ईश्वर दुबे
संपादक - न्यूज़ क्रिएशन
+91 98278-13148
newscreation2017@gmail.com
Shop No f188 first floor akash ganga press complex
Bhilai
बीजेपी की नजर अल्पसंख्यकों के इतर बहुसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण और छोटे जाति समूहों को साध कर जीत की राह आसान करने की है। भाजपा अपने इसी पुराने दांव से एक बार फिर से पश्चिम यूपी में जीत का सिलसिला जारी रखना चाहती है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रथम दो चरण का चुनाव प्रदेश की भावी सियासत एवं भारतीय जनता पार्टी-समाजवादी पार्टी सहित तमाम दलों और उनके ‘आकाओं’ के लिए भी काफी महत्त्व वाला माना जा रहा है। प्रथम दो चरणों की जंग पश्चिमी यूपी और रूहेलखंड के कुछ हिस्सों में लड़ी जाएगी। यह वही इलाका है जहां नये कृषि कानून के खिलाफ काफी तीखा साल भर तक चलने वाला किसान आंदोलन देखने को मिला था। हालांकि किसान आंदोलन खत्म हो गया है, लेकिन अटकलों का दौर जारी है। यहां विपक्ष को लगता है कि बीजेपी से किसानों की नाराजगी उनकी झोली वोटों से भर देगी। 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नतीजों ने प्रदेश में बीजेपी सरकार के लिए राह बनाई थी। तब पश्चिमी यूपी में 26 जिलों की 136 विधानसभा सीटें जिसमें मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, आगरा समेत कई जिले आते हैं उसमें 136 सीटों में से 109 सीटें बीजेपी के खाते में आई थीं। पश्चिमी यूपी में 20 फीसदी के करीब जाट और 30 से 40 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इन दोनों समुदायों के साथ आने से करीब 50 से ज्यादा सीटों पर जीत लगभग तय हो जाती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को रिकॉर्ड 136 में से 109 सीट मिली थीं जबकि अखिलेश यादव के हिस्से में 20 सीटें ही आई थीं। अबकी से पश्चिमी यूपी में पैर जमाने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ गठबंधन कर लिया है। यदि यहां बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो उसके लिए आगे के पांच चरणों की लड़ाई बहुत आसान हो जाएगी। पिछले तीन चुनावों में यहां बीजेपी का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है, लेकिन इस बार साल भर से अधिक समय तक चले किसान आंदोलन और गन्ना मूल्य के भुगतान में देरी की वजह से किसान बीजेपी से नाराज बताए जा रहे हैं। यहां की बहुसंख्यक आबादी जाट और मुसलमानों के एकजुट होने से भी भाजपा की परेशानियां बढ़ी हुई हैं।
सपा-रालोद को लगता है कि जाट और मुसलमानों ने एक साथ वोट कर दिया तो पश्चिम उत्तर प्रदेश में बीते आठ वर्षों से जारी राजनीति की नई इबारत लिखी जाएगी और भाजपा सत्ता से बाहर हो सकती है। इसीलिए भाजपा लगातार यह कोशिश कर रही है कि सपा-रालोद के अरमानों पर कैसे पानी फेरा जाए। बीजेपी की नजर अल्पसंख्यकों के इतर बहुसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण और छोटे जाति समूहों को साध कर जीत की राह आसान करने की है। भाजपा अपने इसी पुराने दांव से एक बार फिर से पश्चिम यूपी में जीत का सिलसिला जारी रखना चाहती है।
गौरतलब है कि करीब 70 फीसदी हिस्सेदारी के कारण आजादी से लेकर साल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले तक इस क्षेत्र की राजनीति जाट, मुस्लिम और दलित जातियों के इर्द-गिर्द घूमती रही थी। हालांकि साल 2014 में भाजपा ने नए समीकरणों के सहारे राजनीति की नई इबारत लिखी। पार्टी न सिर्फ अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ बहुसंख्यकों का समानांतर ध्रुवीकरण कराने में कामयाब रही, साथ ही दलितों में सबसे प्रभावी जाटव बिरादरी के खिलाफ अन्य दलित जातियों का समानांतर ध्रुवीकरण कराने में भी सफल रही थी। इसलिए अबकी से भी भाजपा ने पिछड़ों और दलितों पर बड़ा दांव चला है। पार्टी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अब तक 108 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। इनमें 64 टिकट ओबीसी और दलित बिरादरी को दिये गये हैं। दरअसल इसके जरिए भाजपा पहले की तरह गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों को साधे रखना चाहती है। इसलिए पार्टी ने कई टिकट गुर्जर, सैनी, कहार-कश्यप, वाल्मिकी बिरादरी को दिये हैं। सैनी बिरादरी 10 तो गुर्जर बिरादरी दो दर्जन सीटों पर प्रभावी संख्या में है। कहार-कश्यप जाति के मतदाताओं की संख्या 10 सीटों पर बेहद प्रभावी है।
पश्चिमी यूपी बीजेपी के लिए कितना महत्व रखता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में बीते तीन चुनाव से चुनावी रणनीति की कमान वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह के हाथों में ही रहती है। यहां 2013 से पूर्व तक जाट और मुसलमान सामूहिक रूप से किसी भी पार्टी के मतदान करते थे। पर 2013 में सपा राज के समय मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगों के कारण जाट-मुस्लिम एकता पर ग्रहण लग चुका था। बीजेपी ने इसका पूरा फायदा उठाया और चौथी बार भी अमित शाह ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत कैराना से की। इसी क्षेत्र के कैराना से हिंदुओं के पलायन के मुद्दे को भाजपा ने जोर-शोर से उठा कर पिछले तीन चुनावों में बहुसंख्यक मतों का सफलतापूर्वक ध्रुवीकरण कराया था। बीते लगातार तीन चुनाव में यहां बीजेपी की जीत की वजह जाट वोटरों का बीजेपी के साथ आना तो है ही इसके अलावा बीजेपी की बड़ी जीत हासिल करने की एक बड़ी वजह भाजपा की दलितों-मुसलमानों-जाटों के इतर अन्य छोटी जातियों के बीच पैठ बनाना भी रही थी। इस क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों में कश्यप, वाल्मिकी, ब्राह्मण, त्यागी, सैनी, गुर्जर, राजपूत बिरादरी की संख्या जीत-हार में निर्णायक भूमिका रहती है। भाजपा ने करीब 30 फीसदी वोटर वाली इस बिरादरी को अपने पक्ष में गोलबंद कर भी लिया है इसलिए माना जा रहा है कि चुनाव परिणाम चौंकाने वाले होंगे।
-अजय कुमार