ईश्वर दुबे
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Bhilai
रेलवे में अभी कुछ भी सुचारु रुप से नहीं चल रहा है क्योंकि भारतीय रेलवे के ग्रुप ए के अधिकारी एक-दूसरे की टांग खिंचने में लगे हुए हैं एवं रेल यात्रियों की सुरक्षा को दरकिनार करते हुए केवल अपने विभागीयहित साधने को सर्वोपरि मान रहे हैं।
परिचालन अधिकारियों ने प्रधान मंत्री कार्यालय को पहले भी इसकी शिकायत की है, परन्तुय उन्हेंन उनके कार्यों से बेदखल कर दिया गया है। यांत्रिक विभाग द्वारा साफ-सफाई, पर्यावरण और रेलगाडि़यों की सेवाओं आदि कार्यों को केवल उनके ऊँच मूल्योंक के टेण्डारों की वजह से उन्हेंि अपने पास रखा है जबकि सीधे तौर पर उनका इन कार्यों से कोई संबंध नहीं है।
"यांत्रिक विभाग अपने सामान्य कार्यों को पूरा करने में बुरी तरह विफल रहा है। विभाग में इन कार्यों की देखभाल के लिए स्टेशन या ट्रेन में निगरानी व्यंवस्थाव तक ठीक तरह से नहीं है। काम की गुणवत्ता, स्वच्छता सबसे खराब स्थिति में है और रेलवे की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। "
इसी तरह की शिकायत पहले भी बिजली इंजीनियरों द्वारा संबंधित रेलवे बोर्ड अधिकारियोंको की गई। ईएमयू ट्रेनएवं मेनलाइन इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट (एमईएमयू) और इलेक्ट्रिकल ट्रैक्शन पर चलने वाले मेट्रो कोच शुरुआत से विद्युत इंजीनियरों द्वारा देखा जा रहा था परन्तुक अब यांत्रिक विभाग इस कार्य को केवल अपने स्वा र्थसिद्धि हेतु अपने पास लेना चाह रहा है। जिसके लिए नहीं तो वे तकनीकी रुप से सक्ष्मम हैं और न हीं संवैधानिक रुप से पात्र हैं। परन्तुि सभी सुरक्षा मानदंडों को ताक पर रखकर यात्रियों की सुरक्षा से गंभीर समझौता कर रहे हैं। तकनीकी तौर पर यांत्रिक इंजीनियर्स को विद्युत अधिनियम के अनुसार किसी भी विद्युत संस्थावन को प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए सक्ष्मत नहीं हैं फिर भी रेल यात्रियों की सुरक्षा को खतरे में डालकर यांत्रिक विभाग का विस्तांर करने में लगे हुए है। जिसके कारण रेलवे विभाग को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है क्योंिकि रेलवे का रख-रखाव सक्ष्मर कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा नहीं कराया जा रहा है। जो सुरक्षा की दृष्टि से यात्रियों एवं कर्मचारियों के लिए पूर्णतया असुरक्षित है।
ईएमयू व एमईएमयू के बारे में बात करते हुए, बिजली इंजीनियरों के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि इन ट्रेनों में यात्री कोच में २५००० वोल्टकी आपूर्ति होती हैजिसे अगर सही तरीके से संचालित नहीं किया गया तो इससे बड़ी दुर्घटना हो सकती है। मैकेनिकल इंजीनियरों को इस तरह के काम का कोई तकनीकी ज्ञान व योग्यीता नहीं है। ऐसे में यह प्रणाली पूर्णतया असुरक्षि त हो जाती है। इस तरह के कार्य यांत्रिक विभाग को देना बिजली अधिनियम के कानूनी प्रावधानों के खिलाफ है और यात्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से भी गंभीर है।
बिजली अधिकारियों ने पहले भी हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड में यांत्रिक अधिकारियों की नियुक्ति का विरोध किया है जो मुंबई अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना का कार्य कर रहा है। भारत सरकार के उपक्रमों में निदेशक रोलिंग स्टॉक का पदजो बिजली इंजीनियरों से भरा जाता है उस पर यांत्रिक इंजीनियर लगाया गया है जो सर्वथा अनुचित है। इस तरह का पद किसी भी मेट्रो रेल संगठन में अब तक यांत्रिक इंजीनियर द्वारा नहीं भरा गया है परन्तुं इस प्रतिष्ठित पद को अध्य क्ष, रेलवे बोर्ड (जोकि स्वीयं एक यांत्रिक इंजीनियर हैं) की मनमाने तरीके से उचित प्रक्रिया के बगैर ही यांत्रिक अधिकारी को लगा दिया गया है। दिल्ली् मेट्रो व अन्यत मेट्रो में आज तक इस तरह का कोई पद यांत्रिक इंजीनियरों को न ही दिया गया है और न ही उसकी जरूरत महसूस की गई है।
ट्रेन सेट जैसी नई ट्रेनें मूल रूप से इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट(ईएमयू/मेमू) जो विद्युत विभाग द्वारा रख-रखाव किया जा रहा था उसे भी यांत्रिक विभाग ने अपने स्वा)र्थ की आपूर्ति के लिए अपने पास रखने का अनुचित आदेश अभी हाल में रेलवे बोर्ड द्वारा जारी कर दिया गया है जिसको लेकर कई क्षेत्रीय रेलवे के महाप्रबंधकों ने लिखित रुप में विरोध जताया है।
"ट्रेन सेट प्रोजेक्ट को प्रारंभ से ही विद्युत अभियंताओं द्वारा संचालित किया जा रहा था। मैकेनिकल इंजीनियर्स के विरोध के कारण इस परियोजना को लागू करने में २५ साल की देरी हुई है। रेलवे बोर्ड और आरडीएसओ में मैकेनिकल इंजीनियरों द्वारा इस परियोजना का जमकर विरोध किया गया जिसके सबूत रिकॉर्ड के रूप में उपलब्ध हैं। अब यांत्रिक इंजीनियर्स अपने अधीन इस कार्य को लेने का पूर्ण क्रेडिट ले रहे हैं जबकि अब तक वो इस परियोजना का जोरदार विरोध कर रहे थे। यांत्रिक विभाग यात्रियों की सुरक्षा की चिंता किए बगैर अपने विभाग के विस्तार करने में लगे हुए हैं। "
बिजली के कारण कोई दुर्घटना या आग ईएमयू / ट्रेन सेट में लगती है तो उनका मुख्यी कारण मैकेनिकल इंजीनियर्स द्वारा किये गये रख-रखाव की वजह से होगी क्योंजकि वह इस कार्य के लिए सक्षम नहीं हैं। ऐसा होने पर समस्तय जनता रेलवे द्वारा लिये गये विवेकहीन फैसले को दोषी मानेगी एवं रेलवे प्रणाली पर सवाल उठाएगी जो रेलवे की प्रतिष्ठाी के अनुकूल नहीं होगा। कई प्रमुख मुख्य विद्युत अभियंताओं एवं महाप्रबंधकों ने भी वर्तमान संगठनात्मक संरचना में दखलंदाजी पर लिखित रुप से गंभीर आशंकाएं जताई हैं। रेलवे कर्मचारी फेडरेशनों द्वारा भी इसी तरह की चिंताओं को लेकर प्रशासन को अवगत कराया है। लेकिन प्रशासन अपनी हठधर्मिता को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
रेलवे मंत्रालय के लिए कैडर पुनर्गठन के अपने हालिया निर्णयों की समीक्षा करने के लिए यही उचित समय है ताकि सभी रेलवे उपक्रमों को पूर्णतया प्रशिक्षित प्रणाली से आए हुए कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा ही उसका रख-रखाव किया जाए। ऐसा करने से रेलवे यात्रियों की सुरक्षा एवं सुविधाजनक सेवाएं प्रदान की जा सकती हैं और रेलवे की गरिमा एवं विश्वरसनीयतासुनिश्चित किया जा सके।