ईश्वर दुबे
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Bhilai
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पतंजलि (Patanjali) के भ्रामक विज्ञापन मामले में 30 अप्रैल को फिर से सुनवाई हुई. जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानुल्लाह की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की. इस दौरान रामदेव और बालकृष्ण भी पेश हुए. सुनवाई के दौरान पतंजलि की ओर से मुकुल रोहतगी और बलबीर सिंह ने पैरवी की. जबकि उत्तराखंड सरकार की ओर से ध्रुव मेहता पेश हुए. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी को फटकार लगाई. कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापन मामले में अथॉरिटी की निष्क्रियता पर सवाल उठाया.
लाइसेंस को रद्द कर दिया गया था
सुनवाई के दौरान उत्तराखंड स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने कोर्ट को बताया कि पतंजलि और उसकी यूनिट दिव्या फार्मेसी के 14 मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से 15 अप्रैल को रद्द कर दिया गया था. इस पर कोर्ट ने कहा कि इससे पता चलता है कि जब आप कुछ करना चाहते हो तो आप पूरी तेजी से करते हैं. लेकिन जब आप नहीं करना चाहते तो इसमें सालों लग जाते हैं. कोर्ट ने कहा कि इस बार आपने महज 7-8 दिनों में एक्शन लिया. लेकिन आप बीते नौ महीनों से क्या कर रहे थे? अब आप नींद से जागे हो.
कोर्ट ने ये भी पूछा कि आपने जो पतंजलि फार्मेसी की 14 दवाओं का उत्पादन सस्पेंड किया है, वो कब तक है? इस पर आयुष विभाग की तरफ से जवाब दिया गया कि उन्हे संबंधित विभाग के पास तीन महीने के भीतर अपील दाखिल करनी होगी. इस पर कोर्ट ने कहा कि आपको ये सब पहले ही करना चाहिए था.
कोर्ट ने ज्वाइंट डायरेक्टर मिथिलेश कुमार से पूछा कि पिछले नौ महीनों में आपने क्या कार्रवाई की है? इसका हलफनामा दायर करें. अगर पिछले हलफनामे पर जाएं तो आपने कोई कार्रवाई ही नहीं की है. आप बाद में मत कहिएगा कि आपको मौका नहीं दिया गया. कोर्ट ने ड्रग लाइसेंस अथॉरिटी के हलफनामे पर असंतुष्टि जताई. कोर्ट की तरफ से कहा गया कि इस तरह का ढीला रवैया कतई उचित नहीं है. आपको हलफनामा दाखिल करते वक्त कई चीजों का ध्यान रखना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि हम आपका हलफनामा स्वीकार करते हुए एक लाख रुपए का जुर्माना लगाते हैं.