ईश्वर दुबे
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Bhilai
इन्दौर । धर्म को तिलांजलि देकर मात्र भौतिक विज्ञान से प्राप्त विकास समाज में चकाचौंध तो ला सकता है लेकिन कभी सुखी नहीं बना सकता। श्रीमद भागवत वेदों का निचोड़ है जो भक्तों के हृदय में विवेक का सृजन कर ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति कराता है। इसके श्रवण, मनन और मंथन से प्राणियों के त्रिविध तापों का विनाश होकर सत्य स्वरूप परमेश्वर से साक्षात्कार की अनुभूति संभव है।
ये दिव्य विचार हैं धर्मसभा-विद्वत संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रम्हचारी निरंजनानंद श्री धनंजय शास्त्री वैद्य के, जो उन्होंने साऊथ तुकोगंज स्थित नाथमंदिर पर चल रहे मराठी भागवत सप्ताह में विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। कथा में आज दूसरे दिन प्रातःकालीन सत्संग में संहिता वाचन के बाद प्रश्नोत्तरी का दौर भी चला। इसमें ब्रम्हचारी शास्त्रीजी ने भक्तों की जिज्ञासाओं का संतोषप्रद समाधान करते हुए सप्त नदियों की महत्ता, चातुर्मास व्रत के महत्व, आंवले का महत्व, शुभ-अशुभ और शगुन जैसे विषयों पर प्रकाश डाला तथा विविध देव प्रतिमाओं एवं सिक्कों की विशेषताएं भी बताई।
सांयकालीन सत्र में उन्होंने कहा कि श्रीमद भागवत परमहंस संहिता है। आदिकाल में यह ग्रंथ रोम तक प्रसिद्ध था। रोमन दूत हेलाड्रोनस ने विदिशा में जो गरूड़ स्तंभ स्थापित किया है, वह इसका साक्षी है। यही नहीं, इन्दौर के संग्रहालय में रक्षित रोमन सिक्कों पर अंकित स्वस्तिक चिन्ह भी दुनियाभर में व्याप्त वैदिक संस्कृति का साक्षी है। उज्जैन-इन्दौर से बहने वाली सरस्वती नदी के प्रभाव ने भारत को आज तक बहुत ही प्रतिभावान परमाणु वैज्ञानिक दिए हैं। इनमें ज्योतिर्विद, साहित्यिक, कर्मकांडी, विद्याविशारद और कवि जैसे लोग शामिल हैं। विद्वान वक्ता ने भागवत में आए विमानों का वर्णन भी किया और कपिलोपाख्यान सहित विभिन्न विषयों पर तार्किक बातें बताई। श्रीनाथ मंदिर संस्थान के न्यासी बाबा महाराज तराणेकर, उत्सव प्रमुख मनीष ओक, सचिव संजय नामजोशी आदि ने शास्त्रीजी का स्वागत किया। नाथ मंदिर पर शास्त्रीजी प्रतिदिन सांय 5 से 8 बजे तक भागवत कथामृत की वर्षा करेंगे। अंतुर्ली महाराष्ट्र से माधवनाथ महाराज के अनुयायी एवं सत्यनाथ महाराज के अनन्य शिष्य मनोहरदेव देवनाथ महाराज भी आए हैं। प्रातःकालीन सत्र में सुबह 8 से 10 बजे तक माधवनाथ महाराज के अनुयायियों द्वारा माधवनाथ दीप-प्रकाशग्रंथ का सात दिवसीय पारायण भी होगा। कथा के पांचवें दिन 9 नवंबर को तुलसी विवाह का भव्य आयोजन भी होगा। मंगलवार 12 नवंबर को सुबह सत्यनारायण कथा, होम हवन एवं महाप्रसादी के साथ कार्यक्रम का समापन होगा।