ईश्वर दुबे
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Bhilai
कर्ज के जाल में फंसा श्रीलंका इस समय अराजकता के दौर से गुजर रहा है। वहां संकट के समय राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़कर भाग गये। इसके साथ ही गोटाबाया राजपक्षे का नाम उन कुछ राष्ट्राध्यक्षों और शासकों की सूची में शुमार हो गया है जो मुश्किल दौर में अपने देश को बेहाली की स्थिति में छोड़कर भागे हैं। अभी पिछले साल ही दुनिया ने देखा था कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद जब तालिबानी लड़ाके काबुल की ओर बढ़ रहे थे तो कैसे रातोंरात राष्ट्रपति अशरफ गनी अफगानिस्तान छोड़कर भाग खड़े हुए थे। ऐसे ही उदाहरण पाकिस्तान में भी अक्सर देखने को मिलते हैं जब वहां सत्ता में बदलाव होने पर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री देश छोड़कर चले जाते हैं। देखा जाये तो एक ओर गोटाबाया राजपक्षे और अशरफ गनी जैसे शासक हैं जो संकट के समय सिर्फ अपनी जान और माल की परवाह करते हैं तो दूसरी ओर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की हैं जोकि रूस की ओर से महीनों पहले छेड़े गये युद्ध का डटकर सामना कर रहे हैं।
विश्व इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण देखने को मिल जायेंगे जिसमें जनता के हितों की परवाह नहीं करने वाले, लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाले और खुद को ही सर्वशक्तिमान समझने वाले नेताओं को जनता ने एक दिन सबक सिखाया है। ऐसे देशों में जब-जब सत्ता में बदलाव हुए हैं तब-तब निरंकुश शासकों को जेल, निर्वासन या मृत्युदंड भोगना पड़ा है। बहरहाल, अब अशरफ गनी या गोटाबाया राजपक्षे चाहे जितना भी धन लेकर भागे हों उससे हो सकता है कि उनका जीवन भर गुजारा हो जाये लेकिन विश्व इतिहास में उनका नाम ऐसे भगोड़े शासकों के रूप में लिखा जायेगा जो अपनी जनता को लूट कर और उनको मुश्किलों में छोड़कर भागे हैं। सवाल यह भी उठता है कि यह नेता दूसरे देश में दोयम दर्जे के नागरिक बनकर जब रहेंगे तो कैसे सिर उठाकर चल पायेंगे?
-नीरज कुमार दुबे