ईश्वर दुबे
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Bhilai
बच्ची के पिता केंद्रीय कारागार में सजायाफ्ता कैदी, पिछले दिनों कलेक्टर ने जेल में बच्ची से मुलाकात की थी
बच्ची ने पढ़ाई की इच्छा जताई, तो कलेक्टर जेल से लेकर स्कूल पहुंचे
कलेक्टर की पहल पर जेल में रह रहे 17 अन्य बच्चों की भी स्कूल एडमिशन प्रक्रिया शुरू
बिलासपुर. केंद्रीय जेल में सजायाफ्ता कैदी की बेटी खुशी (बदला नाम) अब सलाखों के पीछे नहीं रहेगी। उसे रहने के लिए हॉस्टल और एक बेहतर माहौल मिलेगा। जहां वह अपने सपनों का भविष्य तैयार करेगी। स्कूल खुलने के पहले दिन कलेक्टर डॉ. संजय अलंग खुद सेंट्रल जेल से खुशी का एडमिशन कराने स्कूल लेकर पहुंचे। स्कूल जाने के लिए खुशी सुबह से ही तैयार हो गई थी। अब वह जैन इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ाई करेगी।
जेल में इच्छा पूछी तो बोली- स्कूल में पढ़ाई करना चाहती हूं
केंद्रीय जेल में बंद एक सजायाफ्ता कैदी की 6 साल की बेटी खुशी (बदला हुआ नाम) की शिक्षा शहर के जैन इंटरनेशनल स्कूल में होगी । स्कूल जाने के लिए पहले दिन जब वह केंद्रीय जेल से स्कूल के लिए रवाना हुई तब उसके पिता की आंखें नम थीं, लेकिन खुशी स्कूल जाने के लिए खुश थी। इसकी शुरूआत तब हुई जब कलेक्टर डॉ. संजय अलंग एक दिन केंद्रीय जेल का निरीक्षण करने पहुंचे थे।
उन्होंने महिला बैरक में महिला कैदियों के साथ छोटी सी बच्ची को भी देखा । बच्ची से पूछने पर उसने बताया कि जेल से बाहर स्कूल में पढ़ाई करना चाहती है। कलेक्टर ने बच्ची से स्कूल में पढ़ाने का वादा किया और शहर के स्कूल संचालकों से बात की । इसके बाद जैन इंटरनेशनल स्कूल के संचालक खुशी को एडमिशन देने को तैयार हो गए। आमतौर पर स्कूल जाने के पहले दिन बच्चे रोते हैं। लेकिन खुशी आज बेहद खुश थी।
स्कूल जाने की ललक से उसकी खुशी दोगुनी हो रही थी। अब वह सलाखों की जगह स्कूल के हॉस्टल में रहेगी। खुशी के लिए विशेष केयर टेकर का भी इंतजाम किया गया है। स्कूल संचालक अशोक अग्रवाल ने कहा है कि खुशी की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा स्कूल प्रबंधन ही उठाएगा। खुशी को स्कूल छोड़ने जेल अधीक्षक एसएस तिग्गा भी गए। कलेक्टर की पहल पर जेल में रह रहे 17 अन्य बच्चों को भी जेल से बाहर स्कूल में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
महिला कैदियों के साथ रह रही थी खुशी
खुशी के पिता केंद्रीय जेल बिलासपुर में एक अपराध में सजायाफ्ता कैदी हैं। खुशी के पिता ने पांच साल की सजा काट ली है और उसे पांच साल और जेल में रहना है। खुशी जब पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की मौत पीलिया से हो गई थी। पालन पोषण के लिए घर में कोई नहीं था। इसलिए उसे जेल में ही पिता के पास रहना पड़ रहा था। जब वह बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला कैदियों को दे दिया गया। वह जेल के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ रही थी।