ईश्वर दुबे
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Bhilai
मुंबई। उच्चतम न्यायालय ने इस बार दिवाली में प्रदूषण को कम करने के मकसद से सिर्फ ‘ग्रीन पटाखे’ या आतिशबाजी जलाने की अनुमति दी है। मंगलवार को न्यायालय के इस फैसले के बाद पटाखा विनिर्माताओं ने कहा कि ग्रीन आतिशबाजी जैसी कोई चीज नहीं हे, वहीं पर्यावरणविदों ने कहा कि प्रशासन को शीर्ष अदालत के फैसले का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। दूसरी ओर सोशल मीडिया पर इस फैसले के बाद ‘मजाक‘ शुरू हो गया। कई लोग ने सोशल मीडिया पर पटाखों को हरा रंग में पोस्ट किया।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास पटाखों के शोर या डेसिबल का स्तर तथा धुएं का स्तर पता करने का कोई उपकरण नहीं है। इसके अलावा उन्हें खुद अपने हिसाब से देखना होगा कि पटाखा अधिक प्रदूषण तो नहीं कर रहा या बहुत तेज शोर वाला तो नहीं है। दिल्ली के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘इस बात की निगरानी करना काफी मुश्किल होगा कि दुकानदार दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं या नहीं क्योंकि दिवाली पर पटाखे थोक में बिकते हैं। बीट अधिकारियों को इस बारे में बताना होगा जिससे नियमों का उल्लंघन नहीं हो। न्यायालय के फैसले के अनुसार यदि किसी इलाके में प्रतिबंधित आतिशबाजी बिकती है तो इसकी जिम्मेदारी क्षेत्र के थाना प्रभारी या एसएचओ की होगी।
उद्योग संगठनों का कहना है कि दिवाली से पहले उच्चतम न्यायालय द्वारा आतिशबाजी या पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल के लिए कड़े नियम लागू करने के फैसले से बिक्री पर असर पड़ने का अंदेशा है। पटाखा कारोबार ज्यादातर असंगठित क्षेत्र में होता है और पटाखों की सालाना बिक्री करीब 20,000 करोड़ रुपये है। वहीं पर्यावरणविदों तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब समाज को अधिक जिम्मेदारी वाले तरीके से त्योहार मनाने चाहिए। पर्यावरण वैज्ञानिक डी साहा ने कहा कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन नियमों का अनुपालन कड़ाई से हो। साहा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में भी रह चुके हैं। उन्होंने पीटीआई भाषा से कहा कि एक समाज के रूप में हम त्योहारों, शादी ब्याह या अन्य आयोजनों पर पटाखे फोड़ते हैं, लेकिन इसकी बड़ी कीमत होती हैं इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान होता है। ऐसे में हमें अधिक जिम्मेदारी वाला व्यवहार करना चाहिए। शोर के जोर के संबंधी नियमों के बारे में साहा ने कहा कि पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पीसो) विस्फोटक पदार्थों के संदर्भ में जन सुरक्षा पहलू से संबंधित नियमनों पर काम करता है।