ईश्वर दुबे
संपादक - न्यूज़ क्रिएशन
+91 98278-13148
newscreation2017@gmail.com
प्रणब की PM को सलाह : किताब में लिखा- असहमत लोगों को भी सुनें मोदी, विपक्ष को राजी करने के लिए संसद में ज्यादा बोलें
पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर्स’ मंगलवार काे बाजार में आ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह देते हुए उन्होंने लिखा कि उन्हें असहमति के स्वर भी सुनना चाहिए। विपक्ष काे राजी करने और देश के सामने अपनी बात रखने के लिए संसद में और ज्यादा बाेलना चाहिए। मोदी की केवल माैजूदगी ही संसद के काम में बहुत बदलाव ला सकती है।
प्रणब ने लिखा, ‘पूर्व प्रधानमंत्रियाें- जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी या मनमाेहन सिंह, इन सभी ने संसद में उपस्थिति महसूस कराई है। प्रधानमंत्री माेदी काे अपने दूसरे कार्यकाल में इनसे प्रेरणा लेकर संसद में माैजूदगी बढ़ानी चाहिए।’ किताब के मुताबिक, ‘मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में संसद को सुचारू रूप से नहीं चला सकी। इसकी वजह उसका अहंकार और अकुशलता है।’
‘नोटबंदी के बारे में नई बताया’
इसी क्रम में आगे लिखा है, ‘मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की, लेकिन इससे पहले मुझसे (तब प्रणब राष्ट्रपति थे) ही इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की। हालांकि, इससे मुझे कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि ऐसी घोषणा के लिए आकस्मिकता जरूरी है।’ पूर्व राष्ट्रपति ने इस बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए लिखा है, ‘मैं UPA सरकार के समय विपक्ष के साथ लगातार संपर्क में रहता था। संसद चलाने का प्रयास करता था। सदनों में पूरे वक्त माैजूद रहता था।’
‘नेपाल की भारत में शामिल होने की ख्वाहिश थी’
प्रणब ने एक और चौंकाने वाला दावा किया है। इसके मुताबिक, ‘नेपाल भारत का राज्य बनना चाहता था, लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इस पर नेहरू की प्रतिक्रिया थी कि नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है। उसे हमेशा ऐसे ही रहना चाहिए।’
प्रणब आगे लिखते हैं, ‘अगर पंडित नेहरू की जगह इंदिरा गांधी होतीं, तो शायद वे अवसर का फायदा उठातीं, जैसा उन्होंने सिक्किम के साथ किया।’ उनकी इस किताब में देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली के बारे में भी तमाम बातें हैं।
प्रणब मुखर्जी 2012 से 2017 तक राष्ट्रपति रहे।
प्रणब मुखर्जी 2012 से 2017 तक राष्ट्रपति रहे।
‘कांग्रेस जान नहीं पाई कि करिश्माई नेतृत्व खत्म हो चुका’
प्रणब के मुताबिक, ‘मुझे लगता है कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस ने पॉलिटिकल फोकस खो दिया। पार्टी ये पहचान नहीं पाई कि उसका करिश्माई नेतृत्व खत्म हो चुका है। यही 2014 के लोकसभा में उसकी हार के कारणों में से एक रहा होगा। उन नतीजों से मुझे यह राहत मिली कि निर्णायक जनादेश आया। लेकिन मेरी पार्टी रही कांग्रेस के प्रदर्शन से निराशा हुई।’
Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.