ईश्वर दुबे
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Bhilai
पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ विवादित टिप्पणी करने पर भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा और दिल्ली भाजपा के मीडिया विभाग प्रमुख नवीन कुमार जिंदल के खिलाफ जो कार्रवाई की गयी है वह नाकाफी है। जिस व्यक्ति की विवादित टिप्पणी से साम्प्रदायिक सद्भावना बिगड़े, जिस व्यक्ति की टिप्पणी से देश की छवि पर विपरीत असर पड़े उसे सिर्फ दल से ही निलंबित कर देना काफी नहीं है। वैसे भी बात सिर्फ एक नुपूर शर्मा की नहीं रह गयी है बल्कि आजकल टीवी समाचार चैनलों पर होने वाली बहसों के दौरान वक्तागण जिस तरह एक दूसरे पर चीखते चिल्लाते हैं, भड़काऊ और अमर्यादित टिप्पणियां करते हैं, एक दूसरे के धर्म को निशाना बनाते हैं, उससे सामाजिक तानेबाने पर असर पड़ रहा है। सरकार ने हालांकि कई बार मीडिया के लिए कंटेंट संबंधी गाइडलाइंस जारी की हैं लेकिन अब समय है कि इस तरह की बहसों के लिए भी दिशानिर्देश जारी किये जायें। यही नहीं देश के मुख्य मुद्दों से ध्यान हटाकर जिस तरह टीवी समाचार चैनल सिर्फ धार्मिक विषयों को ही कवरेज प्रदान करते रहते हैं उससे भी बचे जाने की जरूरत है।
नुपूर ने भाजपा का किया नुकसान
नुपूर शर्मा वैसे तो टीवी समाचार चैनलों पर भाजपा का पक्ष रखती थीं लेकिन देखा जाये तो उन्होंने ही भाजपा को सर्वाधिक नुकसान भी पहुँचाया है। उनकी एक टिप्पणी ने मोदी सरकार के किये कराये पर पानी फेरने का काम किया है। उल्लेखनीय है कि पिछले 8 सालों में मोदी सरकार के विशेष प्रयासों से इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंधों में बड़ा सुधार आया, इस्लामिक देश अब पहले की तरह विश्व मंचों पर पाकिस्तान के भारत विरोधी एजेंडे को आगे नहीं बढ़ाते बल्कि भारत के साथ खड़े दिखते हैं। यही नहीं भाजपा पर भले साम्प्रदायिक दल होने का ठप्पा कुछ लोग लगाते रहें लेकिन मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने अल्पसंख्यकों के वास्तविक कल्याण के लिए इन आठ सालों में कई कदम उठाये और योजनाओं का लाभ उन तक पहुँचाते हुए उनके जीवन में बदलाव का मार्ग प्रशस्त किया। यही नहीं मोदी सरकार की वजह से ही मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से आजादी मिली। देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल के पहले दिन से 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के सिद्धांत को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन नुपूर शर्मा और उनके जैसे कुछ अन्य बड़बोले नेता पहले माहौल बिगाड़ते हैं फिर कार्रवाई के डर से बयान वापस लेते हुए माफी मांग लेते हैं।
मोदी-भागवत से सीख लें
हमें ध्यान रखना चाहिए कि राम मंदिर का मुद्दा भले भाजपा का चुनावी वादा था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया था कि अयोध्या विवाद पर अदालत का जो फैसला आयेगा हम उसका पालन करेंगे। अभी ज्ञानवापी विवाद पर भी विभिन्न पक्षों के तमाम प्रवक्तागण टीवी चैनलों की बहसों के दौरान माहौल को गर्मा रहे थे। लेकिन जबसे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि अदालत पर विश्वास रखना चाहिए तबसे थोड़ी शांति देखने को मिल रही है। जो लोग उकसावे की राजनीति करते हैं उन्हें हाल ही में संघ प्रमुख की ओर से दिये गये संबोधन को अवश्य सुनना चाहिए। अपने संबोधन के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि किसी भी समुदाय को अतिवाद का सहारा नहीं लेना चाहिए और एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। यही नहीं भागवत ने यह भी कहा है कि 'हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं तलाशें'। इसके अलावा हाल ही में जिस तरह कुछ धर्म संसदों के आयोजनों के दौरान भी दूसरे धर्म को लेकर जो अमर्यादित टिप्पणियां की गयी थीं उससे दो समुदायों के बीच तनाव की स्थिति बन गयी थी लेकिन सरकार और अदालतों ने उन मुद्दों को बड़े अच्छे ढंग से हल किया।
नुपूर ने देश की छवि बिगाड़ी
सभी को समझना चाहिए कि बहस के दौरान विचारों और नीतियों को लेकर चर्चा हो सकती है लेकिन निजी जीवन पर कटाक्ष या किसी के धर्म का मजाक उड़ाने से बचना चाहिए। नुपूर शर्मा तो अधिवक्ता भी हैं ऐसे में उन्हें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए थी। वह चूँकि कानून की जानकार हैं इसलिए उन्हें पता होना चाहिए कि उनकी किस टिप्पणी से किस कानून का उल्लंघन हो सकता है। उनकी एक टिप्पणी से कानपुर में बवाल हो जाये, दूसरे प्रदेशों में विरोध प्रदर्शन होने लगें, खुद उन्हें जान से मारने की धमकी मिलने लगे और भारत के वरिष्ठ नेताओं के विदेशी दौरों के समय वहां की सरकारें उनसे भाजपा नेता के बयान पर आपत्ति जताने लगें तो सोचिये देश की छवि पर क्या असर पड़ा होगा। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू फिलहाल कतर की यात्रा पर हैं। जरा सोचिये जब उन्होंने इस माहौल के बीच कतर के प्रधानमंत्री व गृह मंत्री शेख खालिद बिन खलीफा बिन अब्दुलअजीज अल सानी से मुलाकात की होगी तो उन्हें कैसा महसूस हो रहा होगा? जब कतर के उप अमीर अब्दुल्ला बिन हमद बिन खलीफा अल थानी की ओर से उपराष्ट्रपति के सम्मान में दिया जाने वाला रात्रिभोज रद्द कर दिया गया तब कैसी असहज स्थिति उत्पन्न हुई होगी? यही नहीं उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू को दोहा में अपनी प्रेस कांफ्रेंस रद्द करने पर मजबूर होना पड़ा होगा तो भारतीय दल के समक्ष क्या स्थिति रही होगी? इसके अलावा एक ओर भारत सरकार भारतीय उत्पादों को ग्लोबल बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है लेकिन नुपूर शर्मा की विवादित टिप्पणी के चलते अरब देशों में ट्विटर पर भारतीय उत्पादों के बहिष्कार के लिए एक अभियान चलाया गया।
इस्लामिक देशों के बयान
हम आपको बता दें कि कतर, ईरान और कुवैत के बाद अब सऊदी अरब ने भी पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ विवादित टिप्पणियों की आलोचना करते हुए सभी से ‘‘आस्थाओं और धर्मों का सम्मान’’ किए जाने का आह्वान किया है। सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके भाजपा प्रवक्ता की टिप्पणियों की निंदा की और कहा कि इनसे पैगंबर मोहम्मद का अपमान हुआ है। यही नहीं पाकिस्तान को भी भारत के खिलाफ जहर उगलने का मौका मिल गया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ट्वीट किया, 'मैं अपने प्यारे पैगंबर के बारे में भारत के भाजपा नेता की आहत करने वाली टिप्पणियों की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं।' पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने यह आरोप भी लगाया कि मोदी के नेतृत्व में भारत धार्मिक स्वतंत्रता को कुचल रहा है और मुसलमानों को प्रताड़ित कर रहा है। उन्होंने कहा कि दुनिया को इस पर ध्यान देना चाहिए और भारत को कड़ी फटकार लगानी चाहिए। शहबाज शरीफ ने कहा कि पैगंबर के लिए हमारा प्यार सर्वोच्च है।
भाजपा हुई शर्मसार
इससे पहले, कतर, ईरान और कुवैत ने पैगंबर मोहम्मद के बारे में भाजपा नेता की विवादित टिप्पणियों को लेकर भारतीय राजदूतों को तलब किया था। खाड़ी क्षेत्र के महत्वपूर्ण देशों की ओर से जताई गयी कड़ी आपत्ति के बाद कतर और कुवैत स्थित भारतीय दूतावास को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहना पड़ा कि ''विवादित टिप्पणी किसी भी तरह से भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाती। ये संकीर्ण सोच वाले तत्वों के विचार हैं।’’ यहां खास बात यह है कि सरकार की ओर से एक तरह से भाजपा नेता को संकीर्ण सोच वाला तत्व बताया गया। यकीनन यह स्थिति भाजपा के लिए शर्मसार कर देने वाला विषय है। इसलिए भाजपा को भी बयान जारी कर कहना पड़ा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है और उसे किसी भी धर्म के पूजनीय लोगों का अपमान स्वीकार्य नहीं है।
बहरहाल, जहां तक नुपूर और नवीन के पक्ष की बात है तो इन दोनों का कहना है कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कोई इरादा नहीं था। लेकिन इन दोनों को यह तो दिख ही रहा होगा कि उनके बयानों ने कितना नुकसान किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब विभिन्न पार्टियों के प्रवक्ता संयम के साथ अपना पक्ष रखेंगे। यहाँ भारत के मुस्लिमों की तारीफ की जानी चाहिए कि वह किसी उकसावे वाली साजिश का हिस्सा नहीं बनते और सदैव कानून में विश्वास रखते हैं। नुपूर शर्मा मामले में भी अधिकांशतः सभी ने संयम का ही परिचय दिया है। प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भाजपा की ओर से अपने नेताओं के खिलाफ की गई कार्रवाई को ‘आवश्यक और सामयिक’ बताया है। दूसरी ओर, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी शुरू की तो अन्य दल भी आगे आ गये। यहां राजनीतिक दलों को समझना चाहिए कि जब देश की छवि का सवाल हो तो राजनीतिक हितों से ऊपर उठते हुए सभी को एकजुटता दिखानी चाहिए। सबको यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव का माहौल बना रहे यह सिर्फ सरकार की ही नहीं बल्कि हम सबकी भी जिम्मेदारी है। इसलिए ऐसा आचरण बिल्कुल नहीं करना चाहिए जिससे किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होती हों।
-नीरज कुमार दुबे