पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में आयोजित दो-दिवसीय राष्ट्रीय ज्ञानकुंभ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उद्घाटन किया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 9 बजकर 15 मिनट पर जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचे। जहां से वह एमआई-17 हेलीकॉप्टर से पतंजलि के लिए रवाना हो गए। जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राष्ट्रपति का स्वागत किया। इसके बाद हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ पहुंचकर राष्ट्रपति ने ज्ञानकुंभ का उद्घाटन किया। मंच का संचालन श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विवि के कुलपति डॉ. यूएस रावत ने किया। राष्ट्रपति के साथ देश की प्रथम महिला सविता कोविंद भी हरिद्वार पहुंची हैं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कार्यक्रम में कहा देवभूमि उत्तराखंड के खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण के बीच ज्ञानकुंभ में आकर हर्ष महसूस हो रहा है। हरिद्वार कुंभ के आयोजन की पावन भूमि रही है। आधुनिक ज्ञान और शिक्षा में योग के महत्व को बढ़ाने में स्वामी रामदेव का योगदान महत्वपूर्ण है। आज भारत और विश्व में योग को घर-घर अपनाया जा रहा है। शिक्षा से मेरा आत्मिक जुड़ाव रहा है। इस आयोजन का मकसद उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है। यहां दो दिन में उच्च शिक्षा और भारतीय ज्ञान परंपरा पर सार्थक विमर्श के लिए मेरी शुभकामनाएं हैं। भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूचि में शिक्षा को अनिवार्य स्थान दिया गया है। यह केंद्र और राज्यों की जिम्मेदारी है। उच्च शिक्षा की गुणवत्ता की अहम जिम्मेदारी प्रबंधन और शिक्षकों पर अधिक होती है। हर बच्चे में कोई न कोई प्रतिभा जरूर होती है। बच्चों को ज्ञान देने के साथ ही संस्कार देना भी शिक्षक की जिम्मेदारी है। हमारे देश मे आदर्श शिक्षकों के अनेक प्रेरक उदाहरण मौजूद हैं। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को शिक्षा और शिक्षा के महत्व की जीती जागती मिसाल हैं। डॉ. कलाम के अंदर का शिक्षक सदैव सक्रिय रहा। राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होते ही वह दोबारा अपने शिक्षण के काम के लग गए। महामना मदन मोहन मालवीय के बिना उच्च शिक्षा को सोचना अधूरा है।उन्होंने कहा किभारतीय विश्विद्यालय में भी रशियन स्टडीज़ आदि के केंद्र स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
इस दौरान स्वामी रामदेव ने कहा कि ज्ञानकुंभ के माध्यम से हमें भारत को वैभवशाली बनाना है। उन्होंने प्रयागराज के महाकुंभ से पहले ज्ञानकुंभ पर सभी का स्वागत किया। कहा कि इस ज्ञानकुंभ से देश मे एक नए प्रकाश का आरोहण होगा। जैसे हमने योग की क्रांति की है, वैसे ही ज्ञान की क्रांति से भारत का डंका पूरी दुनिया में बजाना है।