ईश्वर दुबे
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Bhilai
र्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन शांतिपूर्ण आंदोलनों की तारीफ की है, जो नए नागरिकता कानून के विरोध में चल रहे हैं। उनका कहना है कि इससे भारत का लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। मैं तो इस कथन से भी थोड़ा आगे जाता हूं। मेरा कहना है कि यह आंदोलन चाहे इस गलतफहमी के आधार पर चल रहा है कि इस नए कानून से देश के मुसलमानों की नागरिकता छिन जाएगी जबकि इस कानून का संबंध सिर्फ उन मुसलमान शरणार्थियों से है, जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आ सकते हैं। भारत में रहनेवाले मुसलमान नागरिकों से इस कानून का कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन वे और उनके साथ हिंदू और सिख नौजवान मिलकर जिस उत्साह से देश में प्रदर्शन कर रहे हैं, वह अपने आप में अनुपम है। इसके कई कारण हैं। पहला, तो यही कि देश में लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। विरोध को पूरी आजादी है। दूसरा, यह आंदोलन अहिंसक है।। खून-खराबा बिल्कुल नहीं है। तीसरा, मुस्लिम महिलाएं पहली बार घर से बाहर निकल कर प्रदर्शन कर रही हैं। उनमें जागृति फैल रही है। हजार-बारह सौ साल में किसी मुस्लिम देश में भी ऐसा दृश्य कभी नहीं दिखा। चौथा, हिंदू-मुस्लिम एकता का यह प्रदर्शन भी अपूर्व है। पांचवां, मुसलमान छाती ठोक-ठोक कर कह रहे हैं कि हम उतने ही पक्के भारतीय हैं, देशभक्त हैं, जितना कि कोई और हो सकता है। इसका श्रेय भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को है। छठा, हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का सांप्रदायिक दांव नाकाम होता दिखाई पड़ रहा है। सातवां, भाजपा के आम कार्यकर्ता भी महसूस कर रहे हैं कि उनके नेताओं ने घर बैठे यह कैसी मुसीबत मोल ले ली है ? नई सरकार ने अपने गले में यह सांप क्यों लटका लिया है? कौन से मुसलमान शरणार्थी भारत में शरण मांगने आ रहे हैं ? एक काल्पनिक भूत ने देश में कोहराम मचा रखा है।