ईश्वर दुबे
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Bhilai
इन्दौर । आज सबसे बड़ी समस्या संस्कारों की है। अक्सर हम बच्चों को दोष देते हैं कि वे संस्कारों से विमुख हो रहे हैं। असल में यह गलती माता-पिता की भी है जो अपने बच्चों को धर्म-शास्त्रों और नैतिक मूल्यों की शिक्षा से वंचित बनाए हुए हैं। आज भारतीय संस्कृति पर पश्चिम का भोगवाद हावी है। समाज उच्छृंखलता की ओर बढ़ रहा है। काम, क्रोध और मोह जैसे विकार हमारी नई पीढ़ी को जकड़ रहे हैं। रामकथा विश्व का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है जिसमें भारतीय संस्कृति और सभ्यता का निचोड़ है। काम के दुरूपयोग से बचकर अनंत आनंद तक पहंुचना है तो राम कथा का आश्रय लेना होगा। राम अखंड ज्ञान है और सीताजी भक्ति और शक्ति का समन्वय। रामकथा श्रवण के साथ मन में उतारकर उसे आचरण में लाने की जरूरत है।
प्रख्यात रामकथाकार, रामायणम आश्रम अयोध्या की दीदी मां मंदाकिनी श्रीराम किंकर ने आज शाम संगम नगर स्थित श्रीराम मंदिर पर रामकथा में सीता-राम विवाहोत्सव के दौरान जनकपुरी में सजे विवाह मंडप, शिवजी के धनुष और उसके पूर्व सीता के प्राकट्य की भावपूर्ण कथा सुनाते हुए उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा में दिनों दिन भक्तों का सैलाब बढ़ रहा है। कथा शुभारंभ प्रसंग पर पार्षद चंदा सुरेंद्र वाजपेयी, अरविंद गुप्ता, योगेंद्र महंत, राजेश भंडारी, लक्की अवस्थी, आलोक दीक्षित आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आरती में गोपीकृष्ण नेमा, गोलू शुक्ला, रवि सोनी, सुरेंद्र वाजपेयी, गोविंद पंवार, प्रफुल्ल कुलश्रेष्ठ, सुरेंद्र मेहता, कपिल कौशल, पृथ्वीसिंह चंदेल, प्रदीप वशिष्ठ एवं विदिशा से आई सतीश्री निरंजनी सहित सैकड़ों भक्तों ने भाग लिया। संगम नगर के इस प्राचीन राम मंदिर परिसर पर प्रतिदिन मानस मंथन का क्रम सांय 4 से 6.30 बजे तक चलेगा तथा उसके पूर्व 3.30 से 4 बजे तक भक्ति संगीत का आयोजन होगा।
जनकपुरी में सजे विवाह मंडप का वर्णन करते हुए दीदी मां ने कहा कि अगहन में शुक्ल पक्ष की पंचमी सीता-राम के विवाह की शुभ तिथि है। इसी उपलक्ष्य में हम यहां सीता-रामजी का विवाह रविवार एक दिसंबर को मनाएंगे। इसके लिए संपूर्ण संगम नगर के घर-घर में तैयारियां शुरू हो गई हैं। उन्होंने कहा कि अनादिकाल से कहा जाता है कि काम और राम एक-दूसरे के शत्रु हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने काम और राम को एक साथ प्रस्तुत किया है। प्रभु राम अयोध्या में जो घोड़ा नचा रहे हैं, वह काम है। जिस काम की लगाम श्रीराम के हाथों में हो, वह काम काम न होकर रामानुगामी हो जाता है। समाज को काम से निषिद्ध कर दिया जाए तो वह नीरस हो जाएगा। काम और राम के समन्वय से ही हम जीवन को सार्थक बना सकते हैं। राम कथा मन, बुद्धि और चित्त पर नियंत्रण रखकर सुनी जानी चाहिए।