ईश्वर दुबे
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Bhilai
अमेरिक−रूस और चीन इस समय दुनिया की तीन महाशक्तियां मानी जाती हैं। इन्हें अपनी ताकत पर घमंड है। थोड़ा बहुत नहीं, बहुत ज्यादा घमंड है। इसी घमंड में की गयी गलतियां इनकी शक्ति की पोल खोलने में लगी हैं। पिछले लगभग एक डेढ़ साल में स्पष्ट हो गया कि ये कितना भी दंभ भरें इनमें छोटे से छोटे देश से लड़ने तक की ताकत नहीं है। एक साल पहले अमेरिका अफगानिस्तान से जिस तरह दुम दबाकर भागा, वह पूरी दुनिया ने देखा। यहां अपनी सेना के लिए एकत्र शस्त्र भी साथ अमेरिकी सेना नहीं ले जा सकी। उन्हें अफगानिस्तान में काबिज होने वाले तालिबान के लिए छोड़ दिया गया। शस्त्र ही नहीं लड़ाकू विमान और दुनिया के सबसे उन्नत हैलिकाप्टर भी अपनी सेना के साथ अमेरिका नहीं ले जा सका। अफगानिस्तान से भागने से पूरे विश्व में उसकी छवि सबसे ज्यादा खराब हुई। उसकी विश्वसनीयता को बड़ी आंच पहुंची।
एक और विश्व शक्ति रूस ने अपने नजदीकी और बहुत छोटे देश यूक्रेन पर लगभग छह माह पूर्व हमला किया। उसके टैंक और तोप पूरी शक्ति से यूक्रेन पर कब्जा करने के लिए बढ़े। रूस ने खूब मिसाइल दागीं। हमला करते समय ही लगा था कि वह हफ्ते−दस दिन में यूक्रेन को तबाह कर देगा। उसे चुटकियों में मसल देगा। और अपनी विजय पताका फहरा देगा। रूस को यूक्रेन से युद्ध करते छह माह से ज्यादा बीत गए। उसकी सेनाएं वहां कुछ भी न कर सकीं। अब पता चला है कि उसकी सेनाएं वापस हो रही हैं। दुनिया की एक बड़ी शक्ति को एक छोटे देश से लड़ते छह माह से ज्यादा हो गए। वह महाशक्ति रूस मुट्ठी भर आबादी के देश यूक्रेन को परास्त नहीं कर सका।
चीन दुनिया की तीन बड़ी ताकतों में से एक है। उसके पास विशाल सेना के साथ ही हैं महाविनाशक हथियार। काफी समय से वह ताइवान पर कब्जा करने की कोशिश में है। चीन के कई बार विरोध जताने के बावजूद अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान पहुंचने के बाद चीन के रवैये से लगा कि वह ताइवान को सबक सिखाकर ही रहेगा। ताइवान के समुद्री क्षेत्र में उसका सैन्याभ्यास भी कुछ ऐसा ही बता रहा था। किंतु वह उछल−कूद कर रह गया। अखाड़े से बाहर ही उछल−कूद की। बर्दाश्त की सीमा निकलती देख इतना जरूर हुआ कि अपनी सीमा में आए चीनी ड्रोन को ताइवान ने मार गिराया। अपना ड्रोन मार गिराए जाने के बाद भी भी महाशक्ति बना चीन चुप्पी साधे रहा। अब अमेरिका ने ताइवान के मामले में अपनी नीति साफ कर दी है। अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने हाल में कहा है कि अगर चीन, ताइवान पर हमला करता है तो उसकी सेना ताइवान की मदद करने को उतरेगी। बाइडेन प्रशासन ने इस बार संकेत में ही अपनी नीति को साफ किया है। अमेरिका का अभी पूरी तरह से पक्ष स्पष्ट नहीं था। यूक्रेन के बारे में भी अमेरिका और नाटो देश ऐसा ही कह रहे थे किंतु रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद वे चुप्पी साध गए। कहने लगे कि उनके सीधे युद्ध में उतरने से युद्ध सीमित न रहकर विश्व युद्ध में बदल जाएगा। हालांकि वे यूक्रेन को शस्त्र और सैन्य उपकरण लगातार दे रहे हैं।
अब तक ताइवान के बारे में भी चीन का यही मानना था। अफगानिस्तान से वापसी के समय से वह ताइवान से कह रहा था कि अमेरिका अपने वायदे पर खरा नहीं उतरा। अफगानिस्तान और उसकी जनता को अधर में छोड़कर वहां से भाग आया। अब अमेरिका के यह स्पष्ट कर देने पर कि ताइवान पर हमला होने की हालत में उसकी सेना ताइवान की मदद करेगी। चीन ने अपने रुख को स्पष्ट कर दिया है। उसका पारा एकदम से आसमान से जमीन पर आ गया। ऐसी पल्टी मारी कि सोचा भी नहीं जा सकता। उसका ताजा बयान आया है कि वह ताइवान को शांति के साथ चीन में मिलाने का पक्षधर है। वह शाक्ति प्रयोग करना नहीं चाहता। पुरानी कहावत है कि दुशमन तभी तक ताकतवर है, जब तक आप चुप हैं, उसकी गलत बात का उत्तर नहीं देते, जिस दिन उत्तर देने पर आ जाएंगे, सामने वाला आपके हौसले देख खुद पीछे हट जाएगा।
-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)