ईश्वर दुबे
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Bhilai
भोपाल। नगरीय निकाय चुनावों से जुड़े विधेयकों (बिल) को लेकर गवर्नर को भेजे गए दो अध्यादेश में से एक को राज्यपाल लालजी टंडन ने मंजूरी दे दी। मेयर के अप्रत्यक्ष चुनाव से जुड़े अध्यादेश को फिलहाल रोक दिया है। इसे लेकर नगरीय विकास मंत्री जयवर्धन सिंह और प्रमुख सचिव संजय दुबे ने राज्यपाल से मुलाकात कर राज्य सरकार का रूख स्पष्ट करने की कोशिश की, जबकि ऑल इंडिया मेयर्स काउंसिल ने इस अध्यादेश का विरोध कर दिया।
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ऑल इंडिया मेयर्स काउंसिल के संगठन मंत्री व पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने शुक्रवार को राज्यपाल से मिलकर इस मामले में कहा कि अप्रत्यक्ष नहीं, सीधे चुनाव होने चाहिए। जैसा की पिछली बार हुआ। राज्यपाल ने जिस एक अध्यादेश को मंजूरी दी है, वह पार्षद प्रत्याशी के हलफनामे से जुड़ा है। यदि किसी भी प्रत्याशी ने हलफनामे में गलत जानकारी दी तो विधानसभा चुनाव की तरह उन्हें 6 माह की सजा और 25 हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है।
कैबिनेट से मंजूरी के बाद राज्य सरकार की ओर से पिछले दिनों दो अध्यादेश राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजे थे। इनमें से एक पार्षद प्रत्याशी के हलफनामे से जुड़ा था व दूसरा मेयर के चुनाव से। मेयर के अप्रत्यक्ष चुनाव के साथ इसमें पार्षदों के एक ही जगह वोटर होने व परिसीमन व चुनाव के बीच कम से कम 6 माह की बाध्यता को दो माह करने का जिक्र है। बताया जा रहा है कि राज्यपाल ने फिलहाल इस पर निर्णय नहीं लिया है। इससे राजभवन व राज्य सरकार के बीच पशोपेश की स्थिति बन गई है।
कोर्ट जा सकती है भाजपा
भाजपा में यह मामला केंद्रीय संगठन तक पहुंच गया है। केंद्रीय भाजपा ने मप्र से पूछ लिया है कि जब मप्र की कांग्रेस सरकार इस तरह का फैसला कर रही है तो पार्टी स्तर से अभी तक क्या किया गया। ऑल इंडिया मेयर्स काउंसिल के संगठन मंत्री गुप्ता को भी शनिवार को दिल्ली बुलाया गया है। पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गुप्ता से पूरी स्थिति की जानकारी ली। इस मामले में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी गुप्ता को बुलाकर स्थितियों की जानकारी ली। फिलहाल प्रदेश भाजपा की ओर से कहा गया है कि वे पुरजोर तरीके से विरोध कर रहे हैं, लेकिन चुनाव कैसे हों, इसका अधिकार राज्य सरकार के पास है। इस पर केंद्रीय संगठन ने कहा कि विरोध के साथ पार्टी हाईकोर्ट में बिल को चुनौती दे।
अब संशोधन की उम्मीद में राज्य सरकार
बताया जा रहा है कि निकाय चुनाव का कार्यकाल दिसंबर तक है। इससे पहले चुनाव होने थे, लेकिन परिसीमन के साथ अन्य कार्रवाई में राज्य सरकार काफी पीछे हो गई है। अब राज्यपाल संशोधन बिल पर मंजूरी में देरी करते हैं तो आगे मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। राज्य सरकार का पूरा कार्यक्रम बिगड़ जाएगा, क्योंकि इसी संशोधन बिल पर सबकुछ निर्भर है।