ईश्वर दुबे
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Bhilai
जब भी चुनाव आते हैं तब राजनीतिक दलों में दलबदल तेज हो जाता है। पिछले विधानसभा के चुनाव के दौरान भी बेधड़क दलबदल हुआ था और अब लोकसभा चुनाव के पहले एक बार फिर दलबदल की आहट सुनाई देने लगी है। हालांकि इस बार भाजपा से किसी दूसरे दल में जाने वाले कहीं दिखाई नहीं दे रहे लेकिन अन्य दलों से भाजपा में आने के लिए जरूर बातचीत चल रही है लेकिन कुछ बीजेपी में आए लोगों का हश्र देखकर और कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं का विरोध दलबदल की राह में गति अवरोधक बना हुआ है।
दरअसल, अब देश की राजनीति में दलबदल कोई ऐसा मुद्दा नहीं रहा जिससे कि शर्मिंदगी महसूस हो जिस तरह से राष्ट्रीय राजनीति में नीतेश कुमार ने दलबदल का परिणाम हर बार मुख्यमंत्री बनकर दिखाया है उससे अब वे राजनीतिज्ञ जो लंबा संघर्ष नहीं करना चाहते जो विपक्ष की बजाय सत्ता पक्ष की राजनीति करने में विश्वास रखते हैं वह जरूर इस समय भाजपा में एंट्री करने के दरवाजे तलाश रहे हैं और कुछ विपक्षी नेताओं को भाजपा के नेता ही ऑफर देकर भाजपा में बुला रहे हैं जिससे कि पार्टी के अंदर गुटबाजी के कारण पार्टी के नेताओं को स्थानीय स्तर पर कमजोर करने के लिए विरोधी दल के नेताओं को पार्टी में आमंत्रित कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद पंचायत और नगर निगमों के जनप्रतिनिधि भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं और कुछ महापौर और कुछ जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा ज्वाइन करने की राह पर है।
बहरहाल, मंगलवार को विभिन्न सड़क परियोजनाओं का लोकार्पण एवं भूमिपूजन कार्यक्रम के दौरान जबलपुर में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की उपस्थिति में मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने कांग्रेस विधायक विधायक ओंकार सिंह मरकाम को जिस तरह से पार्टी में आने का ऑफर दिया उनसे कहा कि वह गलत पटरी पर बैठे हैं। मुख्यमंत्री जब ऐसा कह रहे थे तब विधायक ओमकार सिंह मरकाम हाथ जोड़ खड़े हुए और मुस्कुराते रहे। हालांकि बाद में उन्होंने इन सब बातों को बेबुनियाद बताया लेकिन पार्टी में विभिन्न अंचलों में विभिन्न स्तर पर स्थानीय समीकरणों के हिसाब से दलबदल को हवा दी जा रही है और इस दल बादल में कांग्रेस के साथ-साथ बसपा, सपा और आप के नेताओं को भी अपने नेताओं को संभालना मुश्किल हो सकता है क्योंकि भाजपा जिस तरह से हारी हुई बाजी भी जीत रही है उस अन्य दलों के नेताओं का मनोबल टूट रहा है और वे विपक्ष में रहकर संघर्ष करने की बजाय सत्ताधारी दल के साथ जुड़कर राजनीति करने में समझदारी समझ रहे हैं।
कुल मिलाकर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर दलबदल का दौर आने वाला है हवा में वैसे तो कुछ बड़े नाम भी चल रहे हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर समीकरणों के हिसाब से दल बदल किया जा सकता है।