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माँ होनें के नाते बच्चों के लिए खुद को बदलें

विशेष लेख News Creation बच्चे जब जन्म लेते हैं, कोरे कागज़ की तरह होते हैं और जैसे-जैसे उनका विकास होता जाता है, वे वो सारी चीजें सीखते जाते हैं, जिन्हें देखते, सुनते और महसूस करते हैं।

हर परिवार बच्चे को विशेष पोषण देना चाहता है, एक समय ऐसा भी आता है जब अपने बच्चे की परवरिश ही जीवन का मकसद बन जाता है. सारे जतन के बाद भी अगर लगे कि बच्चे के सर्वांगीण विकास में कमी लग रही है, तो ऐसे में दुखी होने अथवा परिजनों, परिवेश पर दोषारोपण करने के बजाए परिस्थितियों में संतुलन का प्रयास करें।

हर समय बच्चे के साथ रह पाना सम्भव नहीं है इसलिए जब वो आपसे दूर जाए तो कोशिश कीजिए वह आपका फोन नम्बर घर का पता जनता हो किसी बाहरी व्यक्ति से बच्चे के मेलजोल पर नजऱ रखनी चाहिए. उसमे जाती, धर्म, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी जैसी भावनाओं का बीजारोपण करना उसके सम्पूर्ण विकास को बाधित करेगा, किन्तु शुरू से ही अच्छे-बुरे का ज्ञान कराना आवश्यक है।

कई बार बहुत प्रभावशाली अथवा एकदम निकट सम्बन्धी भी बच्चों को बुरी बातें, बुरे व्यवहार सीखाते हैं. या बुरी हरकतें करते हैं। इस तरह की घटनाओं को नजरअंदाज न करें. एक तो उन्हें बहुत समय तक किसी के भी साथ अकेले न रहने दें, यदि कभी रखना भी पड़े उससे उस व्यक्ति के बारे में सामान्य तरह की बातें करें बच्चे को डांटने, डराने-धमकाने या खुद रोने से बचें अभिभावक बच्चों के लिए सर्वशक्तिमान होते हैं. उनका रोना बच्चों को कमजोर कर देता है।

यदि कोई बच्चों के साथ कुछ भी असामान्य व्यवहार करता है, उसे और उससे सम्बंधित किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति से सीधी बातें करें. बात बिगड़े उससे पहले ही सम्हालने की आदत रखें, बच्चे बहुत मासूम होते हैं उन्हें बड़ों की बड़ी-बड़ी बातें समझ नही आतीं, उनसे उनके उम्र के हिसाब से ही व्यवहार करें. उनपर अपने सपनो की गठरी न लादें याद रखिए, जो काम आप नहीं कर पाए उसे बच्चे पर न थोपें उसे वही करने दें जो वह आसानी से आनन्दपूर्वक कर सकता है।

अधिकांश घरों में बच्चों के लालन पालन की सम्पूर्ण जिम्मेदारी माँ पर होती है। माँ बच्चों के बीच काफी हद तक आपसी समझ भी होती है, लेकिन जब वही बच्चे बड़ी कक्षा में पढ़ते हैं और कुछ खास तरह की शिक्षा की मांग करते हैं तब पिता द्वारा धनोपार्जन, पारिवारिक प्रतिष्ठा इत्यादि के नाम पर अपनी पसंद लाद दी जाती है।

प्रायः देखा जाता है इन परिस्थितियों में माँ खास कर गृहणी के विचारों को कोई महत्व नहीं दिया जाता. अपने बच्चों को एक स्वतंत्र व्यक्ति समझे न कि अपने खानदान का प्रतीक चिन्ह उसे वही करने दें जो वह करना चाहता है।

लेख- नीता झा

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