संयंत्र की रक्षा सीटू की पहली प्राथमिकता Featured

भिलाई। हिंदुस्तान स्टील एम्पलाइज यूनियन सीटू ने बताया कि संयंत्र की रक्षा सीटू की पहली प्राथमिकता है. सीटू इस बात को  इसीलिए  बार-बार दोहरा रहा है  क्योंकि  संयंत्र  में  नया प्रोजेक्ट आने के बाद भी  जिस तरीके की स्थितियों का निर्माण किया जा रहा है  एवं  उन स्थितियों से संयंत्र को सुरक्षित बाहर निकालते हुए उत्पादन को बढ़ाने की बजाय  संयंत्र के छोटे छोटे इकाइयों को  संचालन हेतु  ठेका अथवा आउट सोर्स किया जा रहा है वह संयंत्र के लिए ठीक नहीं है। क्योंकि हमारी पूरा जीवन इस संयंत्र से जुड़ा हुआ है, हमें वेतन से लेकर टाउनशिप तक, शिक्षा से लेकर चिकित्सा तक, सब कुछ  इसी संयंत्र की बूते पर मिलता है। इसीलिए हर हाल में संयंत्र को बचाना एवं उसके उत्पादन को बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। सीटू नेता ने कहा की वर्तमान सरकारें जिस तरह की नीतियों को अपना रही है, उससे यह स्पष्ट है कि वह सार्वजनिक उद्योगों को चलाना नहीं चाहती है। इसीलिए मौजूदा केंद्र सरकार के मुखिया की तरफ से बहुत पहले ही यह बयान आ चुका है कि सार्वजनिक उद्योग पैदा होते हैं मरने के लिए द्य इस तरह की सोच, एवं अपनाई जा रही नीतियां यह स्पष्ट कर देती हैं कि यही स्थिति जारी रही  तो सार्वजनिक उद्योग क्रम से खत्म होते चले जाएंगे। सीटू ने1991 के तत्कालीन सरकार द्वारा दिए गए बयान एवं लागू की गई नई आर्थिक एवं औद्योगिक नीतियों का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र में मौजूद दोनों प्रमुख पार्टियां नई आर्थिक एवं औद्योगिक नीतियों के पक्षधर हैं। अर्थात 1991 में एक पार्टी ने प्रमुखता के साथ नई आर्थिक व औद्योगिक नीति को संसद के पटल पर रखा था एवं दूसरी प्रमुख पार्टी ने बिना किसी लाग लपेट के स्पष्ट रूप से उन नीतियों का समर्थन किया था। इसके साथ ही देश के अंदर फिर से निजीकरण का दौर शुरू हो गया एवं सार्वजनिक उद्योगों को धीरे-धीरे ही सही खत्म कर देने के मंसूबों पर मुहर लग गई । तब से लेकर आज तक सीटू सहित कुछ ट्रेड यूनियन ने लगातार सार्वजनिक उद्योगों के रक्षा के लिए संघर्षरत हैं। सीटू का मानना है कि जब पूरी की पूरी सरकार ही सार्वजनिक उद्योगों के खिलाफ कमरकस के खड़ी हो गई है तब सार्वजनिक उद्योगों की रक्षा करते हुए अपने रोजगार को बचाने के लिए मजदूरों के सामने संघर्ष ही एकमात्र विकल्प है। क्योंकि संघर्षों को तेज करते हुए मजदूरों की आवाज को बुलंद किए बिना सार्वजनिक उद्योगों की रक्षा करना लगभग नामुमकिन सा प्रतीत हो रहा है। सीटू नेता ने कहा कि आजादी के बाद से ही सार्वजनिक उद्योग देश की रीड है जब देश आजाद हुआ, तब टाटा का एक स्टील प्लांट हुआ करता था उसको छोड़कर हमारे देश के अंदर सुई से लेकर सभी किस्म के उत्पाद विदेश से बनकर आते थे,तब देश की आर्थिक स्वतंत्रता एवं विकास के लिए जनता के पैसे से  जनता के द्वारा जनता के लिए सार्वजनिक उद्योगो की कल्पना की गई। जिसके तहत सर्वप्रथम भिलाई इस्पात संयंत्र तत्कालीन समाजवादी देश सोवियत रूस की मदद से आया, उसके बाद देश में आए सार्वजनिक उद्योगों ने तब से लेकर अब तक विकास के रास्ते को तय करते हुए देश को इस मुकाम तक लाए हैं।
आज चंद बड़े पूंजीपति एवं उनकी नुमाइंदगी करने वाली सरकारें सार्वजनिक उद्योगों को खत्म कर देश की रीड की हड्डी तोडऩा चाहते है कर्मियों एवं देश की जनता के सामने इस बात को साबित कर चुका है, कि केंद्र सरकार की एजेंडा में प्राथमिकता के तौर पर सार्वजनिक उद्योगों को खत्म कर देने की बात स्पष्ट है।
  इसीलिए यदि सरकार वापस आती है तो निश्चित रूप से सार्वजनिक उद्योगों के निजीकरण एवं पूरी तरीके से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की प्रक्रिया प्रारंभ होगी, जिसे अब हम सच होता देख रहे हैं। केंद्र सरकार शपथ लेते ही नीति आयोग के माध्यम से 46 उद्योगों को निजी करने एवं 51 उद्योगों मैं शत-प्रतिशत प्रत्यक्षविदेशी निवेश को बढ़ाने संबंधी वक्तव्य जारी किया है जो कि सार्वजनिक उद्योग के संदर्भ मे देश के हित में नहीं है।

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