ईश्वर दुबे
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वाशिंगटन । दुनिया कितनी मतलबी और स्वार्थी है, इसका अंदाजा इसी बात से लग सकता हैं, कि कोरोना काल में पूरी दुनिया में 10 लाख से अधिक लोगों की मौत केवल वैक्सीन की जमाखोरी की वजह से हुई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना के दौरान अधिक से अधिक वैक्सीन अपने पास रखने की देशों के लालच की वजह से करीब 13 लाख लोगों की अनावश्यक मौत हुई है, जबकि अमीर देशों ने बाद में बचे हुए वैक्सीन को बर्बाद ही किया या फिर वे एक्स्पायर हुए। रिपोर्ट में कहा गया है, अगर अमीर देश वैक्सीन की दूसरे देशों के साथ शेयरिंग पर ध्यान देते तब इन मौतों का आंकड़ा कम हो सकता था और कोरोना के नए वैरिएंट भी नहीं पनपते।
नए शोध में इसका दावा किया गया है कि कोरोना वैक्सीन के मामले में कुछ देशों ने इंसान की जिंदगी से अधिक अपने फायदे को तवज्जो दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि पूरी दुनिया में 1.3 मिलियन (करीब13 लाख) लोग अनावश्यक रूप से काल की गाल में समा गए, वहीं 300 मिलियन यानी 30 करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित हुए। शोध में दावा किया गया है कि अमीर देशों ने कोरोना वैक्सीन की जमाखोरी की, इतना ही नहीं, उस बर्बाद होने और पूरी दुनिया में कोरोना का तांडव मचने दिया और इस तरह रोकी जाने वाली मौतों को होने दिया। इतना ही नहीं, कोरोना काल को लंबा करने और उसके सब वैरिएंट के फैलने में भी अपने फायदे के लिए अमीर देशों का योगदान है।
152 विभिन्न देशों के गणितीय मॉडल का उपयोग कर महामारी की शुरुआत से 2021 के अंत तक कोरोना वैक्सीन वितरण में अंतर को रेखांकित किया है। एक्सपर्ट टीम ने अपने शोध में पाया कि वैक्सीन के वितरण में काफी भिन्नता थी। कुछ देशों के 90 फीसदी से अधिक वयस्कों ने वैक्सीन ले लिया था, जबकि कुछ देश में महज 0.9 फीसदी लोगों को ही टीका लग पाया था। शोध में कहा गया है कि कोरोना वैक्सीन के वितरण में जरूरत से अधिक धन को तरजीह दी गई। शोध में यह स्पष्ट तौर पर पाया कि भविष्य में आवश्यकता के बजाय धन के अनुपात में वैक्सीन का वितरण सभी के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इस तरह के वितरण के न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि इंटरनेशनल लेवल पर भी गंभीर परिणाम पड़ते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में अनुमानित लगभग 630 मिलियन कोरोना संक्रमण के केस आए हैं और 6.5 मिलियन से अधिक मौतें हुई हैं। डब्ल्यूएचओ की मानें तब करीब 12.8 बिलियन वैक्सीन खुराक लोगों को लगाई गई हैं, लेकिन यह कोरोना को बढ़ने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। पूरी दुनिया में कोरोना काल में वैक्सीन के लिए हाहाकार मचा था। ज्यादातर गरीब देशों में समय पर वैक्सीन इसलिए नहीं पहुंची, क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कई देश वैक्सीन का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे। इतना ही नहीं, वैक्सीन प्राप्त करने की राह में बौद्धिक संपदा कानून और पेटेंट भी एक बड़ी बाधा थी, जिसकी वजह से बहुत से गरीब देशों में वैक्सीन के अभाव में लोग कोरोना से मरते गए और इससे संक्रमित होते चले गए।