दलित राजनीति के दम पर चार बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं मायावती, शानदार रहा है राजनीतिक सफर Featured

90 के दौर में उत्तर प्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल लगातार चल रही थी। ऐसे में मायावती को भाजपा के सहयोग से पहली बार 1995 में मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। इस दौरान मायावती की छवि एक मजबूत नेता के तौर पर उभर कर सामने आईं। प्रशासन के साथ-साथ गठबंधन को लेकर भी मायावती सख्त रही।

 

उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल बज चुका है। सभी पार्टियां दमखम लगा रही हैं। इन सब के बीच एक ऐसे भी पार्टी है जिसे अपने साइलेंट वोटर पर सबसे ज्यादा भरोसा है। वह पार्टी बहुजन समाज पार्टी है। बहुजन समाज पार्टी की राजनीति मायावती के इर्द-गिर्द ही रहती है। आज मायावती का जन्मदिन है। मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली के सरकारी अस्पताल में हुआ था। वैसे तो मायावती का पूरा नाम मायावती नैना कुमारी है लेकिन लोगों में वह मायावती के ही नाम से मशहूर हैं। पिता सरकारी कर्मचारी थे। मायावती ने दिल्ली के कालिंदी विमेंस कॉलेज बीए की डिग्री हासिल की है। इसके बाद उन्होंने वीएमएलजी कॉलेज, गाजियाबाद से B.Ed की डिग्री भी अर्जित की। दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री इन्होंने 1983 में पूरी की। 

मायावती और उनके परिवार की इच्छा आईएएस अधिकारी बनने की थी। लेकिन धीरे-धीरे उनका झुकाव राजनीति में होने लगा। मायावती दलित एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े परिवार से संबंध रखती थीं। यही कारण था कि उन्होंने अपनी राजनीति भी दलित और पिछड़े वर्ग को ही आधार बनाकर शुरू की। कुछ वर्षों तक उन्होंने दिल्ली के जेजे कॉलोनी के एक स्कूल में शिक्षण कार्य भी किया। मायावती के जीवन में कांशीराम का बहुत बड़ा प्रभाव रहा है। काशी राम से मुलाकात के बाद ही उन्होंने राजनीति में आने का निश्चय कर लिया था। काशीराम के ही नेतृत्व में 1984 में बसपा की स्थापना हुई थी तो मायावती उनकी कोर टीम की हिस्सा थीं।

  

इसके बाद मायावती धीरे-धीरे राजनीति की सीढ़ियां चढ़ती गईं। मायावती पहली बार बिजनौर से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बनीं। इसके बाद राजनीति में उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे पार्टी में उनकी पकड़ मजबूत होती चली गई। काशीराम भी धीरे-धीरे अपनी विरासत मायावती को सौंपते चले गए। 90 के दौर में उत्तर प्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल लगातार चल रही थी। ऐसे में मायावती को भाजपा के सहयोग से पहली बार 1995 में मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। इस दौरान मायावती की छवि एक मजबूत नेता के तौर पर उभर कर सामने आईं। प्रशासन के साथ-साथ गठबंधन को लेकर भी मायावती सख्त रही। दूसरी दफा उन्होंने 21 मार्च 1997 से लेकर 20 सितंबर 1997 तक उत्तर प्रदेश की कमान संभाली। इस बार भी वह भाजपा के सहयोग से ही मुख्यमंत्री बनीं। 

 

1995 में ही 2 जून को गेस्ट हाउस कांड हुआ था। इस गेस्ट हाउस कांड ने मुलायम सिंह यादव और मायावती को कट्टर दुश्मन बना दिया। दोनों एक दूसरे को देखना नहीं चाहते थे। मायावती तीसरी बार राज्य की मुख्यमंत्री 2002 में बनीं, वह भी भाजपा के सहयोग से। हालांकि इस बार भी दोनों दलों का गठबंधन पहले की तरह मजबूत साबित नहीं हुआ और सरकार जल्द ही गिर गई। लेकिन मायावती की छवि राज्य में बढ़ती चली जा रही थी। कानून व्यवस्था के मामले में सपा सरकार की तुलना में मायावती की खूब सराहना हो रही थी और आखिरकार वह दिन भी आ गया जब बहुजन समाज पार्टी अपने दम पर चुनाव जीतकर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने की स्थिति में आ पहुंची।

 

मायावती चौथी बार 2007 में मुख्यमंत्री बनीं और 2012 तक बनी रही। अपनी सरकार को मजबूती के साथ चलाने के अलावा वह जातीय समीकरण को भी साधने में कामयाब हुईं। कानून व्यवस्था के मामले में उनकी सरकार काफी लोकप्रिय भी रही। मायावती राज्यसभा की भी सदस्य रही हैं। मायावती ने भारत के इतिहास में पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रच दिया था। 15 दिसंबर 2001 को लखनऊ के एक रैली को संबोधित करते हुए कांशीराम ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी बता दिया था। मायावती 18 सितंबर 2003 को बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं। वह 27 अगस्त 2006 को भी दूसरे कार्यकाल के लिए अध्यक्ष चुनी गईं। तीसरी और चौथी बार में भी वह निर्विरोध पार्टी की अध्यक्ष चुनी गईं।

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