ईश्वर दुबे
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Bhilai
17 फरवरी का दिन भारतीय सेना में महिला अधिकारियों के स्थाई कमीशन मामले में उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के लिए जाना जाएगा। न्यायालय ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखा है जिसके तहत अब सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी नियुक्ति मिल सकेगी। सेना में महिला हक की बराबरी के लिए यह फैसला काफी दूरगामी है। दरअसल स्थायी नियुक्ति का यह मामला तब चर्चा में आया था जब केंद्र सरकार ने एक हलफनामे में कहा था कि सेना में 14 साल की सेवा (शॉट सर्विस कमीशन) पूर्ण कर चुकी महिला अधिकारियों को 20 साल तक सेना में बने रहने की अनुमति दी जाएगी ताकि वह पेंशन के लिए योग्य हो जाएं। इसका मतलब यह था कि 20 साल की सेवा में उन्हें स्थायी नियुक्ति नहीं दी जाएगी। इस फैसले के खिलाफ महिला सेना अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए कहा था कि महिलाओं को स्थायी कमीशन नहीं देने का फैसला उन्हें अत्यंत पीछे ले जाने वाला कदम है।
अब सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन को मंजूरी के लिए आदेश दिया है बल्कि इस मामले में केंद्र सरकार के रुख के लिए उसे फटकार भी लगाई। कहा कि सशस्त्र बलों में लिंग आधारित भेदभाव खत्म करने के लिए सरकार की ओर से मानसिकता में बदलाव जरूरी है। सेना में महिला अधिकारियों को कमान पोस्ट देने पर पूरी तरह रोक अतार्किक और समानता के अधिकार के खिलाफ है।
अब नए फैसले के बाद महिला अधिकारी सेना में कमांड पोस्ट पर नियुक्ति के लिए पात्र होंगी। केवल कॉम्बैट रोल पर कोर्ट ने फैसला सेना पर छोड़ा है। कॉम्बेट रोल का मतलब है जंग में सीधे शामिल होने वाली जिम्मेदारियां। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सेना में अब महिला अधिकारी अपनी पसंद के आधार पर कमांड पोस्ट पर जा सकती हैं, जो कि महिला अधिकारों की लड़ाई की बड़ी जीत है। महिला अधिकारों पर समाज में अब काफी बदलाव आया और इस बारे में खुले मन से विचार करने की जरूरत है। इससे पहले कई वर्ष पूर्व एयर इंडिया की एक फ्लाइट में दोनों पायलट महिला होने के चलते जब यात्रियों ने उड़ान का विरोध किया था तो महिला अधिकारों और समानता की बात उठी थी। बाद में एयर इंडिया ने यूरोप की एक लंबी उड़ान में दोनों महिला पायलट के हाथ में फ्लाइट देने के साथ तब महिला अधिकारों पर बड़ा फैसला लिया था। बदलते सामाजिक दौर में अब महिला अधिकारों और समाज में उनकी समानता को लेकर बड़े निर्णय हो रहे हैं। उच्चतम न्यायालय के आज के फैसले ने उन्हीं निर्णयों पर मुहर लगा दी है क्योंकि सेना की जिम्मेदारी किसी भी अन्य जिम्मेदारी से बहुत बड़ी है। यह फैसला महिला सशक्तिकरण की दिशा में सटीक है। अब सरकार को देर नहीं करनी चाहिए। दुनिया में बहुत से देश ऐसे हैं जहां पर सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया जाता है भारत में अभी तक ऐसा नहीं था। सेना में स्थायी कमीशन दिए जाने को लेकर एक केस दिल्ली हाईकोर्ट में फाइल किया गया था। इस पर दिल्ली हाइकोर्ट ने फैसला दिया था कि महिलाओं को कमीशन दिया जाना चाहिए। उसके बाद केंद्र की ओर से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी। इससे सेना में काम कर रही महिला अधिकारियों में खुशी है। इसमें कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार युद्ध क्षेत्र को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्रों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमान देने के लिए बाध्य है। साथ ही ये भी लिखा कि सामाजिक और मानसिक कारण बताकर महिलाओं को इस अवसर से वंचित करना भेदभावपूर्ण है, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। दुनिया के बहुत से देश ऐसे हैं जहां सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया जाता है। भारतीय सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन के मिलने से अब वो बराबरी का हक पा सकेंगी। इससे महिलाओं का न केवल रक्षा के क्षेत्र में डंका बजेगा बल्कि सभी सेवा कर्मियों के लिए अवसर की समानता भी उपलब्ध होगी। दरअसल दुनिया के कई देशों में सेना में कार्यरत महिला अधिकारियों को पहले सिर्फ न्यायाधीश एडवोकेट जनरल और सेना शिक्षा कोर में ही स्थायी कमीशन दिया जाता था, इसके बाद इनकी संख्या में बढ़ोतरी की गई। एक बात ये भी है कि युद्ध क्षेत्र में महिलाओं को तैनाती नहीं दी जाएगी। महिला अधिकारियों को सेना में शार्ट सर्विस कमीशन के द्वारा 14 साल की नौकरी करने के बाद सबसे बड़ी मुश्किल दुबारा से रोजगार मिलने की होती थी। इनको पेंशन भी नहीं मिलती है जिससे इनके सामने रिटायरमेंट के बाद रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाता है। इसके अतिरिक्त भी कई ऐसी सुविधाएं हैं जो इन महिला अधिकारियों को नहीं मिल पा रही थीं। अब स्थायी कमीशन लागू हो जाने के बाद उन्हें सुविधाएं और पेंशन दोनों मिल सकेगी।
ईएमएस/ 21 फरवरी 2020