदले जाने हैं। मुजफ्फरनगर का नाम बदला जाना है, मुजफ्फरनगर का नाम लक्ष्मीनगर रखने की लोगों की पहले से ही मांग है। संगीत सोम यहीं नहीं रूके उन्होंने एक और ट्वीट में कहा− मुगलों ने यहां की संस्कृति को मिटाने का काम किया है। खासतौर पर हिंदुत्व को मिटाने का काम किया है, हम लोग उसी संस्कृति को बचाने का काम कर रहे हैं। बीजेपी उससे आगे बढ़ेगी।
 
लखनऊ का नाम बदले जाने की भी चर्चा कम नहीं है। अतीत में लखनऊ प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा हुआ करता था। यह भगवान राम की विरासत थी जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था। अतः इसे लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना गया, जो बाद में बदल कर लखनऊ हो गया। इलाहाबाद जिसका हाल में नाम बदल कर प्रयाग किया गया है अतीत में प्रयाग के नाम से जाना जाता था। प्राचीन काल में शहर को प्रयाग (बहु−यज्ञ स्थल) के नाम से जाना जाता था। ऐसा इसलिये क्योंकि सृष्टि कार्य पूर्ण होने पर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ यहीं किया था, व उसके बाद यहां अनगिनत यज्ञ हुए।
 
प्रयागराज शहर का इलाहाबाद नाम अकबर द्वारा 1583 में रखा गया था। हिन्दी नाम इलाहाबाद का अर्थ अरबी शब्द इलाह (अकबर द्वारा चलाये गए नये धर्म दीन−ए−इलाही के सन्दर्भ से, अल्लाह के लिये) एवं फारसी से आबाद (अर्थात बसाया हुआ) यानि ईश्वर द्वारा बसाया गया, या ईश्वर का शहर। बीते माह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसका नाम इलाहाबाद से बदल कर प्रयागराज कर दिया था। अयोध्या भारतवर्ष के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश का एक नगर है। करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक भगवान राम का यहीं जन्म हुआ था। पहले इसे साकेत नगर के नाम से जाना जाता था। प्रमु राम के अलावा समाजवादी चिंतक और नेता राममनोहर लोहिया, कुंवर नारायण, राम प्रकाश द्विवेदी आदि की यह जन्मभूमि रहा है, लेकिन मुगलकाल में इसका भी नाम फैजाबाद कर दिया गया था।
 
भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा मधुदानव द्वारा बसाई गयी थी और उसी के नाम पर इसका नाम मधुपुरी पड़ा। इसको मधुनगरी और मधुरा भी बोला जाता था। शत्रुघ्न ने जब राक्षस का वध कर दिया, यह क्षेत्र धीरे−धीरे मथुरा बन गया। विष्णु पुराण में 'मथुरा' का उल्लेख है, जिससे पता चलता है कि तब तक शहर का नाम बदल चुका था। शूरसेन के शासनकाल में इसको शूरसेन नगरी कहा जाता था।
 
भगवान् विश्वनाथ की नगरी का नाम 1956 से पहले बनारस था, लेकिन बाद में उसका नाम बदल कर वाराणसी रखा गया। वाराणसी दो नदियों के नाम से जुड़ कर बना हुआ है− वरुण और असी। बनारस इन्हीं नदियों के मुहाने पर बसा हुआ है। ऋगवेद में इस शहर का नाम काशी भी लिखा गया है। वजह जो भी हो, पर लोगों को यह नया नाम अपनाने में काफी समय लग गया। पचास से अधिक वर्ष हो जाने पर भी आपको 'बनारस' या 'काशी' सुनने को मिल जाए, तो चौंकिएगा नहीं। मुगलसराय स्टेशन का नाम बदले जाने के बाद मुगलसराय जिले का भी नाम दीनदयालनगर किए जाने की चर्चा तेज है।
 
सहारनपुर के देवबंद का नाम बदलने की मांग कई बार हो चुकी है। देवबंद के बीजेपी विधायक ने तो बाकायदा यूपी सरकार से नाम बदलने के सिफारिश भी की है और कुछ दिन पहले कई जगह नाम बदलने के बैनर तक टंगवा दिए थे। इसी प्रकार अन्य जिलों के नाम से छेड़छाड़ की बात कि जाये तो इस लिस्ट में कानपुर सहित कई जिले शामिल हैं। कानपुर का असली नाम कान्हापुर और कॉनपोर तो शामली का असली नाम श्यामली और आजमगढ़ का असली नाम आर्य गढ़ एवं बागपत का असली नाम बाग प्रस्थ तथा देवरिया का असली नाम देवपुरी वहीं अलीगढ़ का असली नाम हरीगढ़ हुआ करता था।
 
-अजय कुमार
जिस तरह राम मंदिर मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदूवादी संगठन और भाजपा हवा बनाने में जुटे हैं उससे ऐसा आभास हो रहा है कि क्या मोदी सरकार जल्द ही राम मंदिर पर अध्यादेश लाने वाली है? ऊपरी तौर पर तो मामला कुछ ऐसा ही दिखाई देता है लेकिन असलियत कुछ और है। असल में आरएसएस, भगवा ब्रिगेड और भाजपा राम मंदिर मुद्दे के ‘करंट’ को मापने के साथ जनमानस का दिल टटोल रहे हैं। हिंदूवादी संगठनों ने भाजपा को पर्याप्त मात्रा में राजनीतिक प्राणवायु प्रदान की है और इससे उत्साहित भगवा टोली नये सिरे से अयोध्या विवाद को गरमाने में जुट गयी है। चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, ऐसे में मोदी सरकार इस मसले पर अध्यादेश लाने से कुछ ज्यादा करने की स्थिति में नहीं है। राजनीतिक गलियारों से जो हवाएं छनकर आ रही हैं वो यह संदेश दे रही हैं कि मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में राम मंदिर पर अध्यादेश लाएगी। राम मंदिर अध्यादेश की खबर ऊपरी हवा है। अंदरखाने भगवा टोली पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों पर नजरें गड़ाए है और पांच राज्यों के चुनाव नतीजे ही राम मंदिर निर्माण का भविष्य तय करेंगे।
 
आरएसएस और हिंदूवादी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद की सुनवाई की तारीख से पूर्व ही मोदी सरकार पर राम मंदिर के लिये अध्यादेश लाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया था। संघ प्रमुख ने चेतावनी भरे लहजे में सरकार को इस बाबत कोई ठोस कदम उठाने का फरमान सुनाया है। संघ, हिन्दूवादी संगठनों और जनमानस से मिल रही प्रतिक्रियाओं के बीच मोदी सरकार के सामने राम मंदिर का मुद्दा सुरसा के मुंह की भांति खड़ा हो गया है। यह बात सच है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने मोदी सरकार की मुश्किल बढ़ा दी है, लेकिन एक सच यह भी है कि इस फैसले से बीजेपी को नया चुनावी मुद्दा भी मिल सकता है। यदि विकास के नाम पर भाजपा के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत मिलती है तो संभव है कि मोदी सरकार राम मंदिर निर्माण पर अध्यादेश के बारे में विचार भी न करे, लेकिन कहीं अगर उसके हाथ हार लगी तो हिंदुत्व की शरण में जाने के सिवाय बीजेपी के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। 
 
राम मंदिर की सियासत के उबाल के बीच मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में बिल पेश किए जाने या सत्र के बाद अध्यादेश का सहारा लेने के सियासी नफा नुकसान तौलने में पूरी तरह जुट गई है। सरकार, भाजपा और संघ का एक बड़ा धड़ा शीतकालीन सत्र में बिल पेश कर कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष को सियासी पिच पर बैकफुट पर धकेलने के पक्ष में है। 11 दिसंबर को पांच राज्यों के चुनाव नतीजे देश के सामने होंगे। इसके बाद पूरे घटनाक्रम में नाटकीय मोड़ आ सकता है। दिसंबर के दूसरे स्पताह में संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होगा। रणनीति के तहत मंदिर निर्माण मामले में सरकार फ्रंट फुट पर खेलने के लिए तैयार है। फिलहाल दो विकल्पों- अध्यादेश लाने या बिल पेश किए जाने के प्रश्न पर सरकार, भाजपा, संघ और संतों के बीच गहन विमर्श का दौर जारी है। यदि बीजेपी 2019 लोकसभा चुनाव राम नाम पर लड़ने का मन बनाती है तो उसके पास दो विकल्प होंगे, पहला- अध्यादेश और दूसरा शीतकालीन सत्र में विधेयक लाने का। जानकारों की माने तों अगर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं आए तो राम मंदिर मामले में सरकार दो टूक निर्णय लेगी।
 
पिछले दिनों दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित धर्मादेश कार्यक्रम में देशभर से आए साधु-संतों ने राम मंदिर निर्माण के लिए प्रस्ताव पास किया है। इस मौके पर संत समाज ने कहा कि अब राम मंदिर के निर्माण को लेकर किसी प्रकार का समझौता नहीं होगा, इसके लिए सरकार जल्द से जल्द अध्यादेश लेकर आए या फिर कानून बनाए। धर्मादश में स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि, अगर सरकार 2019 चुनाव से पहले राम मंदिर बनवाने में नाकाम रहती है तो भगवान उन्हें सजा देगा।  राममंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार चैतरफा दबाव में है। लेकिन इस दबाव ने राफेल के मुद्दे की आवाज दबाने के साथ भाजपा को विरोधियों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने का मौका दिया है। राम मंदिर के लिए हिलोरे लेते लहरों के बीच भाजपा अपने सियासी नफे-नुकसान का गणित समझने में जुटी है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से पार्टी के मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और प्रवक्ताओं से कहा गया है कि मंदिर बनने वाला है इस तरह का माहौल बनाया जाए। और ऐसी बयानबाजी की जाए कि कि सिर्फ नरेंद्र मोदी ही राम मंदिर जैसे मुश्किल मुद्दे पर फैसला कर सकते हैं। इसके बाद अगर विधानसभा चुनाव में पार्टी हारी तो सुनी-सुनाई है कि राम मंदिर के नाम पर अध्यादेश आना लगभग तय है।
 
मोदी सरकार अध्यादेश लाई तो क्या होगा ? सरकार, संघ और भाजपा का एक बड़ा धड़ा शीत सत्र में राम मंदिर निर्माण के लिए बिल पेश करने का पक्षधर है। रणनीतिकारों का मानना है कि बिल से कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष की परेशानी बढ़ेगी। बिल के विरोध की स्थिति में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के नरम हिंदुत्व की हवा निकल जाएगी। हालांकि सरकार के लिए मुश्किल सहयोगियों को मनाना होगा। सवाल है कि क्या इसके लिए लोजपा, अपना दल, रालोसपा जैसे सहयोगी दल सरकार का साथ देंगे ? मंदिर निर्माण के लिए सरकार के पास अध्यादेश भी एक विकल्प है। एक धड़ा किसी की परवाह किए बिना सत्र के तत्काल बाद अध्यादेश लाने के पक्ष में है। शीतकालीन सत्र में भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आने वाले हैं। जानकारों के मुताबिक अध्यादेश की तुलना में सदन के पटल पर विधेयक लाना बीजेपी के लिए ज्यादा मुफीद होगा। हालांकि, लोकसभा में तो बीजेपी इसे पास करा सकती है, लेकिन राज्यसभा में इसकी राह आसान नहीं। ऐसे में कानून न बन पाने का ठीकरा बीजेपी विपक्ष पर फोड़कर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। बीजेपी भले ही मंदिर निर्माण में सफल न हो, लेकिन वह कांग्रेस को हिंदू विरोधी साबित करने का पूरा प्रयास करेगी। 
 
संघ और भगवा टोली के पास जो फीडबैक है उसके मुताबिक मोदी सरकार की योजनाओं के बलबूते लोकसभा चुनाव में एनडीए का बहुमत पाना उन्हें दूर की कौड़ी मालूम पड़ रही है। संघ ने भाजपा को यह फीडबैक दिया है कि हर बीतते दिन के साथ केंद्र सरकार के प्रति शिकायतें बढ़ रही हैं और कांग्रेस कोई न कोई ऐसा मुद्दा उठाने में कामयाब हो रही है जिसकी चर्चा गांव के चौपाल से लेकर शहर के चौराहे तक हो रही है। वहीं कांग्रेस भी सोशल मीडिया के मंच पर भाजपा को पूरी तरह टक्कर देने लगी है। भाजपा के तमाम नेता और सांसद इस चिंता में घुले जा रहे हैं कि वे अगला चुनाव किस मुद्दे पर लड़ेंगे, मोदी सरकार की किस बात पर वोट मांगेंगे। जन-धन योजना, प्रधानमंत्री आवास, उज्जवला योजना, जन औषधि योजना या प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आदि का बखान कर वोट नहीं मिलने वाले हैं। ये योजनाएं चुनाव नहीं जिता सकती हैं। इसलिए एक ऐसा सॉलिड ब्रह्मास्त्र चाहिए जिसे लेकर भाजपा के उम्मीदवार गांव-गांव जाएं और प्रचारित करें कि यह काम सिर्फ मोदी ही कर सकता है। ऐस में राम मंदिर से ज्यादा मुफीद और क्या हो सकता है। 
 
अब ये तय हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 2019 चुनाव से पहले राम मंदिर पर फैसला नहीं आने वाला है। 2014 लोकसभा चुनाव के बीजेपी के घोषणा पत्र में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा काफी नीचे था, लेकिन जिस तरह से घटनाक्रम चल रहा है, उससे इस बात की पूरी संभावना बन रही है कि 2019 लोकसभा चुनाव में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सबसे ऊपर होगा। अब तक भाजपा पर इल्जाम लगता था, राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे। लेकिन इस बार भाजपा बदले तेवरों और नये नारे के साथ खड़ी दिख सकती है- राम लला हम आएंगे। तारीख नहीं बताएंगे, सीधे मंदिर बनाएंगे। फिलवक्त राम मंदिर का भविष्य पांच राज्यों के जनादेश पर टिका है। 
 
-डॉ. आशीष वसिष्ठ

बढ़ती आतंकी गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए देश में देश में आतंकी हमले का अलर्ट कर दिया हैं। रिपोर्ट के  मुताबिक पंजाब के फिरोजपुर में जैश ए मोहम्मद के 6 से 7 आतंकवादियों के होने का खुलासा हुआ है। माना जा रहा है कि ये आतंकी इसी इलाके में हैं और दिल्ली की तरफ बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। सूत्रों की माने की तो आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के 6-7 आतंकी राजधानी दिल्ली में हमला करने की फ़िराक़ में हैं। 

जम्मू से चार हथियार बंद लोग एक इनोवा कार छीन कर पंजाब की ओर भागे थे। इन लोगों के फ़िरोज़पुर बॉर्डर एरिया में छिपे होने का अनुमान लगाया जा रहा है। फुलहाल सुरक्षा एजेंसियों ने एहतियातन फ़िरोज़पुर का पूरा बॉर्डर एरिया सील कर दिया गया है और चौकसी बड़ा दी गई है।

पंजाब पुलिस इंटेलिजेंस के इनपुट के बाद भारत-पाक सीमा पर सख्ती और सतर्क रहने का अलर्ट जारी किया गया है। बुधवार को पंजाब के पठानकोट के माधोपुर से चार संदिग्धों के द्वारा लूटी गई कार को भी इसी आतंकी हमले की साजिश से जोड़कर देखा जा रहा है और पूरे पंजाब में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। 

नयी दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बृहस्पतिवार को राफेल विमान सौदे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर फिर से निशाना साधा और आरोप लगाया कि लड़ाकू विमान की खरीद के संदर्भ में फ्रांस की तरफ से कोई ‘सरकारी गारंटी’ नहीं दी गई है। गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘राफेल मामले में ताजी कड़ी सामने आई है। (सौदे को लेकर) फ्रांस की सरकार ने कोई गारंटी नहीं दी है। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि फ्रांस की सरकार ने भरोसेमंद बने रहने के लिए एक पत्र दिया है।’’उन्होंने सवाल किया, ‘‘क्या यह सरकारों के बीच समझौता कहे जाने का पर्याप्त आधार है?’’इससे पहले कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी बैंक गारंटी/ सरकारी गारंटी के मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री पर निशाना साधा। सुरजेवाला ने दावा किया, 'प्रधानमंत्री ने बैंक गारंटी को माफ कर दिया जो देश की सुरक्षा से खिलवाड़ है। जबकि कानून मंत्रालय ने राय दी थी कि बैंक गारंटी फ्रांस की सरकार से ली जाए।"
 
उन्होंने कहा, 'सात मार्च 2016 को तत्कालीन रक्षा मंत्री ने कानून मंत्रालय की राय से अलग राय रखने से इनकार कर दिया। एयर अक्वेजिशन विंग ने साफ कहा कि बैंक गारंटी के बगैर सौदा नहीं हो सकता। लेकिन मोदी जी कहते हैं कि बैंक गारंटी की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कानून मंत्रालय, एयर अक्वेजिशन विंग और अपने रक्षा मंत्री की राय को खारिज कर दिया।' उन्होंने सवाल किया कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय हित से समझौता क्यों किया?। कांग्रेस एवं राहुल गांधी के ताजा आरोपों पर सरकार या भाजपा की तरफ से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 के लिए चुनाव अभियान तेज हो गया है। इसी कड़ी में आज का दिन बहुत अहम है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी राज्य में चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी नरेंद्र मोदी 16 से 25 नवंबर के बीच पांच दिन मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे। प्रदेश में 28 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने हैं। 

 

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व सांसद राकेश सिंह ने प्रधानमंत्री के दौरे की जानकारी देते हुए बृहस्पतिवार को बताया कि निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री 16 नवंबर को दोपहर 2 बजे शहडोल एवं शाम 05.05 बजे ग्वालियर में चुनावी जनसभा को संबोधित करेंगे। 

उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी 18 नवंबर को छिंदवाड़ा और इंदौर में, 20 नवंबर को झाबुआ और रीवा में, 24 नवंबर को मंदसौर और छतरपुर में और 25 नवंबर को विदिशा और जबलपुर जिलों में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। 

वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी आज देवरी, बरघाट, मंडला, शहडोल में जनसभाओं को संबोधित करेंगे और रात में शहडोल में करेंगे। इनके अलावा बीजेपी अध्यक्ष शाह गुरुवार को राज्य में रहे, शुक्रवार को फिर विमान द्वारा खजुराहो पहुंचेंगे। उसके बाद टीकमगढ़, सागर और दमोह में जनसभा को संबोधित करने के बाद खजुराहो होते हुए दिल्ली रवाना हो जाएंगे। 

मोदी की छवि का फायदा उठाकर भाजपा चौथी बार प्रदेश में सत्ता हासिल करने के लिये पुरजोर प्रयास कर रही है। प्रदेश के दोनों मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस की नजर मोदी के प्रदेश के चुनावी दौरों पर है। 

प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने दावा किया कि प्रदेश में मोदी के चुनावी दौरों से कोई असर नहीं होने वाला है। उन्होंने कहा कि भाजपा के पिछले 15 सालों के शासन के कारण जनता में प्रबल सत्ता विरोधी लहर चल रही है। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस इस चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली है। 

वहीं भाजपा प्रवक्ता अनिल सौमित्र ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी करिश्माई नेता हैं और उनके प्रदेश में चुनावी दौरों के बाद भाजपा को बहुत फायदा होगा। उन्होंने कहा कि भाजपा ने इस बार "अबकी बार 200 पार" का लक्ष्य रखा है। मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं।

छत्तीसगढ़ की सत्ता पर दोबारा काबिज होने के लिए डॉ. रमन सिंह को इस बार अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर पिछला प्रदर्शन दोहराना होगा। इसी समुदाय ने 2013 में भाजपा को सत्ता में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 10 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं और इन सीटों को लेकर कांग्रेस-भाजपा में जबरदस्त लड़ाई रहती है। 

 

2013 चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जनजाति यानि एसटी आरक्षित सीटों पर करारा झटका लगा था। उसे 29 सीटों में से महज 11 पर ही जीत मिली थी। इस झटके की भरपाई उसने एससी आरक्षित 10 में से 9 सीटें जीतकर कर ली थी। छत्तीसगढ़ की कुल आबादी में एससी वर्ग 14 फीसदी है। ये आबादी मुख्य तौर पर आदिवासी बहुल उत्तरी और दक्षिणी हिस्से में रहते हैं।

इनकी बड़ी आबादी सतनामी संप्रदाय को मानती है जो एक सुधारवादी आंदोलन की तरह चला था और इसकी स्थापना 19वीं सदी में गुरु घासीदास ने रखी थी।  

2013 में रमन सिंह ने जबरदस्त रणनीति अख्तियार करते हुए 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उन्होंने सतनाम संप्रदाय के बाबा बालदास के जरिए एससी बहुल सीटों पर 20 उम्मीदवार खड़े करवा दिए थे। बालदास को प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर भी मुहैया कराया गया था। हालांकि उनके उम्मीदवार को कोई भी सीट नहीं मिली, लेकिन इसने कांग्रेस का खेल जरूर बिगाड़ दिया। 

 

 

बालदास ने कांग्रेस का हाथ थामा

हालांकि, इस बार बाबा बालदास भाजपा से खफा होकर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। इस तरह रमन सिंह के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई। लेकिन उन्होंने इसका भी तोड़ निकालते हुए साहू समुदाय के 14 उम्मीदवारों को टिकट दिया है। जबकि कांग्रेस 8 साहू उम्मीदवार और अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने 6 साहू उम्मीदवार उतारे हैं। ओबीसी वर्ग में साहू जाति की हिस्सेदारी 46 फीसदी है। 

जानकार बताते हैं कि रमन सिंह को इस बार बाबा बालदास जैसे लोगों की जरूरत नहीं है। वह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि अजीत जोगी की पार्टी कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाएगी। हालांकि अजीत जोगी ने बसपा से गठबंधन कर चुनाव को बेहद दिलचस्प बना दिया है। अजीत जोगी का मानना है कि उनकी पार्टी कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान पहुंचाएगी। 

लेकिन रमन सिंह सिंह नहीं मानते कि इसका नुकसान भाजपा को होगा। वह अपनी नई रणनीति के साथ तैयार हैं और अगर इस बार भी ये सटीक बैठ गई तो उन्हें लगातार चौथी बार सत्ता में आने से कोई नहीं रोक पाएगा।

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 के लिए प्रचार करने पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि बहुत जल्द भारत नक्सल समस्या से मुक्त होगा। उन्होंने इसकी समय सीमा बताते हुए कहा कि देश में अगले तीन से पांच सालों के अंदर नक्सल समस्या का समाधान हो जाएगा। सिंह ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा और कांग्रेस द्वारा राज्य में मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं घोषित करने पर भी तंज किया। 

 

रायपुर में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत में नक्सलवाद अपने अंतिम दौर से गुजर रहा है। पहले देश के 90 जिले नक्सल प्रभावित थे लेकिन अब 10 से 11 जिले ही नक्सल प्रभावित हैं। 

राजनाथ सिंह से पूछा गया कि कब तक देश से नक्सल समस्या समाप्त होगी। इस पर उन्होंने कहा कि अगले तीन से पांच साल के भीतर भारत नक्सल समस्या से मुक्त हो जाएगा। 

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पहले नक्सली घटनाओं में सुरक्षा बलों की ज्यादा शहादत होती थी। अब मामला उलट गया है और अब नक्सली ज्यादा मारे जा रहे हैं।

उन्होंने नक्सलियों से हथियार छोड़ने और आत्मसमर्पण करने के लिए अपील की। उन्होंने कहा कि आत्मसमर्पण की नीति बहुत अच्छी है। इसे और प्रभावी बनाने का फैसला हमने किया है। 

सिंह ने उम्मीद जताई कि छत्तीसगढ़ में चौथी बार भाजपा की सरकार बनेगी तब नक्सलवाद समाप्त होगा।

राजनाथ सिंह ने कहा कि राज्य में पिछले 15 वर्षों से भाजपा की सरकार है और यहां की जनता का भरोसा भाजपा और मुख्यमंत्री रमन सिंह पर बरकरार है। देश में सभी विपक्षी दलों के प्रति लोगों का विश्वास घटा है। आज कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल विश्वास की कमी के दौर से गुजर रहे हैं।

सिंह ने कहा कि कांग्रेस की हालत और भी कमजोर हो गई है। कांग्रेस को राज्य में मुख्यमंत्री पद का कोई उम्मीदवार नहीं मिला है। राज्य में कांग्रेस की स्थिति बिना दूल्हे की बारात की तरह हो गई है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस ने जो घोषणा पत्र जारी किया है उसका कोई मतलब नहीं है। जो राजनीतिक पार्टी अपना विश्वास खो चुकी है और जिसकी बातों पर भरोसा न हो, ऐसे में उसके घोषणा पत्र का क्या औचित्य है।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने गरीबी हटाने का नारा दिया था लेकिन गरीबी नहीं हटी बल्कि गरीबों को परेशानी हुई। बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया लेकिन इससे गरीबों का भला नहीं हुआ। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंकों का सामान्यीकरण किया तब लोगों को फायदा मिला।

राजनाथ सिंह ने कहा कि कांग्रेस लगातार झूठ का सहारा लेती है और यह झूठ दस दिन भी नहीं चल पाता। कर्ज माफी की बात की जा रही है लेकिन कर्नाटक में किसानों के घरों में वारंट पहुंच रहा है। उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि वह कांग्रेस के घोषणा पत्र के बारे में यही कह सकते हैं कि यह दिवालिया हो चुके बैंक के पोस्ट डेटेड चेक की तरह है।

एक सवाल के जवाब में राजनाथ सिंह ने कहा कि देश में महंगाई दर कम हुई है। पहले जीडीपी से मंहगाई दोगुनी होती थी। अब जीडीपी आगे निकल गई है। दोगुनी होने लगी है।

सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने के बाद से परिवर्तन हुआ है। यहां लोगों को विकास दिख रहा है। यह विकास यहां के रहने वाले लोगों को ही नहीं बल्कि बाहर से आने वाले लोगों को भी दिख रहा है।

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि वह राज्य की जनता से कहना कहना चाहते हैं कि जांचे परखे और खरे उतरे मुख्यमंत्री रमन सिंह ही राज्य का भला कर सकते हैं।

अमेरिका ने भारत पर रूस से एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल खरीदने को लेकर कुछ राहत दे ही है। इसके बाद अमेरिकी प्रशासन से अपने रिश्तों को नियंत्रित करने के लिए भारत ने अमेरिका के साथ एक मेगा सुरक्षा सौदा करने के लिए औपचारिक कदम आगे बढ़ा दिए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक गुरुवार को एनडीए सरकार ने अमेरिकी सरकार को एक पत्र लिखा है जिसमें 13,400 करोड़ रुपये कीमत के 24 एमएच-60 रोमियो हेलीकॉप्टर का सौदा करने की बात कही गई है। ये हेलीकॉप्टर कई भूमिकाओं में काम कर सकते हैं। साथ ही ये तारपीडो और मिसाइल सिस्टम से भी लैस हैं। ऐसा माना जा रहा है कि ये सौदा भारतीय नौसेना को और मजबूत कर सकता है। 

 

2020-2024 तक यह हेलिकॉप्टर भारत को मिल सकते हैं जो भारतीय नौसेना को मजबूत बनाने का कार्य करेंगे। यह फैसला ऐसे समय पर लिया गया है जब चीन के परमाणु और डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन प्रशांत महासागर के क्षेत्र में नियमित अंतराल पर नजर आते रहते हैं। एमएच-60 चॉपर की यह डील सरकार से सरकार के बीच होगी। इनका निर्माण सिरलोस्की-लॉकहीड मार्टिन कंपनी अमेरिका के सैन्य बिक्री कार्यक्रम के अंतर्गत करती है। माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक इस सौदे पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। 2007 से भारत ने अमेरिका से होने वाले सैन्य रक्षा सौदे को 17 बिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया है।

ग्लोबल टेंडर प्रक्रिया के बजाए फ्लेक्सिबल मैनुफैक्चरिंग सिस्टम (एफएमएस) को आसान और साफ-सुथरा माना जाता है। टेंडर प्रक्रिया में काफी समय लगता है और कई बार यह सौदा भ्रष्टाचार के आरोप लगने की वजह से पटरी से उतर जाता है। भारत ने अपने ज्यादातर हथियार सिस्टम अमेरिका से खरीदे हैं। जिसमें एफएमएस कार्यक्रम के तहत सी-17 ग्लोबमास्टर-3 स्ट्रैटिजिक एयरलिफ्टर्स, सी-130 जे सुपर हरक्युलिस विमान और एम-777 अल्ट्रालाइट होवित्जर शामिल हैं। हेलिकॉप्टर अधिग्रहण करने का यह कार्य लगभग एक दशक से लंबित था। 

हेलिकॉप्टर को खरीदने के लिए भारत सरकार ने अमेरिकी प्रशासन को 13,500 करोड़ रुपये का 'लेटर ऑफ रिक्वेस्ट' भेज दिया है। यदि पिछले एक दशक का आकलन किया जाए तो बीते 3-4 सालों में अमेरिका भारत को रूस से ज्यादा सैन्य उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है। भारत इन लड़ाकू हेलिकॉप्टर की डील को जल्द से जल्द करना चाहता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने वाले कुछ माओवादियों के खिलाफ पुणे पुलिस ने बृहस्पतिवार को चार्जशीट दाखिल कर दी। आरोपपत्र के मुताबिक माओवादियों ने मोदी की हत्या के अलावा देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए हथियारों की खरीद की भी साजिश रच रहे थे।

 पुलिस ने चार्जशीट में यह भी दावा किया कि पुणे में पिछले साल दिसंबर में यलगार परिषद सम्मेलन का आयोजन और दलितों के ध्रुवीकरण व उन्हें भड़काने की कोशिश इसी रणनीति का हिस्सा थे। चार्जशीट में कहा गया है कि माओवाद समर्थित सम्मेलन ने 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में हिंसा को बढ़ावा दिया था। 5000 पन्ने से ज्यादा की चार्जशीट में सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, रोना विल्सन और सुधीर धावले सहित 10 लोगों के नाम हैं। पांच लोगों को 6 जून को गिरफ्तार किया गया था। 


माना जाता है कि इन पांच नामों के अलावा अन्य माओवादी नेता दीपक उफ मिलिंद तेलतुंबाडे, किशन दा उफ प्रशांत बोस, प्रकाश उर्फ रितुपर्णा गोस्वामी, दीपू और मंगलू भूमिगत हैं। चार्जशीट में कहा गया है कि रोना विल्सन और भगोड़ा किशन दा ने प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रची थी।

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