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प्रेरणा : उनके साथ थोडा वक्त गुज़ारो तो सही Featured

News Creation : अक्सर परीक्षा के परिणाम आने के बाद, परीक्षा में अच्छे प्रतिशत न ला पाने या फेल हो जाने के दुख से कई बच्चे बाहर निकल नही पाते और वोकर बैठते हैं। जो न सिर्फ उनके माता-पिता के लिए अभिशाप बन जाता है बल्कि समाज की दशा व दिशा पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा देता है। की कहां जा रहे हैं हम? क्या कभी हमने इस बारे में सोचा है?

दरअसल शुरूआत में तो हम बच्चे की बहुत केयर करते हैं लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ा होते जाता है। हम उस पर बहुत सारी चीजें जाने-अन्जाने लादने लगते हैं। हम चाहते हैं कि हमने जो डिसाइड किया है वो वही करे। अगर हम थोड़ा ध्यान लगा कर सोचें तो हम उसके साथ वही करने की कोशिश करते हैं जो हम अपने लिए नही चाहते।

हम अक्सर उसकी कमज़ोरियों पर उसकी तुलना उनसे कर देते हैं जो उस स्तर पर उनसे बेहतर होते हैं और इस छोटी सी बात को नज़रअंदाज़ कर देते हैं की दुनिया का कोई भी इंसान अपनी क्षमताओं के आधार पर ही किसी भी क्षेत्र में प्रदर्शन कर पाता है। हम अक्सर ये देखना भूल जाते हैं की उसके अंदर क्या है? यदि आपको कोई डल कहे या ये कहे की तुम नही कर सकते। तुम ज़िन्दगी में पता नही क्या करोगे। तो आपको कैसा लगेगा?

हमारी उससे अपेक्षाएं रहती हैं की वो सभी विषयों में अच्छे नम्बर्स लाए। सबसे ज्यादा प्रतिशत लाए। अच्छे रैंक लाए और अगर वो ये नही कर पाता तो हम उसकी नाकामी पर अपने मनोभाव बिना ये सोचे निकालने लगते हैं कि हमारे द्वारा किये गए व्यवहार का उस पर क्या असर पड़ेगा। सीधी सी बात कहें तो ये समझने के बजाए की वो क्या चाहता है हम उसे ये समझाने लगते हैं की हम क्या चाहते हैं। सोचिये कभी आपका बच्चा आपसे कह दे की मम्मी आपसे अच्छा खाना तो पड़ोस वाली आंटी बनाती है या ये कह दे की पापा आपसे अच्छी केयर तो पड़ोस वाले अंकल अपने बच्चों की करते है। तो आपको कैसा लगेगा? ठीक उसे भी वैसा ही लगता होगा जब आप किसी और बच्चे की विशेषता  उसके सामने रखकर उसे कमज़ोर साबित कर देते हैं।

एक बच्चा अपने मम्मी-पापा से ही सबसे ज्यादा क्लोज़ होता है और जिनसे वो सबसे ज्यादा क्लोज़ है अगर वो ही उसे नही समझेंगे तो वो नन्हीं से जान कहां जाए और ऐसे में ही बच्चे के सेंटिमेंट पर एक प्रहार होता है और वो इस दुनिया की लगभग साढ़े सात सौ करोड़ की आबादी में ख़ुद को अकेला महसूस करने लगता है और उसके अंदर ऐसी हीन भावना जन्म ले लेती है कि वो कुछ नही कर सकता। वो किसी काम का नही। वो किसी के लायक नही। उसका जीवन व्यर्थ है और ऐसे ही वक्त में वो ऐसा कुछ डिसीज़न ले लेता है जो सबके लिए एक अभिशाप बन जाता है।

दुनिया का कोई माता-पिता अपने बच्चों का बुरा नही चाहता पर जाने अंजाने हम अपने बच्चों को प्रतियोगिता का शिकार बना रहे हैं। वो प्रतियोगिता जिसका कोई अस्तित्व ही नही है। जो सिर्फ धुआं है। बाज़ारवाद का फैलाया हुआ हव्वा।

क्या आपको ऐसा लगता है कि अलबर्ट आंस्टाईन ने ये सोचकर कई अविष्कारों को जन्म दिया होगा कि उन्हें थाॅमस एल्वा एडीशन से ज्यादा अच्छी परफाॅर्मेंस करनी है या उनसे आगे निकलना है। या भारत के कई गणितज्ञ जैसे जयदेव, ब्रह्मगुप्त, महावीरा, भास्कर प्रथम इन सभी ने गणित पे शोध करते हुए कभी ये सोचा होगा की दुनिया को दशमलव देने वाले आर्यभट्ट से हमें आगे निकलना है। क्या कभी फिल्मकार राजकपूर ने सोचा होगा की मुझे महान फिल्मकार सत्य जीत रे साहब से ज्यादा अच्छी फिल्म बना के उनसे अच्छी रेंक ले आनी है। क्या कभी लाल बहादुर शास्त्री जी ने सोचा होगा की मुझे पं. जवाहर लाल नेहरू जी से अच्छा प्रधानमंत्री बनकर उनसे आगे निकल जाना है। या कभी कैलाश सत्यार्थी ने सोचा होगा की उन्हें समाज सेवा करते हुए मदर टेरेसा से आगे निकल कर ख़ुद को उनसे ज्यादा काबिल साबित करना है। नही बल्कि इन्होने वही किया जो ये करना चाहते थे और कर सकते थे।

प्रेरणा

हर किसी की अपनी योग्यता है। हम ये नही कहते की पैरेंट्स अपने बच्चों पर कंट्रोल न रखें पर वो हो उनकी गाइडेंस के तौर पर। उन्हें सही या ग़लत का फर्क बताए जाने के तौर पर। हम ये नही कहते की हर बच्चा हमने जिनके बारे में बताया सब वैसे ही महान बन जाएंगे पर हां ये ज़रूर है कि वो जब अपने मन का काम करेंगे तो ख़ुश रहेंगे और मां-बाप की सबसे बड़ी ख़ुशी बच्चों की ही ख़ुशी में तो है न।

हमें ध्यान देना होगा की हम कहीं जाने-अन्जाने उनसे अपनी बात पूरी करवाने के लिए उन पर दबाव तो नही डाल रहे या अपने सपने पूरे करवाने के लिए, उन्हें मशीन तो नही बना रहे। कहीं ऐसा तो कुछ नही कर दे रहे की उसे पूरा करने के लिए वो अपना माता-पिता के होते हुए भी इतनी बड़ी दुनिया में अकेला हो गया है और इसी अकेले पन से तंग आकर कुछ प्रतिशत कम आने पर या फेल हो जाने पर वो ऐसा फैसला कर बैठता है जो ज़िन्दगी भर के लिए हमारे लिए पछतावे का कारण बनकर रह जाता है। अगर कभी आपका बच्चा उदास हो। तो उसका मनोबल बढ़ाएं। अपनी ज़िन्दगी उसके साथ समय बिताएं। उसे विश्वास दिलाएं कि उससे जो छूटा वो कोई बहुत बड़ा अचीवमेंट नही था। अभी तो ज़िन्दगी बची है। तुम्हारा गोल कुछ और है और जब तक असफल नही होगे सफलता की कीमत तुम्हें पता नही चलेगी। जीवन में हार नाम की कोई चीज नही होती आदमी या तो जीतता है या असफल हुआ तो सीखता है। मतलब दोनो ही परिस्थितियों में फायदा आपका ही है। लगातार उसका मोरल सपोर्ट करते रहें और उसे महान कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की ये कविता सुनाएं....

माना की पथिक अकेला तू पथ भी तेरा अंजान

और ज़िंदगी भर चलना इस तरह नही आसान

पर चलने वालों को इसकी नही तनिक परवाह

बन जाती है साथी उनकी स्वयं अपरिचित राह

दिशा-दिशा बनती अनुकूल भले कितनी विपरबीत

मन के हारे हार सदा रे मन के जीते जीत

 

GulamHaiderMansoori

लेखक

गुलाम हैदर मंसूरी     

रंगमंच कलाकार व लेखक/निर्देशक छत्तीसगढ़ी सिनेमा

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Last modified on Thursday, 08 August 2019 11:06

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