ईश्वर दुबे
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Bhilai
मध्य प्रदेश में अगले महीने चुनाव है। बयानों की बयार चलेगी। चुनावी वादों की भरमार होगी। और इन सब के बीच विभिन्न राजनीतिक दल के नेता चुनाव से पहले चुनावी घोषणाओं की एक लंबी सूची लेकर जनता के बीच उनका विश्वास हासिल करने आएंगे। नेताजी दूसरे दल के नेताओं की बात को झूठा साबित करेंगे। नेताजी अपने किए हुए काम गिनाएंगे। लेकिन कोई अपने उन वादों का जिक्र तक नहीं करेगा जो उन्होंने पिछले चुनाव में जनता से किए थे। लेकिन अब चुनाव आयोग इन चुनावी वादों को जनता की कसौटी पर कसेगा।
भारत निर्वाचन आयोग के आदेश के मुताबिक मध्य प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी वीएल कांताराव ने सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि वे अपना चुनाव घोषणापत्र आयोग में जमा कराएं। कांताराव ने राजनीतिक पार्टियों से कहा, "चुनाव घोषणा पत्र जारी होने के तीन दिन के भीतर इसे चुनाव आयोग कार्यालय में जमा करवा दें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसमें ऐसा कोई वादा नहीं हो, जिसे वह पूरा नहीं कर सकें।"
साथ ही घोषणापत्र की तीन प्रतियां देनी होंगी ताकि इन चुनावी वादों का रिकॉर्ड रखा जा सके। घोषणापत्रों के परीक्षण के बाद मुख्य निर्वाचन अधिकारी इसे केंद्रीय चुनाव आयोग को भेजेंगे।
बता दें कि मैनिफेस्टो (घोषणापत्र) इटैलियन भाषा का शब्द है जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'मैनी फेस्टम' से हुई है। इसका अर्थ जनता के ‘सिद्धांत और इरादे’ से जुड़ा हुआ है। लेकिन बीतते समय के साथ यह राजनीतिक दलों से जुड़ता चला गया।
विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणापत्र एक समय के बाद विवादों में घिर जाते हैं। राष्ट्रीय पार्टियां हों या क्षेत्रीय दल या सिर्फ सुर्खियां में बने रहने वाले निर्दलीय या बागी उम्मीदवार, ज्यादातर के चुनावी घोषणापत्र में सिर्फ लोकलुभावने वादे होते हैं। उस पर भी यह ऐसे वादे होते हैं जिनके पूरे होने पर संशय होता है या थोड़े बहुत ही पूरे हो पाते हैं।
गौरतलब है कि साल 2012 में सूचना के अधिकार के तहत एक सामाजिक कार्यकर्ता ने निर्वाचन आयोग से पूछा था, 'राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणापत्रों की उपयोगिता, वादे नहीं निभाने की स्थिति में कार्रवाई और मतदाताओं को भ्रमित करने पर की जाने वाली कार्रवाई के बारे में बताएं?'
तब चुनाव आयोग ने जवाब दिया था कि आयोग इस तरह की जानकारी का संग्रह नहीं करता है और न ही आयोग को यह पता है कि यह जानकारी कहां से उपलब्ध होगी।
इन अहम सवालों के जवाब उस समय नहीं मिला पाए थे, लेकिन लगता है कि अब चुनाव आयोग ने इसकी निगरानी शुरू कर दी है। ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार चुनाव मैदान में उतर रहे जनप्रतिनिधि और राजनीतिक पार्टियां जिम्मेदारी के साथ चुनाव घोषणाएं करेंगी और अतीत की तरह किए गए आसमानी वादों से बचेंगी।