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छत्तीसगढ़ में चुनावी बयानबाजी से गहमागहमी का दौर जारी है। बसपा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के साथ गठबंधन से इनकार कर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जकांछ) के साथ तालमेल किया। इस बीच जकांछ प्रमुख अजीत जोगी का एक ऑडियो वायरल हुआ है जिसमें वे कांग्रेस नेता से अपनी जीत के लिए समर्थन मांग रहे हैं। 

 जकांछ के अध्यक्ष अजीत जोगी दूसरे चरण में मरवाही सीट से चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया है कि मरवाही की जनता का दबाव है। लेकिन इस दौरान जोगी की मरवाही के कांग्रेस नेता दया वाकरे के साथ कथित बातचीत का एक ऑडियो वायरल हो रहा है। इस कथित बातचीत में जोगी वाकरे से अपनी जीत के लिए समर्थन मांग रहे हैं। 


बता दें कि अजीत जोगी जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री थे तब इसी मरवाही सीट से कांग्रेस की टिकट पर उपचुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। मरवाही कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। अब मरवाही के कांग्रेस नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर फोन कर जीताने की उम्मीद करने राजनीतिक पारा चढ़ गया है। 

क्या है इस वायरल ऑडियो में 

इस वायरल ऑडियो में अजित जोगी ने दया वाकरे से कह रहे हैं, "वाकरे जी आप हमेशा साथ दिए हो। फिर लड़ रहा हूं मरवाही से, आपको पूरी ताकत लगानी पड़ेगी, मैं बार-बार नहीं आ पाऊंगा, सब आप लोगों को ही देखना है।"

इस सीट से दया वाकरे ने खुद को कांग्रेस प्रत्याशी बताया तो जोगी ने कहा कि चुनाव का टिकट गुलाब राय को मिल रहा है इसलिए टिकट नहीं मिलेने पर तो वह साथ देंगे ना। 

इस बातचीत में वाकरे जोगी को बाबूजी कहकर संबोधित करते हैं। वाकरे जोगी से कहते हैं आप ही ने तो कांग्रेस में शामिल कराया था। पार्टी से गद्दारी कैसे कर दें। 

वाकरे कहते हैं कि गोड़ समाज की बैठक में तय हुआ है कि समाज से किसी को लड़ाने और जीताना है। इस पर जोगी वाकरे से कहते हैं, "इतना तो कर सकते हो मेरे लिए। न उनका करो न मेरा करो।" 

कांग्रेस नेता दया वाकरे ने इस पूरे वाकये के बारे में कहा कि वे किसी व्यक्ति विशेष से नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं और पार्टी के लिए ही काम करेंगे। साथ ही उन्होंने इस बारे में ब्लॉक अध्यक्ष को भी बता दिया है। 

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हैं। चुनावी राज्यों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। चाय की चौपाल हो या कोई बाजार हर तरफ चुनाव की ही चर्चा है। 90 विधानसभा सीटों वाले छत्तीसगढ़ में मतदाता सबसे पहले अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। पहले चरण में 18 सीटों पर 12 नवंबर को मतदान होना है।

 

पहले चरण की 18 में से 10 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं। बता दें कि राज्य में कुल 51 सीटें सामान्य है जबकि 10 सीटें एससी और 29 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। पहला चरण अपने आप में खास अहमियत रखता है क्योंकि इस चरण में मुख्यमंत्री के अलावा प्रदेश के कई मंत्री और पूर्व मंत्री चुनावी जंग में उतरेंगे। सीएम रमन सिंह के सामने अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला हैं। 

साख का विषय बनी मुख्यमंत्री की सीट 
राजनांदगांव की सीट भाजपा के लिए साख का विषय बनी हुई है। राजनांदगांव की सीट नक्सल के प्रभाव वाली सीट है। कांग्रेस पार्टी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ राजनांदगांव से पूर्व पीएम अटल बिहारी की भतीजी करुणा शुक्ल को मैदान में उतारा है। पिछले विधानसभा चुनाव में राजनांदगांव की 6 सीटों में से कांग्रेस ने 4 जबकि भाजपा ने 2 सीटों पर कब्जा किया था। इसके अलावा पहले चरण की 18 सीटों पर 12 कांग्रेस और 6 सीटों पर भाजपा उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी। 

421 नामांकन पत्र हुए दाखिल
पहले चरण के लिए कुल 421 नामांकन पत्र दाखिल हुए हैं। आखिरी दिन 323 नामांकन पत्र दाखिल किए गए। नामंकन की तिथि खत्म होने के बाद अब चुनाव आयोग आज से नामांकनों की जांच करेगा। बता दें कि पहले चरण के लिए नामांकन वापसी की तिथि 26 अक्टूबर है। 

31 लाख से ज्यादा वोटर्स करेंगे वोट
पहले चरण में 31 लाख 79 हजार 520 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। चुनाव आयोग ने पहले चरण के मतदान के लिए 4,336 मतदान केंद्र बनाने का फैसला किया है। 

पहले चरण में ताल ठोकेंगे ये प्रत्याशी

राजनांदगांव  

कांग्रेस: करुणा शुक्ला
भाजपा: रमन सिंह

बीजापुर 

कांग्रेस: विक्रम शाह मांडवी
भाजपा: महेश गागडा

दंतेवाड़ा - (ST)

कांग्रेस: देवती वर्मा
भाजपा: भीमा मंडावी

चित्रकोट - (ST)

कांग्रेस: दीपक कुमार बैज
भाजपा: लच्छुराम कश्यप

बस्तर - (ST)
कांग्रेस: लाखेश्वर बघेल
भाजपा: सुभाऊ कश्यप 

गदलपुर 

कांग्रेस: रेखचंद जैन
भाजपा: संतोष बाफना

नारायणपुर - (ST)

कांग्रेस: चंदन कश्यप
भाजपा: केदार कश्यप

केशकाल - (ST)

कांग्रेस: संतराम नेतम
भाजपा: हरिशंकर नेतम

कोण्डागांव - (ST)

कांग्रेस: मोहन लाल मर्कम
भाजपा: लता उसेंडी

अंतागढ़ - (ST)

कांग्रेस: अनूप नाग
भाजपा: विक्रम उसेंडी

भानुप्रतापुर - (ST)

कांग्रेस: मनोज सिंह मांडवी
भाजपा: देवलाल दुग्गा

कांकेर - (ST)

कांग्रेस: शिशुपाल सोरी
भाजपा: हीरा मरकाम

खैरागढ़ 

कांग्रेस: गिरवर जंघेल
भाजपा: कोमल जंघेल

डोंगरगढ़ - SC

कांग्रेस: भूनेश्वर बघेल
भाजपा: सरोजिनी बंजारे

डोंगरगांव  

कांग्रेस: दलेश्वर साहू
भाजपा: मधुसूदन यादव

खुज्जी  

कांग्रेस: चन्नी साहू
भाजपा: हिरेंद्र साहू

मोहला- मनपुर - (ST)

कांग्रेस: इंद्र शाह मांडवी
भाजपा: कंचनमाला भुआर्य

कोंटा - (ST)

भाजपा: धनीराम बरसे
कांग्रेस: कवासी लखमा

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में दो चरणों में चुनाव होने हैं। पहले चरण में 12 नवंबर को 18 सीटों पर मतदान होंगे जबकि दूसरे चरण में 72 सीटों पर 20 नवंबर को मतदान होंगे।
सभी विधानसभा सीटों के परिणाम एक साथ 11 दिसंबर को आएंगे।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जिस पर पैनी नजर है। हम छत्तीसगढ़ जाकर वहां की सियासत का हाल बताएंगे लेकिन उससे पहले इस राज्य के बारे में कुछ बातें जानना बेहद जरूरी हैं। 

 

छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं। राज्य में अभी कुल 11 लोकसभा और 5 राज्यसभा की सीटें हैं। कुल 27 जिले हैं। राज्य में 51 सीटें सामान्य, 10 सीटें एससी और 29 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में लगातार तीसरी बार कांग्रेस को मात देकर सरकार बनाई थी। रमन सिंह की अगुवाई में बीजेपी को 2013 में कुल 49 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी। जबकि कांग्रेस सिर्फ 39 सीटें ही जीत पाई थी।

आज हम बात करेंगे सत्ता के सेमीफाइनल के पहले पड़ाव यानी रायपुर के बारे में...रायपुर जिले को कुल चार विधानसभा सीटों में बांटा गया है- रायपुर ग्रामीण, रायपुर नॉर्थ सिटी, रायपुर साउथ सिटी, रायपुर वेस्ट सिटी। ये चारों सीटें सामान्य हैं।

इन चारों सीटों का अपना महत्व है, हर सीट पर नए समीकरण देखने को मिलते हैं। इस बार रायपुर में 9,49,562 मतदाता प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे जिनमें 4,88,883 पुरुष,  4,60,443 महिला और 236 अन्य शामिल हैं।

रायपुर ग्रामीण

रायपुर ग्रामीण पर हमेशा से ही भाजपा का कब्जा रहा है लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां तख्तापलट कर दिया। इस कांटे की टक्कर में कांग्रेस के सत्यनारायण शर्मा ने मात्र 1861 वोटों की बढ़त के साथ भाजपा के नंदे साहू को करारी शिकस्त दी थी।

इस विधानसभा क्षेत्र में साहू बहुल्य आबादी होने की वजह से भाजपा ने 2008 में नंदे साहू को उतारा था और उन्होंने जीत दर्ज की लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में वो कांग्रेस के दिग्गज नेता सत्यनारायण शर्मा से हार गए। आपको बता दें इस विधानसभा सीट से पिछली बार 12 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था लेकिन हम आपको दस उम्मीदवारों के नाम बताएंगे।

कुछ ऐसी रही विधानसभा चुनाव 2013 की तस्वीर : 

1. सत्यनारायण शर्मा 70,774 कांग्रेस
2. नंदे साहू  68,913 भाजपा
3. महेश देवांगन 1,205 छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच
4. विनोद कुमार बघेल 1,203 बसपा
5. भरत भाई खाखरिया 1,010 निर्दलीय
6. रविशंकर डहरिया 805 निर्दलीय
7. गौतमबुद्ध अग्रवाल 681 शक्ति सेना
8. फरहत भाई  301 निर्दलीय
9. गीतेश्वर चंद्राकर 244 निर्दलीय
10. राजेश मुखर्जी 173 लोक जनशक्ति पार्टी

2013 विधानसभा चुनाव में रायपुर ग्रामीण के मतदाता 

कुल मतदाता :  2,29,440
पुरुष मतदाता :  1,23,767
महिला मतदाता :  1,05,673
कुल मतदान :  1,45,639 (65%) 
नोटा :  3,521 (1.5%)

रायपुर पश्चिम

रायपुर पश्चिम की विधानसभा सीट शहर की सबसे विकसित और वीआईपी सीट है, इस सीट पर भाजपा के राजेश मूणत का दबदबा है। राजेश विधायक के साथ-साथ PWD मंत्री भी हैं। राज्य में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए रायपुर-पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में पहला चुनाव 2008 में हुआ था जिसमें राजेश मूणत को जीत मिली थी।

बात पिछले विधानसभा चुनाव की करें तो बीजेपी के राजेश मूणत ने कांग्रेस के विकास उपाध्याय को 6160 वोटों से हराया था। इस सीट से पिछले विधानसभा चुनाव में 15 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी।

रायपुर शहर पश्चिम 2013 उम्मीदवार

1   राजेश मूणत            64,611 भाजपा
2    विकास उपाध्याय 58,451 कांग्रेस
3    मेघराज साहू 2,914 छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच
4    अनिल मिश्रा 1,467 बसपा
5    लिकेश सिंह  1,019 निर्दलीय
6    विवेक वारेतवर 980 निर्दलीय
7    कर्नल बलवंत सिंह 512 निर्दलीय
8    अहफाज रशीद 442 बससपा
9    नवीन गुप्ता  435 सपा
10 शेख इस्माइल 352 निर्दलीय

2013 विधानसभा चुनाव में रायपुर शहर पश्चिम के मतदाता 

मतदाता : 2,10,089
पुरुष मतदाता : 1,09,813
महिला मतदाता : 1,00,276
कुल मतदान : 1,32,231 (64.1%)
नोटा  : 2,357 (1.1%)

रायपुर उत्तर

रायपुर उत्तर विधानसभा सीट पर बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा ने जीत दर्ज की है। 2008 में यहां से कांग्रेस के कुलदीप सिंह जुनेजा ने जीत दर्ज की थी और 2013 में भाजपा के श्रीचंद सुंदरानी ने कुलदीप को लगभग 3500 मतों से हराया था।

2008 में भाजपा की तरफ से सच्चिदानंद उपासने चुनावी मैदान में उतरे थे। लेकिन हार के बाद अगले  विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने श्रीचंद सुंदरानी पर दांव लगाया और वे जीत गए। रायपुर उत्तर से पिछले विधानसभा चुनाव में 14 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई।

2013- रायपुर शहर उत्तर उम्मीदवार

1 श्रीचंद सुंदरानी 52,164 भाजपा
2 कुलदीप सिंह जुनेजा 48,688 कांग्रेस
3 सुनंद बिस्वास  735 बसपा
4 हाजी मो. अशरफ 447 निर्दलीय
5 हैदर रजा    415 निर्दलीय
6 मोहम्मद इसरार 349 सपा
7 मोहम्मद सजन 326 निर्दलीय
8 बेनू गेनाद्रे   300 निर्दलीय
9 संजीव सेन   241 छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच
10 सलीम खान  180 निर्दलीय
11 संजय नाग   168 शिवसेना
12 प्रदीप अरोड़ा  157 निर्दलीय
13 मुशाहिद खान 154 निर्दलीय
14 नीलोफर अली 79 निर्दलीय

2013- रायपुर शहर उत्तर चुनाव

मतदाता : 1,65,485
पुरुष मतदाता : 84,861
महिला मतदाता : 80,624
कुल मतदान : 1,04,403 (64.6%) 
नोटा : 2,424 

रायपुर दक्षिण

रायपुर दक्षिण को भाजपा का गढ़ माना जाता है। यहां राज्य सरकार के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल हमेशा से ही चुनाव जीतते आए हैं। कांग्रेस ने हर चुनाव में बृजमोहन के खिलाफ अलग-अलग प्रत्याशी खड़े किए, लेकिन हर बार हार का ही सामना करना पड़ा। रायपुर दक्षिण से पिछले विधानसभा चुनाव में 38 उम्मीदवार खड़े हुए थे, जिसमें से बृजमोहन अग्रवाल ने करीब 25 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी।

विधानसभा चुनाव 2013

 रायपुर शहर दक्षिण


1  बृजमोहन अग्रवाल  -  81,429 (भाजपा)
2  डॉ. किरनमयी नायक   46,630 (कांग्रेस)
3  कमाल अख्तर     1,036 निर्दलीय
4  अब्दुल नईम खान    929 निर्दलीय
5  शमशेर अली    737 निर्दलीय
6  विमला भारती  614 निर्दलीय
7  रईस फाजिल  597 बसपा
8  सूरज            289 निर्दलीय
9  नजत अली    269 निर्दलीय
10  सगीरुद्दीन ओवैसी 264 निर्दलीय

विधानसभा चुनाव 2013- रायपुर शहर दक्षिण

मतदाता : 2,05,759
पुरुष मतदाता : 1,05,787
महिला मतदाता : 99,972
कुल मतदान : 1,35,307 (66.8%) 
नोटा : 2,126 (1.0%) 

  • माइक्रोसॉफ्ट का मार्केट कैप 821 अरब डॉलर, अमेजन का 803 अरब डॉलर
  • शेयर बाजार में गिरावट से अमेजन का वैल्युएशन शुक्रवार को 68 अरब डॉलर घटा

सैन फ्रांसिस्को. अमेजन को पीछे छोड़ माइक्रोसॉफ्ट शुक्रवार को सबसे ज्यादा मार्केट कैप वाली दूसरी अमेरिकी कंपनी बन गई है। एक ट्रिलियन डॉलर की वैल्यू के साथ एपल पहले नंबर पर बरकरार है। अमेजन के शेयर में गिरावट की वजह से कंपनी का वैल्युएशन 68.1 अरब डॉलर घटकर 803.28 अरब डॉलर रह गया। माइक्रोसॉफ्ट का मार्केट कैप 821.05 अरब डॉलर है। अमेजन ने इस साल अप्रैल में माइक्रोसॉफ्ट को पीछे छोड़ा था।

अमेजन के शेयर में 4 साल की सबसे बड़ी गिरावट

  1.  

    अमेजन का शेयर शुक्रवार को 7.8% लुढ़क गया। यह 24 अक्टूबर 2014 के बाद सबसे बड़ी गिरावट है। इससे अमेजन के सीईओ की नेटवर्थ 11 अरब डॉलर घट गई। अमेजन का मार्केट कैप 4 सितंबर को एक ट्रिलियन डॉलर पर पहुंचा था।

     

  2.  

    अमेजन का तिमाही रेवेन्यू विश्लेषकों के अनुमान से कम रहा। इस वजह से शेयर में गिरावट आई। जुलाई-सितंबर में अमेजन का रेवेन्यू 56.60 अरब डॉलर रहा। विश्लेषकों ने 57.10 अरब डॉलर का अनुमान जताया था।

     

  3. माइक्रोसॉफ्ट के शेयर में इस साल 25% बढ़त

     

    माइक्रोसॉफ्ट के शेयर में इस साल 25% तेजी आई। अमेरिकी शेयर बाजार में 1998 से 2000 तक माइक्रोसॉफ्ट सबसे ज्यादा मार्केट कैप वाली कंपनी थी।

  • कांग्रेस की सूची सीईसी में देर रात तक मंथन, 100 सीटों पर उम्मीदवार तय होना बाकी 
  • 110 में से 39 पुराने और 20 नए सिंगल नाम और जोड़े गए, अब 130 हुए  सिर्फ जीतने लायक नामों को ही आगे बढ़ा रहे नेता 

भोपाल. मप्र चुनाव के लिए टिकट फाइनल करने में जुटी कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) ने शुक्रवार देर रात तक नई दिल्ली में बैठक कर 59 प्रत्याशियोंं के नाम फाइनल कर दिए। हालांकि इनकी घोषणा बाद में की जाएगी। इससे पहले हुई सीईसी की बैठक में 110 सिंगल नामों में से 71 नाम मंजूर किए गए थे। शुक्रवार की बैठक में बचे हुए 39 नामों को विचार के बाद मंजूरी दे दी गई। इसके अलावा 20 नये नाम सिंगल नामों में जोड़े गए।

 सूत्रों के अनुसार इन 39 में महू से अंतर सिंह दरबार और सांवेर से तुलसी सिलावट का नाम भी है। स्क्रीनिंग कमेटी ने पैनल शार्ट लिस्टेड करने के बाद 64 नाम सीईसी को भेजे थे, जिनमें से 5 सीटों पर स्थिति स्पष्ट नहीं होने से दावेदारों के नाम सिंगल करने के लिए वापस भेज दिए गए। भोपाल और इंदौर शहर में अभी 6-6 सीटों पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। 


यहां डबल नाम दे रहे टेंशन : देपालपुर से विशाल पटेल और सत्यनारायण पटेल में से एक नाम तय होना है। ग्वालियर ग्रामीण से सिंधिया के दो समर्थकों में रस्साकसी है। साहब सिंह गुर्जर पर गंभीर आपराधिक प्रकरण दर्ज है, जिसके चलते कल्याण सिंह कंसाना के नाम को वरीयता दी जा सकती है। श्योपुर में पूर्व विधायक ब्रजराज सिंह चौहान और अतुल चौहान के बीच टक्कर है। पिछले तीन दिन में बदले समीकरणों के तहत अतुल चौहान का नाम पैनल में शामिल हुआ है। ग्वालियर क्रमांक 15 पर पूर्व विधायक प्रद्युमन सिंह तोमर और सुनील शर्मा का नाम है। इधर, सबलगढ़ से कार्यवाहक अध्यक्ष रामनिवास रावत के नाम पर मोहर लगने के बाद विजयपुर में पार्टी दुविधा में है। इस सीट पर प्रत्याशी चयन की जिम्मेदारी को रावत को दी गई है। 

स्क्रीनिंग कमेटी में बुंदेलखंड की 6 सीटों पर चर्चा : शुक्रवार को हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में बुंदेलखंड के पांच जिलों की निवाड़ी, जतारा, सागर, बीना, हटा और दमोह सीट पर स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी। कमेटी शनिवार सुबह इस पर चर्चा करेगी। महाकौशल की नरसिंहपुर और गाडरवाड़ा और तेंदूखेड़ा सीट पर दावेदारों के नामों पर विचार होगा। 

 

अरुण ने मांगा खरगोन से टिकट  : देवास-शाजापुर संसदीय सीट के तहत आने वाली आठ सीटों में सोनकच्छ से सज्जन सिंह वर्मा के नाम को हरी झंडी दे दी गई है। उज्जैन संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली सीटों में आलोट से प्रेमचंद गुड्डू, बड़नगर से मोहन सिंह पवार, तराना से महेश परमार, खाचरौद-नागदा से दिलीप गुर्जर, घटिया से रामलाल मालवीय का नाम लगभग तय हैं।

 

वहीं, खरगोन संसदीय सीट से महेश्वर से विजय लक्ष्मी साधौ का नाम पक्का हो गया है। इस सीट से सुनील खांडे का नाम हट गया है। बड़वाह से सचिन बिड़ला का नाम तय है। इसी तरह अरुण यादव खरगोन से टिकट मांग रहे हैं, लेकिन पार्टी इसके लिए तैयार नहीं है। सिर्फ परिवार में एक ही व्यक्ति को टिकट देने के पक्ष में है। सूत्रों के मुताबिक यादव कसरावद से चुनाव लड़ें और पांच महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में उनके भाई सचिन यादव को खंडवा संसदीय सीट से उतारा जाए। अब तक 9 राउंड की स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में प्रत्याशी चयन को लेकर क्राइटेरिया सिर्फ जीतने वाले उम्मीदवारों को टिकट देने तक सीमित रहा। 


भाजपा में भी माथापच्ची-  90 सीटों के सामाजिक व जातिगत समीकरणों पर चर्चा : सर्वे, संगठन के फीडबैक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सुझावों को सामने रखकर भाजपा में प्रत्याशी चयन की कवायद तेज हो गई है। सीएम हाउस में शुक्रवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे और संगठन महामंत्री सुहास भगत के साथ बड़े नेताओं के बीच हर सीट पर देर रात तक चर्चा चली। बताया जा रहा है कि पार्टी ने करीब 90 सीटों पर जातिगत व
सामाजिक समीकरण के साथ सभी विषयों पर बात की। शनिवार को नेता फिर बैठेंगे। रविवार को शाम चार बजे प्रदेश चुनाव समिति की बैठक बुलाई गई है, जिसमें ज्यादातर सीटों पर पैनल के नामों को सिंगल किया जाएगा। इसके बाद मुख्यमंत्री व प्रदेश संगठन के नेता केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष चर्चा के लिए दिल्ली जा सकते हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि प्रत्याशियों की पहली सूची 1 या 2 नवंबर को आ सकती है। 


बेटे के टिकट के लिए नेताओं से मिलीं ताई : लोकसभा अध्यक्ष व इंदौर से सांसद सुमित्रा महाजन ने शुक्रवार को भोपाल में प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रदेश अध्यक्ष व मुख्यमंत्री से मुलाकात की। साथ ही बेटे मंदार महाजन के लिए इंदौर-तीन सीट से दावेदारी रखी। बताया जा रहा है कि उन्होंने 2013 का भी हवाला दिया कि तब भी मंदार क्षेत्र में सक्रिय थे। अभी भी हैं। उन्हें टिकट दिया जा सकता है। 

  • चाय में नशीला पदार्थ मिलाकर बेहोश किया, फिर की ज्यादती 
  • मिसरौद इलाके में आश्रम के अंदर हुई घटना, पुलिस ने जांच शुरू की 

भोपाल. मिसरोद इलाके में एक साध्वी से उसके ही परिचित ने ज्यादती कर दी। आरोपी ने चाय में नशे की दवा मिलाकर वारदात को अंजाम दिया। पीड़िता ने दो महीने बाद मिसरोद थाने पहुंचकर ज्यादती का मामला दर्ज कराया। 

 साध्वी का मिसरोद इलाके में आश्रम हैं। वे उसकी प्रमुख हैं। पुलिस के अनुसार 22 अगस्त की रात करीब 9 बजे उनका परिचित जसपाल सिंह घर पर आया। उसके अनुरोध पर वे चाय बनाकर ले आईं। उसके बाद वे बिस्किट लेने चली गईं। लौटने के बाद उन्होंने साथ में चाय पी। कुछ देर बाद उन्हें बेहोशी छाने लगी। इसी का फायदा उठाकर उसने उनसे गलत काम किया। वारदात के बाद आरोपी ने धमकाते हुए किसी को भी बताने पर जान से मारने की धमकी दी।

 गुरु के पास मेरठ चली गई थीं साध्वी : घटना के बाद महिला अपने गुरु के पास मेरठ चली गई। यहां गुरु से बात कर उन्हें पूरी घटना के बारे में बताया। उनके कहने पर गुरुवार को भोपाल लौटने के बाद उन्होंने मिसरोद थाने में मामला दर्ज कराया। पुलिस फरार आरोपी की तलाश कर रही है।

 मिसरोद टीआई संजीव चौकसे के अनुसार होशंगाबाद रोड की एक पॉश कॉलोनी में साध्वी का आश्रम है। इसमें 40 वर्षीय साध्वी अपने शिष्यों के साथ रहती हैं। दो साल पहले मिसरोद इलाके में भागवत कथा वाचन के दौरान मंडीदीप के इंदिरा नगर निवासी जयपाल सिंह राजपूत पिता ठाकुर सिंह से उनकी पहचान हुई थी। इसके बाद वह साध्वी को कथास्थल तक लाने-ले जाने का काम करने लगा। वह उन्हें दीदी कहता था।

 बिस्किट लेने गए तो चाय में मिलाया : मिसरोद टीआई संजीव चौकसे के अनुसार, बीते 22 जुलाई को जयपाल साध्वी के आश्रम में पहुंचा। उसने चाय पीने की इच्छा जाहिर की। साध्वी ने चाय बनाई और दोनों पीने लगे। इसी दौरान जयपाल ने बिस्किट मांगे, साध्वी बिस्किट लेने के लिए अंदर कमरे में गई। इस बीच आरोपित ने उनकी चाय में नशीला पदार्थ मिला दिया। इसे पीने से साध्वी बेसुध हो गई। जयपाल ने इसका फायदा उठाया और साध्वी के साथ दुष्कर्म कर भाग गया। होश आने पर साध्वी ने जब आरोपित को फोन किया तो वह धमकाने लगा।

 जान से मारने की धमकी दी : तीन अगस्त को आश्रम पर आकर धमकाया साध्वी ने पुलिस को बताया है कि जयपाल को जब पता चला कि पुलिस में उसकी शिकायत करने वाली है, तो वह तीन अगस्त को उनके आश्रम आ धमका। यहां गाली-गलौज कर अपनी लाइसेंसी पिस्टल दिखाकर उन्हें जान से मारने की धमकी दी। टीआई चौकसे का कहना है कि जयपाल की तलाश में मंडीदीप पुलिस से भी सहयोग मांगा गया है।

अमृतसर में रावण फूंकने से हुई आतिशबाजी से बचने के लिए ट्रेन की चपेट में आने से पचास से अधिक लोगों की अकाल मौत हो गई। इससे पहले कोलकत्ता में पुल ढहने से दर्जन भर लोगों की मौत हो गई। इसी तरह हर साल सड़क हादसों में हजारों लोगों की जान चली जाती है। बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में सैंकड़ों लोगों मरते हैं। संक्रामक रोगों से मरने वालों की संख्या भी हर साल हजारों में होती हैं। मंदिरों−मेलों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में भगदड़ से मौतें होते ही रहती हैं।
 
सवाल यह है कि इन मौतों के लिए जिम्मेदार कौन हैं ? क्या इतने लोगों को हर साल काल−कलवित होने से रोका जा सकता है। दरअसल इस तरह के हादसों के लिए सीधे स्थानीय प्रशासन और राज्य तथा केंद्र सरकार जिम्मेदार हैं। प्राकृतिक आपदाओं और लापरवाही से होने वाले इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति को सजगता−जागरूकता से रोका जा सकता है। इसके बावजूद सरकारी मशीनरी के नकारेपन से बड़े हादसे होते रहते हैं। सरकारी मशीनरी में जंग लगी हुई है। सरकारों के लिए ऐसी मौतें महज आंकड़ा भर रह गई हैं। यदि संख्या अधिक होती है तो एक−दो छोटे अफसरों पर कार्रवाई करके सरकारें जिम्मेदारी पूरी कर लेती हैं।
 
सरकारें इस बात का पुख्ता इंतजाम कभी नहीं करती कि ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति नहीं हो। यदि पुरानी घटना−दुर्घटनाओं से सबक लिया जाता तो अमृतसर जैसा हादसा नहीं होता। इससे जाहिर है कि सरकारें और प्रशासन सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाने में माहिर हैं। ऐसे हादसों को रोकने के लिए कभी कोई कार्य योजना नहीं बनाई जाती। यदि बनती भी है तो वो धरातल पर नहीं उतरती। कुछ ही दिनों बाद उसे भुला दिया जाता है। जिस तरह से देश में अप्राकृतिक मौतें हो रही हैं, उसके मद्देनजर इस देश को मौत का देश कहने में कोई अतिरंजना नहीं रह गई है।
 
इनमें मरने वाले आम लोग ही होते हैं। हादसा होने पर राजनीतिक दल ऐसी मौतों के लिए एक−दूसरे को आईना दिखाने में पीछे नहीं रहते। विपक्षी दल सत्तारूढ़ दल को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। सत्तारूढ़ दल के पास तोतारटंत जवाब है होता है कि जब विपक्षी पार्टी जब सत्ता में थी, तब भी ऐसे हादसे होते रहे हैं। राजनीतिक दलों में संवेदना तो दूर सत्ता की जिम्मेदारी का बोध तक नहीं रह गया है। दुर्घटनाओं की तह तक जाने में किसी की रूचि नहीं होती। आरोप−प्रत्यारोपों के दौर में एक−दूसरे को दोषी ठहरा कर अपनी जिम्मेदारी से भागने की कवायद की जाती है।
 
दुर्घटना में मरने वालों की संख्या अधिक हो तो जिम्मेदारी के नाम पर जांच दल बिठा दिए जाते हैं। ऐसे अलग−अलग प्रकृति के हादसों के बाद केंद्र और राज्य स्तर पर अब तक दर्जनों जांच कमेटियां बना दी गई। इनके सुझावों को लागू करने का काम किसी भी सरकार ने ईमानदारी से नहीं किया। यदि कहीं किया गया भी गया तो महज औपचारिकता निभाने के लिए फाइलों तक सीमित रहा। सड़क और रेल दुर्घटनाओं पर बनी दर्जन भर कमेटियां इसका उदाहरण हैं। जब भी बड़े हादसे हुए कमेटियां बना दी गईं। इसके बाद इनकी रिपोर्टें धूल फांकती रहती हैं।
 
हालात यह हो गए हैं कि हर बार हादसा और हर बार नई जांच कमेटी। सरकारी प्रवृत्तियों के मद्देनजर लगता है कि देश में दुर्घटनाओं में लोगों की मौत अब कोई मुद्दा नहीं रही है। ऐसी मौतों से राजनीतिक दलों का वोट बैंक प्रभावित नहीं होता। इन्हें महज एक दुर्घटना मान कर कुछ ही दिनों में भुला दिया जाता। इसमें भी हालात करेला और नीम चढ़ा जैसे हैं। मृतकों के परिवारों को सरकारी नीति या तात्कालिक रूप से घोषित मुआवजा इत्यादि भी आसानी से नहीं मिलता। ज्यादातर मामलों में मुआवजा राशि ही ऊंट के मुंह में जीरे के समान होती है। अल्पराशि से परिवार का भरण-पोषण आसान नहीं होता। इससे किसी नेता और अफसर का सरोकार नहीं रहता।
 
मुआवजे के ऐसे सैंकड़ों मामले हर साल अदालतों में आते हैं। सालों तक ऐसे मामले चलते हैं। जिनमें भेदभाव या अड़चन डालने के आरोप लगाए जाते हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि ऐसे हादसों को रोकने के लिए दूरगामी और पुख्ता इंतजाम करने के बजाए राजनीतिक दलों के नेता बेफिजूल के मुद्दों पर बहस करके समय जाया करते रहते हैं। कुप्रबंधन और शासकीय अराजकता से होने वाली दुर्घटनाओं को कभी धार्मिक और कभी सामाजिक कारणों से सरकारें अनदेखी करती हैं।
 
दूसरे शब्दों में कहें तो सरकारें ही परोक्ष रूप से ऐसे हादसों की बुनियाद में शामिल हैं। भारी भीड़ और लापरवाही भरे इंतजाम से हादसे होने की संभावना बनी रहती है। इसे टालने के पुख्ता पुलिस−प्रशासनिक दूरदर्शी उपायों की दरकार होती है। इसके बजाए महज खानापूर्ति करके सुरक्षा इंतजामों की पूर्ति की जाती है। लापरवाही और गैरजिम्मेदारी की ऐसी प्रवृत्ति के कारण कुछ दिनों बाद ही देश के दूसरे भू−भाग में ऐसे हादसों की खबरें मिलती हैं। केंद्र हो या राज्य की सरकारें, इस बात की गारंटी नहीं देती कि समान प्रकृति के हादसे अब नहीं होंगे।
 
राज्यों की सरकारें दूसरे राज्यों में होने वाले हादसों से सबक नहीं सीखती। इसके परिणामस्वरूप कुछ अर्से बाद ही समान तरह के हादसे एक राज्य के बाद दूसरे राज्यों में होते हैं। जिस राज्य में हादसा होता है, वहां की सरकार जरूर कुछ फौरी उपाय करती हैं, जबकि दूसरे राज्यों की सरकारें ऐसे हादसों का इंतजार ही करती नजर आती हैं। अमृतसर का ट्रेन हादसा हो या देश के दूसरे हिस्सों में होने वाले ऐसे ही दूसरे हादसे, जब तक सरकारें जिम्मेदारी से भागती रहेंगी, तब तक होते रहेंगे।
 
-योगेन्द्र योगी
देश के पांच प्रदेशों में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अगले चंद महीनों के अंदर लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। और बीच देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अंदर घमासान छिड़ गया है। देखने पर तो यह घमासान सीबीआई के दो वरिष्ठतम पदों पर बैठे दो अधिकारियों के बीच में है, लेकिन यह घमासान अपने जद में पूरी सीबीआई और उसकी नियंत्रक राजनैतिक प्रतिष्ठान को भी घेरे में लेने की क्षमता रखता है। सीबीआई अब सीधे तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय यानी प्रधानमंत्री के नियंत्रण में है, इसलिए सवाल देश के सर्वोच्च कार्यालय पर भी खड़े हो सकते हैं।
 
एक अभूतपूर्व घटना के तहत सीबीआई ने अपने दूसरे सबसे बड़े अधिकारी राकेश अस्थाना पर तीन करोड़ रुपये घूस लेकर मांस निर्यातक मोइन कुरेशी के मामले से जुड़े एक व्यापारी साना को क्लीन चिट देने के मामले में मुकदमा किया है। दिलचस्प है कि अस्थाना सीबीआई प्रमुख और अपने बॉस आलोक वर्मा पर उस व्यापारी से दो करोड़ रुपये घूस लेकर उसे बचाने की कोशिश करने का आरोप लगा रहे थे। यह आरोप उन्होंने लिखित रूप से लगाया था और उनके द्वारा लगाए आरोप की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है।
 
और इस बीच सीबीआई प्रमुख ने अपने डिपुटी अस्थाना पर ही उसी व्यापारी को गवाह बनाकर तीन करोड़ की घूस लेने के मामले मे फंसा दिया। इसमें एक और दिलचस्प बात है और वह यह है कि अस्थाना के खिलाफ मुकदमा दायर करने के पहले ऊपर से इजाजत नहीं ली गई, जबकि उस तरह की इजाजत जरूरी थी। जाहिर है, वर्मा हड़बड़ी में हैं और अपने ऊपर लगाए गए आरोप की जांच पूरी होने के पहले ही उन्होंने उसी व्यापारी की गवाही से अपने डिपुटी अस्थाना पर मुकदमा ठोंक दिया है।
 
जब बात मुकदमेबाजी की आती है, तो मामला अदालत के पास पहुंचता है और अदालतें सबूतों और गवाहों के आधार पर फैसला करती हैं। यह भी देखा जाता है कि वह गवाह कितना विश्वसनीय है। इस मामले में गवाह वह व्यक्ति है, जो खुद जांच के तहत गिरफ्तारी और दोषी साबित होने के खतरे का सामना कर रहा था। वर्मा का कहना है कि साना ने अस्थाना को घूस दी, तो अस्थाना का कहना है कि साना ने वर्मा को घूस दी। अब चूंकि सीबीआई की कमान वर्मा के हाथ में है, तो उन्होंने अपने बॉस होने का फायदा उठाते हुए डिपुटी पर मुकदमा ठोंक दिया और यदि अस्थाना वर्मा के बॉस होते तो यह मुकदमा वर्मा पर ठोंका जाता।
 
अब किसने घूस ली, इसका पता तो बात में चलेगा या चलेगा भी या नहीं, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन जो कुछ सामने आ रहा है, उससे सीबीआई मजाक बनती जा रही है। सीबीआई के पास एक से एक बड़े और संवदेनशील मुकदमे हैं और इस अंदरूनी झगड़े से उसकी कार्यक्षमता निश्चय ही प्रभावित होगी और इससे देश का ही नुकसान होगा, क्योंकि विजय माल्या से लेकर, नीरव मोदी और अन्य अनेक हजारों करोड़ रूपये की लूट के मामले को सीबीआई देख रही है। खुद अस्थाना विजय माल्या और अगुस्ता हेलिकॉप्टर घोटाले के मामले को देख रहे हैं। अब वे उन मामलों को देखने की जगह अब अपना मुकदमा देखेंगे।
 
खुद भ्रष्टाचार के मुकदमे का सामना करते हुए कोई सीबीआई अधिकारी अन्य भ्रष्टाचार के मामले की जांच करने को नैतिक रूप से कितना सक्षम हैं, यह अलग सवाल है, जिस पर बहस की जा सकती है, लेकिन यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब सीबीआई को मिलजुलकर काम करना चाहिए था। 
 
राकेश अस्थाना की छवि एक ईमानदार अधिकारी की है। उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि उन पर राजनैतिक दबाव असर नहीं करता और वे अपने कॅरियर को दांव पर लगाकर वही करते हैं, जिसे वे अपना फर्ज समझते हैं। बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाले में लालू यादव को सजा दिलवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। वे गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं और नरेन्द्र मोदी के साथ काम करने का उनका लंबा अनुभव रहा है। सीबीआई में उन्हें नरेन्द्र मोदी की पसंद का आदमी कहा जाता है।
 
चूंकि सीबीआई सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के मातहत काम करती है, इसलिए मोदीजी के लिए यह घमासान एक बहुत बड़ी चुनौती है। यदि वे इसे संभालने में विफल रहे, तो सबसे पहले तो इस संस्था की कार्यक्षमता बहुत कम हो जाएगी और सारे अधिकारी खेमेबाजी में लग जाएंगे और उससे भी बुरा तब होगा, जब यह मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चला जाएगा। एफआईआर दायर किए जाने के बाद यह मामला अदालत में चला ही गया है और अब अस्थाना अपनी निजी हैसियत से भी उस मुकदमे को निरस्त कराने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
 
दोनों के बीच संघर्ष पिछले कई महीनों से मीडिया की सुर्खियां बन रहे थे। अस्थाना ने आरोप लगाया था कि वर्मा रेलवे होटल घोटाले के मामले में लालू और उनके परिवार के खिलाफ हो रही जांच को धीमा करने की कोशिश कर रहे हैं। गौरतलब है कि यह मामला भी अस्थाना के हाथ में ही है। आरोप है कि वर्मा ने छापा मारने से मना कर दिया था और उसके बावजूद छापे पड़े और सीबीआई की कार्रवाई आगे बढ़ी। वह मामला मीडिया में आने के बाद दोनों के झगड़े और तेज हुए और मोइन कुरेशी मामले में भी अस्थाना ने वर्मा पर अनावश्यक हस्तक्षेप का आरोप लगाया। इस बीच साना को बचाने के लिए एक राजनेता का नाम भी चर्चा में आ गया।
 
सीबीआई के इस अंदरूनी संग्राम को रोकना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्हें अपने स्तर पर हस्तक्षेप कर यह पता लगाना चाहिए कि दोनों अधिकारियों में कौन सही है और कौन गलत। जो गलत है, उसे बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए। यदि यह संग्राम नहीं रूका तो ऐसी परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं और ऐसे ऐसे खुलासे (सही या गलत) हो सकते हैं, जिससे मोदी को राजनैतिक नुकसान हो सकता है।
 
-उपेन्द्र प्रसाद
सरस्वती, नृत्य भाव में गणपति, महिषासुर मर्दिनी, नवदुर्गा, वीणाधारिणी, यम, कुबेर, वायु, इन्द्र, वरूण, प्रणय भाव में युगल, अंगड़ाई लेते हुए व दर्पण निहारती नायिका, शिशु क्रीडा, वादन, नृत्य आकृतियां एवं पूजन सामग्री सजाये रमणी आदि कलात्मक प्रतिमाओं का अचंभित कर देने वाली मूर्तियों का खजाना और आदित्य स्थापत्य कला को अपने में समेटे जगत का अम्बिका मंदिर राजस्थान के मंदिरों की मणिमाला का मोती कहा जा सकता है। मूर्तियों का लालित्य, मुद्रा, भाव, प्रभावोत्पादकता, आभूषण, अलंकरण, केशविन्यास, वस्त्रों का अंकन और नागर शैली में स्थापत्य का आकर्षण इस शिखरबंद मंदिर को खजुराहो और कोणार्क मंदिरों की श्रृंखला में ला खड़ा करता है। मंदिर के अधिष्ठान, जंघाभाग, स्तम्भों, छतों, झरोखों एवं देहरी का शिल्प−सौन्दर्य देखते ही बनता है।
 
जगत का अम्बिका मंदिर राजस्थान में उदयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर गिर्वा की पहाडि़यों के बीच बसे कुराबड़ गांव के समीप अवस्थित है। मंदिर परिसर करीब 150 फीट लम्बे ऊंचे परकोटे से घिरा है। पूर्व की ओर प्रवेश करने पर दुमंजिले प्रवेश मण्डप पर बाहरी दीवारों पर प्रणय मुद्रा में नर−नारी प्रतिमाएं, द्वार स्तम्भों पर अष्ठमातृका प्रतिमाएं, रोचक कीचक आकृतियां तथा मण्डप की छत पर समुद्र मंथन के दृश्यांकन दर्शनीय हैं। छत का निर्माण परम्परागत शिल्प के अनुरूप कोनों की ओर से चपटे एवं मध्य में पद्म केसर के अंकन के साथ निर्मित है। मण्डप में दोनों ओर हवा और प्रकाश के लिए पत्थर से बनी अलंकृत जालियां ओसियां देवालय के सदृश्य हैं।
 
प्रवेश मण्डप और मुख्य मंदिर के मध्य खुला आंगन है। प्रवेश मण्डप से मुख्य मंदिर करीब 50 फुट की दूरी पर पर्याप्त सुरक्षित अवस्था में है। मंदिर के सभा मण्डप का बाहरी भाग दिग्पाल, सुर−सुंदरी, विभिन्न भावों में रमणियों, वीणाधारिणी, सरस्वती, विविध देवी प्रतिमाओं की सैंकड़ों मूर्तियों से सज्जित है। दायीं ओर जाली के पास सफेद पाषाण में निर्मित नृत्य भाव में गणपति की दुर्लभ प्रतिमा है। मंदिर के पार्श्व भाग में बनी एक ताक में महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उत्तर एवं दक्षिण ताक में भी विविध रूपों में देवी अवतार की प्रतिमाएं नजर आती हैं। मंदिर के बाहर की दीवारों की मूर्तियों के ऊपर एवं नीचे कीचक मुख, गज श्रृंखला एवं कंगूरों की कारीगरी देखते ही बनती है। प्रतिमाएं स्थानीय पारेवा नीले−हरे रंग के पाषाण में तराशी गई हैं।
 
गर्भ गृह की परिक्रमा हेतु सभा मण्डप के दोनों ओर छोटे−छोटे प्रवेश द्वार बनाए गए हैं। गर्भ गृह की विग्रह पटि्टका मूर्तिकला का अद्भुत खजाना है। यहां द्वारपाल के साथ गंगा, यमुना, सुर−सुंदरी, विद्याधर एवं नृत्यांगनाओं के साथ−साथ देवप्रतिमाओं के अंकन में शिल्पियों का श्रम देखते ही बनता है। गर्भ गृह की देहरी भी अत्यन्त कलात्मक है। गर्भ गृह में प्रधान पीठिका पर अम्बिका माता की प्रतिमा स्थापित है।
 
मध्यकालीन गौरवपूर्ण मंदिरों की श्रृंखला में सुनियोजित ढंग से बनाया गया जगत का अम्बिका मंदिर मेवाड़ के प्राचीन उत्कृष्ठ शिल्प का नमूना है। जीवन की जीवंतता एवं आनंदमयी क्षणों की अभिव्यक्ति मूर्तियों में स्पष्ट दर्शनीय है। यहां से प्राप्त प्रतिमाओं के आधार पर इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान पांचवी व छठी शताब्दी में शिव−शक्ति संप्रदाय का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। इसका निर्माण खजुराहो में बने लक्ष्मण मंदिर से पहले करीब 960 ईस्वी के आसपास माना जाता है। मंदिर के स्तम्भों पर उत्कीर्ण लेखों से पता चलता है कि ग्यारहवीं शताब्दी में मेवाड़ के शासक अल्लट ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। यहां देवी को अम्बिका कहा गया है। धार्मिक महत्व की दृष्टि से यह प्राचीन शक्तिपीठ है।

 

 
मंदिर को पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। यद्यपि इस मंदिर को देखने के लिए उदयपुर से पर्यटक बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तथापि पुरातत्व, मूर्ति एवं शिल्पकला में रूचि रखने वालों के लिए मंदिर का विशेष महत्व है।
 
आखिर हम कब तक उन विधर्मी आक्रांताओं को ढोते रहेंगे जिन्होंने न केवल हमारी अकूत धन दौलत को जमकर लूटा खसोटा वरन् हमारी महान संस्कृति को नष्ट करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। खून की नदियां बहाने वाले इन आक्रांताओं द्वारा हमारे धार्मिक स्थलों को नेस्तनाबूद करने दृष्टि से तोड़ा व ढहाया गया। हमारे ज्ञान के मंदिरों को बुरी तरह जलाया व तहस-नहस किया गया। लाखों सनातन धर्मियों का ऐन-केन-प्रकारेण धर्म परिवर्तन कराया गया। नामालूम कितनी भारतीय नारियों को सतीत्व की रक्षा के लिये अपने को अग्नि के हवाले करना पड़ा। 
 
ऐसे जिन विधर्मी आक्रांताओं ने क्रूरता, निर्ममता की सारी हदें पार कर दी थी उनमें ही एक तुर्क लुटेरा सम्प्रति कुतुबुद्दीन ऐवक का सेनापति बख्तियार बिन खिलजी भी था। भारतीय इतिहास में बख्तियार की कू्ररता, निर्ममता अन्य खूंखार विधर्मी आक्रांताओ की तुलना में इसलिये कहीं अधिक जघन्य, अक्षम्य मानी जाती है कि उसने न केवल सैकड़ों मूर्धन्य शिक्षकों व हजारों विद्यार्थियों को मौत के घाट उतार दिया था वरन् उसने दुनिया के महानतम शिक्षा केन्द्र नालंदा विश्व विद्यालय को तहस-नहस कर उसके ज्ञान के केन्द्र तीन पुस्तकालयों को जलाकर खत्म कर दिया था। 
भारतीय राजधानी पटना से करीब 120 किलोमीटर व राजगीर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर उसके एक उपनगर के रूप में स्थिति नालंदा विश्व विद्यालय की स्थापना 450-470 ई० के बीच गुप्त शासक के कुमार गुप्त प्रथम ने की थी। इसमें देश ही नहीं दुनिया के अनेक देशों से विद्यार्थी विभिन्न विषयों में अध्ययन हेतु आया करते थे। जिस समय 1999 ई० में बख्तियार बिन खिलजी ने कोई 200 घुड़सवार आतताई लुटेरों के साथ नालंदा विश्व विद्यालय पर हमला बोला था उस समय वहां कोई 20 हजार छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे थे और कोई 200 महान शिक्षक उन्हे शिक्षा देने में लगे थे। देखते ही देखते उसके खूंखार साथी लूटेरों ने निहत्थे शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को गाजर-मूली की तरह काट डाला और तीनों पुस्तकालयों को आग के हवाले कर दिया। इन पुस्तकालयों में उस समय कितनी पुस्तके रही होगी इसकी परिकल्पना सिर्फ  इससे की जा सकती है कि उपरोक्त पुस्तकालय 6 महीने तक घूरे की तरह सुलगते रहे थे। 
 
दुनिया का कोई और देश होता तो हमारे ज्ञान की थाती को राख कर देने वाले आतताई बख्तियार का नाम लेना तो दूर उस पर थूकता तक नहीं। पर आजादी के 70 सालों बाद भी उसके नाम पर स्थापित 'बख्तियारपुर' रेलवे जक्शन उसकी क्रूरता की न केवल चीख-चीख कर गवाही देता है वरन् वो हमारे शासकों के राष्ट्र प्रेम व राष्ट्र के प्रति समर्पण पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े करता है। 
 
जो बिहार की धरती कभी शक्ति, ज्ञान का केन्द्र हुआ करती थी। जिस धरती ने यदि कुमार गुप्त, चन्द्र गुप्त, अशोक जैसे सम्राट, चाणक्य जैसे महान विद्वान दिये तो उसी धरती ने महात्मा बुद्ध जैसे बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भी दिये। 
 
देश की आजादी के बाद इसी धरती ने देश को जहां डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जैसा राष्ट्रपति दिया तो इसी धरती ने देश में समग्र क्रांति के दूत के रूप में बाबू जय प्रकाश नारायण को भी। रामधारी सिंह दिनकर, देवकी नन्दन खत्री तथा नागार्जुन जैसे साहित्य शिरोमणि बिहार की धरती की देन रहे है। 
 
अंतत: अपने एक सहायक के हाथो मौत के घाट उतारे गये आतताई बख्तियार ने जीते जी सोचा भी न होगा कि जिस बिहार धरती को उसने खून से लाल कर दिया था उसी बिहार की धरती एक दिन उसे गाजी बाबा मान पूजा अर्चना करेंगी व हिन्दू महिलायें उसकी भटकती, अशांत रूह से अपने बाल बच्चों के कल्याण की मन्नते मांगेंगी।
 
आजादी के बाद बिहार में न जाने कितनी सरकारें आई गई। कितने मुख्यमंत्री बने बिगड़े पर किसी ने भी क्रूरता की सभी सीमायें लांघने वाले आतताई बख्तियार के नाम पर बने 'बख्तियारपुर' रेलवे जक्शन का नाम बदलने की जहमत नहीं उठाई। 
 
विगत कई वर्षो से बिहार की सत्ता का केन्द्र बिन्दु बने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की न केवल कर्मभूमि 'बख्तियारपुर' बनी हुई है वरन् इनका यही जन्म स्थान भी है। भारतीय इतिहास को कलंकित करने वाले इस क्रूरतम लुटेरे व हत्यारे बख्तियार के बारे में उन्हे जानकारी न हो यह सोचा भी नहीं जा सकता। पर यदि उन्होने भी बख्तियार के नाम पर बने बख्तियारपुर रेलवे जक्शन का नाम बदलने का प्रयास तक नहीं किया तो नि:संदेह यही माना जायेगा कि उन्हे राष्ट्र के खासकर बिहार के मान-सम्मान की कोई चिंता नहीं है। 
 
अब भी समय है नीतीश जी बिना क्षण गंवाये आतताई बख्तियार के नाम पर उसकी कू्ररता की याद दिलाने वाले बख्तियारपुर रेलवे जक्शन का तत्काल नाम बदलने की घोषणा कर दें वरन् ऐसा मौका शायद ही कभी उनके हाथ आयेगा। यह सुकृत्य करने में उन्हे इसलिये और भी आसानी होगी कि उनकी सत्ता में वो भाजपा भागीदार है जो राष्ट्रवाद के नाम पर उन्हे समर्थन व सहयोग देने में पीछे न हटेगी। 
 
- शिवशरण त्रिपाठी

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