ड्रैगन अब बातचीत से नहीं समझने वाला, भारत को कड़ा रुख बरकरार रखना होगा Featured

चीन को लेकर सबसे बड़ी परेशानी यही है कि दोनों देशों के बीच कॉर्प कमांडर स्तर की वार्ताओं के कई दौर हो चुके हैं और उनसे हासिल कुछ नहीं हुआ है। वह हर बार तनाव घटाने के लिए तय किए जाने वाले कई मुद्दों पर सहमति तो प्रकट करता रहा है लेकिन फिर पलट जाता है।

चार महीनों से पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर जारी तनाव को कम करने के लिए पिछले दिनों मास्को में भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच बातचीत हुई थी। उस बातचीत के दौरान बनी पांच सूत्रीय सहमति के बाद कहा जाने लगा था कि यदि तय बिन्दुओं के अनुरूप वार्ता आगे बढ़ती है तो इसके सार्थक परिणाम हो सकते हैं। हालांकि अधिकांश रक्षा विश्लेषकों को दोनों देशों के कटु रिश्तों में बर्फ पिघलने की संभावना कम ही दिखाई दे रही थी। विदेश मंत्रियों की बातचीत के बाद दोनों सेनाओं के लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की वार्ता की ओर भी सभी की नजरें केन्द्रित थीं और उम्मीद जताई जा रही थी कि बीते दिनों ही यह वार्ता हो जाएगी लेकिन पांच दौर की वार्ताओं के बाद चीन ने कोर कमांडर स्तर की अगली बैठक में भाग लेने के लिए सहमति तो जताई लेकिन मिलने के समय और तारीख की उसकी ओर से कोई पुष्टि नहीं की गई है।

चीन को लेकर सबसे बड़ी परेशानी यही है कि दोनों देशों के बीच कॉर्प कमांडर स्तर की वार्ताओं के कई दौर हो चुके हैं और उनसे हासिल कुछ नहीं हुआ है। वह हर बार तनाव घटाने के लिए तय किए जाने वाले कई मुद्दों पर सहमति तो प्रकट करता रहा है लेकिन जब उस पर अमल का समय आता है तो सारा ठीकरा भारतीय सेना पर फोड़ कर वह मुकर जाता है। तमाम आपसी सहमतियों के बावजूद बीते तीन सप्ताह के अंदर ही सीमा विवाद को लेकर चीन तीन बार फायरिंग कर चुका है। विदेश मंत्रियों की वार्ता से पहले रक्षा मंत्रियों की ढाई घंटे चली वार्ता के अगले ही दिन चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों की ओर फायरिंग कर तनाव बढ़ाने के प्रयास किए गए थे और उसके बाद अब एक बार उसने ताबड़तोड़ फायरिंग कर स्थिति को तनावपूर्ण बनाने के कुत्सित प्रयास किए हैं।

भारतीय और चीनी रक्षा मंत्रियों व विदेश मंत्रियों के बीच मास्को में हुई द्विपक्षीय वार्ताओं के बाद भी जमीन पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। सूत्रों के मुताबिक चीन की ऐसी किसी भी साजिश का जवाब देने के लिए भारतीय सेना पूरी तरह से सतर्क, सजग और मोर्चा लेने के लिए तैयार है। हालांकि पहले रक्षा मंत्री और फिर विदेश मंत्री स्तर पर सम्पन्न हुई लंबी-लंबी बैठकों के बाद आभास होने लगा था कि सीमाओं पर तनाव कुछ कम होगा लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए एलएसी पर सेना की तैनाती बढ़ाई गई है और हमारे जांबाज सैनिक किसी भी तरह के टकराव का सामना करने के लिए तैयार हैं। चीन की ओर से किसी तरह के संभावित खतरे को देखते हुए भारत ने सीमा के सभी सेक्टरों पर सेना की मुस्तैदी बढ़ा दी है। चीन के साथ एलएसी पर अपने-अपने सैनिक हटाने और तनाव कम करने के लिए दोनों देशों के बीच वार्ताओं के बाद भी चीन की मक्कारी के कारण ही कोई भी वार्ता सिरे नहीं चढ़ सकी है। इसीलिए अब वार्ताओं के इन दौर के बीच चीन को भारत की ओर से स्पष्ट संकेत दिए जा चुके हैं कि चीनी सेनाओं द्वारा पीछे हटने की स्थिति में ही भारत पीछे हटने पर विचार करेगा।

एलएसी पर चीन की हरकतों से पूरी तरह साफ हो चुका है कि वह अपनी विस्तारवादी नीतियों को और आगे बढ़ाने की राह पर ही अग्रसर है। गत दिनों लोकसभा में रक्षा मंत्री द्वारा दिए गए बयान के मुताबिक चीन ने 1962 में भारत की 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि के अलावा अक्साइ चिन इलाके पर भी कब्जा कर लिया था। उसकी विस्तारवादी नीतियों को इसी से समझा जा सकता है कि भारत के इतने बड़े भू-भाग पर कब्जे के बाद भी वह भारत की करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर अपना दावा जता रहा है और अरुणाचल प्रदेश को भी तिब्बत का ही हिस्सा बताने लगा है। पाकिस्तान के साथ भारत के विवाद का मामला हो या अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत से जुड़ा अन्य कोई भी मसला, ड्रैगन हर समय हर मंच पर खुलकर भारत के खिलाफ खड़ा दिखाई दिया है। संयुक्त राष्ट्र में भी उसने सदैव भारत की खिलाफत की है। उसका हरसंभव प्रयास यही रहा है कि येन-केन-प्रकारेण भारत के तमाम पड़ोसी देश भारत को अपना दुश्मन समझने लगें और उससे दूरियां बढ़ा लें। हालिया भारत-नेपाल विवाद भी पूरी तरह चीन की ही देन है।

ड्रैगन इस समय इसलिए भी बुरी तरह बौखलाया हुआ है क्योंकि हमारे जांबाजों ने पूर्वी लद्दाख की ऊंची चोटियों पर अपनी चौकियां बना ली हैं, जिससे निचले इलाकों में ड्रैगन के सैनिकों की गतिविधियों की सटीक जानकारी भारत को रहेगी। इसी बौखलाहट का नतीजा है कि उसने एलएसी पर भारी तादाद में हथियारों और सैनिकों का जमावड़ा कर लिया है। चीनी सेना ‘पीएलए’ पूर्वी लद्दाख में कायम गतिरोध पर सैन्य और राजनयिक वार्ता के जरिये बनी आम सहमति का बार-बार उल्लंघन करती रही है। घुसपैठ की कोशिशों के बीच चीन ने सीमा के आसपास अपनी सेना का जमावड़ा बढ़ाया है और तमाम हथियार तैनात किए हैं। टकराव की आड़ में ड्रैगन एलएसी के करीब अपनी सैन्य तैयारियां बढ़ा रहा है और इसीलिए भारत द्वारा भी अब अरुणाचल से लेकर लद्दाख तक पूरे इलाके में एलएसी पर सेना को हाई अलर्ट मोड पर रखा गया है और लद्दाख इलाके में सैनिकों तथा हथियारों की संख्या बढ़ाते हुए सैन्य ताकत को बढ़ाया गया है।

भारतीय वायुसेना द्वारा रात के समय भी गश्त बढ़ाकर पहले ही ड्रैगन को संदेश दिया जा चुका है कि वह पर्वतीय इलाकों में उसके किसी भी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है। अपाचे और चिनूक जैसे अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर एलएसी के आसपास कड़ी निगरानी कर रहे हैं। सुखोई, जगुआर तथा मिराज जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान पहले से ही लद्दाख इलाके में तैनात हैं। इनके अलावा मिग-29के की स्क्वाड्रन भी वहां तैनात की जा चुकी है। पिछले दिनों कंधे पर लांचर के जरिये दागी जाने वाली मिसाइलें भी तैनात की गई हैं। टी-90 भीष्म टैंक, होवित्जर तोपें और बख्तरबंद वाहन भी तैनात किए जा चुके हैं। हाल ही में अमेरिकी अखबार न्यूजवीक ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि भारतीय सैनिक निर्भीकता से नएपन का प्रदर्शन कर रहे हैं। ड्रैगन के अड़ियल रवैये को देखते हुए स्पष्ट है कि अभी लंबे समय तक भारत-चीन सीमा विवाद के सुलझने के कोई आसार नहीं हैं और वह जिस प्रकार की घुसपैठ की हरकतें कर रहा है, ऐसे में उसके द्वारा लगातार पैदा की जा रही चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें पूरी तरह चौकस रहना होगा। हालांकि हाल के दिनों में जिस प्रकार हमारे जांबाज सैनिकों द्वारा ऊंची पहाडि़यों पर कब्जा किया गया है, उससे चीनी सेना पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ा है लेकिन उसकी फितरत हमेशा धोखे और वादाखिलाफी की रही है, इसीलिए भारत द्वारा एक-एक कदम फूंक-फूंककर रखा जाना बेहद जरूरी है।

-योगेश कुमार गोयल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)

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