ईश्वर दुबे
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Bhilai
नई दिल्ली । पाम और पामोलीन तेल की कीमतें सर्दियों की मांग के कारण बढ़ गई हैं। बीते सप्ताह सभी तेल-तिलहनों की कीमतें मजबूती के साथ बंद हुईं। पाम और पामोलीन तेल के दाम बढ़े हैं, जिसके कारण इसकी आम उपभोक्ता की पहुंच से दूर हो गई है। सूत्रों के अनुसार सोयाबीन और सरसों जैसे तिलहनों की मांग बढ़ने के कारण बाकी तेल-तिलहन की कीमतें भी सुधार रही हैं। पिछले सप्ताह सीपीओ का दाम मजबूती के साथ 1,240-1,245 डॉलर प्रति टन हो गया है। एक साधारण उपभोक्ता के लिए पामोलीन तेल का आयात पहले की तुलना में लगभग 17 रुपये किलो महंगा हो गया है। मौजूदा महंगाई के चलते तेलों की कीमतें बढ़ी हैं, लेकिन तेलों का खपना मुमकिन नहीं है। केवल तेलों के दाम में ही बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। सूत्रों ने बताया कि सोयाबीन के डी-आयल्ड केक की स्थानीय मांग बढ़ रही है और इससे तेल-तिलहनों में सुधार हुआ है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 में कपास की खेती का रकबा घटकर 112.60 लाख हेक्टेयर रह गया है। किसानों के लिए बिनौला खल का दाम वायदा कारोबार में 2,660 रुपये क्विंटल रह गया है, जो मूंगफली किसानों की मुश्किलें बढ़ा रहा है। अब बिनौला तेल का दाम 12,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। इसके अलावा सरसों और सोयाबीन तेलों की कीमतों में भी तेजी देखने को मिली है। मूंगफली तिलहन की कीमत 5,925-6,250 रुपये क्विंटल, और मूंगफली तेल 14,400 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। यह महंगाई सामान्य जनता पर असर डाल रही है, जिससे उन्हें और भी महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ उपभोक्ताओं का बजट बिगड़ रहा है।